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बुधवार, 24 जुलाई 2013

निकट रहें

   मैं अपनी सहेली के साथ एक यात्रा पर थी, और किसी कारण से मेरी सहेली काफी विचलित और अधीर थी। अपनी इस मनःस्थिति के कारण, एयरपोर्ट पहुँचने पर उसे ध्यान नहीं रहा कि उसने अपना पासपोर्ट और टिकिट आदि कहाँ रखे हुए हैं। जब लाइन में उसका नम्बर आया तो इन सब को ढूँढ निकालने में काफी समय लगा और उतने समय तक वहाँ के कर्मचारी बड़े धीरज के साथ उसकी सहायता करते रहे। जब जाँच की सारी कार्यवाही हो गई और उसे प्रवेश का अनुमति-पत्र मिल गया तो मेरी सहेली ने उस कर्मचारी से पूछा, "अब आगे क्या करना है और कहाँ जाना है?" उस कर्मचारी ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर इशारा किया और कहा, "बस अपनी सहेली के निकट बनी रहिए और उनके साथ-साथ चलती रहिए।"

   जीवन की परेशानियों और दुख के समयों का सामना करने के लिए यह एक अच्छी सलाह है - अपने मित्रों के निकट बने रहें। हमारा सबसे अच्छा और सबसे निकटतम मित्र है हमारा उद्धारकर्ता प्रभु यीशु, और उसमें विश्वास द्वारा उसकी मण्डली के सदस्य हो जाने के बाद वह हमें मण्डली के अन्य सदस्यों के साथ सहभागिता में ले आता है जिससे हम एक दूसरे का ध्यान रखें, एक दूसरे का सहारा बनें और आवश्यकतानुसार एक दूसरे को उभारते और सुधारते रहें।

   प्रेरित पतरस ने अपनी पहली पत्री एक ऐसे मसीही विश्वसीयों के समूह को लिखी जो अपने मसीही विश्वास के कारण बहुत दुखों का सामना कर रहे थे और जिन्हें एक दूसरे के साथ और सहायता की आवश्यकता थी। इस पत्री के चौथे अध्याय में पतरस ने उन्हें समझाया कि वे एक दूसरे के प्रति प्रेम को बनाए रखें, एक दूसरे के लिए प्रार्थनाएं करें, एक दूसरे की पहुनाई में लगे रहें और अपने आत्मिक वरदानों का उपयोग एक दूसरे की भलाई और सेवा के लिए करते रहें (पद 7-10)। परमेश्वर के वचन बाइबल में अन्य स्थानों पर भी हम ऐसे ही निर्देश पाते हैं - जैसे परमेश्वर हमें सांत्वना देता है वैसे ही हम भी दूसरों को सांत्वना देने वाले बनें (2 कुरिन्थियों 1:3-4); हम एक दुसरे को प्रेम में बढ़ावा देने और उभारने वाले बनें (1 थिस्सलुनीकियों 5:11)।

   जब जीवन कठिन हो जाए और हम थकित अनुभव करें तो अच्छे मित्रों के निकट रहना सदा ही लाभदायक रहता है, लेकिन सबसे लाभदायक होता है प्रभु यीशु के निकट रहना, वह हमें कभी नहीं छोड़ता और कभी नहीं त्यागता (इब्रानियों 13:5)। - ऐनी सेटास


मसीही मित्रों का साथ मसीह का साथ भी बनाए रखता है।

इस कारण एक दूसरे को शान्‍ति दो, और एक दूसरे की उन्नति के कारण बनो, निदान, तुम ऐसा करते भी हो। - 1 थिस्सलुनीकियों 5:11

बाइबल पाठ: 1 पतरस 4:7-11
1 Peter 4:7 सब बातों का अन्‍त तुरन्त होने वाला है; इसलिये संयमी हो कर प्रार्थना के लिये सचेत रहो।
1 Peter 4:8 और सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो; क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढांप देता है।
1 Peter 4:9 बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे की पहुनाई करो।
1 Peter 4:10 जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्‍डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।
1 Peter 4:11 यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले, मानों परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे; तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिस से सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो: महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी की है। आमीन।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 35-36 
  • प्रेरितों 25


मंगलवार, 23 जुलाई 2013

दृष्टि

   मेरा घर अमेरिका के कोलारैडो में है। एक दिन वहाँ अपने घर बैठे बैठे ही मैंने गूगल मैप्स का उपयोग करके अफ्रीका में स्थित कीन्या देश के नैरोबी शहर के उस इलाके को विस्तार से देखा जहाँ मेरा परिवार दो दशक पहले रहा करता था। अपने कंप्यूटर स्क्रीन पर सैटलाईट द्वारा लिए और प्रेशित करे गए चित्र पर मैं वहाँ की सड़कें, इमारतें आदि देख सका और उन्हें पहचान सका। कुछ क्षेत्रों पर तो मैं बिलकुल नीचे गली के स्तर तक जा सका और वहाँ से मैं अपने चारों ओर ऐसे देखने पाया मानों मैं स्वयं ही नीचे गली में खड़ा होकर अपने आस-पास के मकान और स्थान आदि देख रहा हूँ। जो मुझे नीचे गली के स्तर पर आने के बाद नहीं दिख पाता था उसे मैं अपने दृश्य स्तर में थोड़ा और ऊपर जाकर देख सकता था। मैं निर्धारित कर सकता था कि मुझे कितना दृश्य, कितनी बारीकी से, किस दिशा से, कितनी देर तक देखना है। अमेरिका में बैठे बैठे अफ्रीका के मनचाहे इलाके को इतने विस्तरपूर्वक देख पाना, यह एक बड़ा अद्भुत अनुभव था। इस अनुभव ने मुझे यह समझने में सहायता करी कि जब मनुष्य अपने द्वारा बनाए उपकरणों की सहायता से दूर बैठे ही इतने विस्तार और प्रकार से किसी भी स्थान को बारीकी से देख सकता है तो परमेश्वर हमारे जीवनों और पृथ्वी की बातों को कितने अधिक विस्तार और बारीकी से देखता होगा तथा उनकी जानकारी रखता होगा।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में भजनकार ने परमेश्वर के पृथ्वी को देखने के बारे में लिखा: "यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, वह सब मनुष्यों को निहारता है; अपने निवास के स्थान से वह पृथ्वी के सब रहने वालों को देखता है" (भजन 33:13-14)। भजनकार आगे लिखता है कि परमेश्वर सबके कार्यों पर दृष्टि रखता है, उनके विचारों को जानता है और जो उस पर विश्वास रखते हैं और उसे समर्पित जीवन व्यतीत करते हैं उनकी रक्षा करता है।

   जो एक कंप्यूटर और सैटलाईट नहीं कर सकते, वह परमेश्वर कर सकता है - हमारे मन के अन्दर कि हर बात और हर प्रयोजन को वह भली-भांति जानता है। वह हमारी वास्तविकता जानता है और हमारी कोई मनसा उससे छिपी नहीं है, लेकिन तब भी वह हमसे प्रेम रखता है, हमारे प्रति सहनशील है, हमारी भलाई ही की योजनाएं बनाता है। इसीलिए वह चाहता है कि बजाए उससे दूर रहने के, हम उसपर विश्वास करके उसके निकट बने रहें, हर बात में उसको समर्पित रहें, उसकी आज्ञाकारिता में रहें और चलें, क्योंकि जो हम अपने स्तर पर नहीं देख पाते वह अपने स्तर पर होकर पहले से देखता और जानता है और आने वाली हानि से बचने के उपाय हमें सुझाता है। परमेश्वर की दृष्टि से कोई ओझल नहीं रह सकता, और जिन्होंने उसे अपना जीवन समर्पित किया है उनकी सुरक्षा और भलाई के लिए उन पर तो वह विशेष बारीकी से अपनी दृष्टि बनाए रखता है।

   हम मसीही विश्वासियों के लिए यह एक बहुत शांतिदायक और उत्साहवर्धक बात है कि हम अपने प्रभु और उद्धारकर्ता की दृष्टि से कभी ओझल नहीं रहते। वह सदा हम पर अपनी दृष्टि बनाए रखता है और अपनी आँख की पुतली के समान हमारी रक्षा करता है: "...क्योंकि जो तुम को छूता है, वह मेरी आंख की पुतली ही को छूता है" (ज़कर्याह 2:8)। - डेविड मैक्कैसलैंड


अपनी दृष्टि परमेश्वर कि ओर लगाए रखें क्योंकि उसकी दृष्टि सदा आप पर बनी रहती है।

क्योंकि प्रभु की आंखे धर्मियों पर लगी रहती हैं, और उसके कान उन की बिनती की ओर लगे रहते हैं, परन्तु प्रभु बुराई करने वालों के विमुख रहता है। - 1 पतरस 3:12 

बाइबल पाठ: भजन 33:12-22
Psalms 33:12 क्या ही धन्य है वह जाति जिसका परमेश्वर यहोवा है, और वह समाज जिसे उसने अपना निज भाग होने के लिये चुन लिया हो!
Psalms 33:13 यहोवा स्वर्ग से दृष्टि करता है, वह सब मनुष्यों को निहारता है;
Psalms 33:14 अपने निवास के स्थान से वह पृथ्वी के सब रहने वालों को देखता है,
Psalms 33:15 वही जो उन सभों के हृदयों को गढ़ता, और उनके सब कामों का विचार करता है।
Psalms 33:16 कोई ऐसा राजा नहीं, जो सेना की बहुतायत के कारण बच सके; वीर अपनी बड़ी शक्ति के कारण छूट नहीं जाता।
Psalms 33:17 बच निकलने के लिये घोड़ा व्यर्थ है, वह अपने बड़े बल के द्वारा किसी को नहीं बचा सकता है।
Psalms 33:18 देखो, यहोवा की दृष्टि उसके डरवैयों पर और उन पर जो उसकी करूणा की आशा रखते हैं बनी रहती है,
Psalms 33:19 कि वह उनके प्राण को मृत्यु से बचाए, और अकाल के समय उन को जीवित रखे।
Psalms 33:20 हम यहोवा का आसरा देखते आए हैं; वह हमारा सहायक और हमारी ढाल ठहरा है।
Psalms 33:21 हमारा हृदय उसके कारण आनन्दित होगा, क्योंकि हम ने उसके पवित्र नाम का भरोसा रखा है।
Psalms 33:22 हे यहोवा जैसी तुझ पर हमारी आशा है, वैसी ही तेरी करूणा भी हम पर हो।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 33-34 
  • प्रेरितों 24


सोमवार, 22 जुलाई 2013

सर्वोत्तम तर्क

   मुझे एक आठ घंटे लंबी रेल यात्रा करनी थी, और संयोग से मेरे साथ वाली सीट पर एक सेवा-निवृत अमेरीकी राजदूत बैठा हुआ था। यात्रा के समय पढ़ने के लिए जैसे ही मैंने अपनी बाइबल निकाली, उसने एक लंबी ठंडी साँस ली, और वहीं से हमारी तकरार आरंभ हो गई। पहले तो हम आपस में एक दूसरे पर उत्तर-प्रत्युत्तर द्वारा ताने कसते रहे, लेकिन धीरे धीरे इस टीका-टिपण्णी और बातचीत में हमारे अपने अपने जीवन के अंश तथा व्यक्तिगत अनुभव भी सम्मिलित होने लगे और हमारा वार्तालाप ताने मारने से हटकर चर्चा करने की ओर मुड़ गया। फिर एक दूसरे के कार्य जीवन तथा संबंधित अनुभवों की जिज्ञासा के कारण हम एक दूसरे के कार्य के बारे में सवाल-जवाब करने लगे - वह राजनीति शास्त्र का अनुभवी और दो महत्वपूर्ण स्थानों पर राजदूत का पद संभाल चुका विद्वान था और मैं राजनीति में हलकी-फुलकी शौकिया रुचि रखने वाला साधारण सा व्यक्ति।

   फिर हमारी बात एक दूसरे के व्यक्तिगत जीवन और अनुभवों की ओर मुड़ी और हम एक दूसरे के बारे में और अधिक जानने का प्रयास करने लगे। मैंने देखा कि उसकी रुचि मेरे जीवन में कम किंतु मेरे मसीही विश्वास में अधिक थी; उसकी सबसे बड़ी जिज्ञासा थी यह जानना कि मैं एक मसीही विश्वासी कैसे बना। तानेबाज़ी से आरंभ हुआ यह वार्तालाप रेल यात्रा समाप्त होते समय मित्रभाव के साथ अन्त हुआ और हमने विदा होते समय एक दूसरे के साथ अपने परिचय कार्ड भी अदला-बदली किए। जाते जाते वह मेरी ओर मुड़कर बोला, "आपके तर्क और बातचीत का सब से उत्त्म भाग यह नहीं है कि मसीह यीशु मेरे लिए क्या कर सकता है, वरन यह कि उसने आपके लिए और आपके जीवन में क्या किया है।"

   उस राजनितिज्ञ की यह बात बहुत सार्थक है, शायद वह जानता भी नहीं था कि उसकी यह बात परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार भी है - हमारे मसीही विश्वास की हमारी गवाही ही हमें पाप तथा शैतान की बातों पर जयवन्त करती है (प्रकाशितवाक्य 12:11) और हमें हमारे उद्धाकर्ता प्रभु के लिए प्रभावी बनाती हैं। हमारे मसीही जीवन की सबसे प्रभावी बात हमारा बाइबल ज्ञान नहीं वरन प्रभु यीशु के साथ हुआ हमारा साक्षात्कार और उसके फलस्वरूप हमारे जीवन में आया परिवर्तन है। यह वह अनुभव है जिसे किसी को हमें सिखाने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि हम से अधिक इस के बारे में कोई नहीं जानता और आपके जीवन परिवर्तन का तर्क ही आपका सबसे प्रभावी तर्क है, क्योंकि उसका किसी रीति से इन्कार हो ही नहीं सकता।

   क्या आप एक मसीही विश्वासी हैं, और अपने उद्धारकर्ता प्रभु के लिए उपयोगी तथा प्रभावी होना चाहते हैं? अपने जीवन की गवाही बाँटना, अर्थात, मसीह यीशु द्वारा आपके जीवन में किए गए कार्यों का बयान करना आरंभ कर दीजिए। परिणाम आपको भी अचंभित कर देंगे। - रैन्डी किल्गोर


लोग विश्वास की सच्ची कहानियों को पहचानना जानते हैं और पहचानते भी हैं।

और वे मेम्ने के लोहू के कारण, और अपनी गवाही के वचन के कारण, उस पर जयवन्‍त हुए, और उन्होंने अपने प्राणों को प्रिय न जाना, यहां तक कि मृत्यु भी सह ली। - प्रकाशितवाक्य 12:11 

बाइबल पाठ: मरकुस 5:1-20
Mark 5:1 और वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुंचे।
Mark 5:2 और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिस में अशुद्ध आत्मा थी कब्रों से निकल कर उसे मिला।
Mark 5:3 वह कब्रों में रहा करता था। और कोई उसे सांकलों से भी न बान्‍ध सकता था।
Mark 5:4 क्योंकि वह बार बार बेडिय़ों और सांकलों से बान्‍धा गया था, पर उसने सांकलों को तोड़ दिया, और बेडिय़ों के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था।
Mark 5:5 वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ो में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था।
Mark 5:6 वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया।
Mark 5:7 और ऊंचे शब्द से चिल्लाकर कहा; हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूं, कि मुझे पीड़ा न दे।
Mark 5:8 क्योंकि उसने उस से कहा था, हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ।
Mark 5:9 उसने उस से पूछा; तेरा क्या नाम है? उसने उस से कहा; मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत हैं।
Mark 5:10 और उसने उस से बहुत बिनती की, हमें इस देश से बाहर न भेज।
Mark 5:11 वहां पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था।
Mark 5:12 और उन्होंने उस से बिनती कर के कहा, कि हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं।
Mark 5:13 सो उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर पैठ गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाडे पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा।
Mark 5:14 और उन के चरवाहों ने भागकर नगर और गांवों में समाचार सुनाया।
Mark 5:15 और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। और यीशु के पास आकर, वे उसको जिस में दुष्टात्माएं थीं, अर्थात जिस में सेना समाई थी, कपड़े पहिने और सचेत बैठे देखकर, डर गए।
Mark 5:16 और देखने वालों ने उसका जिस में दुष्टात्माएं थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उन को कह सुनाया।
Mark 5:17 और वे उस से बिनती कर के कहने लगे, कि हमारे सिवानों से चला जा।
Mark 5:18 और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिस में पहिले दुष्टात्माएं थीं, उस से बिनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे।
Mark 5:19 परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, अपने घर जा कर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया कर के प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं।
Mark 5:20 वह जा कर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 31-32 
  • प्रेरितों 23:16-35


रविवार, 21 जुलाई 2013

दृष्टिकोण और भविष्य

   अपने जीवन के एक लम्बे समय तक मैं उन लोगों के समान ही दृष्टीकोण रखता था जो परमेश्वर के विरुद्ध हैं क्योंकि परमेश्वर ने संसार में पीड़ा को होने दिया है। मैं किसी भी रीति से इस भिन्न-भिन्न प्रकार की पीड़ाओं से भरे विषाक्त संसार को तर्कसंगत नहीं मान सकता था। लेकिन जब मेरा मेलजोल उन लोगों से हुआ जो मुझ से भी अधिक दुख अथवा पीड़ा में से हो कर निकल रहे थे, तो उनके जीवन में इसके प्रभाव को देखकर मैं चकित हुआ। मैंने देखा कि दुख और पीड़ा एक समान ही दो भिन्न कार्य कर सकते हैं, परमेश्वर और उसके कार्यों के प्रति सन्देह उत्पन्न करना, या परमेश्वर में विश्वास और भी दृढ़ कर देना।

   दुख और पीड़ा को लेकर परमेश्वर के विरुद्ध मेरा वैमनस्य एक बात के कारण जाता रहा है - क्योंकि अब मैं परमेश्वर को जानने लगा हूँ और उस पर विश्वास रखता हूँ। उसे इस प्रकार व्यक्तिगत रीति से जानने और उस पर विश्वास लाने से मेरे जीवन में आनन्द, प्रेम और भलाई भर गए हैं। अब मेरा विश्वास मनुष्यों द्वारा गढ़ी गई किसी धारणा या विचारधारा, या किसी किंवदंती अथवा काल्पनिक बात पर नहीं वरन एक प्रमाणित और जीवित ऐतिहासिक व्यक्ति - प्रभु यीशु मसीह पर है, और मेरे प्रभु ने मुझे ऐसा दृढ़ विश्वास दिया है जो किसी भी दुख अथवा पीड़ा से काटा नहीं जा सकता और ना ही कम हो सकता है।

   बहुत से लोगों के मन में प्रश्न रहता है - जब दुख और पीड़ा आती हैं तब परमेश्वर कहाँ होता है? उत्तर स्पष्ट और जगविदित है - वहीं जहाँ आपने अपने जीवन में उसे रखा है। यदि परमेश्वर आप के जीवन का स्वामी है, आपने अपना जीवन उसे समर्पित किया है, और उसकी इच्छानुसार अपना जीवन व्यतीत करने के प्रयास में रहते हैं तो वह आपके जीवन का रखवाला भी है, और हर परिस्थिति में वह आपके साथ बना रहता है और आपकी हर पीड़ा को वह सहता भी है और आपको उसे सहने और उस पर जयवंत होने की सामर्थ भी देता है। यदि आपने परमेश्वर को अपने जीवन से दूर कर रखा है, आप स्वयं अपने जीवन के स्वामी हैं और अपनी मन-मर्ज़ी से, अपनी ही लालसाओं और इच्छाओं की पूर्ति के लिए जीवन व्यतीत करते हैं, तो परमेश्वर भी आपके निर्णय का आदर करते हुए आपके जीवन की किसी बात में दखलंदाज़ी नहीं करता।

   दुख और पीड़ा परमेश्वर द्वारा करी गई सृष्टि की रचना का भाग नहीं हैं; इनका सृष्टि में प्रवेश मनुष्य द्वारा परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता और पाप का परिणाम है। जहाँ पाप की उपस्थिति है, वहाँ परमेश्वर कि उपस्थिति नहीं रह सकती है और ऐसी स्थिति शैतान को खुली रीति से अपना कार्य करने की पूरी छूट है। लेकिन परमेश्वर शैतान और उसके कार्यों के प्रति मजबूर नहीं है। परमेश्वर की सामर्थ ऐसी है कि वह शैतान द्वारा लाई गई दुख और पीड़ा की परिस्थितियों को भी अपने बच्चों की भलाई के लिए प्रयोग कर लेता है, उन्हें अपने बारे में और भी गहराई से सिखाने के लिए और अपने प्रति उनके विश्वास को और भी अधिक दृढ़ करने के लिए। इसीलिए आप पाएंगे कि जो लोग मसीही विश्वास में दृढ़ हैं, दुख और पीड़ाएं उनके जीवनों को परमेश्वर के और भी निकट ले आती हैं और उन परिस्थितियों में भी वे एक अद्भुत शांति के साथ रहते हैं, जो संसार की किसी भी शांति से बिलकुल भिन्न तथा श्रेष्ठतम होती है (यूहन्ना 14:27; 16:33)।

   हमारे उद्धाकर्ता प्रभु यीशु ने हमारे लिए दुख और पीड़ा व्यक्तिगत रूप में सहे हैं, वह अपने प्रीयों के दुख को अनुभव करके रोया भी है; आताताईयों द्वारा बड़ी निर्मम रीति से उसका शरीर तोड़ा गया है और उसका लहू बहाया गया है; उसने संसार के हर अपमान, तिरिस्कार और बेवजह क्रूरता को मृत्यु तक सहा है। इसीलिए वह हमारी हर पीड़ा और दुख को जानता है और सदा अपने विश्वासियों के साथ बना रहता है, उन्हें सामर्थ देता रहता है और इन परिस्थितियों द्वारा अपने लोगों को तराश कर, चमका कर, उनके जीवनों से व्यर्थ बातों को निकालकर उन्हें सिद्ध और अपने ही स्वरूप के लोग बना रहा है; "...हम उसी तेजस्‍वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं" (2 कुरिन्थियों 3:18)। एक दिन आएगा, और संसार के हालात गवाह हैं कि शीघ्र ही आएगा, जब शैतान, पीड़ा और दुख का अन्त किया जाएगा और सृष्टि पर पुनः परमेश्वर का राज्य और शांति स्थापित हो जाएगी।

   क्या आप उस दिन के लिए और उस दिन परमेश्वर के सामने खड़े होने के लिए तैयार हैं? यदि नहीं तो आज अवसर है, हो जाईए; प्रभु यीशु से पापों की क्षमा और उसे जीवन समर्पण की मन से निकली एक प्रार्थना आपका दृष्टिकोण और भविष्य दोनों ही भले के लिए बदल देगी। - फिलिप यैन्सी


दुख और पीड़ा संसार के लोगों को परमेश्वर के विमुख कर सकते हैं परन्तु एक मसीही विश्वासी को परमेश्वर के और निकट ले आते हैं।

मैं तुम्हें शान्‍ति दिए जाता हूं, अपनी शान्‍ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। - यूहन्ना 14:27

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 15:51-58
1 Corinthians 15:51 देखो, मैं तुम से भेद की बात कहता हूं: कि हम सब तो नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे।
1 Corinthians 15:52 और यह क्षण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा: क्योंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जांएगे, और हम बदल जाएंगे।
1 Corinthians 15:53 क्योंकि अवश्य है, कि यह नाशमान देह अविनाश को पहिन ले, और यह मरनहार देह अमरता को पहिन ले।
1 Corinthians 15:54 और जब यह नाशमान अविनाश को पहिन लेगा, और यह मरनहार अमरता को पहिन लेगा, तब वह वचन जो लिखा है, पूरा हो जाएगा, कि जय ने मृत्यु को निगल लिया।
1 Corinthians 15:55 हे मृत्यु तेरी जय कहां रही?
1 Corinthians 15:56 हे मृत्यु तेरा डंक कहां रहा? मृत्यु का डंक पाप है; और पाप का बल व्यवस्था है।
1 Corinthians 15:57 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, जो हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा हमें जयवन्‍त करता है।
1 Corinthians 15:58 सो हे मेरे प्रिय भाइयो, दृढ़ और अटल रहो, और प्रभु के काम में सर्वदा बढ़ते जाओ, क्योंकि यह जानते हो, कि तुम्हारा परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नहीं है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 29-30 
  • प्रेरितों 23:1-15


शनिवार, 20 जुलाई 2013

बैडलैम

   इंगलैंड का शाही युद्ध संग्रहालय एक ऐसी इमारत में बनाया गया जो कभी बैथलैहम रॉयल अस्पताल हुआ करती थी और जहाँ मानसिक रोगियों का इलाज किया जाता था। इस अस्पताल का एक लघु नाम ’बैडलैम’ भी होता था, और धीरे धीरे यह शब्द बैडलैम एक संज्ञा बन गया किसी अव्यवस्था और पागलपन की स्थिति के लिए। यह एक विचित्र विडंबना है कि शाही संग्रहालय उस इमारत में स्थित है जो कभी ’बैडलैम’ होती थी। संग्रहालय में विचरण करते हुए आप युद्ध के समयों की वीरता और बलिदान की अद्भुत गाथाएं तो पाएंगे ही, लेकिन साथ ही आपको दिल दहला देने वाले और शरीर में ठंडी सिहरन उत्पन्न करने वाले मनुष्य के प्रति मनुष्य के अमानुषिक कृत्यों, वीभत्सता और पागलपन की कहानीयां भी मिलेंगी; ऐसे हृदयविदारक कुकृत्य जो जातिवाद और नस्लवाद को आधार बना कर करे गए।

   परमेश्वर के वचन बाइबल के एक नायक राजा सुलेमान ने मानव जाति के बुराई करने के प्रति रुझान के विषय में लिखा: "जो बुराई करने से आनन्दित होते हैं, और दुष्ट जन की उलट फेर की बातों में मगन रहते हैं" (नीतिवचन 2:14)। चाहे सुलेमान का यह कथन हमारे चारों ओर विद्यमान और व्याप्त बुराई का वर्णन हो सकता है, लेकिन मसीह यीशु के अनुयायियों के पास जीवन को संचालित करने का भिन्न और उत्साहवर्धक दृष्टिकोण उपलब्ध रहता है। प्रेरित पौलुस ने लिखा: "बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो" (रोमियों 12:21)। इस विजय का आधार है हमारे तथा जगत के उद्धारकर्ता मसीह यीशु के स्वभाव के अनुसार जीया गया जीवन, जिसमें बदला ना लेना (पद 17), भरसक शांति तथा मेल-मिलाप बनाए रखना (पद 18) तथा अपने बैरियों के प्रति भी नेक व्यवहार रखना (पद 20) आदि बातें प्राथमिकता पाती हैं और ये संसार पर एक भला प्रभाव डालती हैं।

   यदि हम में से प्रत्येक परमेश्वर के प्रेम को प्रतिबिंबित करने वाला जीवन जीने लगे तो संसार में ’बैडलैम’ बहुत ही कम रह जाएगा। - बिल क्राउडर


पाप और उत्पीड़न के अंधकार से ग्रस्त संसार को प्रेम और सहानुभूति रखने वाले मसीही विश्वासीयों की ज्योति की बहुत आवश्यकता है।

जो सीधाई के मार्ग को छोड़ देते हैं, ताकि अन्धेरे मार्ग में चलें; जो बुराई करने से आनन्दित होते हैं, और दुष्ट जन की उलट फेर की बातों में मगन रहते हैं; - नीतिवचन 2:13-14

बाइबल पाठ: रोमियों 12:9-20
Romans 12:9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो।
Romans 12:10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।
Romans 12:11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो।
Romans 12:12 आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो।
Romans 12:13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।
Romans 12:14 अपने सताने वालों को आशीष दो; आशीष दो श्राप न दो।
Romans 12:15 आनन्द करने वालों के साथ आनन्द करो; और रोने वालों के साथ रोओ।
Romans 12:16 आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनों के साथ संगति रखो; अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो।
Romans 12:17 बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो।
Romans 12:18 जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।
Romans 12:19 हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा।
Romans 12:20 परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा।
Romans 12:21 बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 26-28 
  • प्रेरितों 22


शुक्रवार, 19 जुलाई 2013

भय

   यदि आप सुप्रसिद्ध अंग्रेज़ी नाट्यकार शेक्सपियर के लिखे नाटकों को पसन्द करते हैं तो आपने एक बात उनके नाटकों में देखी होगी - उनके नायकों के चरित्र में कोई ना कोई गंभीर दोष अवश्य होता है। यह बात कहानी को रोचक तो बनाती ही है, साथ ही उन चरित्रों से सीखने के लिए भी कई अवसर प्रदान करती है। कुछ यही बात परमेश्वर के वचन बाइबल के एक नायक अब्राहम के विषय में भी सत्य है; उसके चरित्र में दोष था उसका भय।

   बाइबल में लिखी उसके जीवनी में हम पाते हैं कि दो बार वह अपने इस भय के आगे झुक गया कि शासक उसे मारकर उसकी पत्नि सारा को अपनी कर लेंगे (उत्पत्ति 12:11-20; 20:2-13)। अपनी जान को खतरा जान कर उसने फिरौन और राजा अभिमेलेक दोनों को यह कह कर धोखा दिया कि उसकी पत्नि सारा उसकी बहन है; यह एक तरह से उन अधिपतियों को छूट देना था कि वे चाहें तो सारा को अपने हरम में ले लें! अपनी जान बचाने के लिए अब्राहम ने ना केवल सारा की जान और जीवन जोखिम में डाली, वरन परमेश्वर की योजना कि सारा और अब्राहम से वह एक बड़ी जाति उत्पन्न करेगा, को भी जोखिम में डाल दिया। लेकिन परमेश्वर की योजनाएं मनुष्य की कमज़ोरियों से नहीं टलतीं; परमेश्वर ने सारा और अब्राहम दोनों ही को सुरक्षित रखा और अन्ततः उन दोनों से ही इस्त्राएली जाति का उद्गम हुआ।

   लेकिन इससे पहले कि हम अब्राहम पर ऊँगुली उठाएं और उसे कायर या दोषी कहें, भला होगा कि आज के अपने मसीही विश्वास के संदर्भ में हम अपने आप से कुछ प्रश्न कर लें: क्या अपनी नौकरी खो बैठने के डर से या अपने उच्च अधिकारियों को प्रसन्न करने के लिए हम अपनी सत्यनिष्ठा, सच्चाई और खराई के साथ कोई समझौता तो नहीं करने लगते हैं? लोगों में ’पुरानी विचारधारा’ का कहलाने और मज़ाक उड़ाए जाने के भय से क्या हम कभी अपने विश्वास और अपनी मान्यतओं को आवश्यकतानुसार एक किनारे तो नहीं कर देते? अपमानित होने या गलत समझे जाने के भय से क्या हम प्रभु यीशु में संसार के सभी लोगों के लिए पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार को लोगों के सामने रखने से लज्जाते हैं और दूसरों का अनन्त भविष्य खतरे में डालते हैं?

   ये और ऐसे ही बहुत से भय हैं जिनका सामना हमें प्रतिदिन करना होता है, और जिन पर विजयी होना हमें बहुत कठिन या असंभव लगता है, तथा जिनसे समझौता करना बहुत सरल और स्वाभाविक। केवल एक ही बात है जो हमारे हर भय पर हमें विजयी करेगी - परमेश्वर की हमारे साथ सदा बनी रहने वाली उपस्थिति, सुरक्षा, सामर्थ और प्रतिज्ञाओं पर दृढ़ एवं अडिग विश्वास।

   यदि आपके भय परमेश्वर द्वारा आपके लिए निर्धारित करी गई अद्भुत योजनाओं के आड़े आ रहे हैं, तो सदा समरण रखिए कि वह आपसे कभी कुछ भी ऐसा करने को नहीं कहेगा जिसे पूरा करने की सामर्थ उसने आपको प्रदान नहीं करी है। अपनी निर्धारित हर बात को पूरा करवाने के लिए वह सदा आपके साथ है, और आपसे पूरा करवाएगा भी; चाहे इसके लिए उसे कोई चमत्कारिक हस्तक्षेप ही क्यों ना करना पड़े। - जो स्टोवैल


अपने विश्वास को अपने भय पर हावी हो जाने दें और परमेश्वर आपकी चिन्ताओं को आराधना में बदल देगा।

इब्राहीम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे। - उत्पत्ति 20:11

बाइबल पाठ: 20:2-13
Genesis 20:1 फिर इब्राहीम वहां से कूच कर दक्खिन देश में आकर कादेश और शूर के बीच में ठहरा, और गरार में रहने लगा।
Genesis 20:2 और इब्राहीम अपनी पत्नी सारा के विषय में कहने लगा, कि वह मेरी बहिन है: सो गरार के राजा अबीमेलेक ने दूत भेज कर सारा को बुलवा लिया।
Genesis 20:3 रात को परमेश्वर ने स्वप्न में अबीमेलेक के पास आकर कहा, सुन, जिस स्त्री को तू ने रख लिया है, उसके कारण तू मर जाएगा, क्योंकि वह सुहागिन है।
Genesis 20:4 परन्तु अबीमेलेक तो उसके पास न गया था: सो उसने कहा, हे प्रभु, क्या तू निर्दोष जाति का भी घात करेगा?
Genesis 20:5 क्या उसी ने स्वयं मुझ से नहीं कहा, कि वह मेरी बहिन है? और उस स्त्री ने भी आप कहा, कि वह मेरा भाई है: मैं ने तो अपने मन की खराई और अपने व्यवहार की सच्चाई से यह काम किया।
Genesis 20:6 परमेश्वर ने उस से स्वप्न में कहा, हां, मैं भी जानता हूं कि अपने मन की खराई से तू ने यह काम किया है और मैं ने तुझे रोक भी रखा कि तू मेरे विरुद्ध पाप न करे: इसी कारण मैं ने तुझ को उसे छूने नहीं दिया।
Genesis 20:7 सो अब उस पुरूष की पत्नी को उसे फेर दे; क्योंकि वह नबी है, और तेरे लिये प्रार्थना करेगा, और तू जीता रहेगा: पर यदि तू उसको न फेर दे तो जान रख, कि तू, और तेरे जितने लोग हैं, सब निश्चय मर जाएंगे।
Genesis 20:8 बिहान को अबीमेलेक ने तड़के उठ कर अपने सब कर्मचारियों को बुलवा कर ये सब बातें सुनाई: और वे लोग बहुत डर गए।
Genesis 20:9 तब अबीमेलेक ने इब्राहीम को बुलवा कर कहा, तू ने हम से यह क्या किया है? और मैं ने तेरा क्या बिगाड़ा था, कि तू ने मेरे और मेरे राज्य के ऊपर ऐसा बड़ा पाप डाल दिया है? तू ने मुझ से वह काम किया है जो उचित न था।
Genesis 20:10 फिर अबीमेलेक ने इब्राहीम से पूछा, तू ने क्या समझ कर ऐसा काम किया?
Genesis 20:11 इब्राहीम ने कहा, मैं ने यह सोचा था, कि इस स्थान में परमेश्वर का कुछ भी भय न होगा; सो ये लोग मेरी पत्नी के कारण मेरा घात करेंगे।
Genesis 20:12 और फिर भी सचमुच वह मेरी बहिन है, वह मेरे पिता की बेटी तो है पर मेरी माता की बेटी नहीं; फिर वह मेरी पत्नी हो गई।
Genesis 20:13 और ऐसा हुआ कि जब परमेश्वर ने मुझे अपने पिता का घर छोड़ कर निकलने की आज्ञा दी, तब मैं ने उस से कहा, इतनी कृपा तुझे मुझ पर करनी होगी: कि हम दोनों जहां जहां जाएं वहां वहां तू मेरे विषय में कहना, कि यह मेरा भाई है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 23-25 
  • प्रेरितों 21:18-40


गुरुवार, 18 जुलाई 2013

विजयी

   भजनकार "अहंकारियों के अपमान" से बहुत आहत और परेशान हो गया था (भजन 123:4); संभवतः आप भी हो गए हों। आपके पड़ौस के, दफतर के, या कक्षा के लोग शायद आपके मसीही विश्वास का उपहास करते हों और मसीह यीशु का अनुकरण करने के आपके निर्णय को ठट्ठों में उड़ाते हों। लाठी और पत्थर तो केवल हमारे शरीरों को ही घाव देते और हमारी हड्डियाँ ही तोड़ते हैं, लेकिन शब्दों के घाव और भी गहरे तथा पीड़ादायक होते हैं, और उन उपहास करने वालों के शब्द-बाणों ने आपको गहरे और पीड़ादायक घाव दे रखे हों।

   ऐसे अहंकारियों के उपहास का प्रत्युत्तर देने के दो तरीके हो सकते हैं; या तो हम उन के समान हो जाएं और ईंट का जवाब पत्थर से देने लगें, अन्यथा उनके इस उपहास को अपने लिए आदर की बात और सही मार्ग पर होने का प्रमाण समझें! परमेश्वर का वचन भी हमें यही, दूसरा विकल्प ही सिखाता है: "फिर यदि मसीह के नाम के लिये तुम्हारी निन्‍दा की जाती है, तो धन्य हो; क्योंकि महिमा का आत्मा, जो परमेश्वर का आत्मा है, तुम पर छाया करता है" (1 पतरस 4:14)। हमारे लिए थोड़े समय के लिए यह निन्दा सहना, अनन्तकाल तक क्लेष सहने से कहीं उत्तम है।

   मसीह यीशु ने अपने चेलों को सिखाया "परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो" (मत्ती 5:44); इसलिए पहला विकल्प - उपहास का वैसा ही प्रत्युत्तर देना, और "ईंट का जवाब पत्थर से देना" हम मसीही विश्वासीयों के लिए नहीं है। इसके विपरीत परमेश्वर का वचन हमें निर्देश देता है कि "अपने सताने वालों को आशीष दो; आशीष दो श्राप न दो" (रोमियों 12:14)। ऐसा करने से ही हम बुराई पर विजयी होने पाएंगे अन्यथा अपना पलटा आप लेने से तो हम बुराई को और बढ़ावा ही देंगे, उसे मिटाने नहीं पाएंगे - क्या मानव जति के इतिहास में आज तक कभी किसी युद्ध या बदले में किए गए वार ने किसी समस्या का अन्त किया है? जो भी समाधान निकले हैं वे आपसी समझौते और परस्पर एक दूसरे को आदर देने से ही संभव हुए हैं, पलटा लेने से नहीं।

   परमेश्वर हमारी हर परिस्थिति को जानता है और वह हर बात में हमारे लिए भलाई भी उत्पन्न करता है। लोगों के उपहास और निन्दा के द्वारा भी: "हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, यह जान कर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है। पर धीरज को अपना पूरा काम करने दो, कि तुम पूरे और सिद्ध हो जाओ और तुम में किसी बात की घटी न रहे" (याकूब 1:2-4)। जब हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता को भी इन बातों का सामना करना पड़ा तो हम जो उसके अनुयायी हैं, इन सब से कैसे बच कर रह सकते हैं? लेकिन जैसे मसीह यीशु के लिए, वैसे ही हम मसीही विश्वासियों के लिए भी ये दुख आदर और आशीष का कारण ही बनेंगे: "सो जब कि मसीह ने शरीर में हो कर दुख उठाया तो तुम भी उस ही मनसा को धारण कर के हथियार बान्‍ध लो क्योंकि जिसने शरीर में दुख उठाया, वह पाप से छूट गया। ताकि भविष्य में अपना शेष शारीरिक जीवन मनुष्यों की अभिलाषाओं के अनुसार नहीं वरन परमेश्वर की इच्छा के अनुसार व्यतीत करो" (1 पतरस 4:1-2)।

   बिना युद्ध भूमि में जाए विजय प्राप्त नहीं होती; लेकिन अपने प्रत्येक संतान से परमेश्वर का यह वायदा भी है कि हमें केवल युद्ध भूमि में जाकर खड़ा ही होना है, युद्ध परमेश्वर का है और विजयी सामर्थ भी वही देगा। इसलिए, "बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो" (रोमियों 12:21)। - डेविड रोपर


जब औरों के व्यवहार से आप अपने आप को आहत और अपमानित अनुभव करें तो मसीह यीशु की ओर देखिए।

हमारा जीव सुखी लोगों के ठट्ठों से, और अहंकारियों के अपमान से बहुत ही भर गया है। - भजन 123:4 

बाइबल पाठ: रोमियों 12:9-21
Romans 12:9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो।
Romans 12:10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो।
Romans 12:11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो।
Romans 12:12 आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो।
Romans 12:13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।
Romans 12:14 अपने सताने वालों को आशीष दो; आशीष दो श्राप न दो।
Romans 12:15 आनन्द करने वालों के साथ आनन्द करो; और रोने वालों के साथ रोओ।
Romans 12:16 आपस में एक सा मन रखो; अभिमानी न हो; परन्तु दीनों के साथ संगति रखो; अपनी दृष्टि में बुद्धिमान न हो।
Romans 12:17 बुराई के बदले किसी से बुराई न करो; जो बातें सब लोगों के निकट भली हैं, उन की चिन्ता किया करो।
Romans 12:18 जहां तक हो सके, तुम अपने भरसक सब मनुष्यों के साथ मेल मिलाप रखो।
Romans 12:19 हे प्रियो अपना पलटा न लेना; परन्तु क्रोध को अवसर दो, क्योंकि लिखा है, पलटा लेना मेरा काम है, प्रभु कहता है मैं ही बदला दूंगा।
Romans 12:20 परन्तु यदि तेरा बैरी भूखा हो तो उसे खाना खिला; यदि प्यासा हो, तो उसे पानी पिला; क्योंकि ऐसा करने से तू उसके सिर पर आग के अंगारों का ढेर लगाएगा।
Romans 12:21 बुराई से न हारो परन्तु भलाई से बुराई का जीत लो।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 20-22 
  • प्रेरितों 21:1-17