अपनी पुस्तक Listening to Others में लेखिका जॉयस हगेट सुनने के महत्व तथा जो कठिन परिस्थितियों में हैं उन्हें उचित प्रतिक्रिया देने के बारे में बताती हैं। इन बातों को वे अपने अनुभवों के आधार पर बताती हैं, जब दुःखों और कठिनाईयों में पड़े लोगों के साथ बैठकर उन्होंने उनकी बातें सुनने में समय बिताया। वे बताती हैं कि अनेकों लोगों ने उनका बहुत धन्यवाद किया उस सहायता के लिए जो उन्होंने उन लोगों के लिए करी, जबकि जॉयस का कहना है कि बहुत बार तो उन्होंने कुछ भी नहीं किया था, केवल शांत बैठकर उन लोगों की बात सुनी थी, उन्हें अपने मन की व्यथा निर्बाधित उंडेल लेने दी थी। जॉयस का निषकर्ष था कि दुःखी लोगों की सहायता करने का एक प्रभावी तरीका, ध्यान लगाकर उनकी बात सुनना भी है।
परमेश्वर के वचन बाइबल के एक पात्र अय्युब के साथ भी हम यही बात पाते हैं। अय्युब के परमेश्वर में विश्वास को गिराने के लिए शैतान उसकी घोर परीक्षा लेता है, उसका घर-बार, परिवार, संपत्ति और सेहत सब पर शैतान हमला करके सब ले लेता है, किंतु अय्युब का विश्वास परमेश्वर पर से नहीं हटता। उसके इस घोर दुःख के समय में उसके मित्र उससे मिलने और उसे सांत्वना देने आते हैं। उसकी दशा देखकर वे मित्र सात दिन तक चुपचाप उसके साथ बैठे तो रहते हैं (अय्युब 2:13), लेकिन जब अय्युब अपनी व्यथा उनके सामने कहना आरंभ करता है तो उसकी व्यथा का वर्णन सुनने की बजाए वे उस से अपने ही विचार कहने लगते हैं, उस पर दोषारोपण करते हैं, और उसके जीवन में किसी पाप के कारण ही इन दुःखों के आने का इलज़ाम उस पर लगाते हैं। उनकी उपस्थिति अय्युब के लिए सांत्वना का नहीं वरन कष्ट का कारण हो जाती है और वह कहता है, "भला होता कि मेरा कोई सुनने वाला होता! (सर्वशक्तिमान अभी मेरा न्याय चुकाए! देखो मेरा दस्तखत यही है)। भला होता कि जो शिकायतनामा मेरे मुद्दई ने लिखा है वह मेरे पास होता!" (अय्युब 31:35)।
जब हम किसी की बात ध्यान से सुनते हैं, तो हम उस पर प्रगट करते हैं कि तुम्हारे संदर्भ में जो तुम्हारी चिंताएं है, वे मेरी भी है; जो तुम्हारे लिए महत्वपूर्ण है, वह मेरे लिए भी है। अवश्य ही कठिनाई में पड़े लोगों को नेक और भली सलाह की आवश्यकता होती है; लेकिन इससे भी बढ़कर अनेकों बार लोगों को ऐसे साथियों की आवश्यकता होती है जो उनसे प्रेम करते हैं, उनकी चिंता करते हैं, उनकी बात ध्यान से सुनने के लिए समय देते हैं। ऐसे ध्यान से किसी की बात सुनना सरल कार्य नहीं है; किसी के मन की बात को सुन कर समझ पाना और फिर उसे एक सही एवं उचित प्रतिक्रीया दे पाने के लिए समय, नम्रता और लगन की आवश्यकता होती है जो उसके प्रति हमारी सच्ची सहानुभूति का सूचक है।
हे प्रभु हमें प्रेम से भरा मन और दूसरों की सुनने वाले कान दे। - डेविड रोपर
जब कोई बोल रहा हो, और हम उसकी बात का उत्तर सोचना आरंभ कर दें,
तो वास्तव में हम उसकी बात को सुन नहीं रहे होते।
हे बुद्धिमानों! मेरी बातें सुनो, और हे ज्ञानियो! मेरी बातों पर कान लगाओ; क्योंकि जैसे जीभ से चखा जाता है, वैसे ही वचन कान से परखे जाते हैं। - अय्युब 34:2-3
बाइबल पाठ: अय्युब 2:11-13
Job 2:11 जब तेमानी एलीपज, और शूही बिलदद, और नामाती सोपर, अय्यूब के इन तीन मित्रों ने इस सब विपत्ति का समाचार पाया जो उस पर पड़ी थीं, तब वे आपस में यह ठान कर कि हम अय्यूब के पास जा कर उसके संग विलाप करेंगे, और उसको शान्ति देंगे, अपने अपने यहां से उसके पास चले।
Job 2:12 जब उन्होंने दूर से आंख उठा कर अय्यूब को देखा और उसे न चीन्ह सके, तब चिल्लाकर रो उठे; और अपना अपना बागा फाड़ा, और आकाश की ओर धूलि उड़ाकर अपने अपने सिर पर डाली।
Job 2:13 तब वे सात दिन और सात रात उसके संग भूमि पर बैठे रहे, परन्तु उसका दु:ख बहुत ही बड़ा जान कर किसी ने उस से एक भी बात न कही।
एक साल में बाइबल:
- 1 इतिहास 16-18
- यूहन्ना 7:28-53
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