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गुरुवार, 25 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 2


बपतिस्मा - अर्थ तथा संबंधित बातें - 2  

       पिछले लेख में हमने बपतिस्मे के अर्थ और उससे संबंधित बातों को देखना आरंभ किया था। परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित गलत शिक्षाओं का प्रचार और प्रसार करने वाले, मसीही सेवकाई में उपयोगी एवं प्रभावी होने के लिएपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने पर भी बहुत बल देते हैं। इसी संदर्भ में हमने देखा था किबपतिस्माशब्द का अर्थ क्या है तथा बाइबल की शिक्षाओं के अनुसार बपतिस्मा केवल एक ही है, पानी से दिया गया डूब का बपतिस्मा। यह देखने से पहले कि फिर यहपवित्र आत्मा का बपतिस्माक्या है जिसके विषय बाइबल के आधार पर इतनी बातें की जाती हैं हम बपतिस्मे से संबंधित दो और बातें आज स्पष्ट कर लेते हैं, जो आगे चलकर इस विषय को समझने में हमारी सहायक होंगी। 

आग और पानी का बपतिस्मा:

            मत्ती 3:11 में यूहन्ना द्वारा कही गई बातवह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगाको लेकर भी गलत शिक्षाएं और व्याख्या दी जाती है कि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा, आग का बपतिस्मा है। किन्तु वाक्य स्पष्ट है; यूहन्ना यह नहीं कह रहा है किवह तुम्हें पवित्र आत्मा अर्थात आग से बपतिस्मा देगा”; वरन उसने कहा कि वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा” - यानि कि प्रभु के पास दो वस्तुओं से दिए जाने वाले बपतिस्मे हैं - एक तो पवित्र आत्मा से दूसरा आग से। किन्तु जिन्होंने प्रभु यीशु को स्वीकार कर लिया, उस पर विश्वास कर लिया, अर्थात उद्धार पा लिया, उन्हें स्वतः ही, विश्वास करते ही तुरंत पवित्र आत्मा मिल जाएगा, अर्थात पवित्र आत्मा से बपतिस्मा मिल जाएगा। जिन्होंने प्रभु को स्वीकार नहीं किया, उद्धार नहीं पाया, फिर वे अनन्त कल के लिए नरक की आग की झील में डुबोए जाएंगे - उनके लिए फिर प्रभु के पास आग से बपतिस्मा अर्थात कभी न बुझने वाली आग की झील में डाल दिया जाना है (प्रकाशितवाक्य 19:20; 20:10, 14-15)। तो हर एक व्यक्ति को प्रभु के हाथों एक न एक बपतिस्मा, अर्थात एक न एक में डाला जाना मिलेगा - या तो पवित्र आत्मा से; अन्यथा आग से साथ ही एक अन्य पद पर भी ध्यान कीजिए: प्रेरितों 2:3 में लिखा है, “और उन्हें आग की सी जीभें फटती हुई दिखाई दीं; और उन में से हर एक पर आ ठहरीं”; किन्तु इस घटना - आग की जीभों का आकर प्रभु के शिष्यों पर ठहर जाना और फिर उन्हें पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त, को न तो यहाँ पर और न ही कभी कहीं अन्य किसी स्थान परपवित्र आत्मा की आग से बपतिस्माकहा गया। जब कि यदि पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना और आग से बपतिस्मा पाना एक ही होते, तो यह सबसे उपयुक्त अवसर एवं घटना होती इस बात को दिखाने और प्रमाणित करने के लिए; क्योंकि पवित्र आत्मा आग के समान उन लोगों के ऊपर आकर ठहरा था और फिर वे सब लोग पवित्र आत्मा से भर गए थे। किन्तु वचन में इस घटना को यह दिखाने के लिए प्रयोग नहीं किया गया है।

क्या उद्धार के लिए बपतिस्मा आवश्यक है?

उद्धार किसी भी कर्म से नहीं है (इफिसियों 2:5, 8-9), बपतिस्मे से भी नहीं। क्रूस पर पश्चाताप करने वाला डाकू ने कौन सा बपतिस्मा लिया, किन्तु वह स्वर्ग गया। अनेकों लोग जीवन के अंतिम पलों में उद्धार पाते हैं, या विश्वास करने के बाद बपतिस्मा नहीं लेने पाते हैं, क्या वे इसलिए नाश हो जाएंगे क्योंकि पश्चाताप और विश्वास तो किया किन्तु एक रस्म पूरी नहीं की? इस वास्तविकता की बारीकी को समझना आवश्यक है कि उद्धार बपतिस्मे से नहीं है; वरन उद्धार पाए हुओं के लिए बपतिस्मा है। जैसा कि मत्ती 28:19-20 में प्रभु द्वारा दिए गए क्रम से प्रकट है - पहले शिष्य बनाओ; जो शिष्य बने फिर उसे बपतिस्मा दो और उसे प्रभु की बातें सिखाओ। प्रभु द्वारा दिए गए इसी क्रम का निर्वाह प्रेरितों 2 अध्याय में, पतरस के पहले प्रचार में भी हुआ है, पहले लोगों ने पापों का अंगीकार और पश्चाताप किया, और फिर जिन्होंने प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास किया और उसे उद्धारकर्ता ग्रहण किया, उन्हें बपतिस्मा दिया गया; और यही क्रम सारे नए नियम में दोहराया गया है। इससे यह भी स्पष्ट है कि बपतिस्मा बच्चों या शिशुओं के लिए नहीं है, केवल उनके लिए है जिन्होंने प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता स्वीकार किया और उसके शिष्य हो गए हैं। 

यहाँ पर अकसर प्रेरितों 2:38 का गलत प्रयोग यह कहकर किया जाता है कि इस पद में लिखा हैतुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा लेअर्थात पापों की क्षमा बपतिस्मे के द्वारा है। किन्तु यह इस वाक्य की गलत समझ है; यहाँ यह अर्थ नहीं है कि पापों की क्षमा प्राप्त करने के लिए बपतिस्मा ले - अन्यथा क्रूस पर पश्चाताप करने वाले डाकू को पापों के क्षमा नहीं मिली। वरन प्रेरितों 2:38 के इस वाक्य का सही अर्थ है किअपने पापों की क्षमा प्राप्त कर लेने की बपतिस्मे के द्वारा साक्षी दो। इस वाक्य में लिखे गए शब्दों के क्रम के कारण इसका अर्थ भिन्न प्रतीत होता है, किन्तु है नहीं। इसे एक उदाहरण से समझते हैं; डॉक्टर बहुधा सफेद कोट पहने और साथ में स्टेथोस्कोप रखते हैं। मान लीजिए डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी कर लेने के पश्चात, उन्हें डॉक्टरी की डिग्री देते समय यदि उनसे, प्रेरितों 2:38 के उपरोक्त वाक्य के समान एक वाक्य द्वारा यह कहा जाए, “तुम में से हर एक अपने प्रशिक्षण के लिए सफेद कोट और स्टेथोस्कोप लेतो क्या इसका यह अर्थ है कि सफेद कोट और स्टेथोस्कोप रखने से वे डॉक्टर हो जाएंगे; या यह कि अब जब तुम डॉक्टर हो गए हो, डॉक्टरी का प्रशिक्षण प्राप्त कर लिया है, तो उसका प्रत्यक्ष चिह्न, सफेद कोट और स्टेथोस्कोप साथ रखो? उस गलत शिक्षा और धारणा से बाहर निकाल कर जब व्यावहारिक जीवन की सामान्य सोच एवं अर्थ के साथ उस वाक्य को देखते हैं तो उसका वह अर्थ प्रकट हो जाता है जो लगभग दो हज़ार वर्ष पूर्व पतरस द्वारा इस वाक्य को कहे जाने पर लोगों ने समझा था। उद्धार बपतिस्मे से नहीं है; द्धार पाए हुओं के लिए बपतिस्मा है। प्रेरितों 2:38 को और विस्तार से देखने तथा समझने के लिए आप इन लिंक्स का भी प्रयोग कर सकते हैं:

अँग्रेज़ी में: (https://www.gotquestions.org/Hindi/Hindi-baptism-acts-2-38.html)

हिन्दी में: (https://www.gotquestions.org/baptism-Acts-2-38.html)

 

यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। किसी के भी द्वारा प्रभु, परमेश्वर, पवित्र आत्मा के नाम से प्रचार की गई हर बात को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 तथा प्रेरितों 17:11 के अनुसार जाँच-परख कर, यह स्थापित कर लेने के बाद कि उस शिक्षा का प्रभु यीशु द्वारा सुसमाचारों में प्रचार किया गया है; प्रेरितों के काम में प्रभु के उस प्रचार का निर्वाह किया गया है; और पत्रियों में उस प्रचार तथा कार्य के विषय शिक्षा दी गई है, तब ही उसे स्वीकार करें तथा उसका पालन करें, उसे औरों को सिखाएं या बताएं। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और उनकी गलत शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए, उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 24-26  
  • 1 पतरस 2

बुधवार, 24 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई, पवित्र आत्मा, और बपतिस्मा - 1


बपतिस्मा - अर्थ तथा संबंधित बातें - 1  

मसीही सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका और सामर्थ्य के संबंध में भ्रामक, अनुचित, और बाइबल के बाहर की तथा बाइबल की शिक्षाओं से भिन्न बातों की गलत शिक्षाओं को देने वाले लोग ऐसी ही एक और गलत शिक्षा की बात पर बहुत जोर देते हैं, उसका बहुत उत्तेजना के साथ प्रचार करते हैं। उनकी यह गलत शिक्षा की बात है पवित्र आत्मा का बपतिस्मा। उनका कहना रहता है कि मसीही विश्वासी के पवित्र आत्मा प्राप्त कर लेने के बाद, प्रभु की सेवकाई के लिए उचित सामर्थ्य पवित्र आत्मा का बपतिस्मा प्राप्त करने से ही मिल सकती है। इसलिए जो भी प्रभु के लिए उपयोगी होना चाहता है, उसे यह पवित्र आत्मा का बपतिस्मा प्राप्त करने के लिए लालसा और प्रयास करने चाहिएं। इन लोगों की अधिकांश अन्य शिक्षाओं एवं धारणाओं के समान, इनकी इस शिक्षा का भी बाइबल से कोई आधार अथवा समर्थन नहीं है। यह केवल कुछ पदों को उनकी बनाई धारणा के अनुसार अर्थ देने और दुरुपयोग करने के द्वारा कही जाने वाली बात है, और परमेश्वर के वचन से जिसका विश्लेषण करने पर उसकी वास्तविकता और खोखलापन सामने आ जाता है। किन्तु बाइबलपवित्र आत्मा का बपतिस्मा” के बारे में क्या कहती है, उसे जानने और समझने से पहले यह जानना और समझना आवश्यक है कि बपतिस्मा और उससे संबंधित बातें क्या हैं। आज से हम इन्हीं का अध्ययन आरंभ करेंगे, और कुछ मूल बातों को समझने के बाद फिर पवित्र आत्मा का बपतिस्मा पर आएँगे।

बपतिस्मा शब्द का अर्थ : 

बपतिस्मा शब्द, यूनानी भाषा के शब्दबैपटिज़ो (Baptizo)” से आया है। मूल यूनानी भाषा में इस शब्द का अर्थ होता हैडुबो देनायाअंदर कर देना”, याअंदर-बाहर से पूर्णतः भिगो देना। दैनिक बातों में इस यूनानी भाषा के शब्द का प्रयोग किसी तरल पदार्थ, जैसे कि पानी, में से उसका कुछ भाग निकालने, या उस पदार्थ में किसी वस्तु को डुबो/पूर्णतः भिगो देने के लिए किया जाता है। जैसे यदि हम आज अपनी हिन्दी भाषा के संदर्भ में से कहें, तो कुएं में से बाल्टी भरकर पानी निकालने के लिए कहा जाएगाबाल्टी को कुएं में बैपटिज़ो करके भर लो 

हमारी वर्तमान चर्चा के संदर्भ में, “बैपटिज़ोके इस शब्दार्थ के आधार पर, प्रभु यीशु द्वारा यह कहने किक्योंकि यूहन्ना ने तो पानी में बपतिस्मा दिया है परन्तु थोड़े दिनों के बाद तुम पवित्रात्मा से बपतिस्मा पाओगे” (प्रेरितों 1:5) में यूहन्ना के पानी में बपतिस्मा देने का अभिप्राय हुआ, पानी में डुबो कर बपतिस्मा देना। प्रभु जब यहाँ शिष्यों से कह रहा है किथोड़े दिनों में तुम पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाओगेतो इससे प्रभु की कही बात की यही समझ आती है किथोड़े दिनों में तुम पवित्र आत्मा में डुबो दिए जाओगे; या पवित्र आत्मा तुम्हें अंदर-बाहर पूर्णतः भिगो देगा, अपने में समो लेगा।

यद्यपि बाइबल में कहीं पर भीबपतिस्मा देनेकी क्रिया को दिखाने के लिए पानी मेंडुबो देनाअनुवाद नहीं किया गया है, किन्तु जहाँ भी बपतिस्मा देने का उल्लेख आया है, वहीं पर साथ ही संकेत पानी में डुबोने का भी आया है। साथ ही, बाइबल में कहीं पर भी पानी के छिड़कने के द्वारा बपतिस्मा देने, या बच्चों को बपतिस्मा देने का उल्लेख अथवा उदाहरण नहीं है। बपतिस्मा हमेशा ही वयस्कों को, उनके द्वारा अपने पापों से पश्चाताप करने के बाद स्वेच्छा से उसे लेने के लिए आगे आने पर ही दिया गया है। पानी में बपतिस्मा दिए जाने से संबंधित बाइबल के कुछ पदों को देखिए:

  • मत्ती 3:6 - लोगों ने स्वयं अपने पापों को मानकर, आगे आकर यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से यरदन नदी में बपतिस्मा लिया। 
  • मत्ती 3:16 - प्रभु यीशु पानी में से ऊपर आया। 
  • यूहन्ना 3:23 - यूहन्ना बहुत जल के स्थान पर बपतिस्मा देता था। 
  • प्रेरितों 8:36-39 - खोजे ने जल का स्थान देखा और बपतिस्मा लेने की इच्छा व्यक्त की (पद 36), छिड़काव के लायक पानी तो उसके पास भी होगा, किन्तु डुबोए जाने के योग्य नहीं।  पद 38 - खोजा और फिलिप्पुस जल में उतर पड़े; पद 39, वे जल में से निकल कर ऊपर आए। 

 

प्रकट और स्पष्ट है कि सभी स्थानों पर अभिप्राय पानी में जाने और पानी से बाहर आने, तथा अधिक जल के स्थान जैसे कि नदी, या तालाब, या किसी अन्य अंदर उतर कर डुबकी लेने लायक गहरे जलाशय के प्रयोग करने का है। किसी कुएं में से पानी लेकर या छोटे नाले के जल में से कुछ पानी लेकर बपतिस्मा देने का संपूर्ण बाइबल में कहीं कोई उल्लेख नहीं है। अर्थात बपतिस्मा, जैसा कि उस यूनानी शब्द का अर्थ है, डुबो कर ही दिया जाता था। 

कितने प्रकार के बपतिस्मे?

इफिसियों 4:5 में लिखा हैएक ही प्रभु है, एक ही विश्वास, एक ही बपतिस्मा”; पवित्र आत्मा की अगुवाई से पौलुस ने बिलकुल स्पष्ट और बल देकर लिखा है कि बपतिस्मा एक ही है। यदि पवित्र आत्मा का बपतिस्मा कोई पृथक अनुभव या क्रिया होती है, तो फिर पवित्र आत्मा द्वारा लिखवाया गया यह वचन झूठा हो जाता है, बाइबल में विरोधाभास या गलती हो जाती है - क्योंकि तब एक बपतिस्मा पानी का हुआ - जो प्रभु यीशु ने भी लिया, और जिसे देने की आज्ञा भी दी (मत्ती 28:19); और पवित्र आत्मा का बपतिस्मा फिर गिनती में दूसरा हुआ। किन्तु बाइबल तो बड़ी दृढ़ता से एक ही बपतिस्मे की बात करती है। अब क्योंकि पानी का बपतिस्मा तो स्थापित है, इसलिए या तो पवित्र आत्मा का बपतिस्मा है ही नहीं; अथवा इफिसियों 4:5 में गलत लिखा गया है; जिसका तात्पर्य हुआ कि पवित्र आत्मा द्वारा लिखवाए गए परमेश्वर के वचन बाइबल में गलतियाँ हैं!

इस संदर्भ में इब्रानियों 6:2 में प्रयुक्त बहुवचनबपतिस्मोंको लेकर असमंजस नहीं होना चाहिए। इन पदों के संदर्भ को देखिए; इब्रानियों 6:1-3 मसीह की शिक्षाओं के बारे में बात कर रहा है (देखिए इब्रानियों 5:12; इब्रानियों 6:1); और इफिसियों 4:5 तब तथा आज की व्यवहारिक क्रिया, यानि कि बपतिस्मा लिए/दिए जाने की बात कर रहा है। इब्रानियों 6:2 के बहुवचन को 1 कुरिन्थियों 10:2 (मूसा का बपतिस्मा) और रोमियों 6:3 (प्रभु यीशु का बपतिस्मा) के आधार पर देखना और समझना चाहिए - शिक्षा के रूप में, पुराने नियम में बपतिस्मे का एक उदाहरण इस्राएलियों का लाल सागर में जाना और ऊपर बादल द्वारा ढाँपा हुआ होना - उनका जल से ढँके हुए होना था। और नए नियम के उदाहरण, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के द्वारा दिए जाने वाले बपतिस्मे (मत्ती 3:5-6, 11), जिनमें प्रभु का बपतिस्मा (मत्ती 3:13-16) भी था, और प्रभु के शिष्यों द्वारा दिए गए बपतिस्मे (यूहन्ना 4:2); ये सब भी पानी में ही दिए गए डूब के बपतिस्मे थे - जिन्हें प्रभु ने आगे भी अपने भावी शिष्यों को देते रहने के लिए कहा (मत्ती 28:19), और जिसके लिए रोमियों 6:3 मेंमसीह का बपतिस्मालिखा गया है। तो शिक्षा के दृष्टिकोण से, पुराने और नए नियम से, एक ही पदार्थ - पानी से ही, किन्तु दो प्रकार से दिए गए डूब के बपतिस्मे हुए - मूसा का बपतिस्मा बादल से ढाँपे और विभाजित समुद्र के जल से घेरे जाने के द्वारा पानी से दिया गया सांकेतिक बपतिस्मा; और नए नियम में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले और प्रभु के तब तथा अब के शिष्यों के द्वारा पानी में दिया जाने वाला डूब का वास्तविक बपतिस्मा। इसलिए बपतिस्मों से संबंधित शिक्षा के दृष्टिकोण से इब्रानियों 6:2 बहु वचनबपतिस्मोंप्रयोग किया गया। 

इफिसियों 4:5 वर्तमान में मसीही विश्वासी के प्रभु की आज्ञा के अनुसार बपतिस्मा लेने के लिए कह रहा है, इसलिए एक वचन है, और नए नियम का एकमात्र बपतिस्मा है।  

 यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। किसी के भी द्वारा प्रभु, परमेश्वर, पवित्र आत्मा के नाम से प्रचार की गई हर बात को 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 तथा प्रेरितों 17:11 के अनुसार जाँच-परख कर, यह स्थापित कर लेने के बाद कि उस शिक्षा का प्रभु यीशु द्वारा सुसमाचारों में प्रचार किया गया है; प्रेरितों के काम में प्रभु के उस प्रचार का निर्वाह किया गया है; और पत्रियों में उस प्रचार तथा कार्य के विषय शिक्षा दी गई है, तब ही उसे स्वीकार करें तथा उसका पालन करें, उसे औरों को सिखाएं या बताएं। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और उनकी गलत शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए, उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 22-23  
  • 1 पतरस   

मंगलवार, 23 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - पुनः अवलोकन (5)


मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की कार्य-विधि - 2 (नवंबर 15 से 18 तक के लेखों का सारांश)

पिछले सारांश में हमने यूहन्ना 16:8-11 के आधार पर पुनःअवलोकन किया था कि मसीही विश्वासी, पवित्र आत्मा की सहायता और मार्गदर्शन द्वारा, संसार के लोगों पर पाप, धार्मिकता, और न्याय के बारे में उन लोगों के विचार, व्यवहार, और धारणाओं की तुलना में मसीही शिक्षाओं और जीवन को रखता है, अपने जीवन से उन्हें प्रदर्शित करता है। संसार और मसीही विश्वास के मध्य का यह तुलनात्मक प्रकटीकरण, स्वतः ही संसार के लोगों को कायल करने के लिए पर्याप्त है। बाइबल के अनुसार यही अपने आप में मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है। इसके बाद प्रभु यीशु ने 12 पद में शिष्यों से कहा कि परमेश्वर पवित्र आत्मा आकर उन्हें उन बातों को बताएगा, जिन्हें वे अभी नहीं समझ सकते (जैसे कि प्रभु भोज से संबंधित यूहन्ना 6:60-66 की प्रभु की बात) किन्तु पवित्र आत्मा की उनमें उपस्थिति उन्हें उन बातों के ग्रहण करने और समझने के लिए सक्षम कर देगी।

फिर 13 पद में एक बार फिर प्रभु यीशु ने पवित्र आत्मा को 'सत्य का आत्मा' कहा; अर्थात उनकी हर बात सत्य है, और वे केवल सत्य ही का मार्ग बताएंगे; वे किसी भी असत्य के साथ कभी सम्मिलित नहीं होंगे। प्रभु ने कहा कि पवित्र आत्मातुम्हेंअर्थात प्रभु यीशु के शिष्यों की मसीही सेवकाई में तीन बातें और करेगा: 

(i) वह सब सत्य का मार्ग बताएगा

(ii) वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, परंतु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा;

(iii) वह आने वाली बातें बताएगा।

 आज परमेश्वर पवित्र आत्मा के नाम से बहुतायत से किए जाने वाले भ्रामक प्रचार, गलत शिक्षाओं, और मन-गढ़न्त बातों के संदर्भ में, उन बातों और शिक्षाओं को जाँचने और परखने, उनकी सत्यता को जानने और पहचानने के लिए, ऐसी शिक्षाओं और उनके प्रचारकों को स्वीकार अथवा अस्वीकार करने के लिए, ये तीनों बातें बहुत सहायक तथा महत्वपूर्ण हैं। 

इनमें से पहली बात है कि पवित्र आत्मा मसीह के शिष्यों अर्थात मसीही विश्वासियों कोसब सत्य का मार्ग बताएगा। आज पवित्र आत्मा के नाम पर गलत शिक्षाएं और व्यवहार सिखाने वाले सभी प्रचारक सामान्यतः परमेश्वर के वचन की शिक्षा (1 यूहन्ना 2:15-17) के विपरीत, सांसारिक सुख-समृद्धि-संपत्ति और शारीरिक चंगाई या लाभ प्राप्त करने ही की बातें करते हैं। उनके प्रचार में पापों के लिए पश्चाताप करने (प्रेरितों 2:38), प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास द्वारा उद्धार पाने का प्रोत्साहन एवं अनिवार्यता (प्रेरितों 15:11; 16:31), प्रभु यीशु के शिष्य बनने और उससे होने वाले मन-परिवर्तन के बारे में (रोमियों 12:1-2; 2 कुरिन्थियों 5:17), अपने आप को संसार में यात्री और परदेशी जानकर सांसारिक नहीं वरन स्वर्गीय वस्तुओं पर मन लगाने (1 पतरस 2:11; कुलुस्सियों 3:1-2), और मसीही विश्वास और सेवकाई में दुख आने और उठाने की अनिवार्यता (फिलिप्पियों 1:29; 2 तिमुथियुस 3:12), आदि, सुसमाचार की बातें या तो होती ही नहीं हैं, अथवा बहुत कम होती हैं। उनका प्रचार, और जीवन मुख्यतः पार्थिव, नश्वर, शारीरिक सुख-सुविधा की बातों से ही संबंधित होता है; और फिर भी वे यह सब पवित्र आत्मा की ओर से अथवा उनकी अगुवाई में होकर कहने का दावा करते हैं। जब कि पवित्र आत्मा के संबंध में ऐसी कोई शिक्षा, कोई बात परमेश्वर के वचन में कहीं नहीं दी गई है। तो फिर वहसत्य का आत्माजो केवल सत्य अर्थात परमेश्वर के वचन और प्रभु यीशु की बातों का मार्ग बताता है, वह यह सब कैसे कर सकता है?

यूहन्ना 16:13 में पवित्र आत्मा के कार्य से संबंधित प्रभु यीशु द्वारा कही गई दूसरी बात है कि वह अपनी ओर से नहीं कहेगा, परंतु जो कुछ सुनेगा, वही कहेगा। प्रभु की इस बात को तथा यह ध्यान रखते हुए कि परमेश्वर का वचन अपनी पूर्णता में लिखा जा चुका है, अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में स्थापित हो चुका है (भजन 119:89), यह कैसे संभव है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा उस वचन के अतिरिक्त और कुछ नया किसी मनुष्य को बताए या सिखाए? यह तो उपरोक्त बातों के विरुद्ध होगा, उन्हें झूठ दिखाएगा - जोसत्य के आत्मापवित्र आत्मा के गुणों के विरुद्ध है। पवित्र आत्मा के द्वारा नई बातें, नए दर्शन, नई शिक्षाएं आदि पाने के सभी दावे प्रभु के इस वचन के अनुसार झूठे हैं; और मसीही विश्वासियों तथा सेवकों को झूठ के प्रचारकों से बच कर रहना है (2 यूहन्ना 1:10-11)। बाइबल से संबंधित किसी भी सिद्धांत को स्वीकार करने से पहले (1 थिस्सलुनीकियों 5:21), उसे तीन बातों के आधार पर जाँच लेना चाहिए; ये बातें हैं - i. उसे सुसमाचारों में प्रभु यीशु द्वारा प्रचार किया गया; ii. उसको प्रेरितों के काम में व्यावहारिक मसीही या मण्डली के जीवन में प्रदर्शित किया गया; iii. पत्रियों में उसकी व्याख्या की गई या उसके विषय सिखाया गया। जिस बात में ये तीनों गुण नहीं हैं, उसे तुरंत स्वीकार नहीं करना चाहिए; बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11) वचन से यह देखना चाहिए कि जो कहा और बताया जा रहा है, वास्तव में पवित्र शास्त्र में वैसा ही लिखा है या नहीं - यह खरे आत्मिक व्यक्ति का चिह्न है 1 कुरिन्थियों 2:15 

       यूहन्ना 16:13 की पवित्र आत्मा के कार्य से संबंधित तीसरी बात है कि वहतुम्हेंअर्थात प्रभु के शिष्यों को आने वाली बातें बताएगा। प्रभु की यह बात पवित्र आत्मा के नाम पर कुछ भी कहने और उन्हें पवित्र आत्मा की ओर से दी गईभविष्यवाणीहोने का दावा करने की छूट नहीं है। यदि नए नियम की बातों के आधार पर इस बात को देखें, तो इस बात का जो अर्थ सामने आता है वह है कि पवित्र आत्मा मसीही सेवकाई और सुसमाचार प्रचार के दौरान शिष्यों को आने वाली बातों को बताता है, अर्थात उन्हें सचेत रखता था। ऐसा बिलकुल नहीं था कि पवित्र आत्मा लोगों को अपना ढिंढोरा पीटने और अपने आप को लोगों के सामने भविष्यद्वक्ता दिखा कर वाह-वाही लूटने के लिए कहता था। वरन वह सुसमाचार प्रचार में लगे प्रभु के शिष्यों को हर परिस्थिति के लिए तैयार और आगाह रखता था, जो शिष्यों की सेवकाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण बात थी (प्रेरितों 9:16; 13:4; 20:22-23; 21:4, 11; 23:16)। दूसरी बात, यदि लोगों द्वारापवित्र आत्मा की ओर सेमिली और की जा रही भविष्यवाणियों के विषयों को देखें, और उनके पूरा होने का आँकलन करें, तो स्पष्ट हो जाता है कि उनभविष्यवाणियोंके विषय और सामग्री, सामान्यतः परमेश्वर के वचन से बाहर या अतिरिक्त होते हैं - जो, जैसा हम ऊपर देख चुके हैं, पवित्र आत्मा की ओर से किया जाना संभव नहीं है। साथ ही यदि उनभविष्यवाणियोंके पूरे होने के आधार पर आँकलन करने के लिए उन्हें परमेश्वर के वचन की शिक्षा से देखें, तो व्यवस्थाविवरण 18:20-22 में लिखा है किभविष्यवाणियोंका पूरा न होना इस बात का प्रमाण है कि वे परमेश्वर की ओर से नहीं हैं, और ऐसे नबियों को मार डालना चाहिए। किन्तु आज लोग ऐसे झूठे प्रचारकों को बहुत आदर और सम्मान देते हैं; उनकी झूठी शिक्षाओं के लिए उनकी आलोचना भी सहन नहीं करना चाहते हैं, वरन उन गलत, शारीरिक, और सांसारिक बातों को ही सत्य मान कर चलते हैं।

फिर यूहन्ना 16:14-15 में प्रभु ने एक बार फिर इस बात को दोहराया कि पवित्र आत्मा केवल प्रभु यीशु ही की बातों में से कहेगा और सिखाएगा। अर्थात, चाहे कोई भी कुछ भी क्यों न कहता रहे, कोई भी अद्भुत बातप्रमाणके रूप में क्यों न दिखाता रहे, प्रभु यीशु द्वारा वचन में दे दी गई शिक्षाओं और बातों से अधिक या बाहर जो कुछ भी है, वह न तो प्रभु यीशु की ओर से है, और न पवित्र आत्मा की ओर से। इसलिए प्रभु की शिक्षाओं से अतिरिक्त और बाहर की किसी भी शिक्षा या व्यवहार को स्वीकार नहीं करना है। यहाँ परमेश्वर पवित्र आत्मा का एक और कार्य को बताया गया है - वह प्रभु यीशु की महिमा करेगा। आज पवित्र आत्मा के नाम से फैलाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को सिखाने और फैलाने वाले बहुत दृढ़ता से यह दावा करते हैं कि उन्हें यह सब पवित्र आत्मा की ओर से मिला है, और वे इसके लिए पवित्र आत्मा की महिमा करने पर बल देते हैं, तथा उन प्रचारकों के स्वयं के जीवन, व्यवहार, और शिक्षाओं में, पवित्र आत्मा के नाम के उपयोग की तुलना में, प्रभु यीशु का नाम और उनकी शिक्षाओं तथा कार्यों का उल्लेख और महत्व बहुत कम होता है। वे लोगों को भी यही बताते और सिखाते हैं कि वे भी पवित्र आत्मा से उनके समान बातों तथा व्यवहार को प्राप्त करने की माँग करें। ये लोग पवित्र आत्मा की महिमा करने पर बहुत बल देते हैं, और अपनी इस बात को पवित्र आत्मा से सीखा हुआ बताते है। जबकि प्रभु यीशु मसीह ने साफ, सीधे शब्दों में, बिलकुल स्पष्ट, दो-टूक कहा है कि पवित्र आत्मा अपनी नहीं वरन प्रभु की महिमा करेगा! प्रभु की यह बात हमारे सामने मसीही विश्वास की शिक्षाओं का आँकलन करने का एक और मापदंड रखती है - मसीही विश्वास और सेवकाई से संबंधित जो भी शिक्षा अथवा व्यवहार प्रभु यीशु मसीह पर केंद्रित न हो, प्रभु यीशु को महिमा न दे; बल्कि प्रभु यीशु और उनके क्रूस पर दिए गए बलिदान, पुनरुत्थान, और सुसमाचार की बजाए किसी अन्य की ओर ध्यान आकर्षित करे, उसे महिमित करने का प्रयास करे, वह परमेश्वर प्रभु की ओर से नहीं है; चाहे उस महिमा का विषय परमेश्वर पवित्र आत्मा ही क्यों न हो। पवित्र आत्मा का कार्य प्रभु यीशु की महिमा करना है; वह अपनी महिमा नहीं करवाता है, और न ही ऐसी कोई शिक्षा या व्यवहार सिखाता है जो प्रभु यीशु की महिमा न करे, या करने पर ध्यान न दे, अथवा वचन के विरुद्ध हो।

यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो यह आपके लिए अनिवार्य है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय वचन में दी गई शिक्षाओं को गंभीरता से सीखें, समझें और उनका पालन करें; और सत्य को जान तथा समझ कर ही उचित और उपयुक्त व्यवहार करें, सही शिक्षाओं का प्रचार करें। आपको अपनी हर बात का हिसाब प्रभु को देना होगा (मत्ती 12:36-37)। जब वचन आपके हाथ में है, वचन को सिखाने के लिए पवित्र आत्मा आपके साथ है, तो फिर बिना जाँचे और परखे गलत शिक्षाओं में फँस जाने, तथा मनुष्यों और उनके समुदायों और शिक्षाओं को आदर देते रहने के लिए उन गलत शिक्षाओं में बने रहने के लिए क्या आप प्रभु परमेश्वर को कोई उत्तर दे सकेंगे?

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 20-21 
  • याकूब 5

सोमवार, 22 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - पुनः अवलोकन (4)

 

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की कार्य-विधि - 1 (नवंबर 12 से 14 तक के लेखों का सारांश)

पिछले लेख में हमने देखा था कि मसीही की सेवकाई में, परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रभु यीशु के शिष्यों, अर्थात मसीही विश्वासियों को तैयार करके, फिर उनमें होकर अपने कार्य और सामर्थ्य को प्रकट करता है; उनमें होकर संसार के लोगों के समक्ष उदाहरण तथा शिक्षाओं को रखता है। यूहन्ना 16:8 में पवित्र आत्मा ने तीन बातें लिखवाई हैं, जिनके विषय वह प्रभु यीशु के शिष्यों में होकर संसार को दोषी ठहराता है। ये तीन बातें हैं - पाप, धार्मिकता, और न्याय। सारे संसार के विभिन्न लोगों और धर्मों के निर्वाह, रीति-रिवाजों की पूर्ति, अनुष्ठानों के किए जाने, आदि के बावजूद, संसार के लोगों में से इन तीनों समस्याओं को मिटा पाना संभव नहीं होने पाया है, वरन इनके विषय स्थिति सुधारने की बजाए और बिगड़ती ही जा रही है। यही अपने आप में एक जग-विदित प्रमाण है कि धर्म-कर्म-रस्म का निर्वाह इस समस्या का समाधान नहीं है। परमेश्वर पवित्र आत्मा, प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों के परिवर्तित जीवन और व्यवहार में होकर संसार के लोगों को इन बातों के विषय दोषी ठहराता है - प्रभु के वास्तविक और सच्चे शिष्यों के जीवनों से तुलना के द्वारा संसार के लोगों को उनकी वास्तविक दशा दिखाता है।

पाप: संक्षेप में, परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार, पाप, मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में किया गया परमेश्वर की आज्ञाओं और निर्देशों का उल्लंघन अथवा अवहेलना है (1 यूहन्ना 3:4)। हमारे आदि माता-पिता, आदम और हव्वा के द्वारा किए गए प्रथम पाप के साथ ही पाप ने सृष्टि में प्रवेश किया, और आदम की संतानों में फैल गया (रोमियों 5:12-14)। मनुष्यों में आनुवंशिक रीति से विद्यमान पाप करने की इस प्रवृत्ति का निवारण और समाधान, उस व्यक्ति द्वारा किए गए अपने पापों के अंगीकार तथा उन से पश्चाताप, प्रभु यीशु मसीह द्वारा मिली पापों की क्षमा और उद्धार, तथा उसे स्वेच्छा से अपना जीवन समर्पण करने वाले व्यक्ति में प्रभु के द्वारा किया गया मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आधारभूत परिवर्तन, के द्वारा होता है। पाप और उसके निवारण तथा समाधान के विषय दी गई शिक्षाओं पर एक विस्तृत चर्चा पहले प्रस्तुत की जा चुकी है; इस विस्तृत चर्चा की शृंखला का आरंभ इस लेख के साथ हुआ था: परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 1

धार्मिकता: मूल यूनानी भाषा के लेख में जिस शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसे यहाँधार्मिकताअनुवाद किया गया है, उसका अर्थ होता है चरित्र एवं व्यवहार में दोष रहित होना। अर्थात, यहाँ पर धार्मिकता का अर्थ धार्मिक बातों, प्रथाओं, और रीति-रिवाजों का निर्वाह तथा धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ति के आधार पर व्यक्ति काधर्मीसमझा जाना नहीं है, वरन उसके मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में परमेश्वर की दृष्टि में तथा उसके मानकों के आधार पर दोष रहित होना है। यह मन परिवर्तन मनुष्य अपने किसी धर्म के कामों से नहीं करने पाता है, नहीं तो संसार भर में इतने धर्मों और धार्मिक अनुष्ठानों, और कार्यों के द्वारा, अब तक संसार से पाप की समस्या कब की मिट चुकी होती। यह मन परिवर्तन केवल प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास और पापों के पश्चाताप के द्वारा ही संभव है। प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाना, और ईसाई धर्म का निर्वाह करना, दो बिलकुल भिन्न बातें हैं; और ईसाई धर्म का निर्वाह व्यक्ति को परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी नहीं बनाता है। व्यक्ति किसी भी धर्म को माने, किसी भी परिवार में जन्म ले, सभी के लिए, ईसाई धर्म का निर्वाह करने वालों के लिए भी, परमेश्वर की आज्ञा अपने पापों से पश्चाताप करने की है (प्रेरितों 17:30-31)। सच्चे और वास्तविक मसीही विश्वासी के जीवन जीने वालों में, और संसार के मानकों के अनुसारधर्मका जीवन जीने वालों में परमेश्वर पवित्र आत्माधार्मिकताकी यह तुलना प्रस्तुत करता है। मसीही विश्वास की धार्मिकता की तुलना में, सांसारिक की गढ़ी हुई धार्मिकता के विषय सांसारिक लोगों को दोषी ठहराता है।

न्याय: मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद यहाँन्यायकिया गया है, उसका अर्थ होता है सही पहचान करनायानिर्णय लेना। इस शब्द का प्रयोग और अर्थ सही पहचान करने, परिस्थितियों का सही विश्लेषण करने, या व्यक्तियों का सही आँकलन करने और उनके विषय सही निर्णय करने, आदि के लिए भी किया जाता है, केवल सामान्य अभिप्राय, वैधानिक या कानूनी न्याय करना, यानि कि उनके अपराधों के लिए लोगों को दोषी ठहराना और दण्ड देना ही नहीं। यूहन्ना 16:11 में पवित्र आत्मा द्वारा करवाए गएन्यायऔरसंसार का सरदारअर्थात शैतान केन्यायके मध्य एक तुलना (contrast) रखी गई है। अर्थात, दोनों केन्यायकरने, यानि कि सही निर्णय देने, या सही पहचान, अथवा आँकलन करने में भिन्नता है। और परमेश्वर पवित्र आत्मा, मसीही विश्वासियों में होकर बिलकुल सटीक, सही, और पक्षपात रहित न्याय, उचित व्यवहार, या निर्णय करवाने के द्वारा, ऐसे उदाहरण प्रस्तुत करेगा जो संसार के लोगों द्वारा सांसारिक विचार और व्यवहार के अनुसार, “संसार के सरदारके प्रभाव में होकर किए जाने वाले अनुचित एवं अपूर्ण न्याय, या निर्णय के बारे में उनको दोषी ठहराएंगे। एकमात्र सच्चे और जीवते प्रभु परमेश्वर का न्याय सदा सच्चा, खरा, और पक्षपात रहित होता है। निष्कर्ष यह कि मसीही विश्वास में आने के द्वारा व्यक्ति के मन, जीवन, विचार, और व्यवहार में जो परिवर्तन आता है, वह उसे परमेश्वर पवित्र आत्मा की अधीनता में खरा और सच्चा न्याय करने, या जाँच-परख करने, या सही आँकलन करके पक्षपात रहित निर्णय करने वाला बना देता है। उसका यह बदला हुआ व्यवहार, उसमें परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है। साथ ही उसका इस प्रकार का जीवन, पाप और पापमय प्रवृत्तियों तथा विचारधाराओं में रहने वाले, “संसार के सरदारके प्रभाव में होकर कार्य करने वाले लोगों के समक्ष एक तुलना (contrast) रखता है, और उन्हें उनके अनुचित न्याय, व्यवहार, और विचार के लिए दोषी ठहराता है।

परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासियों में आडंबर, नाटकीय व्यवहार, करिश्माई दावे करने, और शारीरिक एवं सांसारिक लाभ देने के लिए आकर निवास नहीं करता है। वरन उसका उद्देश्य मसीही विश्वासियों में होकर प्रभु यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार की गवाही देना, तथा संसार के लोगों को उनके दोषों के विषय कायल करना है। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो यूहन्ना 16:8-11 के समक्ष आपका जीवन कैसा है? यदि आप अभी इन पदों के समक्ष अपने आप को दोषी पाते हैं, तो फिर आपको 2 कुरिन्थियों 13:5 के अनुसार अपने आप को और अपने मसीही विश्वास में होने के दावे का पुनः अवलोकन करने, अपने मसीही विश्वासी होने की समीक्षा करने की आवश्यकता है। मसीही विश्वासी होने के नाते, आप में विद्यमान परमेश्वर पवित्र आत्मा आपको पाप करने या पाप में बने नहीं रहने देगा; आपको मनुष्य और संसार के लोगों के अनुसार नहीं वरन परमेश्वर की दृष्टि में और उसके मानकों के आधार पर धार्मिकता का जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगा; तथा संसार के लोगों के समान अनुचित न्याय अथवा लोगों और परिस्थितियों का आँकलन नहीं करने देगा। आप जब भी ऐसा करेंगे, वह आपके जीवन में खलबली उत्पन्न करेगा, आपके जीवन में तब तक बेचैनी रहेगी जब तक आप अपने इस गलत व्यवहार को सही नहीं कर लेंगे। और यदि आप फिर भी ढिठाई में ऐसे व्यवहार में बने रहेंगे, जो एक मसीही विश्वासी के लिए सही नहीं है, तो आपको ताड़ना में से भी होकर निकलना पड़ेगा, जिससे आप सुधारे जा सकें (इब्रानियों 12:5-11)

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।



एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 18-19 
  • याकूब 4

रविवार, 21 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - पुनः अवलोकन (3)

 

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की उपस्थिति एवं प्रमाण (नवंबर 9 से 11 तक के लेखों का सारांश)

मसीही विश्वास में आते ही, व्यक्ति में परमेश्वर पवित्र आत्मा आकर निवास करने लगता है, फिर उसके जीवन में कुछ कार्य होते हैं, और परिवर्तन आते हैं, जिनके द्वारा वह मसीही सेवकाई के लिए तैयार किया जाता है, उपयोगी बनाया जाता है। यूहन्ना 16 अध्याय में प्रभु यीशु ने शिष्यों के सामने कुछ बातें रखीं, जिनका विद्यमान होना उनकी सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा के होने को दिखाएगा, यह प्रमाणित करेगा कि उनकी सेवकाई परमेश्वर की ओर से तथा उसकी सामर्थ्य से है। साथ ही परमेश्वर पवित्र आत्मा की कार्य-विधि के गुण भी प्रभु ने अपने शिष्यों को बताए। प्रभु द्वारा कही गई ये बातें, आज के सामान्यतः पवित्र आत्मा के नाम से किए जाने वाले आडंबर, विचित्र व्यवहार, हाव-भाव, शोर-शराबे, और शारीरिक एवं सांसारिक बातों के लाभों की प्राप्ति की शिक्षाओं और व्यवहार से बिलकुल भिन्न हैं। पवित्र आत्मा के नाम से अपनी ही धारणाओं की गलत शिक्षाओं को बताने और फैलाने वाले इन भ्रामक प्रचारकों की बातों का आरंभ ही परमेश्वर पवित्र आत्मा को मनुष्य के अधीनता या वश में ले लेने के द्वारा होता है। सामान्यतः उनका कहना होता है कि प्रभु यीशु पर विश्वास लाने के बाद, पवित्र आत्मा को प्राप्त करने के लिए अलग से प्रयास करना पड़ता है, तब ही जाकर पवित्र आत्मा मिलता है; और फिर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए एक अन्य कार्यपवित्र आत्मा का बपतिस्मापाने की आवश्यकता होती है। फिर वो लोगों अपनी बनाई हुई उन विधियों को सिखाते हैं जिनसे उनके अनुसार पवित्र आत्मा को प्राप्त किया जाता है। 

पवित्र आत्मा का बपतिस्माके बारे में हम इन सारांश के बाद के आने वाले में देखेंगे; किन्तु मुख्य बात यह है कि ये गलत शिक्षाएं देने वाले परमेश्वर पवित्र आत्मा को मनुष्य के हाथों की कठपुतली बनाकर, जिसे मनुष्य अपने प्रयासों और कार्यों के द्वारा नियंत्रित और उपयोग करे प्रस्तुत करते हैं। जबकि वास्तविकता में उनकी ये सभी बातें बाइबल की शिक्षाओं के बाहर की हैं, बाइबल में ऐसी बातों की कोई शिक्षा अथवा पुष्टि नहीं है। ध्यान देने योग्य बात है कि यूहन्ना अध्याय 14-16 में, चार बार लिखा गया है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा केवल प्रभु परमेश्वर की ओर से तथा उसके द्वारा ही, और प्रभु के शिष्यों को ही प्रदान किया जाता है (14:16-17, 26; 15:26; 16:7)। पवित्र आत्मा को प्राप्त करने से संबंधित बाइबल की शिक्षाओं और उनके बारे में बनाई गई गलत धारणाओं के विश्लेषण से संबंधित एक विस्तृत शृंखला को आप www.samparkyeshu.blogspot.com ब्लॉग साईट पर, 20 अप्रैल 2020 से आरंभ हुई लेखों की शृंखला के पहले लेख के इस लिंक से पढ़ सकते हैं: पवित्र आत्मा पाने से संबंधित बातें - परिचय

यूहन्ना 15:26 में प्रभु यीशु ने यह भी कहा कि परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीह यीशु ही की गवाही देगा; अर्थात प्रभु यीशु के शिष्य की सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति, उस शिष्य के जीवन में प्रभु यीशु मसीह की गवाही विद्यमान होने से प्रमाणित होगी, न कि बाइबल से बाहर की बातों के करने और दिखाने के द्वारा! वह शिष्य मसीह के समान जीना आरंभ कर देगा, प्रभु का गवाह होकर कार्य करने लगेगा, प्रभु यीशु की आज्ञाकारिता में किसी मनुष्य-मत-समुदाय-डिनॉमिनेशन को नहीं वरन परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला जीवन व्यतीत करेगा (1 कुरिन्थियों 11:1; 1 थिस्सलुनीकियों 4:1-2, 11)। फिर यूहन्ना 16:7-8 में एक बार फिर प्रभु यीशु ने सिखाया कि पवित्र आत्मा उनके भेजे से ही आएगा, “और वह आकर संसार को पाप और धामिर्कता और न्याय के विषय में निरुत्तर करेगा। अर्थात जो मसीही सेवकाई परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य और अगुवाई में की जाएगी, उसमें न केवल मसीह यीशु की गवाही प्राथमिकता पाएगी, वरन साथ ही उस सेवकाई के द्वारा संसार के लोग पाप, धार्मिकता, और न्याय के विषय दोषी ठहराए जाएंगे या कायल किए जाएंगे (मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का हिन्दी अनुवादनिरुत्तरकिया गया है, उसका वास्तविक अर्थ उलाहना देना, या दोषी ठहराना होता है; इसीलिए अँग्रेज़ी के अनुवादों में convict शब्द, जो मूल भाषा के अर्थ के अधिक निकट है, प्रयोग किया गया है)। परमेश्वर के वचन के अनुसार इन तीनों बातों के अर्थ और व्याख्या का सारांश हम कल की कड़ी में देखेंगे। 

इसीलिए, यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो बाइबल में दी गई प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं को जानने, उन्हें समझने, और उनका पालन करने में अपना समय और ध्यान लगाइए। सभी गलत शिक्षाओं से बच कर रहिए और अपनी मन-मर्जी या पसंद के अनुसार नहीं, किन्तु प्रभु के वचन की आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करें, अपनी मसीही सेवकाई को पूर्ण करें। प्रत्येक मसीही विश्वासी को व्यक्तिगत रीति से पवित्र आत्मा की सामर्थ्य दिए जाने का उद्देश्य यही है कि वह शैतान की युक्तियों को समझे, उनके प्रति सचेत रहे, और परमेश्वर के वचन को सीख समझ कर अपनी मसीही सेवकाई के लिए सक्षम, तत्पर, और तैयार हो जाए, उस सेवकाई में लग जाए। और मसीही सेवकाई से संबंधित दी गई शिक्षाएं यह जाँचने और समझने के आधार हैं कि जो सेवकाई की जा रही है वह वास्तव में परमेश्वर के कहे के अनुसार की जा रही है; न कि मनुष्यों की बनाई धारणाओं के अनुसार। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।



एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 16-17 
  • याकूब 3

शनिवार, 20 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - पुनः अवलोकन (2)

 

मसीही विश्वासी के व्यक्तिगत जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका (नवंबर 5 से 8 तक के लेखों का सारांश)

यूहन्ना 13 अध्याय से लेकर 17 अध्याय तक, क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले, फसह के पर्व को मनाते हुए, अपने शिष्यों के साथ किया गया प्रभु यीशु मसीह का अंतिम वार्तालाप है। प्रभु जानते थे कि उनकी पृथ्वी की सेवकाई के ये अंतिम पल हैं, और वे अपने शिष्यों को उनके जाने के बाद सेवकाई संभालने के लिए तैयार कर रहे थे, अंतिम निर्देश दे रहे थे, भविष्य में उनके लिए बहुत उपयोगी होने वाली कुछ बातें बता और समझा रहे थे। इन बातों में से एक थी प्रभु यीशु के जाने के बाद शिष्यों में परमेश्वर पवित्र आत्मा की सामर्थ्य का आ जाना, जिनकी अगुवाई और सामर्थ्य के द्वारा फिर शिष्यों ने सुसमाचार प्रचार की सेवकाई को सारे संसार में करना था। परमेश्वर पवित्र आत्मा के शिष्यों के साथ होने, और शिष्यों में होकर कार्य करने के विषय प्रभु यीशु ने जो बातें शिष्यों से कहीं वे हमें यूहन्ना के 14 तथा 16 अध्याय में मिलती हैं। यूहन्ना 14 अध्याय में दी गई शिक्षाएं मुख्यतः शिष्यों के व्यक्तिगत जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका से संबंधित हैं; और 16 अध्याय की शिक्षाएं मुख्यतः उनकी सार्वजनिक सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका से संबंधित हैं। दुर्भाग्यवश, आज परमेश्वर पवित्र आत्मा, और मसीही विश्वासियों के साथ उनके संबंध तथा मसीही सेवकाई में उनकी भूमिका को लेकर गलत शिक्षाओं, मिथ्या प्रचार और व्यर्थ शारीरिक हाव-भाव एवं शोर-शराबे की बातों का इतना अधिक बोल-बाला हो गया है कि लोग परमेश्वर के वचन बाइबल की स्पष्ट और सीधी सच्चाइयों को भी ठीक से देखने और समझने नहीं पा रहे हैं। वे प्रभु यीशु की कही इन बातों पर ध्यान देने के स्थान पर मनुष्यों द्वारा बनाए गए मत-समुदायों-डिनॉमिनेशंस की बातों और उनके प्रचारकों की भरमाने वाली बातों के धोखे में फंसे हुए हैं। आज हम नवंबर 5 से 8 तक यूहन्ना 14 अध्याय के लेखों के सारांश को देखेंगे, जो मुख्यतः मसीही विश्वासी के व्यक्तिगत जीवन में पवित्र आत्मा की भूमिका से संबंधित हैं। 

इन लेखों में सबसे पहली बात हमने देखी थी कि यूहन्ना 14:16 के अनुसार, परमेश्वर पवित्र आत्मा किसी भी व्यक्ति में किसी मनुष्य की युक्ति या प्रयास से आकर नहीं निवास करते हैं। वे प्रभु यीशु के कहे अनुसार, प्रभु के शिष्यों में आकर रहते हैं। और हमने आरंभिक लेखों में, तथा कल के सारांश में देखा था, कि यह व्यक्ति के उद्धार पाते ही, तुरंत ही उसी पल होने वाली बात है। किसी को भी पवित्र आत्मा प्राप्त करने के लिए अलग से कोई कार्य या प्रयास या प्रतीक्षा करने की कोई आवश्यकता नहीं है; उद्धार पाते ही, स्वतः ही पवित्र आत्मा प्रभु यीशु के उस नवजात शिष्य में आकर निवास करने लगते हैं। साथ ही प्रभु यीशु उन्हेंसर्वदा साथ रहनेके लिए भेजता है। एक बार जिस शिष्य में पवित्र आत्मा आकर निवास करने लगता है, वह फिर सदा के लिए जीवन पर्यंत उसके साथ रहने के लिए उसमें निवास करता है। इसलिए बारंबार पवित्र आत्मा के आने के लिए प्रार्थना करना वचन से संगत नहीं है। साथ ही, परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी का सहायक बनकर आते हैं, सेवक बनकर नहीं। वे प्रभु के शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं, उसे सिखाते हैं, सेवकाई के लिए समझ और सामर्थ्य प्रदान करते हैं, किन्तु उस शिष्य के कार्य को उसके स्थान पर नहीं करते हैं; करना शिष्य को ही होता है, तरीका पवित्र आत्मा बताते हैं। 

फिर, यूहन्ना 14:17 से हमने देखा था कि परमेश्वर पवित्र आत्मा, सत्य का आत्मा है; वे संसार में और संसार के लोगों में नहीं रह सकते हैं। अभिप्राय यह कि जो वास्तव में उद्धार पाया हुआ सच्चा विश्वासी है, उसमें पवित्र आत्मा स्वतः ही आकर निवास करेंगे; और जिसने वास्तव में पश्चाताप नहीं किया उद्धार नहीं पाया, वह चाहे कोई भी कार्य या प्रयास कर ले, उसमें पवित्र आत्मा का निवास कदापि नहीं होगा। उनकेसत्य का आत्मा’” होने का तात्पर्य है कि उनकी हर बात, हर शिक्षा, हर व्यवहार बाइबल में दी गई सत्य की परिभाषा - प्रभु यीशु मसीह (यूहन्ना 14:6), और परमेश्वर का वचन (भजन 119:160), के अनुसार और अनुरूप ही होगा। वे कभी प्रभु यीशु और बाइबल में लिखी हुई बातों से भिन्न या बाहर कुछ नहीं कहेंगे या सिखाएंगे। इस बात की पुष्टि प्रभु ने यूहन्ना 14:26 में भी कर दी, जब उन्होंने बिलकुल स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि पवित्र आत्मा आकर केवल प्रभु की दी हुई शिक्षाओं को ही स्मरण करवाएंगे और सिखाएंगे। इसलिए आज पवित्र आत्मा के नाम से जो विचित्र व्यवहार, शारीरिक क्रियाएं, हाव-भाव और शोर-शराबा किया जा रहा है, जिसका कोई उदाहरण या शिक्षा बाइबल में नहीं मिलती है, वह कभी पवित्र आत्मा की ओर से नहीं हो सकता है। 

बाइबल में सम्मिलित किए जाने वाले सारे लेख प्रथम शताब्दी की समाप्ति से पहले ही लिखे जा चुके थे। बाद में इन्हीं लेखों को संकलित करके नया नियम बना। साथ ही, पवित्र आत्मा की अगुवाई में पतरस ने 2 पतरस 1:3-4 में लिख दिया था कि जीवन और भक्ति से संबंधित सभी बातें, प्रभु यीशु मसीह की पहचान में होकर हमें उपलब्ध करवा दी गई हैं; तथा साथ ही इस संसार की सड़ाहट से बचने और ईश्वरीय स्वभाव के संभागी होने का मार्ग भी दे दिया गया है। तात्पर्य यह कि परमेश्वर का वचन आरंभिक कलीसिया के समय से ही पूर्ण हो चुका है, उसमें और कुछ जोड़ने, कुछ नया बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसा करना परमेश्वर के वचन की अनाज्ञाकारिता है, परमेश्वर द्वारा दण्डनीय है (व्यवस्थाविवरण 12:32; नीतिवचन 30:6; प्रकाशितवाक्य 22:18-19)। परमेश्वर को स्वीकार्य और उसे प्रसन्न करने वाला जीवन जीने के लिए मानवजाति के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वह सब परमेश्वर पवित्र आत्मा ने लिखवा दिया है, उपलब्ध करवा दिया है। इसलिए आज के उननएदर्शनों, भविष्यवाणियों, शिक्षाओं, चमत्कारिक बातों, आदि का कोई औचित्य अथवा आवश्यकता नहीं है; और न ही परमेश्वर के वचन बाइबल से उनके लिए कोई समर्थन है, जिन्हेंपवित्र आत्मा की ओर सेप्राप्त करने का दावा आज बहुत से मत और समुदाय, या डिनॉमिनेशन के अनुयायी करते हैं, जिन गलत बातों के बारे में औरों को भी सिखाते हैं, तथा औरों को भी करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यदि पवित्र आत्मा से संबंधित बाइबल की शिक्षाएं, प्रभु यीशु की कही बातें सही हैं, तो इन लोगों के ऐसे सभी दावे बेबुनियाद हैं, व्यर्थ हैं, झूठे हैं, और उनमें पड़ने या उन्हें स्वीकार करने का कोई आधार नहीं है।

फिर यूहन्ना 14:30 में प्रभु ने शिष्यों को सचेत किया कि प्रभु के चले जाने के पश्चात, उनका सामना 'संसार का सरदार' अर्थात शैतान से होना था, जो उन पर टूट कर पड़ने वाला था। इसलिए उन्हें उसका सामना करने, और उसपर जयवंत होने के लिए, प्रभु के लिए सेवकाई पर निकालने से पहले पवित्र आत्मा की सामर्थ्य की अनिवार्यता थी।

इसीलिए, यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो परमेश्वर के वचन, को जानने और मानने में अपना समय और ध्यान लगाइए; अपनी मन-मर्जी और पसंद के अनुसार नहीं, अपितु प्रभु की आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करें। प्रत्येक मसीही विश्वासी को व्यक्तिगत रीति से पवित्र आत्मा की सामर्थ्य दिए जाने का उद्देश्य यही है कि वह शैतान की युक्तियों को समझे, उनके प्रति सचेत रहे, और परमेश्वर के वचन को सीख समझ कर अपनी मसीही सेवकाई के लिए सक्षम, तत्पर, और तैयार हो जाए, उस सेवकाई में लग जाए।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यहेजकेल 14-15 
  • याकूब 2