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सुसमाचार से संबंधित शिक्षाएँ – 31
हम देखते आ रहे हैं कि किस प्रकार से शैतान लोगों के मानों में सन्देह उत्पन्न करता है कि किसी तरह से उन्हें सुसमाचार पर विश्वास करने से रोके रहे। लेकिन उसकी गढ़ी गई झूठी कहानियाँ, परमेश्वर के वचन बाइबल में दिए गए तथ्यों के सामने टिक नहीं पाती हैं, और बाइबल से उनकी जाँच होने पर वे सब झूठी ठहरती हैं। पिछले लेख में हमने देखा था कि शैतानी धारणा कि प्रभु यीशु क्रूस पर केवल बेहोश हुआ था, मरा नहीं था, और कब्र में होश आने के बाद वह बाहर आ गया, बाइबल में दिए गए तथ्यों के सामने बिलकुल बेबुनियाद और असंभव है। यदि प्रभु यीशु मरे नहीं, तो फिर पुनरुत्थान भी नहीं हुआ (1 कुरिन्थियों 15:12-17), तो फिर मानवजाति के पापों का प्रायश्चित भी नहीं हुआ, और सारा सुसमाचार एक झूठ बन गया; एक धोखा जो परमेश्वर के नाम में मनुष्यों को दिया गया। एक अन्य भी तरीका है जिसके द्वारा शैतान प्रभु यीशु की शारीरिक मृत्यु, गाड़े जाने, और जी उठने पर सन्देह लाता है, और वह भी परमेश्वर के प्रति भक्ति और श्रद्धा के बहाने से। आज हम इसी झूठी धारणा को देखेंगे, और यह भी कि कैसे यह भी बाइबल के तथ्यों के सामने टिक नहीं सकता है।
जबकि सुसमाचारों पर शैतानी हमलों में, जिन्हें हम पिछले लेखों में देख चुके हैं, शैतान ने लोगों को प्रभु यीशु के देह में आने को मान लेने दिया था, अर्थात उसने इस बात का इनकार नहीं किया था कि यीशु देह में इस पृथ्वी पर आया था। और तब सुसमाचार का इनकार करवाने के लिए उसने या तो सुसमाचार को, उसमें कुछ जोड़ने अथवा उस में से कुछ निकाल लेने के द्वारा बिगाड़ना चाहा; या फिर, कुछ अन्य गढ़ी हुई कहानियों के द्वारा उसने प्रभु यीशु के मारे जाने, गाड़े जाने, और जी उठने पर सन्देह उत्पन्न करना चाहा है। सुसमाचार पर किए गए एक अन्य प्रकार के हमले में, शैतान ने सुसमाचार को नकारने का प्रयास यह कहने के द्वारा किया है कि प्रभु यीशु मानव देह में होकर पृथ्वी पर नहीं आया। प्रेरित यूहन्ना ने, पवित्र आत्मा के द्वारा इस धोखे के बारे में लिखा है; वह कहता है “हे प्रियो, हर एक आत्मा की प्रतीति न करो: वरन आत्माओं को परखो, कि वे परमेश्वर की ओर से हैं कि नहीं; क्योंकि बहुत से झूठे भविष्यद्वक्ता जगत में निकल खड़े हुए हैं। परमेश्वर का आत्मा तुम इसी रीति से पहचान सकते हो, कि जो कोई आत्मा मान लेती है, कि यीशु मसीह शरीर में हो कर आया है वह परमेश्वर की ओर से है। और जो कोई आत्मा यीशु को नहीं मानती, वह परमेश्वर की ओर से नहीं; और वही तो मसीह के विरोधी की आत्मा है; जिस की चर्चा तुम सुन चुके हो, कि वह आने वाला है: और अब भी जगत में है।” (1 यूहन्ना 4:1-3)। ध्यान कीजिए कि शैतान यह नहीं कह रहा है कि प्रभु यीशु पृथ्वी नहीं आया; बल्कि यह कि प्रभु यीशु देह में होकर नहीं आया; और यूहन्ना बड़ी दृढ़ता से स्पष्ट कहता है कि जो भी आत्मा प्रभु के देह में आने का इनकार करती है, वह परमेश्वर की ओर से नहीं बल्कि मसीह विरोधी की आत्मा है, शैतानी है।
शैतान ने लोगों के सामने एक बहुत भक्ति और श्रद्धापूर्ण धारणा रखी, कि वे उसके झूठ पर विश्वास कर लें। शैतान का कहना था कि परमेश्वर इतना पवित्र, इतना महिमित और महान है, इतना सर्वोच्च है, कि वह पापमय देह में नीचे नहीं आ सकता है, पापमय मनुष्यों के साथ उनके समान नहीं रह सकता है, और वह पवित्र परमेश्वर जो कभी मर नहीं सकता है वह एक अपराधी के समान नहीं मरेगा। यह कहना कि परमेश्वर मनुष्य बनकर आया, परमेश्वर का निरादर करना, उसे अपवित्र करना है। इसलिए परमेश्वर केवल आत्मा होकर ही पृथ्वी पर आया था, किन्तु मनुष्यों ने समझा कि वह देह में आया है। इस प्रकार से शैतान प्रभु यीशु के पूर्णतः परमेश्वर और पूर्णतः मनुष्य होने का इनकार करने का प्रयास करता है, और उसके बलिदान की मृत्यु के महत्व को झुठला देना चाहता है। यदि प्रभु यीशु पूर्णतः परमेश्वर और पूर्णतः मनुष्य नहीं होते, तो वे शारीरिक रीति से मरे नहीं होते, शरीर में जी भी नहीं उठे होते, मनुष्यों के पापों के दण्ड को कभी नहीं चुकाया नहीं होता; और इससे सुसमाचार झूठा हो जाता।
किन्तु परमेश्वर का वचन बाइबल बहुत स्पष्ट दिखाता है कि यह शैतानी धारणा पूर्णतः असंभव और अस्वीकार्य है। प्रभु के पृथ्वी पर आने के समय पर वह कहता है कि परमेश्वर ने उसके लिए एक देह तैयार की (इब्रानियों 10:5), और उसी देह में वह मरियम के गर्भ में होकर आया (लूका 1:30-35)। प्रभु का पानी में बपतिस्मा हुआ था (मत्ती 3:16), जो सदेह होने के द्वारा ही संभव है। प्रेरित यूहन्ना ने, जिसने साढ़े-तीन वर्ष प्रभु के साथ बिताए और प्रभु के पकड़वाए जाने से पहले शिष्यों के साथ अंतिम भोज में प्रभु की छाती पर अपना सर झुका रखा था (यूहन्ना 13:23), अपनी पत्री के आरम्भ में लिखता है, “उस जीवन के वचन के विषय में जो आदि से था, जिसे हम ने सुना, और जिसे अपनी आंखों से देखा, वरन जिसे हम ने ध्यान से देखा; और हाथों से छूआ” (1 यूहन्ना 1:1)। यूहन्ना तथा अन्य शिष्यों ने, तथा अन्य अनेकों लोगों ने प्रभु को देखा, सुना और छूआ था (लूका 8:45)। वे जानते थे कि वह देह में है, कोई आत्मा नहीं है। उन्होंने उसे आश्चर्यकर्म करते, रोटी और मछली को लेकर तोड़ते और लोगों की भीड़ को भोजन खिलाते, बच्चों के सिर पर हाथ रखते और बच्चों को गोद में उठाते हुए (मरकुस 10:14-16) देखा था। उन्होंने अनेकों तरीकों से जाना था कि वे एक सदेह मनुष्य के साथ व्यवहार कर रहे हैं, न कि किसी आत्मा के साथ। अपने पुनरुत्थान के बाद, प्रभु ने स्वयं उन से भोजन मांग कर उनके सामने खाया, यह दिखाने के लिए कि वे सदेह जीवित हो कर आए हैं (लूका 24:36-43)। उन्होंने अपने शिष्य थोमा के सन्देह का निवारण किया, और उस पर तथा अन्यों पर यह प्रमाणित कर दिया कि वे सदेह पुनरुत्थान होकर आए हैं (यूहन्ना 20:24-29)।
इसलिए बाइबल में पर्याप्त प्रमाण हैं कि प्रभु यीशु वास्तव में सदेह ही पृथ्वी पर आए थे, न कि उनका सदेह होना कोई काल्पनिक बात थी। इस गढ़ी हुई धार्मिकता और भक्ति की झूठी धारणा के स्वीकार्य होने का कोई आधार नहीं है। अगले लेख में हम सुसमाचार पर विश्वास करने के बारे में विचार ज़ारी रखेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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Teachings Related to the Gospel – 31
We have been seeing how Satan tries to bring in doubts in people’s hearts to keep them from believing in the gospel, through various concocted stories, that do not stand up to the scrutiny of the facts given in God’s Word the Bible. In the last article we have seen how the devious lie of the “Swoon Theory” that the Lord Jesus did not die on the cross, but only became unconscious, and then revived in the tomb and walked out of it, is utterly implausible and impossible in face of Biblical details related to the death, burial, and resurrection of the Lord. Had the Lord not died, then there would be no resurrection (1 Corinthians 15:12-17), no atonement for the sins of mankind, and the whole gospel would have become a lie; a hoax enacted upon mankind in the name of God. There is another way in which Satan tries to create doubts upon the physical death, burial, and resurrection of the Lord Jesus, and that too in the garb of piety and reverence for God. We will see this false notion, and how it fails to stand up to Biblical facts today.
While in the previously considered attacks on the gospel, Satan had let the physical existence of the Lord Jesus be accepted by the people, i.e., had not denied that the Lord Jesus came to earth, in the flesh as a man; and then to deny the gospel, he had tried to either alter the gospel by adding to it or taking away from it; or, in some other concocted stories, tried to create disbelief in the death, burial, and resurrection of the Lord. In another kind of attack on the gospel, Satan tries to discredit the gospel by saying that the Lord Jesus did not come in the flesh as a man. The Apostle John, through the Holy Spirit had spoken against this deception; he says in 1 John 4:1-3 “Beloved, do not believe every spirit, but test the spirits, whether they are of God; because many false prophets have gone out into the world. By this you know the Spirit of God: Every spirit that confesses that Jesus Christ has come in the flesh is of God, and every spirit that does not confess that Jesus Christ has come in the flesh is not of God. And this is the spirit of the Antichrist, which you have heard was coming, and is now already in the world.” Notice, Satan is not alleging that the Lord Jesus Christ did not come to earth; rather, what he is alleging is that the Lord did not come in the flesh; and the spirit that denies the coming of the Lord in the flesh, John categorically calls the spirit of the Antichrist, a satanic spirit.
Satan had put up a very pious and reverential sounding theory to make people believe his lie. Satan’s theory was that God is so holy, so exalted and glorious, so magnificent, that He cannot come down in sinful flesh, live with and as sinful men do, and the Holy God who cannot die will not suffer death as a criminal. To say that God came as a man would be a desecration and disrespect of God; so, God only appeared as a spirit to men, and men thought that He was in the flesh. Thereby Satan tries to deny the Lord Jesus being fully God and fully man, and tries to take away the significance of His sacrificial death. If the Lord Jesus was not fully God and fully man, then He could not have physically died and then risen from the dead in the bodily form, would not have paid the penalty for the sins of mankind; and thus, the gospel would become false.
But God's Word the Bible very clearly shows how this satanic notion is untenable and unacceptable. At the time of Lord’s coming to earth, He says that God prepared a body for Him (Hebrews 10:5), in which He came into the world through the womb of Mary (Luke 1:30-35). The Lord had been baptized in water (Matthew 3:16), which is only possible for a physical body. The Apostle John, who had spent about three and a half years with the Lord Jesus, and had rested his head on the Lord’s chest at the time of the Last Supper (John 13:23), at the beginning of his first letter writes, “That which was from the beginning, which we have heard, which we have seen with our eyes, which we have looked upon, and our hands have handled, concerning the Word of life” (1 John 1:1). John and the other disciples, and many other people had seen, heard, and touched the Lord (Luke 8:45). They knew that He was in the flesh, and not a spirit. They had seen Him perform miracles, feed the multitudes by breaking fish and bread, and lay His hands on children’s heads take children up in His arms (Mark 10:14-16). They had in many ways known that they were living and interacting with a physical person and not a spirit. After His resurrection, the Lord Himself asked for food and ate before them to demonstrate to them that He had resurrected in the flesh, and said that He was not in front of them as a spirit (Luke 24:36-43). He satisfied the doubts that His disciple Thomas had, and proved to Him and others that He was resurrected in the flesh (John 20:24-29).
So, there is ample proof in the Bible that the Lord Jesus did indeed come in the flesh, and was not imagined to be in the flesh. This false and satanic notion, of apparent piety and reverence does have any grounds to stand upon. In the next article, we will continue to consider about believing in the gospel.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
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