पाप और उद्धार को समझना – 41
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पाप का समाधान - उद्धार - 38
कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (5a)
पिछले कुछ लेखों में हमने प्रभु यीशु मसीह में विश्वास द्वारा मिलने वाली पापों की क्षमा, उद्धार, और नया जन्म पाने से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण और सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नों पर विचार किया है, और बाइबल से उनके उत्तर देखे हैं। पिछले दो लेखों में हमने देखा कि एक मसीही विश्वासी भी, उद्धार पाने के बावजूद, पाप कर सकता है, और करता भी है। किन्तु साथ ही उसे उस पाप से निकालने और आगे बढ़ने के लिए परमेश्वर की सहायता भी उपलब्ध रहती है। किन्तु यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर की इस सहायता एवं उदारता का दुरुपयोग, लापरवाही का जीवन जीने और पाप करते चले जाने के लिए करता है, तो फिर उसे परमेश्वर की ताड़ना का भी सामना करना पड़ता है, और साथ ही स्वर्ग में उसे मिलने वाले प्रतिफलों की भी हानि होती है। अर्थात, न तो पाप को और न ही उद्धार के अनन्तकालीन होने को लापरवाही से लिया जा सकता है; क्योंकि चाहे उद्धार न भी जाए किन्तु देर-सवेर पाप करते रहने वाले व्यक्ति को पाप के दुष्परिणामों को भुगतना ही पड़ेगा, इस संसार में भी और परलोक में भी। आज इसी शृंखला में हम एक और महत्वपूर्ण प्रश्न को देखेंगे:
प्रश्न: क्या उद्धार पा लेने, प्रभु यीशु मसीह का शिष्य बन जाने से व्यक्ति संसार के दुख-तकलीफों, बीमारियों, समस्याओं, आदि से मुक्त हो जाता है, और सांसारिक समस्याओं से निश्चिंत होकर जीवन जीने लगता है?
उत्तर: यद्यपि बहुत से लोग अपने सुसमाचार प्रचार में इस बात का आश्वासन देते हैं, किन्तु, परमेश्वर के वचन बाइबल में ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया है; और न ही प्रभु यीशु ने कभी अपने शिष्यों से यह कहा कि उनपर विश्वास लाने वाले को सांसारिक समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा, और उनका जीवन सुख एवं समृद्धि से भर जाएगा। जो भी इस प्रकार की शिक्षा या प्रचार के साथ उद्धार का सुसमाचार सुनाते हैं, वे गलत प्रचार करते हैं, लोगों को ऐसा आश्वासन देते हैं जिसका बाइबल में कोई समर्थन नहीं है, और पापों के परिणामों की गंभीरता तथा प्रभु यीशु द्वारा उपलब्ध करवाए गए पापों के समाधान की महानता के आधार पर नहीं, वरन सांसारिक बातों के लालच में लाकर लोगों को प्रभु यीशु मसीह की ओर आकर्षित करने और उनका अनुसरण करवाने के प्रयास करते हैं।
जब प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को उनकी पहली प्रचार सेवकाई के लिए भेजा था (मत्ती 10 अध्याय), तब ही उन्हें उन कठिन और दुखदायी परिस्थितियों के लिए आगाह कर दिया था जिनका उन्हें इस सेवकाई के निर्वाह में सामना करना होगा:
* वे पकड़े जाएंगे और दण्ड के लिए अधिकारियों के सामने खड़े किए जाएंगे (10:16-20)
* उनके अपने घर के लोग और निकट संबंधी उनके शत्रु हो जाएंगे (10:21)
* उन्हें लोगों के बैर का सामना करना पड़ेगा (10:22)
* उन्हें इस बैर और सताव से बचने के लिए एक से दूसरे स्थान पर भागना पड़ेगा (10:23)
प्रभु ने यह भी कहा कि जो उनका शिष्य बनना चाहता है उसे प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर उसके पीछे चलने को तैयार रहना चाहिए “उसने सब से कहा, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इनकार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले” (लूका 9:23)। उन दिनों में क्रूस उठाकर, उसे क्रूस पर चढ़ाए जाने के स्थान तक, वह व्यक्ति जाता था जिसे मृत्यु-दण्ड दिया गया है, और देखने वाले उसे देख कर समझ जाते थे कि यह अपराधी है, और अब यह नहीं, इसकी लाश ही लौटेगी। प्रभु का शिष्यों से प्रतिदिन क्रूस उठकर उसके पीछे चलने का निर्णय लेने से अभिप्राय था, प्रतिदिन उसके शिष्य होने के कारण सताए जाने और मारे जाने के लिए तैयार रहना। अपने पकड़वाए जाने से पहले भी प्रभु यीशु ने शिष्यों को सचेत किया, “वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा वह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूं” (यूहन्ना 16:2)। तो फिर प्रभु की इन शिक्षाओं के समक्ष कोई यह कैसे दावा कर सकता है कि प्रभु यीशु की शिष्यता का जीवन समस्याओं तथा परेशानियों से मुक्त एक आराम और सुरक्षा का जीवन होगा?
बाद में प्रभु के शिष्यों ने भी मसीही विश्वास के जीवन के विषय इन्हीं बातों को दोहराया:
* प्रेरितों 14:22 "और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे, कि हमें बड़े क्लेश उठा कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा।"
* 2 तीमुथियुस 3:12 "पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे।"
* 1 यूहन्ना 2:18 "हे लड़कों, यह अन्तिम समय है, और जैसा तुम ने सुना है, कि मसीह का विरोधी आने वाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह के विरोधी उठे हैं; इस से हम जानते हैं, कि यह अन्तिम समय है।"
* 1 यूहन्ना 3:13 "हे भाइयों, यदि संसार तुम से बैर करता है तो अचम्भा न करना।"
* 1 पतरस 4:12 "हे प्रियो, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझ कर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है।"
* याकूब 1:2-3 "हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, यह जान कर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है।"
अर्थात, क्योंकि मसीही विश्वास में आना शैतान के चंगुल और राज्य से निकलकर परमेश्वर के राज्य में आ जाना है, इसलिए इस संसार में, इस शारीरिक जीवन में शैतान मसीहियों को सताने, उनके विरुद्ध काम करने और लोगों को भड़काने का कोई अवसर नहीं छोड़ेगा। तो फिर मसीही विश्वास में आ जाने के बाद कोई भी संसार के दुख-तकलीफों, बीमारियों, समस्याओं, आदि से मुक्त होकर कैसे रह सकता है? हम अगले लेख में भी इस विषय पर विचार करना और बाइबल से सीखना ज़ारी रखेंगे।
अभी के लिए, ध्यान कीजिए कि आप को पाप से मुक्ति दिलाने और परमेश्वर से मेल-मिलाप करके, उसकी सन्तान बनकर अनन्तकाल तक रहने के लिए प्रभु यीशु ने तो अपना काम कर के दे दिया है; किन्तु क्या आपने उसके इस आपकी ओर बढ़े हुए प्रेम और अनुग्रह के हाथ को थाम लिया है, उसकी भेंट को स्वीकार कर लिया है? या आप अभी भी अपने ही प्रयासों के द्वारा वह करना चाह रहे हैं जो मनुष्यों के लिए कर पाना असंभव है? आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें” आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।
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Understanding Sin and Salvation – 41
The Solution For Sin - Salvation - 38
Some Related Questions and their Answers (5a)
In the previous articles, we have been considering some important and commonly asked questions related to Christian Faith, forgiveness of sins, salvation, and being Born-Again, and learning their answers from the Bible. In the last article we had seen that a Christian Believer despite being saved, despite being Born-Again, might still sin and does sin. But he also has the help of God to extricate him from the sin; if a person continues to live a careless and wayward life, and misuses God’s help and grace, then he has to face God’s chastening here on earth and suffer loss of his heavenly rewards for his eternal life. This means that neither salvation being eternal, nor committing sin by a saved person can be taken lightly; because even if salvation is not lost, the person persisting in sin will have to face the harmful effects of sin, in this life as well as the next. Today in this series, we will look at one more important question:
Question: By being saved and Born-Again, and becoming a disciple of Lord Jesus Christ, is a person delivered from the worldly problems and pains, from sickness, adverse situations etc. and begins to live a life free of problems of the world?
Answer: Although many people while preaching the Gospel, give an assurance about this, but in God’s Word the Bible, there is no such assurance given, and neither did the Lord Jesus ever say to His disciples that those who believe on Him will be delivered from the problems of this world, and their lives will be filled with worldly joy, satisfaction, and material prosperity. Whosoever preaches any such teaching or gospel, preaches falsehood, gives an assurance to the people that is not given in the Bible. They try to entice people into being attracted towards the Lord Jesus and follow Him for worldly gains and material things, instead of showing to them the seriousness of the problem of sin and the wonderful solution prepared and made freely available by the Lord Jesus for this problem.
The Lord Jesus Christ, at the time of sending His disciples for the first time for their ministry (Matthew 10), forewarned them of the difficult and painful situations they will have to face during this ministry:
* They will be taken into custody and brought before officials to be punished (Matthew 10:16-20).
* People from their own homes and families will become their enemies (Matthew 10:21).
* They will have to face the opposition of the people (Matthew 10:22).
* They will have to run from one place to another to escape from this opposition and persecution (Matthew 10:23).
The Lord had also said that those who wanted to be His disciples should be willing to take up their cross daily to follow Him “Then He said to them all, "If anyone desires to come after Me, let him deny himself, and take up his cross daily, and follow Me” (Luke 9:23). At the time the Lord Jesus made this statement, the Lord Himself had not yet been crucified, but His followers knew and understood that those who had been condemned to death would walk to the place of being crucified bearing their cross, and those who saw this understood that the man was a despicable criminal, and now not he but only his dead body will return. The Lord’s implication in asking His disciples to daily lift their cross was that the disciple of Christ should be ready to suffer and die for being His disciple, every day. Before His being caught for crucifixion, the Lord Jesus had cautioned His disciples, “They will put you out of the synagogues; yes, the time is coming that whoever kills you will think that he offers God service” (John 16:2). Therefore, in the face of these teachings of the Lord, how can anyone claim that becoming a disciple of Lord Jesus will ensure a life of ease and security, free from problems and adverse situations?
Later, even the disciples of the Lord Jesus re-iterated these teachings in context of leading a life of Christian Faith:
* Acts 14:22 "Strengthening the souls of the disciples, exhorting them to continue in the faith, and saying, 'We must through many tribulations enter the kingdom of God.'"
* 2 Timothy 3:12 "Yes, and all who desire to live godly in Christ Jesus will suffer persecution."
* 1 John 2:18 "Little children, it is the last hour; and as you have heard that the Antichrist is coming, even now many antichrists have come, by which we know that it is the last hour."
* 1 John 3:13 "Do not marvel, my brethren, if the world hates you."
* 1 Peter 4:12 "Beloved, do not think it strange concerning the fiery trial which is to try you, as though some strange thing happened to you;"
* James 1:23 "My brethren, count it all joy when you fall into various trials, knowing that the testing of your faith produces patience."
In other words, since coming into the Christian Faith is coming out of the clutches and kingdom of Satan, into the Kingdom of God, therefore in this world, in this physical life, Satan will not miss any opportunity to persecute Christians, work against them and instigate people against them. Therefore, after coming into the Christian Faith, how can anyone while in this world, remain free from the worldly problems and pains, from sickness, adverse situations etc. and live a life free of problems of the world? We will continue to ponder over this topic and learn about it from the Bible in the next article.
For now, ponder over the fact that to deliver you from sin and reconcile you with God, to live forever as a child of God, the Lord Jesus has done His part; He has made ready and available salvation with all the benefits freely to everyone; but have you accepted His offer? Have you taken His hand of love and grace extended towards you and the free gift He offers; or are you still determined to do that which no man can ever accomplish through his own efforts?
If you are still not Born Again, have not obtained salvation, have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heart-felt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company, wants to see you blessed; but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
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