ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें : rozkiroti@gmail.com / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

धैर्य


   सैन फ्रैंसिस्को, कैलिफोर्निया में एक व्यक्ति ने अधीर होकर अपना बड़ा नुकसान कर लिया; रुकी हुई कारों की पंक्ति से निकल कर आगे बढ़ जाने की अधीरता में उसने अपनी गाड़ी सड़क के खाली दिख रहे भाग में डाल दी, किंतु सड़क के उस भाग के पुनःनिर्माण के लिए उसपर हाल ही में सीमेंट की मोटी परत डाली गई थी जिसमें उसकी महंगी कार फंस गई और उसे ना केवल गाड़ी को हुए नुकसान का वरन सड़क खराब करने का तथा नियमों के उल्लंघन का भी हर्जाना भरना पड़ा। अधीरता की कीमत बहुत बड़ी होती है।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में भी एक ऐसे राजा का वर्णन है जिसकी अधीरता उसके राज-पद से हाथ धो बैठने का कारण बन गई। इस्त्राएलियों के पहले राजा शाऊल ने, इस्त्राएलियों के युद्ध में जाने से पहले, परमेश्वर से आशीष प्राप्त करने के लिए उतावली करी। उस समय के परमेश्वर के नबी शमूएल को आकर परमेश्वर के सम्मुख बलिदान करना तथा इस्त्राएलियों को आशीर्वाद देना था, लेकिन जब शमूएल के आने में देर हुई, तो शाऊल ने परमेश्वर की आज्ञा के विरुद्ध स्वयं ही बलिदान चढ़ा दिया। शाऊल ने अधीरता में होकर यह सोच लिया कि वह परमेश्वर के नियमों का उल्लंघन कर सकता है और अनधिकृत रीति से पुरोहित का कार्य भी कर सकता है, और उसके द्वारा करी जा रही इस अनाज्ञाकारिता के कोई गंभीर परिणाम नहीं होंगे। लेकिन शाऊल का सोचना गलत था।

   जब शमूएल आया तो उसने शाऊल द्वारा किए गए कार्य को देखकर उसकी अनाज्ञाकारिता तथा अधिरता के लिए उसे डाँटा, और उसे बता दिया कि वह अपना राजपद खो देगा। शाऊल का परमेश्वर की योजना के परिपक्व होने तक प्रतीक्षा करने में उतावली करना, उसके अधीर होकर गलत कार्य करने का कारण हुआ, जो परमेश्वर के प्रति उसके अपूर्ण विश्वास को दिखाता है। यदि हम परमेश्वर को समर्पित जीवन व्यतीत करते हैं तो परमेश्वर की योजनाओं के लिए धैर्य रखना भी सीखें। जब हम धैर्य एवं समर्पण के साथ परमेश्वर के सम्मुख उपस्थित रहेंगे, तो वह हमें सर्वोत्त्म तथा सबसे लाभकारी मार्ग और उस मार्ग पर चलने का मार्गदर्शन एवं सामर्थ भी देगा। - मार्विन विलियम्स


धैर्य का अर्थ है परमेश्वर के समय की प्रतीक्षा और उसके प्रेम में विश्वास।

मनुष्य का ज्ञान रहित रहना अच्छा नहीं, और जो उतावली से दौड़ता है वह चूक जाता है। - नीतिवचन 19:2

बाइबल पाठ: 1 शमूएल 13:5-14
1 Samuel 13:5 और पलिश्ती इस्राएल से युद्ध करने के लिये इकट्ठे हो गए, अर्थात तीस हजार रथ, और छ: हजार सवार, और समुद्र के तीर की बालू के किनकों के समान बहुत से लोग इकट्ठे हुए; और बेतावेन के पूर्व की ओर जा कर मिकमाश में छावनी डाली। 
1 Samuel 13:6 जब इस्राएली पुरूषों ने देखा कि हम सकेती में पड़े हैं (और सचमुच लोग संकट में पड़े थे), तब वे लोग गुफाओं, झाड़ियों, चट्टानों, गढिय़ों, और गढ़हों में जा छिपे। 
1 Samuel 13:7 और कितने इब्री यरदन पार हो कर गाद और गिलाद के देशों में चले गए; परन्तु शाऊल गिलगाल ही में रहा, और सब लोग थरथराते हुए उसके पीछे हो लिए।
1 Samuel 13:8 वह शमूएल के ठहराए हुए समय, अर्थात सात दिन तक बाट जोहता रहा; परन्तु शमूएल गिलगाल में न आया, और लोग उसके पास से इधर उधर होने लगे। 
1 Samuel 13:9 तब शाऊल ने कहा, होमबलि और मेलबलि मेरे पास लाओ। तब उसने होमबलि को चढ़ाया। 
1 Samuel 13:10 ज्योंही वह होमबलि को चढ़ा चुका, तो क्या देखता है कि शमूएल आ पहुंचा; और शाऊल उस से मिलने और नमस्कार करने को निकला। 
1 Samuel 13:11 शमूएल ने पूछा, तू ने क्या किया? शाऊल ने कहा, जब मैं ने देखा कि लोग मेरे पास से इधर उधर हो चले हैं, और तू ठहराए हुए दिनों के भीतर नहीं आया, और पलिश्ती मिकमाश में इकट्ठे हुए हैं, 
1 Samuel 13:12 तब मैं ने सोचा कि पलिश्ती गिलगाल में मुझ पर अभी आ पड़ेंगे, और मैं ने यहोवा से बिनती भी नहीं की है; सो मैं ने अपनी इच्छा न रहते भी होमबलि चढ़ाया। 
1 Samuel 13:13 शमूएल ने शाऊल से कहा, तू ने मूर्खता का काम किया है; तू ने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा को नहीं माना; नहीं तो यहोवा तेरा राज्य इस्राएलियों के ऊपर सदा स्थिर रखता। 
1 Samuel 13:14 परन्तु अब तेरा राज्य बना न रहेगा; यहोवा ने अपने लिये एक ऐसे पुरूष को ढूंढ़ लिया है जो उसके मन के अनुसार है; और यहोवा ने उसी को अपनी प्रजा पर प्रधान होने को ठहराया है, क्योंकि तू ने यहोवा की आज्ञा को नहीं माना।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 25
  • मरकुस 1:23-45



बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

बलिदान


   इन दिनों में हम आने वाले ईस्टर के उत्सव के बारे में सोचने लग जाते हैं और मेरा ध्यान प्रभु यीशु द्वारा समस्त मानव जाति के पापों की क्षमा और उद्धार के लिए दिए गए बलिदान की ओर जाता है, जिसके द्वारा मेरा और सभी लोगों का परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप होना संभव हो सका। इस बात को समझने के लिए कि प्रभु यीशु को मेरे पापों की क्षमा तथा उद्धार के लिए क्या कुछ बलिदान करना पड़ा, मैं भी अपना एक छोटा बलिदान करती हूँ - उपवास। जब मैं उपवास में उन वस्तुओं का इनकार करती हूँ जो सामान्यतः मुझे अच्छी लगती हैं, तो उन वस्तुओं की प्रत्येक लालसा मुझे स्मरण दिलाती है कि मेरे प्रभु ने मेरे लिए क्या कुछ छोड़ दिया।

   क्योंकि मैं अपने उपवास रूपी बलिदान में सफल रहना चाहती हूँ, इसलिए मैं केवल उन ही वस्तुओं का उपवास रखती हूँ जो मेरे लिए अधिक बड़ा प्रलोभन नहीं हों, लेकिन फिर भी मैं कई बार अपने उपवास में चूक जाती हूँ। इतनी छोटी से बात में भी मेरा असफल रहना मुझे समझाता है कि ईस्टर हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है - यदि हम अपने ही प्रयासों से सिद्ध या सफल हो सकते तो प्रभु यीशु को हमारे बदले अपना बलिदान देने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी; वे केवल निर्देश दे देते और हम कार्य कर लेते!

   प्रभु यीशु के पास एक बहुत धनी युवक आया और अपने भले कार्यों के द्वारा अनन्त जीवन की प्राप्ति का प्रयास करने लगा। प्रभु यीशु ने उससे कहा, कि वह अपने सांसारिक धन को छोड़ कर के स्वर्ग में धन एकत्रित करे; लेकिन उसके लिए यह बलिदान बहुत भारी था और वह निराश होकर लौट गया। प्रभु के चेले यह सब देखकर बड़े विस्मित हुए, तब प्रभु यीशु ने उन्हें समझाया कि मनुष्य अपने आप को कभी ऐसा भला नहीं बना सकता कि पाप से दोषमुक्त हो जाए, "...मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है" (मरकुस 10:27)।

   उपवास या बलिदान में कुछ छोड़ अथवा त्याग देने से कोई भला नहीं हो जाता; यह तो हमें केवल इस बात को स्मरण करवाता है कि कुछ छोड़ने का आभास कैसा होता है। और उस सर्वसिद्ध एवं सर्वोत्तम परमेश्वर प्रभु यीशु ने सांसारिक ही नहीं वरन स्वर्ग का भी वैभव और सुख भी हमारे लिए छोड़ दिया जिससे कि हम उस पर विश्वास कर के उसके द्वारा स्वर्ग में जाने के योग्य बन सकें। हम पापी मनुष्यों के कमज़ोर तथा अपूर्ण बलिदान नहीं वरन उस उत्तम एवं सिद्ध परमेश्वर का पूर्ण बलिदान ही हमारे पापों की क्षमा और उद्धार को संभव कर सकता है। - जूली ऐकैरमैन लिंक


प्रभु यीशु ने हमारे बदले अपने प्राण बलिदान कर दिए।

हे प्रभु यहोवा, तू ने बड़े सामर्थ और बढ़ाई हुई भुजा से आकाश और पृथ्वी को बनाया है! तेरे लिये कोई काम कठिन नहीं है। - यर्मियाह 32:17

बाइबल पाठ: मरकुस 10:17-27
Mark 10:17 और जब वह निकलकर मार्ग में जाता था, तो एक मनुष्य उसके पास दौड़ता हुआ आया, और उसके आगे घुटने टेककर उस से पूछा हे उत्तम गुरू, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूं? 
Mark 10:18 यीशु ने उस से कहा, तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात परमेश्वर। 
Mark 10:19 तू आज्ञाओं को तो जानता है; हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना। 
Mark 10:20 उसने उस से कहा, हे गुरू, इन सब को मैं लड़कपन से मानता आया हूं। 
Mark 10:21 यीशु ने उस पर दृष्टि कर के उस से प्रेम किया, और उस से कहा, तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेच कर कंगालों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले। 
Mark 10:22 इस बात से उसके चेहरे पर उदासी छा गई, और वह शोक करता हुआ चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था। 
Mark 10:23 यीशु ने चारों ओर देखकर अपने चेलों से कहा, धनवानों को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है! 
Mark 10:24 चेले उस की बातों से अचम्भित हुए, इस पर यीशु ने फिर उन को उत्तर दिया, हे बालकों, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उन के लिये परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है! 
Mark 10:25 परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है! 
Mark 10:26 वे बहुत ही चकित हो कर आपस में कहने लगे तो फिर किस का उद्धार हो सकता है? 
Mark 10:27 यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 23-24
  • मरकुस 1:1-22



मंगलवार, 17 फ़रवरी 2015

सेवकाई एवं गुण


   मेरी कार स्वचलित गियर वाली है - मुझे आवश्यकतानुसार अपने हाथ द्वारा गियर बदलने नहीं पड़ते, गाड़ी में आवश्यकतानुसार स्वयं ही गियर बदलते रहते हैं; इसलिए उसे चलाते समय केवल मेरे दाहिने पैर को ही एक्सलेरटर दबाने या छोड़ने का कार्य करते रहना पड़ता है, मेरे बाएँ पैर का गाड़ी के चलाने में कोई योगदान नहीं होता। यदि मैं यह सोच लूँ कि गाड़ी चलाने में मेरे दाहिने पैर को ही क्यों मेहनत करते रहना पड़े, आधा समय तो बाएँ पैर को भी एक्सलरेटर पर कार्य करना चाहिए - तो आप क्या कहेंगे? अवश्य ही आप मुझे कहेंगे, कृप्या ऐसा करने का प्रयास भी मत कीजिएगा क्योंकि इसके परिणाम अति हानिकारक होंगे!

   यदि हमें अपने शरीर के सभी अंगों में परस्पर समान कार्य-योग्यता एवं क्षमता की आशा नहीं करते, तो फिर अपने प्रभु यीशु के देह अर्थात मसीही विश्वासियों की मण्डली अर्थात चर्च या कलीसिया के सदस्यों में इसकी आशा क्यों करते हैं? ऐसा भी नहीं है कि यह धारणा रखना आज की ही समस्या हो; प्रथम ईसवीं में रोम में स्थित मसीही विश्वासियों की मण्डली में भी यही समस्या देखने में आ रही थी। उस मण्डली के कुछ लोग अपने आप को अन्य लोगों से बेहतर समझने लगे थे क्योंकि वे कुछ ऐसे कार्य कर रहे थे जो अन्य सदस्य नहीं कर रहे थे (रोमियों 12:3)। प्रेरित पौलुस ने उन्हें लिखी अपनी पत्री में देह के उदाहरण द्वारा समझाया कि जैसे शरीर में सभी अंगों का समान कार्य नहीं होता है, वैसे ही देह के प्रत्येक अंग का भी समान कार्य नहीं होता है, किंतु देह के सुचारू रीति से कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि सभी अंग परस्पर मिल कर और एक दूसरे के पूरक होकर अपने अपने निर्धारित कार्य भली-भांति करते रहें।

   इसी प्रकार मसीही विश्वासियों की मण्डली, अर्थात चर्च या कलीसिया में भी परमेश्वर ने सभी सदस्यों को अलग अलग कार्य तथा उन कार्यों को करने के लिए अलग अलग गुण दीए हैं। ये सभी गुण किसी के निज उन्नति के प्रयोग के लिए नहीं वरन मिलजुल कर मण्डली की उन्नति के लिए कार्य करने को हैं। जब सभी सदस्य अपनी अपनी ज़िम्मेदारी भली-भांति निभाएंगे तब ही मसीह की देह उन्नति पाएगी। इसलिए हमें यह नहीं देखना है कि कौन कितना और कैसा कार्य कर रहा है, वरन इस बात का ध्यान रखना है कि हम अपने कार्य को भली-भांति कर रहे हैं या नहीं, परमेश्वर द्वारा गिए गए गुणों का सही प्रयोग कर रहे हैं या नहीं।

   दूसरों की ओर नहीं वरन अपने अन्दर दृष्टि डालें और जाँचें कि परमेश्वर द्वारा आपको दी गई सेवकाई एवं गुणों का आप कैसा उपयोग कर रहे हैं; आप मसीही मण्डली की उन्नति में सहयोगी हैं या आपके कारण मण्डली की उन्नति बाधित हो रही है? - सी. पी. हिया


परमेश्वर के कार्यों में हम सब एक ही सेवा तो नहीं कर सकते, किंतु सुनिश्चित रखें कि हम सब परस्पर तालमेल के साथ एक ही उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य करते रहें।

इसलिये तुम भी जब आत्मिक वरदानों की धुन में हो, तो ऐसा प्रयत्न करो, कि तुम्हारे वरदानों की उन्नति से कलीसिया की उन्नति हो। - 1 कुरिन्थियों 14:12

बाइबल पाठ: रोमियों 12:3-13
Romans 12:3 क्योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे। 
Romans 12:4 क्योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं। 
Romans 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह हो कर आपस में एक दूसरे के अंग हैं। 
Romans 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे। 
Romans 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे। 
Romans 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे। 
Romans 12:9 प्रेम निष्कपट हो; बुराई से घृणा करो; भलाई में लगे रहो। 
Romans 12:10 भाईचारे के प्रेम से एक दूसरे पर दया रखो; परस्पर आदर करने में एक दूसरे से बढ़ चलो। 
Romans 12:11 प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो। 
Romans 12:12 आशा में आनन्दित रहो; क्लेश में स्थिर रहो; प्रार्थना में नित्य लगे रहो। 
Romans 12:13 पवित्र लोगों को जो कुछ अवश्य हो, उस में उन की सहायता करो; पहुनाई करने में लगे रहो।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 21-22
  • मत्ती 28



सोमवार, 16 फ़रवरी 2015

दिशा तथा मार्गदर्शन


   मेरी प्रवृति है अपने ही निराधारित तरीकों में होकर कार्य करने की, इसलिए जो कुछ भी मुझे मेरी दिनचर्या या योजनाओं से अलग दिशा में ले जाता है, उससे मुझे बड़ी खीज होती है। इससे भी बदतर तब होता है जब जीवन की बदलती हुई दिशाओं का सामना करना पड़ता है, तब मैं अपने आप को बहुत अस्थिर अनुभव करता हूँ, जो मेरे लिए बड़ा कष्टदायी होता है। लेकिन परमेश्वर, जिसने कहा, "...मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है" (यशायाह 55:8), यह जानता है कि उसे हमारे जीवनों की दिशा में परिवर्तन लाने की आवश्यकता रहती है, जिससे हम अपने पूर्व निर्धारित मार्ग से हट सकें और वह हमारे जीवनों को अधिक बेहतर बना सके।

   परमेश्वर के वचन बाइबल के कुछ प्रमुख पात्रों के जीवन को देखिए - यूसुफ के बारे में विचार कीजिए, परमेश्वर ने उसे अपने परिवार से निकाले जाकर मिस्त्र में जाने दिया जिससे वह आते समय में लोगों तथा अपने परिवार को भयानक अकाल से बचा सके, तथा स्वयं भी एक ऐसे पद पर पहुँच सके जिस तक स्वयं अपनी सामर्थ से पहुँचने की कल्पना भी उसके लिए कर पाना असंभव था। मूसा को देखिए, उसे शिशु अवस्था में ही गुलामों के घर से निकालकर पहले राजा के महल में परवरिश के लिए पहुँचाया, और फिर उस राज महल से निकालकर बियाबान में रहने के लिए भेजा दिया, जहाँ परमेश्वर ने उसे दर्शन दिए और उसे नियुक्त किया कि वह परमेश्वर के लोगों को मिस्त्र के दासत्व से निकालकर वाचा किए हुए देश ले कर जाए, तथा परमेश्वर के वचन को लिखित रूप में लोगों को दे। यूसुफ और मरियम के बारे में सोचिए, जिनके जीवन में परमेश्वर के स्वर्गदूत ने एक बड़े अप्रत्याशित और सारे संसार को प्रभावित करने वाले दिशा परिवर्तन की सूचना दी। स्वर्गदूत ने मरियम से कहा कि वह गर्भवती होगी और संसार के उद्धारकर्ता को जन्म देगी और यूसुफ से कहा कि गर्भवती दशा में भी मरियम को अपने घर लाने से ना घबराए, और होने वाले बच्चे के लिए कहा कि, "वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा" (मत्ती 1:21); और यूसुफ ने ऐसा ही किया (पद 25)। इसके बाद जो हुआ और हो रहा है, वह अद्भुत इतिहास है।

   हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं कि उसने हमारे लिए अद्भुत योजनाएं बनाई हैं; वह हमारा सृष्टिकर्ता है, हमसे प्रेम करता है, हमें विनाश में नहीं वरन अपने साथ आशीष में देखना चाहता है। उसकी योजनाओं पर कुड़कुड़ाएं नहीं, वरन उसे समर्पित जीवन व्यतीत करें, उसके द्वारा जीवन को दी जाने वाली दिशा तथा मार्गदर्शन को स्वीकार करें। - जो स्टोवैल


परमेश्वर को अपने जीवन मार्गों को निर्देशित, पुनःनिर्देशित करते रहने दीजिए।

क्योंकि जिन्हें उसने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। - रोमियों 8:29

बाइबल पाठ: मत्ती 1:18-25
Matthew 1:18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई। 
Matthew 1:19 सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की। 
Matthew 1:20 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्‍वप्‍न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्‍नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है। 
Matthew 1:21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा। 
Matthew 1:22 यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो। 
Matthew 1:23 कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिस का अर्थ यह है “ परमेश्वर हमारे साथ”। 
Matthew 1:24 सो यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्‍नी को अपने यहां ले आया। 
Matthew 1:25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 6-7
  • मत्ती 25:1-30



रविवार, 15 फ़रवरी 2015

प्रार्थना


   इतने वर्षों के बाद भी मैं प्रार्थना को पूरी रीति से समझ नहीं पाया हूँ; मेरे लिए यह अभी भी एक रहस्य ही है। जब हम किसी अत्याधिक आवश्यकता की स्थिति में होते हैं तो प्रार्थना स्वाभाविक रीति से हमारे हृदय की गहराईयों से, हमारे होठों से निकलने लगती है। जब हम किसी बात से बहुत डर जाते हैं, जब हमें हमारी सहने की सीमाओं से परे धकले जाने के प्रयास होते हैं, जब हम अपने आरामदायक जीवन से हिलाए जाते हैं, जब हम खतरों का आभास करते हैं, ऐसी और इनके जैसी अन्य परिस्थितियों में हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया परमेश्वर को सहायता के लिए पुकारने की होती है।

   लेखक यूजीन पीटरसन ने लिखा, "प्रार्थना की भाषा परेशानियों की भट्टी में तैयार होती है। जब हम असहाय होते हैं और हमें सहायता चाहिए होती है; जब हम अनचाहे स्थान पर होते हैं और बाहर निकलने का मार्ग चाहिए होता है; जब हम अपने आप से परेशान होते हैं और अपने अन्दर परिवर्तन चाहते हैं, तब हम बहुत साधारण तथा आधारभूत भाषा का प्रयोग करते हैं और यही प्रार्थना की भाषा बन जाती है।"

   प्रार्थना परेशानियों में आरंभ होती है, और क्योंकि हम किसी ना किसी रूप में परेशानियों में सदा ही बने रहते हैं, इसलिए प्रार्थना भी हमारे जीवनों में बनी रहती है। प्रार्थना के लिए ना तो कोई विशेष तैयारी चाहिए होती है, ना ही कोई निर्धारित शब्दावली और ना ही शरीर की कोई निश्चित मुद्रा अथवा आसन। प्रार्थना हमारे अन्दर से हमारी आवश्यकतानुसार निकलती है, और समय के साथ हमारी प्रत्येक परिस्थिति - भली या बुरी के लिए, हमारी आदत बन जाती है।

   लेकिन हमारे लिए सबसे अद्भुत और सांत्वनापूर्ण बात है कि हमारे परमेश्वर पिता ने हमें खूली छूट दी है कि हम अपने प्रत्येक बात को प्रभु यीशु में होकर उसके सामने प्रार्थना में रखें और वह हमारी हर प्रार्थना को सुनने और उत्तर देने के लिए सदा तैया रहता है; इसलिए चाहे मैं प्रार्थना को पूरी रीति से ना भी समझूँ तो भी प्रार्थना का यथासंभव उपयोग करने से मैं नहीं चूकता। - डेविड रोपर


परमेश्वर की सहायता केवल एक प्रार्थना भर की दूरी पर उपलब्ध है।

किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी। - फिलिप्पियों 4:6-7

बाइबल पाठ: भजन 142
Psalms 142:1 मैं यहोवा की दोहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूं, 
Psalms 142:2 मैं अपने शोक की बातें उस से खोल कर कहता, मैं अपना संकट उस के आगे प्रगट करता हूं। 
Psalms 142:3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जाने वाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फन्दा लगाया। 
Psalms 142:4 मैं ने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता है। मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है।
Psalms 142:5 हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; मैं ने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, मेरे जीते जी तू मेरा भाग है। 
Psalms 142:6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पड़े हैं, उन से मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझ से अधिक सामर्थी हैं। 
Psalms 142:7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूं! धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएंगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 17-18
  • मत्ती 27:27-50



शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

मूल्य


   परमेश्वर के वचन बाइबल में एक घटना है, याकूब के विवाह की। याकूब अपने मामा लाबान के यहाँ रहता और कार्य करता था, और लाबान की छोटी बेटी राहेल से प्रेम करता था। याकूब ने लाबान से राहेल का हाथ माँगा तो लाबान ने स्वीकार कर लिया, लेकिन शादी के समय राहेल के स्थान पर उसकी बड़ी बहिन लियाह को, जो आँखों से कमज़ोर थी, याकूब को दे दिया। शादी की रात याकूब ने लियाह के साथ यह समझते हुए बिताई कि वह राहेल के साथ है, लेकिन दिन निकलने पर उसे पता पड़ा कि उसके साथ धोखा हुआ है। अब अपनी प्रेमिका को पाने के लिए याकूब को लाबान के साथ एक और समझौते में पड़ना पड़ा। लाबान ने लियाह को याकूब से ब्याह तो दिया लेकिन वह लियाह से याकूब को सच्चा प्रेम करवाने में असफल रहा, याकूब सदा ही लियाह से कम और राहेल से अधिक प्रेम करता रहा।

   लियाह द्वारा अपने आप को याकूब की नज़रों में "दूसरे दर्जे" का होना का आभास सदा ही होता रहा। इस बात का एहसास हमें होता है लियाह द्वारा अपने पहले तीन पुत्रों को दिए गए नामों के द्वारा। उसने अपने सबसे पहले पुत्र का नाम रखा रूबेन जिसका अर्थ है "देखो, एक पुत्र"; फिर दूसरे पुत्र का नाम रखा शिमौन जिसका अर्थ है "सुन लेना" और तीसरे पुत्र का नाम रखा लेवी जिसका अर्थ है "मिलाना"; जबकि राहेल जिससे याकूब प्रेम रखता था बाँझ ही रही। अपने हर पुत्र के जन्म के साथ लियाह को आशा होती थी कि उसका पति अब उसे प्रेम करने लगेगा, अपने पुत्रों में होकर वह अपने पति के प्रेम को पाना चाहती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, और समय के साथ लियाह की आशा भी बदलने लगी, उसे अब एहसास होने लगा कि चाहे उसका पति उससे प्रेम ना भी करे तौ भी परमेश्वर उससे प्रेम करता है और उसे आशीष दे रहा है, और परमेश्वर के प्रेम को पाने के लिए उसे अपने किसी प्रयास के करने की आवश्यकता नहीं है - वह पहले से ही उससे प्रेम करता आ रहा है, इसलिए उसने अपने चौथे पुत्र का नाम रखा यहूदा जिसका अर्थ है "उत्सव मनाना"।

   यही बात हम सभी के लिए भी ऐसी ही लागू है - हम परमेश्वर के प्रेम को "कमा" नहीं सकते क्योंकि हमारे प्रति उसका प्रेम हमारे किए किसी कार्य पर निर्भर नहीं है। परमेश्वर ने हमसे हमारे पाप की दशा में होने पर भी प्रेम किया, इतना प्रेम कि हमारे लिए अपने एकलौते पुत्र प्रभु यीशु मसीह को बलिदान होने संसार में भेजा, जिससे उसके साथ हमारे मेल-मिलाप का रास्ता बन जाए (रोमियों 5:8)। परमेश्वर की नज़रों में हमारा मूल्य बहुत है, हम "दूसरे दर्जे" के नहीं हैं; वह हमारे साथ रहना चाहता है, संगति करना चाहता है, अपने साथ स्वर्ग में रखना चाहता है। क्या आप उसके द्वारा इस प्रकार मूल्यवान आंके जाने को महत्व देंगे? - सिंडी हैस कैस्पर


प्रभु यीशु के क्रूस पर दिए गए बलिदान से बढ़कर हम मनुष्यों के प्रति परमेश्वर के प्रेम को और कुछ वर्णन नहीं कर सकता।

परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा। - रोमियों 5:8

बाइबल पाठ: उत्पत्ति 29:16-35
Genesis 29:16 लाबान के दो बेटियां थी, जिन में से बड़ी का नाम लिआ: और छोटी का राहेल था। 
Genesis 29:17 लिआ: के तो धुन्धली आंखे थी, पर राहेल रूपवती और सुन्दर थी। 
Genesis 29:18 सो याकूब ने, जो राहेल से प्रीति रखता था, कहा, मैं तेरी छोटी बेटी राहेल के लिये सात बरस तेरी सेवा करूंगा। 
Genesis 29:19 लाबान ने कहा, उसे पराए पुरूष को देने से तुझ को देना उत्तम होगा; सो मेरे पास रह। 
Genesis 29:20 सो याकूब ने राहेल के लिये सात बरस सेवा की; और वे उसको राहेल की प्रीति के कारण थोड़े ही दिनों के बराबर जान पड़े। 
Genesis 29:21 तब याकूब ने लाबान से कहा, मेरी पत्नी मुझे दे, और मैं उसके पास जाऊंगा, क्योंकि मेरा समय पूरा हो गया है। 
Genesis 29:22 सो लाबान ने उस स्थान के सब मनुष्यों को बुला कर इकट्ठा किया, और उनकी जेवनार की। 
Genesis 29:23 सांझ के समय वह अपनी बेटी लिआ: को याकूब के पास ले गया, और वह उसके पास गया। 
Genesis 29:24 और लाबान ने अपनी बेटी लिआ: को उसकी लौंडी होने के लिये अपनी लौंडी जिल्पा दी। 
Genesis 29:25 भोर को मालूम हुआ कि यह तो लिआ है, सो उसने लाबान से कहा यह तू ने मुझ से क्या किया है? मैं ने तेरे साथ रहकर जो तेरी सेवा की, सो क्या राहेल के लिये नहीं की? फिर तू ने मुझ से क्यों ऐसा छल किया है? 
Genesis 29:26 लाबान ने कहा, हमारे यहां ऐसी रीति नहीं, कि जेठी से पहिले दूसरी का विवाह कर दें। 
Genesis 29:27 इसका सप्ताह तो पूरा कर; फिर दूसरी भी तुझे उस सेवा के लिये मिलेगी जो तू मेरे साथ रह कर और सात वर्ष तक करेगा। 
Genesis 29:28 सो याकूब ने ऐसा ही किया, और लिआ: के सप्ताह को पूरा किया; तब लाबान ने उसे अपनी बेटी राहेल को भी दिया, कि वह उसकी पत्नी हो। 
Genesis 29:29 और लाबान ने अपनी बेटी राहेल की लौंडी होने के लिये अपनी लौंडी बिल्हा को दिया। 
Genesis 29:30 तब याकूब राहेल के पास भी गया, और उसकी प्रीति लिआ: से अधिक उसी पर हुई, और उसने लाबान के साथ रहकर सात वर्ष और उसकी सेवा की। 
Genesis 29:31 जब यहोवा ने देखा, कि लिआ: अप्रिय हुई, तब उसने उसकी कोख खोली, पर राहेल बांझ रही। 
Genesis 29:32 सो लिआ: गर्भवती हुई, और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ, और उसने यह कहकर उसका नाम रूबेन रखा, कि यहोवा ने मेरे दु:ख पर दृष्टि की है: सो अब मेरा पति मुझ से प्रीति रखेगा। 
Genesis 29:33 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने यह कहा कि यह सुनके, कि मैं अप्रिय हूं यहोवा ने मुझे यह भी पुत्र दिया: इसलिये उसने उसका नाम शिमोन रखा। 
Genesis 29:34 फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने कहा, अब की बार तो मेरा पति मुझ से मिल जाएगा, क्योंकि उस से मेरे तीन पुत्र उत्पन्न हुए: इसलिये उसका नाम लेवी रखा गया। 
Genesis 29:35 और फिर वह गर्भवती हुई और उसके एक और पुत्र उत्पन्न हुआ; और उसने कहा, अब की बार तो मैं यहोवा का धन्यवाद करूंगी, इसलिये उसने उसका नाम यहूदा रखा; तब उसकी कोख बन्द हो गई।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 15-16
  • मत्ती 27:1-26



शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

प्रदर्शन


   दो दशकों से वैज्ञानिक माईक हैण्ड्स मध्य अमेरिका के किसानों को किसानी करने के बेहतर तरीकों और अच्छी फसल प्राप्त करने के उपायों को सिखा रहे हैं। लेकिन उन किसानों द्वारा पारंपरिक तरीकों को त्यागकर नए तरीकों को अपनाना कठिन होता है, यद्यपि वे किसान यह समझते हैं कि उनके पारंपरिक तरीके मिट्टी को कम उपजाऊ और वायु को दूषित कर देने वाले हैं। इसलिए माईक उन्हें केवल करने के लिए कहते ही नहीं हैं, परन्तु अपनी कही बात को उनके सामने एक वृतचित्र द्वारा प्रदर्षित भी करते हैं। माईक का कहना है कि सुधारने के लिए केवल प्रचार करने या उसका वर्णन कर देने के द्वारा ही काम नहीं चलता है, उस बात को लोगों के सामने प्रदर्षित भी करना होता है, लोगों को उसे अपने हाथों द्वारा देखना और अनुभव भी करना होता है।

   प्रेरित पौलुस ने भी प्रभु यीशु में विश्वास द्वारा समस्त संसार के सभी लोगों के लिए उपलब्ध पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार के सन्देश के प्रसार के लिए यही विधि अपनाई थी। पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीही विश्वासियों को लिखा: "और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं; परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था। इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो" (1 कुरिन्थियों 2:4-5)। और आगे चलकर पौलुस ने फिर लिखा, "क्योंकि परमेश्वर का राज्य बातों में नहीं, परन्तु सामर्थ में है" (1 कुरिन्थियों 4:20)।

   परमेश्वर से प्रार्थना कीजिए कि वह प्रतिदिन आपके शब्दों को आपके जीवन में प्रदर्शित करवा कर उन्हें आपके संपर्क में आने वाले लोगों के लिए सार्थक एवं प्रभावी बना दे। जब हम संसार के सामने परमेश्वर को हम में होकर कार्य करता हुआ दिखाने के लिए तैयार होते हैं, तो यह उसके अनुग्रह और सामर्थ का अभूतपूर्व प्रदर्शन तथा बहुत प्रभावी गवाही होता है। - डेविड मैक्कैसलैंड


सार्थक होने के लिए हमारे शब्दों को उनके अनुरूप हमारी क्रियाओं का समर्थन अनिवार्य है।

क्योंकि हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में वरन सामर्थ और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्‍चय के साथ पहुंचा है; जैसा तुम जानते हो, कि हम तुम्हारे लिये तुम में कैसे बन गए थे। - 1 थिस्सलुनीकियों 1:5

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 2:1-5
1 Corinthians 2:1 और हे भाइयों, जब मैं परमेश्वर का भेद सुनाता हुआ तुम्हारे पास आया, तो वचन या ज्ञान की उत्तमता के साथ नहीं आया। 
1 Corinthians 2:2 क्योंकि मैं ने यह ठान लिया था, कि तुम्हारे बीच यीशु मसीह, वरन क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह को छोड़ और किसी बात को न जानूं। 
1 Corinthians 2:3 और मैं निर्बलता और भय के साथ, और बहुत थरथराता हुआ तुम्हारे साथ रहा। 
1 Corinthians 2:4 और मेरे वचन, और मेरे प्रचार में ज्ञान की लुभाने वाली बातें नहीं; परन्तु आत्मा और सामर्थ का प्रमाण था। 
1 Corinthians 2:5 इसलिये कि तुम्हारा विश्वास मनुष्यों के ज्ञान पर नहीं, परन्तु परमेश्वर की सामर्थ पर निर्भर हो।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 14
  • मत्ती 26:51-75