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फसह तथा प्रभु की मेज़ - केवल परमेश्वर के लोगों ही के लिए
हम पहले देख चुके हैं कि प्रभु यीशु ने प्रभु भोज या प्रभु की मेज़ की स्थापना, अपने शिष्यों के साथ फसह मनाते हुए, फसह की सामग्री के उपयोग के द्वारा की थी। हम निर्गमन 12 में फसह के बारे में दी गई बातों से प्रभु भोज के बारे में सीखते आ रहे हैं; और अब हम अपने तीसरे और अंतिम खण्ड पद 43-49 में पहुँच गए हैं। हम पद 40-42 के बारे में पिछले दो लेखों में पहले ही देख चुके हैं। आज हम फसह से संबंधित एक और बहुत महत्वपूर्ण बात के बारे में पद 43-49 से देखेंगे, ऐसी बात जो प्रभु भोज से भी संबंध रखती है, और हमारे अध्ययन के पहले खण्ड, पद 1-14 की बातों के अध्ययन के समय बारंबार कही गई बात की पुष्टि करती है।
पहले खण्ड, निर्गमन 12:1-14 के अध्ययन के समय, लगभग प्रत्येक लेख में इस बात को जोर देकर कहा गया था कि उसके प्ररूप फसह के समान ही प्रभु भोज भी कभी भी ऐसे लोगों के द्वारा जो रस्म और रीति के समान अपने आप को प्रभु के साथ जोड़ लेते हैं, हल्के में, एक औपचारिकता के समान भाग लेने के लिए नहीं था। वरन, परमेश्वर ने दोनों, फसह, तथा प्रभु की मेज़ को परमेश्वर के लोगों या नया जन्म पाए हुए मसीही विश्वासियों, अर्थात परमेश्वर की संतान ही के लिए निर्धारित किया है। हम इस बात को इस खण्ड निर्गमन 12:43-49 में बड़े जोर के साथ लिखे और कहे जाते देखते हैं। लेकिन साथ ही हम इस खण्ड में परमेश्वर द्वारा दिया गया एक बहुत अद्भुत प्रावधान को भी देखते हैं, जिसे सामान्यतः पहचाना और अंगीकार नहीं किया जाता है। संक्षेप में, इस खण्ड में परमेश्वर ने बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि जब तक कि उस व्यक्ति का, जो एक परदेशी हो (पद 43), मोल लिया हुआ दास हो (पद 44), यात्री या मजदूर हो (पद 45), या इस्राएलियों के मध्य रहने वाला कोई परदेशी हो (पद 48), खतना नहीं हो जाए, अर्थात वह अब्राहम के साथ परमेश्वर द्वारा बांधी हुई वाचा के अधीन न आ जाए, तब तक उसे फसह में भाग लेने की अनुमति नहीं है। फसह “को मानना इस्राएल की सारी मण्डली का कर्तव्य कर्म है” (पद 47), गैर-इस्राएलियों का नहीं; और “कोई खतनारहित पुरुष उस में से न खाने पाए” (पद 48)। इसमें किसी भी अपवाद की, परमेश्वर द्वारा दिए गए विधान में किसी बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं थी; सभी को परमेश्वर के उसी एक ही नियम का पालन करना था (पद 49)।
यही अपने आप में बिल्कुल स्पष्ट रीति से और दृढ़ता के साथ इस धारणा का अंत कर देता है कि फसह में भाग लेने वाले, यह करने से परमेश्वर के लोग हो जाते हैं। परमेश्वर का वचन जो कह रहा है वह यह है कि केवल परमेश्वर के लोगों को ही फसह में सम्मिलित होना था। जो परमेश्वर के लोग नहीं थे, किन्तु फसह में सम्मिलित होना चाहते थे, उन्हें पहले, खतने के द्वारा, परमेश्वर द्वारा अब्राहम के साथ की गई वाचा (उत्पत्ति 17:9-14) की अधीनता में आना था, और तब ही वे उसमें भाग ले सकते थे। इसी प्रकार से प्रभु यीशु मसीह ने भी अपने प्रतिबद्ध शिष्यों के साथ ही फसह में से ही प्रभु भोज की स्थापना की थी, और केवल उन्हें ही, जिन्होंने प्रभु यीशु के प्रतिबद्ध शिष्य बनने का निर्णय लिया था, और अपने आप को उसे समर्पित कर दिया था, उसकी तथा उसके वचन की आज्ञाकारिता में जीवन जीने के लिए, प्रभु भोज में भाग लेना था। नए नियम में, कलीसिया के आरंभ के साथ ही हम यह देखते हैं कि केवल उन्होंने ही प्रभु भोज में भाग लिया जो जिन्होंने प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार कर के अपना जीवन उसे समर्पित कर दिया (प्रेरितों 2:41-42)। परमेश्वर के वचन में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है कि प्रभु की मेज़ में भाग लेने के द्वारा कोई भी, कभी भी प्रभु यीशु मसीह का शिष्य बना हो, या प्रभु भोज में भाग ले लेने के कारण किसी को यह आश्वासन दिया गया हो कि यह करने से वे परमेश्वर के लोग और स्वर्ग में प्रवेश पाने के योग्य हो गए हैं। ऐसी सभी शिक्षाएं और सिद्धांत झूठे हैं, बाइबल के बाहर की बातें हैं, जिन्हें शैतान ने लोगों को बहका कर अनन्त विनाश में ले जाने के लिए फैला रखा है।
जैसा कि निर्गमन 12:49 कहता है, भाग लेने के लिए परमेश्वर द्वारा केवल एक ही नियम दिया गया है, और वही एक नियम सभी के लिए लागू है। इस एक नियम में किसी के भी द्वारा, किसी के भी लिए, कोई भी परिवर्तन किए जाने का कोई प्रावधान नहीं है। जिन्हें इसमें भाग लेना है, उन्हें अपने आप को उसी एक नियम की अधीनता में लाना होगा; न कि लोगों को उसमें बैठा लेने के लिए नियम में बदलाव कर लें। यह एक बार फिर से हमारे सामने बाइबल के इस तथ्य को बहुत स्पष्टता और दृढ़ता से लाता है कि फसह में या प्रभु की मेज़ में भाग लेना केवल परमेश्वर द्वारा दी गई विधि के अनुसार ही होना है। इसी प्रकार से, जैसा कि हम पहले के लेखों में देख चुके हैं, प्रभु ने मेज़ को स्थापित करते समय कहा था “मेरे स्मरण के लिये यही किया करो” (लूका 22:19; 1 कुरिन्थियों 11:24-25); यहाँ पर “यही” वह है जो प्रभु यीशु ने किया था, और जो प्रथम कलीसिया के लोग किया करते थे। जब कुरिन्थुस के मसीही विश्वासियों ने इसे बिगड़ने और बदलने के प्रयास किए तब पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस में होकर उन्हें 1 कुरिन्थियों 11 में सही किया - जिसे हम आते समय में देखेंगे। लेकिन परमेश्वर के वचन से जो बात स्पष्ट है, वह है कि न तो फसह और न ही प्रभु भोज में परमेश्वर द्वारा स्थापित विधि के अतिरिक्त किसी भी अन्य रीति से भाग नहीं लिया जाना है। क्योंकि परमेश्वर ने इसमें किसी के भी द्वारा, किसी के भी लिए, कोई भी फेर-बदल या परिवर्तन करने की अनुमति नहीं दी है; इसलिए इसके विषय विभिन्न समुदायों और डिनॉमिनेशंस द्वारा अपने ही नियम और रीतियाँ बनाकर लागू करने की कोई गुंजाइश, कोई संभावना का ज़रा सा भी स्थान कदापि नहीं है। यह करना न केवल परमेश्वर के वचन के विरुद्ध जाना है, जो नियम परमेश्वर ने दिया है उसके विरुद्ध, परंतु पाप करना तथा मण्डली के लोगों से पाप करवाना भी है। क्योंकि बाइबल के अनुसार पाप की एक परिभाषा है “जो कोई पाप करता है, वह व्यवस्था का विरोध करता है; ओर पाप तो व्यवस्था का विरोध है” (1 यूहन्ना 3:4)।
तो, इससे हम देखते हैं कि चाहे फसह हो या प्रभु की मेज़, वे परमेश्वर के सभी लोगों को, परमेश्वर की सारी संतानों को एक ही नियम के अन्तर्गत, एक ही समान स्तर पर ले आते हैं। इनमें सम्मिलित होना उनके लिए है जो परमेश्वर का तथा उसके वचन का आदर करते हैं, उसके विधानों के प्रति समर्पित रहने के लिए राज़ी हैं; न कि परमेश्वर के नाम में अपनी ही इच्छा और मन की बातों को पूरा करते हैं। जो अपनी इच्छा पूरी करते हैं, वे अपने आप को परमेश्वर से ऊँचा दिखाना, उसका स्थान लेना चाहते हैं, और उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि परमेश्वर इसे हल्के में लेगा, उसके प्रति उनकी इस अनाज्ञाकारिता का कोई हिसाब नहीं लेगा। वे सभी बहुत बारीकी और कड़ाई से जाँचे जाएंगे, और उनके किए के अनुपात में दण्ड भी पाएंगे (1 कुरिन्थियों 3:13-15; 2 कुरिन्थियों 5:10)। अगले लेख में, इसी खंड से, हम परमेश्वर द्वारा किए गए अद्भुत प्रावधान के बारे में देखेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और प्रभु की मेज़ में भाग लेते रहे हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में पापों से छुड़ाए गए हैं तथा आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है। आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
मीका 6-7
प्रकाशितवाक्य 13
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The Passover & The Lord’s Table - Only for God’s People
We have seen before that the Lord Jesus initiated the Holy Communion, or the Lord’s Table, while observing the Passover with His disciples, using the elements of the Passover Feast. We have been studying about the Holy Communion through the Passover, from Exodus 12; and we are now in our third and final section of verses 40-49. We have already seen from verses 40-42 in the previous two articles. Today we will see another very important aspect of the Passover, from verses 43-49, that also relates to the Holy Communion, and affirms what has been repeatedly emphasized, especially while studying the first section, of verses 1-14.
During our study of the first section, Exodus 12:1-14, it was emphasized in practically every article that the Holy Communion, like its antecedent the Passover, was never meant for a casual, perfunctory participation by anyone who associated himself with the Lord God. Rather, God has ordained both, the Passover, as well as the Lord’s Table for only the people of God or the Born-Again Christian Believers, the children of God. We see this strongly stated and emphasized in this section of Exodus 12:43-49. But we also see and amazing provision of God given here, that is often not recognized and acknowledged. In brief, in this section God has made it very clear that unless a person, whether a foreigner (verse 43), or bought house servant (verse 44), or a sojourner or a hired servant (verse 45), or a stranger dwelling with the Israelites (verse 48), is circumcised, i.e., comes under the covenant of God with Abraham and his descendants, he is not permitted to eat the Passover. Passover is meant only for “congregation of Israel” (verse 47); and “no uncircumcised person shall eat it” (verse 48). There were to be no exceptions, no variation of God’s ordinance, everyone had to abide by one and the same ordinance of God (verse 49).
This by itself very clearly and firmly negates the notion that partaking the Passover would make the participants the people of God. What God’s Word says is that only the people of God are to partake of the Passover; those who are not the people of God, but want to partake of the Passover, had to first come under the covenant of God, through circumcision, made by God with Abraham (Genesis 17:9-14), and only then partake of it. Similarly, the Lord Jesus too had established the Holy Communion with His committed disciples from the Passover, and only those who had committed themselves to be the disciples of the Lord Jesus, and had surrendered themselves to live in obedience to Him and His Word were to take part in the Holy Communion. In the New Testament, from the very beginning of the Church, we find that those who accepted Lord Jesus as their saviour and submitted themselves to Him, only they would participate in the Holy Communion (Acts 2:41-42). There is no mention anywhere in God’s Word that by participating in and partaking of the Lord’s Table, anyone ever became a disciple of the Lord Jesus, or, was anyone ever assured that their partaking in the Holy Communion made them the people of God and worthy of entering heaven. These are all unBiblical false teaching and doctrines, brought in by Satan to beguile and mislead people into eternal destruction.
As Exodus 12:49 says, there is only one law for participation given by God, and the same is applicable to everyone. There is no provision for any variation or alteration of that law by anyone, for anyone. Those who want to participate, have to bring themselves under that law; and not that God’s law can be modified to accommodate people. This again clearly and firmly brings before us the Biblical fact that participating in the Passover, or the Holy Communion, has to be in the manner, according to way given by God. Similarly, as we have seen in earlier articles, while initiating the Lord’s Table, the Lord Jesus said “do this in remembrance of me” (Luke 22:19; 1 Corinthians 11:24-25); the “this” being what the Lord Jesus had done, and what the members of the first Church used to do. When the Corinthian Believers started to distort and change the manner of participating in the Holy Communion, the Holy Spirit through the Apostle Paul, corrected them in 1 Corinthians 11 - which we will see in the days to come. But what is clear from God’s Word is that neither the Passover, nor the Holy Communion are to be observed and participated in, in any manner other than what the Lord God has ordained. Since no alterations or modifications by anyone, for any reason, are permissible by God for what He has ordained; therefore, there is no scope or place for different sects and denominations putting up their own rules and regulations about it, and setting up their own methods of observing it. Doing this is not only going against God’s Word, against God’s law that He has given, but is also committing sin and making the congregation sin as well; since one of the Biblical definitions of sin is “Whoever commits sin also commits lawlessness, and sin is lawlessness” (1 John 3:4).
So, we see from this that whether the Passover, or the Lord’s Table, they bring all God’s people, God’s children under one law, all to the same status. It is meant for those who respect God and His Word, are willing and submissive to obey His laws and ordinances, instead of doing their own thing, in God’s name. Those who do their will, try to supersede God, and should not think God will take it casually, not take an account from them for this violation of His law. There will be a strict accounting and proportionate consequences of violating God’s Word (1 Corinthians 3:13-15; 2 Corinthians 5:10). In the next article, from this same section, we will see about the amazing provision that God has made.
If you are a Christian Believer, and have been participating in the Lord’s Table, then please examine your life and make sure that you are actually a disciple of the Lord, i.e., are redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word. You should also always, like the Berean Believers, first check and test all teachings that you receive from the Word of God, and only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Micah 6-7
Revelation 13
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