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फसह तथा प्रभु की मेज़ - परमेश्वर के लोग बन जाने के लिए निमंत्रण
हमने पिछले लेख में निर्गमन 12:43-49 से देखा था कि क्यूँ फसह में और प्रभु भोज में भाग लेने की सही और स्वीकार्य विधि केवल वही है जो परमेश्वर ने निर्धारित की और दी है, कोई अन्य नहीं। प्रत्येक वह व्यक्ति जो मनुष्य द्वारा बनाई गई किसी विधि से उसमें भाग लेता है, वह परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता करता है; और परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता पाप है, जिसके घातक परिणाम होते हैं। इसलिए, उनके लिए जो इनमें अनुचित रीति से भाग लेते हैं, परमेश्वर के अनुसार नहीं बल्कि मनुष्यों के अनुसार, वह जिसे उनके लिए आशीष का कारण होना था, एक श्राप और हानि का कारण हो जाता है। साथ ही हमने परमेश्वर द्वारा किए गए एक अद्भुत प्रावधान का भी उल्लेख किया था, जिसे हम आज देखेंगे।
पिछले लेख में, हमने इसी खण्ड से देखा था कि कोई भी परदेशी, यात्री, दास - मोल लिया अथवा मजदूर, कोई भी जो “इस्राएल की मण्डली” का नहीं है, उसे फसह में भाग लेने की अनुमति नहीं थी, जब तक कि वह पहले परमेश्वर की उस वाचा की अधीनता में नहीं आ जाता जो परमेश्वर ने अब्राहम के साथ बाँधी थी, और उसके अन्तर्गत खतना नहीं करवा लेता। लेकिन साथ ही इस बात पर भी ध्यान कीजिए कि परमेश्वर के इन निर्देशों में कहीं यह नहीं कहा गया है कि परमेश्वर के लोगों को उन्हें बाध्य करना, या किसी लालच द्वारा फुसलाना था, या उनपर ज़ोर देना था कि वे यह करें, परमेश्वर की वाचा को स्वीकार करें, और खतना करवाएं। वरन, जैसे कि पद 48 में लिखा है, “यदि कोई परदेशी तुम लोगों के संग रहकर यहोवा के लिये पर्व को मानना चाहे” - वह “परदेशी”, चाहे कोई भी परदेशी, यात्री, दास - मोल लिया अथवा मजदूर, यदि वह यहोवा के लिए पर्व को मनाना चाहे, तो उसे पहले खतना करवाना होगा, अर्थात प्रकट करना होगा कि वह स्वेच्छा से परमेश्वर की वाचा की अधीनता में आया है, और उसके बाद ही फसह में सम्मिलित हो। इस प्रकार से परमेश्वर ने उसी समय उन गैर-यहूदियों के लिए, अर्थात उन लोगों के लिए भी जो स्वाभाविक रीति से अब्राहम के वंशज नहीं थे, परमेश्वर के लोग हो जाने, और उन्हीं आशीषों के संभागी हो पाने का मार्ग दे दिया; यदि वे स्वेच्छा से अपने आप को परमेश्वर को समर्पित करें। यहाँ पर ध्यान देने योग्य एक और महत्वपूर्ण बात है कि परमेश्वर ने ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया कि ऐसे गैर-यहूदियों से यहूदियों में आने वाले लोगों के लिए कोई अलग गोत्र बनाया और रखा जाए;; उन्हें किसी भी रीति से ज़रा भी भिन्न समझा जाए। वरन यह कि उन का उन्हीं लोगों के मध्य समावेश किया जाए जिनके मध्य वे रह रहे हों, और उन्हें अब्राहम के वंशजों के समान सभी अधिकार और विशेषाधिकार प्रदान किए जाएं (यहेजकेल 47:22-23)।
इस्राएल के इतिहास में ऐसा होने के अनेकों उदाहरण विद्यमान हैं। मिस्र से इस्राएलियों के छुड़ाए जाने के समय एक “मिली-जुली भीड़” भी उन लोगों के साथ निकल आई (निर्गमन 12:38)। उस भीड़ को भी परमेश्वर की सुरक्षा, देखभाल, मन्ना, चट्टान से पानी, लाल-सागर के विभाजित होने पर सुरक्षित पार उतर जाना, शत्रुओं के हमलों से रखवाली, आदि सभी बातें वैसे ही उपलब्ध थीं जैसे इस्राएलियों को थे। यद्यपि वचन में यह नहीं लिखा है कि उनका और उनकी संतान का कनान पहुँचने पर क्या हुआ, लेकिन साथ ही यह भी नहीं लिखा है कि उन्हें कनान में प्रवेश करने से मना किया गया। यदि वे इस्राएलियों के साथ कनान तक पहुंचे, तो फिर बहुत संभव है कि वे वाचा की भूमि में इस्राएलियों के साथ उनका भाग बनकर बस भी गए। राहाब वेश्या को इस्राएलियों के मध्य बसा लिया गया और उसका नाम प्रभु यीशु की वंशावली में आता है (मत्ती 1:5)। मोआबी रूत भी यहूदियों में स्वीकार की गई और दाऊद, जिसकी वंशावली में प्रभु यीशु ने जन्म लिया, उसकी परदादी बनी (रूत 4:13, 18-22)। एस्तेर की पुस्तक में हम देखते हैं कि बहुत से लोग यहूदियों से मिल गए और उनका ही भाग बन गए (एस्तेर 8:17)। इस संदर्भ में कृपया यशायाह 14:1; ज़कर्याह 8:20-23; यहेजकेल 47-22-23; होशे 2:23; रोमियों 9:25 भी देखिए। संपूर्ण बाइबल में, नए नियम और प्रकाशितवाक्य की पुस्तकों में भी,इस्राएल के सदा ही बारह गोत्र कहे गए हैं, जो याकूब की संतानों के नाम से जाने जाते हैं। कभी भी गैर-यहूदियों से यहूदियों में मिलने वालों के लिए किसी नए गोत्र को बनाने और निभाने की बात नहीं कही गई है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर ने अब्राहम के स्वाभाविक वंशजों के अतिरिक्त भी अन्य लोगों के लिए उसके लोग बन जाने का मार्ग पुराने नियम में ही खोल दिया था; यदि वे अपनी पुरानी मान्यताओं, रीतियों आदि को छोड़कर, स्वेच्छा से उसे समर्पित होने, उसकी आज्ञाकारिता में चलने, उसकी वाचाओं का पालन करने के लिए तैयार हों, परमेश्वर के लोग बनकर इस्राएलियों को दिए गए परमेश्वर की व्यवस्था और निर्देशों का पालन करने के लिए तैयार हों।
नए नियम में प्रभु भोज के संदर्भ में, जैसा कि हम पहले भी देख चुके हैं, हर कोई जो स्वेच्छा से प्रभु यीशु मसीह का शिष्य बनने को स्वीकार करता है, उसे समर्पित हो जाता है, उसकी तथा उसके वचन की आज्ञाकारिता में चलने का निर्णय ले लेता है, वह प्रभु के मेज़ में भाग ले सकता है। फिर यहूदी अथवा गैर-यहूदी होने का कोई महत्व नहीं रह जाता है, उसके आधार पर कोई भेद-भाव नहीं किया जा सकता है। बहुधा कुछ पदों, जैसे कि, इफिसियों 1:4; 2 थिस्सलुनीकियों 2:13; 1 पतरस 1:2, आदि के आधार पर, अर्थात, “पहले से चुने जाने” के आधार पर, यह तर्क दिया जाता है कि क्योंकि परमेश्वर ने पहले से लोगों को चुन लिया है, इसलिए केवल वे ही उद्धार पाएंगे, और शेष सभी नाश हो जाएंगे। यद्यपि इसमें कोई संदेह नहीं है कि ये पद स्पष्टतः पहले से चुने हुए होने को कहते और पुष्टि करते हैं, किन्तु साथ ही कहीं पर भी बाइबल यह नहीं कहती है कि केवल यही चुने हुए ही बचाए जाएंगे, और शेष सभी नाश हो जाएंगे! यह मनुष्य की बनाई हुई धारणा है, परमेश्वर की कही बात के आधार पर मनुष्य द्वारा एक गढ़ा गया तर्क है, परमेश्वर द्वारा कही गई बात नहीं है। जिस प्रकार से इस्राएली परमेश्वर की चुनी हुई प्रजा थे, उनके जन्म से भी पहले परमेश्वर ने उन्हें चुन लिया था, किन्तु फिर भी परमेश्वर ने उनमें अन्य लोगों के सम्मिलित होने के लिए मार्ग बना कर दिया था, उसे खुला रखा हुआ था। इसी प्रकार से, जो लोग प्रभु यीशु मसीह के साथ जुड़ना चाहते हैं, अर्थात नया जन्म पाए हुए मसीही विश्वासी बनना चाहते हैं, वे भी बन सकते हैं, यदि वे स्वेच्छा से प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करके, उसे समर्पित हो जाने और उसकी तथा उसके वचन की आज्ञाकारिता में जीवन जीने का निर्णय कर लेते हैं। स्वर्ग में प्रवेश कर पाने का द्वार किसी के लिए भी बंद नहीं किया गया है, चाहे वह पहले से चुना हुआ हो अथवा नहीं हो। प्रत्येक जो परमेश्वर की वाचाओं के अधीन होकर, उसके नियमों, उसके उद्धार के मार्ग का पालन करने के लिए तैयार है, उसे ऐसा करने के लिए स्वागत है। वे पहले यह करके, प्रभु यीशु के शिष्य बनकर, तब प्रभु के मेज़ में भाग लें।
प्रभु भोज, इसमें भाग लेने वालों को स्मरण दिलाता है कि यद्यपि उन्हें इसमें भाग लेने का यह आदर प्राप्त हुआ है, लेकिन अभी बाहर और लोग हैं, जिन्हें भी अन्दर लाए जाने की आवश्यकता है, जिन्हें अभी समय और अवसर रहते सुसमाचार के बारे में, परमेश्वर द्वारा दिए गए और उद्धार के लिए खुले हुए द्वार के बारे में बताने की, उन्हें दिखाने की आवश्यकता है; इससे पहले कि द्वार हमेशा के लिए बंद हो जाए और संसार पर न्याय का समय आ पड़े।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और प्रभु की मेज़ में भाग लेते रहे हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में पापों से छुड़ाए गए हैं तथा आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है। आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
नहूम 1-3
प्रकाशितवाक्य 14
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The Passover & The Lord’s Table - Invitation to Become God’s People
In the last article we had seen from Exodus 12:43-49 the reason why the only correct and acceptable manner of participating in the Passover and in the Holy Communion is the one that has been ordained and given by God, none other. Everyone participating through any of man-made ways is disobeying God; and disobedience against God is sin, has its deleterious consequences. Therefore, for those who participate in an unworthy manner, “unto men” instead of “to the Lord” as the Word of God instructs; to them what was meant to be a blessing, becomes a curse and cause for harm. We had also mentioned an amazing provision made by God in these verses. We will look up this provision today.
In the last article, we had seen from this section, that no foreigner, sojourner, servant - bought or hired, no one outside the “congregation of Israel” was permitted to partake of the Passover, unless they first came under God’s covenant with Abraham, and were circumcised. But also notice that these instructions from God do not say that God’s people had to compel, entice, or force others in any manner to get circumcised, i.e., to accept coming under God’s covenant. Rather, as it says in verse 48, “when a stranger dwells with you and wants to keep the Passover to the Lord” - that “stranger”, whether a foreigner, sojourner, or any servant - bought or hired, if he wants to keep the Passover to the Lord, then he should first get circumcised, i.e., make it evident that he has willingly submitted to God’s covenant, and then partake of the Passover ‘to the Lord.’ So, God has opened a way for the gentiles, those not Jews or Abraham’s descendants by birth, to still become God’s people, and become partakers of the same blessings; provided they do it willingly, submit to Him volitionally. Another important thing to notice is that God has not instructed that a separate tribe be created and maintained for these gentiles who become God’s people; they were to be amalgamated amongst the people they were living in, and have the same rights and privileges as the actual descendants of Abraham (Ezekiel 47:22-23).
There are many examples in the history of Israel of this having happened. At the time of the deliverance of the Israelites from Egypt, a large “mixed-multitude” went out with them (Exodus 12:38). They too received God’s protection, care, Manna, water from the rock, passed through safely through the divided Red Sea, safety from the enemies, etc., as the Israelites did. Although it does not say what happened to them or their children on reaching Canaan, but what it does not also say is that the Israelites were asked to separate them out and not let them enter Canaan. If they reached Canaan with the Israelites, then they quite likely settled in the Promised Land as part of the Israelites. Rahab the harlot was accommodated amongst the Israelites and finds a mention in the genealogy of the Lord Jesus (Matthew 1:5). Ruth, a Moabite, also was accepted into the Jews and became the great-grandmother of David, from whose lineage the Lord Jesus came (Ruth 4:13, 18-22). In the book of Esther, we see that many people joined the Jews and became a part of them (Esther 8:17). In this context, please also see Isaiah 14:1; Zechariah 8:20-23; Ezekiel 47-22-23; Hosea 2:23; Romans 9:25. Throughout the Bible, even in the New Testament and Book of Revelation, Israel has always had twelve tribes, named after the descendants of Jacob; no new tribe was made to accommodate the gentiles that joined them from time-to-time. In other words, God had opened a way for people other than the natural descendants of Abraham, to become the people of God even in the Old Testament, provided they were willing to voluntarily submit to His covenant and instructions, and leaving behind their pervious beliefs, live as God’s people obeying God’s Law and instructions, given to the Israelites.
In the New Testament context of the Holy Communion, as we have seen before, everyone who voluntarily and willingly becomes a disciple of the Lord Jesus, submits to Him, decides to live in obedience to Him and His Word, can participate in the Lord’s Table. There is no differentiation, no importance of being a Jew or a gentile before coming to the Lord. Often, on the grounds of some verses, e.g., Ephesians 1:4; 2 Thessalonians 2:13; 1 Peter 1:2, etc., i.e., on the grounds of “pre-destination”, of God having chosen beforehand, it is argued that only these chosen ones will be saved, rest will perish. While there is no doubt or argument that these verses certainly support and affirm the concept of being chosen by God beforehand, of “pre-destination”, but nowhere does the Bible ever say that other than these pre-destined ones, all the others will perish! This is a man-made assumption, a contrived corollary to what God has said. As the Israelites were the chosen people of God, chosen even before they were born, but still God had left a way open for others to join them and become one with them; similarly, those who want to join the people of the Lord Jesus, i.e., the Born-Again Christian Believers, they can do so, if they voluntarily are willing to accept the Lord Jesus as their savior and Lord, submit to Him, and live in obedience to Him and His Word. The door to be able to enter heaven has not been shut on anyone, whether chosen beforehand or not; whoever is willing to come under, accept and follow God’s covenant, God’s law, God’s way of salvation, is welcome to first do so, and then as a child of God, as a disciple of Christ, to participate in the Lord’s Table.
The Holy Communion reminds the participants that though they have been given this privilege of partaking in it, but there are others outside, who need to be brought in, who need to be told about the Gospel and shown God’s open door to be saved, while there is time and opportunity available to them; before the doors are finally shut, and the time of judgment comes upon people of the world.
If you are a Christian Believer, and have been participating in the Lord’s Table, then please examine your life and make sure that you are actually a disciple of the Lord, i.e., are redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word. You should also always, like the Berean Believers, first check and test all teachings that you receive from the Word of God, and only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Nahum 1-3
Revelation 14
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