मसीही विश्वासी के गुण (2) - प्रभु
को प्राथमिक स्थान देता है
सुसमाचारों में प्रभु
यीशु मसीह द्वारा दिए गए मसीही विश्वासी के सात गुणों में से दूसरा गुण है कि
वह प्रभु यीशु मसीह को अपने जीवन में प्राथमिक, सबसे उच्च स्थान देता है। प्रभु के
शिष्य के लिए पारिवारिक एवं सांसारिक संबंधों से अधिक महत्वपूर्ण प्रभु के साथ
उसका संबंध होना चाहिए:
मत्ती 10:37 जो माता या पिता को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह
मेरे योग्य नहीं और जो बेटा या बेटी को मुझ से अधिक प्रिय जानता है, वह मेरे योग्य नहीं।
लूका 14:26 यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और लड़के बालों और भाइयों और बहिनों वरन
अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो
सकता।
प्रभु ने इसका उदाहरण स्वयं अपने व्यवहार
के द्वारा दिखाया; प्रभु
के लिए उसके अपने परिवार जनों से अधिक महत्वपूर्ण वे लोग थे जो उसकी बात सुनते और
मानते थे: “और उस की माता और उसके भाई आए, और बाहर खड़े हो कर उसे बुलवा भेजा। और भीड़ उसके आसपास बैठी थी, और उन्होंने उस से कहा; देख, तेरी
माता और तेरे भाई बाहर तुझे ढूंढते हैं। उसने उन्हें उत्तर दिया, कि मेरी माता और मेरे भाई कौन हैं? और उन पर जो उसके
आस पास बैठे थे, दृष्टि कर के कहा, देखो,
मेरी माता और मेरे भाई यह हैं। क्योंकि जो कोई परमेश्वर की इच्छा पर
चले, वही मेरा भाई, और बहिन और माता है”
(मरकुस 3:31-35)।
किन्तु इसका यह अभिप्राय नहीं है कि
मसीही शिष्य को अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के प्रति उदासीन या लापरवाह होना
चाहिए। परमेश्वर के वचन और प्रयोजन में परिवार ही वह इकाई है जिसमें होकर हम
परमेश्वर और उसके प्रेम को समझने पाते हैं। परमेश्वर ने हमारे लिए अपने आप को
परिवार के सदस्यों, जैसे
कि पिता, पुत्र, पति; और अपने लोगों के
साथ अपने संबंध तथा उन लोगों के परस्पर संबंधों को भी पारिवारिक संबंधों जैसे कि
पुत्र और पुत्रियों, पत्नी, भाई,
आदि के द्वारा व्यक्त किया है। वचन परिवार के प्रति व्यक्ति की
जिम्मेदारियों को भी सिखाता है:
निर्गमन 20:12 तू अपने पिता और अपनी माता का
आदर करना, जिस से जो देश तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देता है
उस में तू बहुत दिन तक रहने पाए।
लैव्यव्यवस्था 19:3 तुम अपनी अपनी
माता और अपने अपने पिता का भय मानना, और मेरे विश्राम दिनों
को मानना; मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।
1 तीमुथियुस 5:8 पर यदि कोई अपनों की और निज कर के अपने घराने की चिन्ता न करे, तो वह विश्वास से मुकर गया है, और अविश्वासी से भी
बुरा बन गया है।
प्रभु यीशु मसीह ने इस ज़िम्मेदारी को भी
क्रूस की वेदना सहते हुए निभाया, जब उन्होंने अपनी माता मरियम की ज़िम्मेदारी अपने शिष्य
यूहन्ना को सौंपी: “परन्तु यीशु के क्रूस के पास उस की
माता और उस की माता की बहिन मरियम, क्लोपास की पत्नी, और मरियम
मगदलीनी खड़ी थी। यीशु ने अपनी माता और उस चेले को जिस से वह प्रेम रखता था,
पास खड़े देखकर अपनी माता से कहा; हे नारी,
देख, यह तेरा पुत्र है। तब उस चेले से कहा,
यह तेरी माता है, और उसी समय से वह चेला,
उसे अपने घर ले गया” (यूहन्ना 19:25-27)।
साथ ही हम यह भी देखते हैं कि प्रभु की
मण्डली के अगुवों को सबसे पहले परिवार की उचित देखभाल करने वाला होना चाहिए, तब ही वह मण्डली की
देखभाल ठीक से कर सकेंगे:
1 तीमुथियुस 3:4-5 अपने घर का अच्छा प्रबन्ध करता हो, और लड़के-बालों
को सारी गम्भीरता से आधीन रखता हो। जब कोई अपने घर ही
का प्रबन्ध करना न जानता हो, तो परमेश्वर की कलीसिया
की रखवाली क्योंकर करेगा?
1 तीमुथियुस 3:12 सेवक एक ही पत्नी के पति हों और लड़के बालों और अपने घरों का अच्छा प्रबन्ध
करना जानते हों।
पारिवारिक संबंधों से बढ़कर प्रभु को
प्राथमिकता देने का अर्थ परिवार की अनदेखी करना नहीं है, वरन पारिवारिक
जिम्मेदारियों की आड़ लेकर, प्रभु के कार्य की अनदेखी नहीं
करना है। हमने मरकुस 3:14-15 में से शिष्य के लिए प्रभु के
प्रयोजनों में से दूसरे प्रयोजन में देखा था कि प्रभु के शिष्य को जब और जहाँ
प्रभु भेजे, तब और वहाँ जाने के लिए तैयार रहना चाहिए। हम यह
भी देख चुके हैं कि प्रभु जब भी किसी व्यक्ति को अपने किसी कार्य के लिए भेजता है,
तो उससे संबंधित सारी तैयारियों को पूरा कर लेने के बाद ही ऐसा करता
है। इसलिए प्रभु के शिष्य को प्रभु में इस बात के लिए भरोसा रखना चाहिए कि यदि
प्रभु उसे कहीं जाने या कुछ करने के लिए कह रहा है, तो प्रभु
ने उसके परिवार से संबंधित जिम्मेदारियों के बारे में भी कुछ प्रयोजन कर के रखा
होगा, और उस शिष्य की अनुपस्थिति में परिवार को कोई हानि
नहीं होगी। साथ ही, शिष्य द्वारा अपने परिवार को प्रभु के
हाथों में सौंप कर, प्रभु के कहे के अनुसार करने के लिए जाना,
इस बात का अभी सूचक है कि वह शिष्य यह मानता और निभाता है कि उसके
परिवार की देखभाल भी प्रभु ही करता है, न कि वह स्वयं;
जो कि उसके विश्वास की परिपक्वता का सूचक एवं चिह्न है।
जो प्रभु को महत्व देते हैं, प्रभु उनको भी बहुत महत्व और प्रतिफल
देता है: “यीशु ने कहा, मैं तुम से
सच कहता हूं, कि ऐसा कोई नहीं, जिसने
मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहिनों या माता या पिता या लड़के-बालों
या खेतों को छोड़ दिया हो। और अब इस समय सौ गुणा न पाए, घरों और भाइयों और बहिनों और माताओं और लड़के-बालों और खेतों को पर उपद्रव
के साथ और परलोक में अनन्त जीवन” (मरकुस 10:29-30)।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं, अपने आप को प्रभु यीशु
मसीह का अनुयायी कहते हैं, तो प्रभु के सच्चे शिष्य की इस
दूसरी पहचान की कसौटी पर आप कहाँ खड़े हैं? प्रभु, उसकी आज्ञाकारिता, और उस का वचन आपके जीवन में क्या
महत्व रखता है; क्या स्थान पाता है? क्या
आपने प्रभु को अपने जीवन में प्राथमिक तथा सर्वोच्च स्थान दिया है? वह राजाओं का राजा, प्रभुओं का प्रभु, सृष्टि का रचयिता एवं स्वामी और सर्वशक्तिमान परमेश्वर है; उसको उसकी महिमा और हस्ती के उपयुक्त स्थान न देना, उसका
अपमान करना है। इसलिए यदि आप प्रभु के जन हैं, तो प्रभु को
अपने जीवन में उसका सही आदर और स्थान भी प्रदान करें।
और यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में
अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके
वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा
भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा
से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और
स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु
मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना
जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी
कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने
मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े
गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और
समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए
स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- यिर्मयाह
9-11
- 1 तिमुथियुस 6
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