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शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

मित्रता का सम्मान

इंगलैंड में एक शादी के समय दूल्हे के साथ खड़ा होने वाला उसका साथी बिल्कुल बिना हिले-डुले खड़ा रहा। शादी की रस्म पूरी होने के बाद भी वह नहीं हिला।

वह वास्तव में दूल्हे के मित्र एन्डी का उसी के नाप का गत्ते पर लगया गया एक चित्र था। एन्डी प्रयास में था कि एक साथ दो स्थानों पर हो सके। वह कार रेसिंग में तीन बार विश्व-विजेता रह चुका एक रेस ड्राईवर था, और अपने अनुबंध की मजबूरी के कारण उसे अपने मित्र से उसकी शादी में उपस्थित होने का किया गया वायदा तोड़ना पड़ा। इस कमी को पूरा करने के प्रयास में उसने अपना जीवित नाप का चित्र और टेप पर रिकॉर्ड किया हुआ शुभकामनाओं का सन्देश अपने मित्र की शादी के लिये भिजवा दिया। बाद में वधु ने कहा कि उनकी शादी को सम्मान देने के उसके इस प्रयत्न ने उसके दिल को छू लिया।

एन्डी का यह प्रयत्न बहुत क्रियात्मक था और हमें उस पर टिप्पणी करने की आवश्यक्ता नहीं है। किंतु यीशु ने मित्रता का एक दूसरा और ऊंचा मापदण्ड दिया, उसने अपने चेलों से कहा कि यीशु के प्रति अपनी मित्रता दिखाने के लिये उन्हें एक दुसरे से ऐसा प्रेम प्रदर्शित करना है जैसा यीशु ने उनसे किया। फिर उसने मित्रता के नाप को और ऊंचा करते हुए कहा कि "इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे" (युहन्ना १५:१३)।

मित्रता की ऐसी गहराई का संबन्ध केवल सही व्यवहार करने से नहीं है। इसका संबन्ध है त्याग से, और यह उत्पन्न होता है उसके साथ संबन्ध से जिसने हमारे लिये अपने प्राण दिये।

क्या हम दुसरों को यह दिखाते हैं कि यीशु ने हमसे वैसा ही प्रेम किया जैसा पिता ने उसके साथ किया (पद ९)? - मार्ट डि हॉन


प्रेम केवल एक भावना से बढ़कर है, वह दूसरों की आवश्यक्ताओं को अपनी आवश्यक्ताओं से बढ़कर रखने में है।


बाइबल पाठ: युहन्ना १५:९ - १७


मैंने तुम्हें मित्र कहा है। - युहन्ना १५:१५


एक साल में बाइबल:
  • १ शमुएल १३, १४
  • लूका १०:१ - २४

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