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रविवार, 15 फ़रवरी 2015

प्रार्थना


   इतने वर्षों के बाद भी मैं प्रार्थना को पूरी रीति से समझ नहीं पाया हूँ; मेरे लिए यह अभी भी एक रहस्य ही है। जब हम किसी अत्याधिक आवश्यकता की स्थिति में होते हैं तो प्रार्थना स्वाभाविक रीति से हमारे हृदय की गहराईयों से, हमारे होठों से निकलने लगती है। जब हम किसी बात से बहुत डर जाते हैं, जब हमें हमारी सहने की सीमाओं से परे धकले जाने के प्रयास होते हैं, जब हम अपने आरामदायक जीवन से हिलाए जाते हैं, जब हम खतरों का आभास करते हैं, ऐसी और इनके जैसी अन्य परिस्थितियों में हमारी स्वाभाविक प्रतिक्रिया परमेश्वर को सहायता के लिए पुकारने की होती है।

   लेखक यूजीन पीटरसन ने लिखा, "प्रार्थना की भाषा परेशानियों की भट्टी में तैयार होती है। जब हम असहाय होते हैं और हमें सहायता चाहिए होती है; जब हम अनचाहे स्थान पर होते हैं और बाहर निकलने का मार्ग चाहिए होता है; जब हम अपने आप से परेशान होते हैं और अपने अन्दर परिवर्तन चाहते हैं, तब हम बहुत साधारण तथा आधारभूत भाषा का प्रयोग करते हैं और यही प्रार्थना की भाषा बन जाती है।"

   प्रार्थना परेशानियों में आरंभ होती है, और क्योंकि हम किसी ना किसी रूप में परेशानियों में सदा ही बने रहते हैं, इसलिए प्रार्थना भी हमारे जीवनों में बनी रहती है। प्रार्थना के लिए ना तो कोई विशेष तैयारी चाहिए होती है, ना ही कोई निर्धारित शब्दावली और ना ही शरीर की कोई निश्चित मुद्रा अथवा आसन। प्रार्थना हमारे अन्दर से हमारी आवश्यकतानुसार निकलती है, और समय के साथ हमारी प्रत्येक परिस्थिति - भली या बुरी के लिए, हमारी आदत बन जाती है।

   लेकिन हमारे लिए सबसे अद्भुत और सांत्वनापूर्ण बात है कि हमारे परमेश्वर पिता ने हमें खूली छूट दी है कि हम अपने प्रत्येक बात को प्रभु यीशु में होकर उसके सामने प्रार्थना में रखें और वह हमारी हर प्रार्थना को सुनने और उत्तर देने के लिए सदा तैया रहता है; इसलिए चाहे मैं प्रार्थना को पूरी रीति से ना भी समझूँ तो भी प्रार्थना का यथासंभव उपयोग करने से मैं नहीं चूकता। - डेविड रोपर


परमेश्वर की सहायता केवल एक प्रार्थना भर की दूरी पर उपलब्ध है।

किसी भी बात की चिन्‍ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। तब परमेश्वर की शान्‍ति, जो समझ से बिलकुल परे है, तुम्हारे हृदय और तुम्हारे विचारों को मसीह यीशु में सुरिक्षत रखेगी। - फिलिप्पियों 4:6-7

बाइबल पाठ: भजन 142
Psalms 142:1 मैं यहोवा की दोहाई देता, मैं यहोवा से गिड़गिड़ाता हूं, 
Psalms 142:2 मैं अपने शोक की बातें उस से खोल कर कहता, मैं अपना संकट उस के आगे प्रगट करता हूं। 
Psalms 142:3 जब मेरी आत्मा मेरे भीतर से व्याकुल हो रही थी, तब तू मेरी दशा को जानता था! जिस रास्ते से मैं जाने वाला था, उसी में उन्होंने मेरे लिये फन्दा लगाया। 
Psalms 142:4 मैं ने दाहिनी ओर देखा, परन्तु कोई मुझे नहीं देखता है। मेरे लिये शरण कहीं नहीं रही, न मुझ को कोई पूछता है।
Psalms 142:5 हे यहोवा, मैं ने तेरी दोहाई दी है; मैं ने कहा, तू मेरा शरणस्थान है, मेरे जीते जी तू मेरा भाग है। 
Psalms 142:6 मेरी चिल्लाहट को ध्यान देकर सुन, क्योंकि मेरी बड़ी दुर्दशा हो गई है! जो मेरे पीछे पड़े हैं, उन से मुझे बचा ले; क्योंकि वे मुझ से अधिक सामर्थी हैं। 
Psalms 142:7 मुझ को बन्दीगृह से निकाल कि मैं तेरे नाम का धन्यवाद करूं! धर्मी लोग मेरे चारों ओर आएंगे; क्योंकि तू मेरा उपकार करेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था 17-18
  • मत्ती 27:27-50



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