ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

अपेक्षाएं


   एक बार मैंने लोगों के परस्पर संबंधों को सुधारने की सलाह-मश्वरा देने का कार्य करने वाले एक व्यक्ति से पूछा कि मुख्यतः वे कौन सी समस्याएं हैं जिनके कारण लोग उनके पास आते हैं, या जो संबंध बिगड़ने का अकसर कारण होती हैं। बिना झिझके उसका उत्तर था, "अनेकों समस्याओं की जड़ होती है टूटी अपेक्षाएं; यदि इस बात को समय रहते ना सुधारा गया तो यह क्रोध और कड़वाहट उत्पन्न करके संबंधों का नाश कर देती है।"

   हमारे सबसे अच्छे समयों में, हमारा यह आशा रखना कि हम एक अच्छे स्थान पर, अच्छे लोगों के बीच में रहेंगे जो हमें चाहेंगे और हमारा पक्ष लेंगे कोई असमान्य बात नहीं है। लेकिन ऐसी आशाओं को तोड़ देने का जीवन का एक तरीका है; महत्वपूर्ण बात यह कि जब ऐसा हो तब हमारी प्रतिक्रीया क्या होती है?

   पौलुस प्रेरित के जीवन से देखें; वह जेल में बन्द था और वहाँ के स्थानीय मसीही विश्वासी उसे पसन्द भी नहीं करते थे (फिलिप्पियों 1:15-16), लेकिन फिर भी पौलुस निराश नहीं हुआ। इन विपरीत परिस्थितियों के प्रति उसका दृष्टिकोण सामान्य लोगों से भिन्न था; उसका मानना था कि परमेश्वर ने उसे सेवकाई का एक नया अवसर दिया है। अपने बन्दी होने की अवस्था में भी पौलुस ने अपने पहरेदारों को मसीह यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार का सुसमाचार सुनाया, जिससे उन रोमी सैनिकों में भी सुसमाचार प्रचार हो सका। यह देखकर, जेल के बाहर उससे द्वेश रखने वाले भी प्रतिस्पर्धा में सुसमाचार प्रचार में लग गए, लेकिन इससे भी पौलुस आनन्दित ही हुआ क्योंकि चाहे गलत उद्देश्य से ही सही किंतु मसीह यीशु में उपलब्ध उद्धार और पापों की क्षमा का प्रचार तो हुआ (पद 18)।

   पौलुस ने कभी यह आशा नहीं रखी कि वह किसी अच्छे स्थान में रहे या लोग उसे पसन्द करें; उसकी एकमात्र आशा थी उसके जीवन से मसीह यीशु की बड़ाई होती रहे (पद 20) और इस बात से पौलुस कभी पीछे नहीं हटा।

   हम चाहें जहाँ भी हों, हमारे आस-पास चाहे जैसे भी लोग हों, यदि हर परिस्थिति में हमारी अपेक्षा मसीह यीशु को अपने जीवन से प्रकट करने की है तो हम पाएंगे कि यह अपेक्षा ना केवल पूरी होगी वरन हमारी आशा से भी कहीं बढ़कर पूरी होगी और मसीह यीशु हमारे जीवनों से महिमान्वित होगा। - जो स्टोवैल


अपनी एकमात्र अपेक्षा अपने जीवन से मसीह यीशु को महिमान्वित करने की रखें, आप चाहे जहाँ और चाहे जिस के साथ हों।

क्या तुम नहीं जानते, कि तुम्हारी देह पवित्रात्मा का मन्दिर है; जो तुम में बसा हुआ है और तुम्हें परमेश्वर की ओर से मिला है, और तुम अपने नहीं हो? क्योंकि दाम देकर मोल लिये गए हो, इसलिये अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो। - 1 कुरिन्थियों 6:19-20

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 1:12-21
Philippians 1:12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है। 
Philippians 1:13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं। 
Philippians 1:14 और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्‍ध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं। 
Philippians 1:15 कितने तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कितने भली मनसा से। 
Philippians 1:16 कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूं प्रेम से प्रचार करते हैं। 
Philippians 1:17 और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझ कर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्‍लेश उत्पन्न करें। 
Philippians 1:18 सो क्या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इस से आनन्‍दित हूं, और आनन्‍दित रहूंगा भी। 
Philippians 1:19 क्योंकि मैं जानता हूं, कि तुम्हारी बिनती के द्वारा, और यीशु मसीह की आत्मा के दान के द्वारा इस का प्रतिफल मेरा उद्धार होगा। 
Philippians 1:20 मैं तो यही हादिर्क लालसा और आशा रखता हूं, कि मैं किसी बात में लज्ज़ित न होऊं, पर जैसे मेरे प्रबल साहस के कारण मसीह की बड़ाई मेरी देह के द्वारा सदा होती रही है, वैसा ही अब भी हो चाहे मैं जीवित रहूं या मर जाऊं। 
Philippians 1:21 क्योंकि मेरे लिये जीवित रहना मसीह है, और मर जाना लाभ है।

एक साल में बाइबल: 

  • निर्गमन 21-22
  • मत्ती 19


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें