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शुक्रवार, 13 मई 2022

परमेश्वर का वचन – बाइबल, और विज्ञान / Word of God – Bible, & Science – 13

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बाइबल और भौतिक-विज्ञान - 2


पिछले लेख में हमने पानी के चक्र के बारे में देखा था, और यह भी देखा था कि जब प्रदूषण और जल-वायु के बिगड़ने की कोई समझ या ज्ञान अथवा संभावना का भी संसार के लोगों को पता नहीं था, तब ही 2000 वर्ष पहले, परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल में लिखवा दिया था कि पृथ्वी को बिगाड़ने वालों को उनके किए के लिए परमेश्वर के न्याय का सामना करना पड़ेगा। आज हम भौतिक विज्ञान की, पानी के चक्र से भी जटिल बातों के संबंध में बाइबल में लिखी कुछ बातों के बारे में देखेंगे, जो हमारे पहले कहे गए एक तथ्य की पुष्टि करती हैं कि परमेश्वर की सृष्टि, अपने रचयिता के पक्ष में ही गवाही देगी, उसके विरुद्ध नहीं।


  • सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सर आइज़क न्यूटन ने प्रकाश के बारे में बहुत खोज की, उसके गुणों का, और उसके विषय कुछ नियमों पता लगाया। जैसे कि, उन्होंने दिखाया, सूर्य के प्रकाश को सात रंगों में फैलाया जा सकता है और उन्हें फिर से एक साथ कर के पहले जैसे प्रकाश में परिवर्तित किया जा सकता है; और यह कि प्रकाश का अपना का एक निश्चित मार्ग होता है, जिसके अनुसार वह जाता है। आज से लगभग 4000 वर्ष पहले रहने वाले अय्यूब के वृतांत में, सृष्टि के विषय अय्यूब से प्रश्न करते समय, परमेश्वर ने उससे पूछा और लिखवा दिया था, “उजियाले के निवास का मार्ग कहां है, और अन्धियारे का स्थान कहां है?” (अय्यूब 38:19); “किस मार्ग से उजियाला फैलाया जाता है, ओर पुरवाई पृथ्वी पर बहाई जाती है?” (अय्यूब 38:24); अर्थात, प्रकाश के जाने का एक निर्धारित मार्ग है और उजियाले को फैलाया [बाइबल के विभिन्न अंग्रेजी अनुवाद यह ‘फैलाया’ से और भी अधिक सटीक शब्द divided, parted, diffused, dispersed आदि के प्रयोग द्वारा व्यक्त करते हैं] जा सकता है। जिस वैज्ञानिक तथ्य को पहचानने और प्रमाणित करने में न्यूटन जैसे वैज्ञानिक को समय और परिश्रम लगाना पड़ा, उसे परमेश्वर ने एक सामान्य मनुष्य पर पहले ही प्रकट कर दिया था। 

  • अय्यूब के साथ अपने वार्तालाप में परमेश्वर उससे एक और अद्भुत प्रश्न पूछता है, “क्या तू बिजली को आज्ञा दे सकता है, कि वह जाए, और तुझ से कहे, मैं उपस्थित हूँ?” (अय्यूब 38:35)। मूल इब्रानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद यहाँ पर “बिजली” किया गया है, उसका शब्दार्थ होता है “चमकने वाली”; अर्थात प्रकाश या “चमक” में वह गुण है कि उसको एक से दूसरे स्थान पर भेजा जा सकता है, और उसे ध्वनि में परिवर्तित किया जा सकता है, इस गुण की सहायता से उसके माध्यम से संदेश भेजे जा सकते हैं। जिसे परमेश्वर ने 4000 वर्ष पहले कहा था, उसे विज्ञान ने अब पहचाना है कि प्रकाश, रेडियो तरंगें, और ध्वनि तरंगें एक ही प्रकार की ऊर्जा के, उसकी भिन्न आवृत्तियों (frequencies) के अनुसार, भिन्न स्वरूप हैं, एक से दूसरे स्थान पर स्वरूप परिवर्तित करके भेजे जा सकते हैं और इस गुण के उपयोग के द्वारा संदेश एक से दूसरे स्थान पर भेजे जा सकते हैं - हमारे टी.वी. रेडियो, फोन, औडियो और वीडियो कौल प्रणालियाँ, आदि सभी इसी सिद्धांत पर कार्य करती हैं, जिसे परमेश्वर ने इन बातों के पता होने से पहले ही पहले ही साधारण शब्दों में व्यक्त कर दिया था। 

  • पहले यह माना जाता था कि वायु में कोई भार नहीं है। किन्तु अय्यूब की पुस्तक में ही परमेश्वर द्वारा वायु का तौल निर्धारित करने की बात कही गई है “जब उसने वायु का तौल ठहराया, और जल को नपुए में नापा” (अय्यूब 28:25)। जिसे विज्ञान को पहचानने में सदियाँ लग गईं, उसे परमेश्वर ने 4000 वर्ष पहले बता दिया था।

  • सृष्टि के आरंभ, उत्पत्ति के समय से ही परमेश्वर ने आकाश की ज्योतियों और तारागणों को  चिह्नों, दिन और रात के समय निर्धारण, दिनों और वर्षों के निर्धारण के लिए बनाया था, “फिर परमेश्वर ने कहा, दिन को रात से अलग करने के लिये आकाश के अन्तर में ज्योतियां हों; और वे चिन्हों, और नियत समयों, और दिनों, और वर्षों के कारण हों। और वे ज्योतियां आकाश के अन्तर में पृथ्वी पर प्रकाश देने वाली भी ठहरें; और वैसा ही हो गया। तब परमेश्वर ने दो बड़ी ज्योतियां बनाईं; उन में से बड़ी ज्योति को दिन पर प्रभुता करने के लिये, और छोटी ज्योति को रात पर प्रभुता करने के लिये बनाया: और तारागण को भी बनाया” (उत्पत्ति 1:14-16)। मनुष्य ने परमेश्वर के इस उद्देश्य को हजारों वर्ष बाद पहचाना और उसका सही उपयोग किया। 

  • जगत के अंत और न्याय होने के लिए परमेश्वर के सम्मुख खड़े होने के समय की भविष्यवाणी करते समय प्रभु यीशु का शिष्य पतरस, जो पहले एक अनपढ़ मछुआरा हुआ करता था, लिखता है, “परन्तु प्रभु का दिन चोर के समान आ जाएगा, उस दिन आकाश बड़ी हड़हड़ाहट के शब्द से जाता रहेगा, और तत्‍व बहुत ही तप्‍त हो कर पिघल जाएंगे, और पृथ्वी और उस पर के काम जल जाऐंगे। तो जब कि ये सब वस्तुएं, इस रीति से पिघलने वाली हैं, तो तुम्हें पवित्र चाल चलन और भक्ति में कैसे मनुष्य होना चाहिए। और परमेश्वर के उस दिन की बाट किस रीति से जोहना चाहिए और उसके जल्द आने के लिये कैसा यत्‍न करना चाहिए; जिस के कारण आकाश आग से पिघल जाएंगे, और आकाश के गण बहुत ही तप्‍त हो कर गल जाएंगे” (2 पतरस 3:10-12), जो परमाणु हथियारों के प्रयोग का सटीक वर्णन है, अंत के समय के लिए भविष्यवाणी है। आज से 2000 वर्ष पहले, जब ऐसे कोई हथियार या तरीके नहीं थे, जिनसे तत्व बहुत ही गर्म होकर पिघल जाएं, पृथ्वी और उस पर के काम जल जाएं, भयानक ध्वनि हो, आकाश की उपस्थिति दृष्टि से लुप्त हो जाए, तब इन बातों को बताना, जिन्हें आज हम परमाणु अस्त्रों के प्रयोग के परिणाम के रूप में जानते हैं, क्या किसी मानवीय बुद्धि की कल्पना से हो सकता है?


इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज संसार परमाणु युद्ध की कगार पर खड़ा है। परमाणु अस्त्र रखने वाली शक्तियाँ एक-दूसरे पर अपना वर्चस्व स्थापित करने की होड़ में लगी हैं। संसार भर में हर स्थान, हर जाति, हर देश में तनाव है; बात-बात में एक-दूसरे पर चढ़ाई करने की या तो धमकी दी जाती है अथवा हमला कर दिया जाता है। सबसे अधिक भय अब इस बात का होने लगा है कि आतंकी संघटन और देश अब परमाणु हथियारों को अर्जित करने के प्रयास में लग गए हैं, और कर भी लेंगे। ऐसे में परमाणु विश्व-युद्ध को रोक पाना यदि असंभव नहीं तो बहुत कठिन अवश्य हो जाएगा। संसार के हालात, प्रकृति में होने वाली अप्रत्याशित, अभूतपूर्व विनाशकारी बातें, सभी 2000 वर्षे पहले प्रभु यीशु की भविष्यवाणियों (मत्ती 24 अध्याय) के अनुसार, प्रभु के दूसरे आगमन और जगत के अंत तथा सभी मनुष्यों न्याय के शीघ्र ही होने की ओर संकेत कर रही हैं। अब यह आपको विचार करना है कि क्या आप इस अवश्यंभावी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार हैं कि नहीं। 


चाहे जगत का अंत आपके जीवन काल में न भी हो, तो भी जीवन समाप्त होने के पश्चात, प्रभु परमेश्वर के सामने जीवन का हिसाब देने के लिए तो खड़ा होना ही है। यदि आत्मा पर पाप के दाग लिए हुए जाएंगे, तो फिर परमेश्वर के साथ नहीं रह पाएंगे। आज ही स्वेच्छा से, प्रभु यीशु से अपने पापों की क्षमा माँगकर पापों के दागों को धो लीजिए, परमेश्वर के साथ अनन्तकाल की आशीष और सुख में रहने के लिए तैयार हो जाइए। सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना, आपके जीवन को विनाश से आशीष में लाकर खड़ा कर सकती है - निर्णय आपका है। आपको बस कुछ इस प्रकार से सच्चे मन से, स्वेच्छा से, पापों के लिए पश्चाताप की मनसा के साथ प्रभु को पुकारना है, “हे प्रभु यीशु, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं आपकी अनाज्ञाकारिता का दोषी हूँ, पापी हूँ। मैं मानता हूँ कि आपने मेरे सभी पाप अपने ऊपर लेकर, क्रूस पर अपना बलिदान देने के द्वारा उनके सारे दण्ड को मेरे लिए सह लिया, मेरे स्थान पर आपने उनकी पूरी कीमत चुका दी। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, अपना आज्ञाकारी शिष्य बनाएं, और अपने साथ बनाकर रखें।” समय रहते सही निर्णय कर लें, कही बाद में बहुत देर न हो जाए, मौका हाथ से निकाल न जाए। 


एक साल में बाइबल: 

  • 2 राजाओं 17-18

  • यूहन्ना 3:19-36

 

  

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English Translation


Bible and Physical Sciences - 2 - Facts from Physics


In the previous article we saw about the water cycle, and also saw that about 2000 years ago, when the people of the world did not have any concept, understanding, or knowledge of such severe and significant deterioration of water and air qualities because of pollution, and its existence threatening effects on life in general and on mankind in particular, and did not even think about the possibility of this to ever occur, yet God had it written in His Word, the Bible, that those who ruined the earth would face God's judgment for their actions. Today we'll look at some of the Biblical things related to Physics, things that are even more complicated than the water cycle, and which confirm as fact what we had said earlier, that God's creation will testify only in favor of its creator, not against Him.


  • The famous scientist Sir Isaac Newton discovered a lot of things about light and its properties, and found out some laws about it. For example, he showed, sunlight can be dispersed into seven colors and can be re-combined into the same light as before; And that light travels in a definite, set path of its own. In the account of Job, who lived about 4000 years ago, while questioning Job about creation, God asked him and had it written, "Where is the way to the dwelling of light? And darkness, where is its place?" (Job 38:19); "By what way is light diffused, Or the east wind scattered over the earth?" (Job 38:24); implying that there is a set, definite path for the light to traverse [various English translations of the Bible express this with the more precise words like, divided, parted, diffused, dispersed, etc.]. The scientific fact that a scientist like Newton took a long time and much effort to identify and prove, had already been revealed by God to an ordinary man, thousands of years ago.

  • In his conversation with Job, God asks him another wonderful question, "Can you send out lightnings, that they may go, And say to you, 'Here we are!'?" (Job 38:35). The original Hebrew word here translated as "lightning" literally means "shine", or something that shines; i.e., light or its "shine" has the quality that it can be made to go from one place to another, and it can be made “to say” things, i.e., it can be converted into sound, with the help of this quality messages can be sent through it. What God said 4000 years ago, science has now recognized that light, radio waves, and sound waves are different forms of the same type of energy, of different frequencies, and messages can be sent from one place to another using this property - our TVs, radio, phone, audio and video call systems, etc., all work on this principle, which God had already expressed in simple understandable words before these things about energy forms, waves and frequencies etc. were known to mankind.

  • Earlier it was believed that there is no weight in air. But it is written in the book of Job that God determined the weight of air "To establish a weight for the wind, And apportion the waters by measure" (Job 28:25). What science took centuries to recognize had already been told by God 4000 years ago.

  • From the time of creation, since the beginning of the universe, God created the lights and stars of the sky to determine the time of day and night, to determine the days and years, “Then God said, "Let there be lights in the firmament of the heavens to divide the day from the night; and let them be for signs and seasons, and for days and years; and let them be for lights in the firmament of the heavens to give light on the earth"; and it was so. Then God made two great lights: the greater light to rule the day, and the lesser light to rule the night. He made the stars also” (Genesis 1:14-16). Man could recognize this purpose of God, thousands of years later and then made good use of it.

  • When prophesying the end of the world and the time to stand before God for judgment, the disciple of the Lord Jesus, Peter, formerly an illiterate fisherman, wrote, “But the day of the Lord will come as a thief in the night, in which the heavens will pass away with a great noise, and the elements will melt with fervent heat; both the earth and the works that are in it will be burned up. Therefore, since all these things will be dissolved, what manner of persons ought you to be in holy conduct and godliness, looking for and hastening the coming of the day of God, because of which the heavens will be dissolved, being on fire, and the elements will melt with fervent heat?” (2 Peter 3:10-12), which is an accurate description of the destruction caused by the use of nuclear weapons. This, in a prophecy for the end times, given 2000 years ago, when there were no weapons or methods by which the elements would become very hot and melt, the earth and the works on it would burn, there would be a terrible sound of a blast, the visibility of the sky disappearing from sight. We know these things today by our knowledge of the use of nuclear weapons, but it is humanly impossible for Peter or any other person to even imagine and then to write and tell about these things at the time this was written. It simply cannot be through the thoughts or imaginations of any human intelligence.


There is no doubt that today the world is standing on the verge of nuclear war. The powers possessing nuclear weapons are competing to establish their supremacy over each other. There is tension all over the world in every place, in every race, in every country. Countries and alliances keep trying to have an upper hand over their rivals, they either threaten each other, or indirectly terrorize their rivals, or even attack and invade. The biggest fear now is that terrorist organizations and their supporting countries are now trying to acquire nuclear weapons, and eventually will acquire them in some way. In such a situation, it will be very difficult, if not impossible, to avert a nuclear world war. The prevailing political and economic state of the world; the unpredictable, unprecedented destructive things that are happening in nature, are all according to the prophecies of the Lord Jesus given 2000 years ago (Matthew 24). All of these current events are pointing to the second coming of the Lord, the end of the world, and the judgment of all human beings, in the near future. Now it is for you to consider and decide whether you are prepared and ready to face this inevitable situation or not.


Even if the end of the world does not happen in your lifetime, still, after the end of this earthly life, everyone will have to stand before the Lord God to give the account of their life to Him. If the soul has stand before God, tainted with sin, then it will not be able to live with God. Voluntarily today, just now, ask the Lord Jesus for forgiveness of your sins, ask Him to wash away the stains of your sins, and to make you ready to live in eternal blessings and happiness with God. A single prayer from a sincere and submissive heart can lift your life from destruction to blessing - the decision is yours. All you have to do is call upon the Lord with a sincere heart, voluntarily, with a heartfelt sincere repentance of your sins; you can pray something like this, “Lord Jesus, I confess that I am guilty of disobeying you, I am a sinner. I believe and accept that you took all my sins upon yourself, bore all their punishment for me by sacrificing yourself on the Cross, and paid their full price in my place. Please forgive my sins, take me under your care, make me your obedient disciple, and keep me with you." Take the right decision while you have the time and opportunity, before it is too late, and you miss the opportunity.



Through the Bible in a Year: 

  • 2 Kings 17-18

  • John 3:19-36



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