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गुरुवार, 4 जून 2015

बढ़ते रहें बढ़ाते रहें


   मसीही पुरुषों के एक सम्मेलन में मैं अपने एक पुराने मित्र क्लाईड से, जो अनेक वर्षों से मेरा प्रोत्साहन और मार्गदर्शन करता रहा है, मिला और बातचीत करी। क्लाईड के साथ चीन से आए हुए दो युवक भी थे जो विश्वास में नए थे और क्लाईड की मित्रता तथा आत्मिक बढोतरी में सहायता के लिए बहुत कृतज्ञ थे। क्लाईड जो अब 80 वर्ष का होने वाला है, बहुत उत्साहित तथा प्रफुल्लित था और कह रहा था, "मसीह यीशु को जानने और उससे प्रेम करने को लेकर जितना मैं आज उत्साहित हूँ उतना पहले कभी नहीं था।"

   परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रेरित पौलुस द्वारा फिलिप्पियों की मसीही विश्वासी मण्डली को लिखी पत्री में हम पौलुस के मन और उद्देश्य को देखते हैं जो समय के साथ कभी धूमिल नहीं हुआ: "मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं" (फिलिप्पियों 3:10)। प्रभु यीशु के साथ पौलुस के संबंध से उसके अन्दर यह कभी कम ना होने वाली लालसा जागी कि उसके द्वारा अन्य लोग भी मसीही विश्वास को जान सकें। पौलुस प्रभु यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार को प्रचार करने से तथा इस बात से कि उसे देखकर अन्य लोग मसीही विश्वास में साहसी बनते हैं, आनन्दित होता था (फिलिप्पियों 1:12-14)।

   यदि हमारे मसीही विश्वास के जीवन का उद्देश्य केवल प्रभु यीशु के लिए सेवकाई करना मात्र ही है, तो कभी ना कभी हम थक कर बैठ जाएंगे। परन्तु यदि पौलुस और क्लाईड और उनके जैसे अनेक अन्य लोगों के समान हमारा उद्देश्य मसीह यीशु को और गहराई से जानना, उससे और अधिक प्रेम करना है, तो हम पाएंगे कि प्रभु हमें सामर्थ देगा कि हम दूसरों को उसके बारे में बता सकें, उन्हें प्रभु के निकट ला सकें।

   प्रभु परमेश्वर से मिलने वाली सामर्थ में आनन्दित रहकर आत्मिक जीवन में स्वयं भी आगे बढ़ते रहें तथा दूसरों को भी बढ़ाते रहें। - डेविड मैक्कैसलैंड


मसीह यीशु से सीखें, फिर दूसरों को उसके बारे में सिखाएं।

... उदास मत रहो, क्योंकि यहोवा का आनन्द तुम्हारा दृढ़ गढ़ है। - नहेम्याह 8:10

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 1:12-18; 3:8-11
Philippians 1:12 हे भाइयों, मैं चाहता हूं, कि तुम यह जान लो, कि मुझ पर जो बीता है, उस से सुसमाचार ही की बढ़ती हुई है। 
Philippians 1:13 यहां तक कि कैसरी राज्य की सारी पलटन और शेष सब लोगों में यह प्रगट हो गया है कि मैं मसीह के लिये कैद हूं। 
Philippians 1:14 और प्रभु में जो भाई हैं, उन में से बहुधा मेरे कैद होने के कारण, हियाव बान्‍ध कर, परमेश्वर का वचन निधड़क सुनाने का और भी हियाव करते हैं। 
Philippians 1:15 कितने तो डाह और झगड़े के कारण मसीह का प्रचार करते हैं और कितने भली मनसा से। 
Philippians 1:16 कई एक तो यह जान कर कि मैं सुसमाचार के लिये उत्तर देने को ठहराया गया हूं प्रेम से प्रचार करते हैं। 
Philippians 1:17 और कई एक तो सीधाई से नहीं पर विरोध से मसीह की कथा सुनाते हैं, यह समझ कर कि मेरी कैद में मेरे लिये क्‍लेश उत्पन्न करें। 
Philippians 1:18 सो क्या हुआ? केवल यह, कि हर प्रकार से चाहे बहाने से, चाहे सच्चाई से, मसीह की कथा सुनाई जाती है, और मैं इस से आनन्‍दित हूं, और आनन्‍दित रहूंगा भी। 
Philippians 3:8 वरन मैं अपने प्रभु मसीह यीशु की पहिचान की उत्तमता के कारण सब बातों को हानि समझता हूं: जिस के कारण मैं ने सब वस्‍तुओं की हानि उठाई, और उन्हें कूड़ा समझता हूं, जिस से मैं मसीह को प्राप्त करूं। 
Philippians 3:9 और उस में पाया जाऊं; न कि अपनी उस धामिर्कता के साथ, जो व्यवस्था से है, वरन उस धामिर्कता के साथ जो मसीह पर विश्वास करने के कारण है, और परमेश्वर की ओर से विश्वास करने पर मिलती है। 
Philippians 3:10 और मैं उसको और उसके मृत्युंजय की सामर्थ को, और उसके साथ दुखों में सहभागी हाने के मर्म को जानूँ, और उस की मृत्यु की समानता को प्राप्त करूं। 
Philippians 3:11 ताकि मैं किसी भी रीति से मरे हुओं में से जी उठने के पद तक पहुंचूं।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 21-22
  • यूहन्ना 14


बुधवार, 3 जून 2015

बुद्धिमान वचन


   मैं अब उम्र के साठवें दशक में चल रहा हूँ; कभी कभी मैं उन बुद्धिमान अगुवों के विषय में विचार करता हूँ जिन्होंने मेरे जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाला। जब मैं बाइबल स्कूल में था तो परमेश्वर के वचन बाइबल के पुराने नियम खण्ड के मेरे अध्यापक को परमेश्वर ने मेरे लिए अपने वचन को सजीव करने के लिए प्रयोग किया। युनानी भाषा के मेरे अध्यापक ने उच्च मानकों के अविरल उपयोग पर ज़ोर देते हुए मुझे नए नियम का अध्ययन करना सिखाया। जब मैंने अपनी प्रथम पास्टर सेवा आरंभ करी तो मेरे वरिष्ठ पास्टर ने मेरा मार्गदर्शन किया कि कैसे मैं अच्छे संबंध बनाकर लोगों को आत्मिक जीवन में बढ़ना सिखाऊँ।

   राजा सुलेमान ने बड़ी बुद्धिमानी से उन कुछ तरीकों के बारे में बताया जिनके द्वारा आत्मिक अगुवे दूसरों के बढ़ने में सहायता कर सकते हैं: "बुद्धिमानों के वचन पैनों के समान होते हैं, और सभाओं के प्रधानों के वचन गाड़ी हुई कीलों के समान हैं, क्योंकि एक ही चरवाहे की ओर से मिलते हैं" (सभोपदेशक 12:11)। कुछ शिक्षक हमें उकसाते हैं तो अन्य हमारे जीवनों में मज़बूत आत्मिक ढाँचे खड़े करते हैं तो कुछ अन्य हमारे प्रति संवेदनशील रहते हैं, जब आवश्यकता होती है, हमारी सुनते हैं और हमें समझाते सिखाते हैं।

   हमारे अच्छे चरवाहे, हमारे प्रभु यीशु ने हमें विभिन्न गुणों वाले अगुवे और मार्गदर्शक दिए हैं, हमें उकसाने, सुधारने और बेहतर बनाने के लिए। हम चाहे अगुवे हों या फिर हमने अपना आत्मिक जीवन आरंभ ही किया हो, प्रभु चाहता है कि हम सब के साथ एक नम्र हृदय और प्रेम भरा व्यवहार बनाए रखें।

   हम मसीही विश्वासियों के लिए यह कैसा अद्भुत आदर है कि हम अपने प्रभु के मार्गदर्शन में उसके लिए कार्य कर सकते हैं और दूसरों को भी उसके साथ जुड़ने और चलने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। - डेनिस फिशर


हमारे वचन हमारे प्रभु परमेश्वर के मन और बुद्धिमता को प्रतिबिंबित करने वाले होने चाहिएं।

और उसने कितनों को भविष्यद्वक्ता नियुक्त कर के, और कितनों को सुसमाचार सुनाने वाले नियुक्त कर के, और कितनों को रखवाले और उपदेशक नियुक्त कर के दे दिया। जिस से पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं, और सेवा का काम किया जाए, और मसीह की देह उन्नति पाए। - इफिसियों 4:11-12

बाइबल पाठ: सभोपदेशक 12:9-14
Ecclesiastes 12:9 उपदेशक जो बुद्धिमान था, वह प्रजा को ज्ञान भी सिखाता रहा, और ध्यान लगाकर और पूछपाछ कर के बहुत से नीतिवचन क्रम से रखता था। 
Ecclesiastes 12:10 उपदेशक ने मनभावने शब्द खोजे और सीधाई से ये सच्ची बातें लिख दीं।
Ecclesiastes 12:11 बुद्धिमानों के वचन पैनों के समान होते हैं, और सभाओं के प्रधानों के वचन गाड़ी हुई कीलों के समान हैं, क्योंकि एक ही चरवाहे की ओर से मिलते हैं। 
Ecclesiastes 12:12 हे मेरे पुत्र, इन्ही में चौकसी सीख। बहुत पुस्तकों की रचना का अन्त नहीं होता, और बहुत पढ़ना देह को थका देता है।
Ecclesiastes 12:13 सब कुछ सुना गया; अन्त की बात यह है कि परमेश्वर का भय मान और उसकी आज्ञाओं का पालन कर; क्योंकि मनुष्य का सम्पूर्ण कर्त्तव्य यही है। 
Ecclesiastes 12:14 क्योंकि परमेश्वर सब कामों और सब गुप्त बातों का, चाहे वे भली हों या बुरी, न्याय करेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 19-20
  • यूहन्ना 13:21-38


मंगलवार, 2 जून 2015

दिखाएँ और बताएँ


   यदि आप लेखक बनने का प्रशिक्षण लें या लेखकों के किसी सम्मेलन में भाग लें तो बहुत संभव है कि आप वाक्याँश "बताओ नहीं दिखाओ" को अवश्य ही सुनने पाएँगे। कहने का तात्पर्य है कि लेखकों को सिखाया जाता है कि जो हो रहा है उसे वे अपने पाठकों को अपने शब्दों से "दिखाएँ" ना कि केवल उसके बारे में बताएँ; उन्हें पाठकों को केवल जो किया वह कहना मात्र नहीं है, वरन उनके सामने वर्णन रखना है कि कैसे किया गया जिससे वे अपने मनों में उस विवरण द्वारा उस कार्य-गतिविधि का एक चित्र बना सकें।

   किंतु सामन्यतः इस प्रकार से "दिखाने" की बजाए केवल "बताने" का एक कारण है कि बताना दिखाने से अधिक सहज और तीव्र होता है। यह दिखाने के लिए कि कोई कार्य कैसे किया गया, समय और प्रयास लगता है। शिक्षा में विद्यार्थियों को यह बताना सहज होता कि उन्होंने क्या क्या गलतियाँ करी हैं, बजाए इसके कि उन्हें दिखाया जाए कि उन गलतियों को करने से कैसे बचा जा सकता है। किंतु उत्त्म दीर्घकालीन प्रभाव बताने से नहीं, दिखाने से ही आते हैं।

   हज़ारों वर्षों से यहूदियों के पास केवल व्यवस्था ही थी जो उन्हें बताती थी उन्हें क्या करना है और क्या नहीं। फिर उनके मध्य में प्रभु यीशु का आगमन हुआ, जिसने अपने जीवन के उदाहरण द्वारा उन यहूदियों तथा संसार को दिखाया कि परमेश्वर को स्वीकार्य तथा भावता हुआ जीवन कैसे जीना है; वह जीवन जिसके बारे में परमेश्वर उन्हें अपने द्वारा दी गई व्यवस्था में होकर सिखा रहा था।

   प्रभु यीशु ने केवल कहा ही नहीं कि "नम्र बनो" उसने अपने आपको दीन और नम्र किया (फिलिप्पियों 2:8); प्रभु ने केवल यही नहीं कहा कि "क्षमा करो"; उसने ना केवल हमें वरन अपने बैरियों और विरोधियों को भी क्षमा करके दिखाया (कुलुस्सियों 3:13; लूका 23:34); उसने केवल कहा ही नहीं कि "परमेश्वर और पड़ौसी से प्रेम रखो", उसका सारा जीवन प्रेम परमेश्वर तथा मनुष्यों के प्रति प्रेम का सजीव उदाहरण था (यूहन्ना 3:16; यूहन्ना 15:12)।

   मसीह यीशु के जीवन से मिलने वाले सिद्ध उदहरणों से हमें सीखने को मिलता है कि परमेश्वर का हम मनुष्यों के प्रति प्रेम कितना महान है और हम मसीही विश्वासियों को दूसरों के प्रति उस प्रेम को कैसे प्रदर्शित करना है। - जूली ऐकैअरमैन लिंक


प्रेम परमेश्वर की इच्छा का कार्यकारी रूप है।

यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो। - यूहन्ना 13:35

बाइबल पाठ: यूहन्ना 13:5-17
John 13:5 तब बरतन में पानी भरकर चेलों के पांव धोने और जिस अंगोछे से उस की कमर बन्‍धी थी उसी से पोंछने लगा। 
John 13:6 जब वह शमौन पतरस के पास आया: तब उसने उस से कहा, हे प्रभु, 
John 13:7 क्या तू मेरे पांव धोता है? यीशु ने उसको उत्तर दिया, कि जो मैं करता हूं, तू अब नहीं जानता, परन्तु इस के बाद समझेगा। 
John 13:8 पतरस ने उस से कहा, तू मेरे पांव कभी न धोने पाएगा: यह सुनकर यीशु ने उस से कहा, यदि मैं तुझे न धोऊं, तो मेरे साथ तेरा कुछ भी साझा नहीं। 
John 13:9 शमौन पतरस ने उस से कहा, हे प्रभु, तो मेरे पांव ही नहीं, वरन हाथ और सिर भी धो दे। 
John 13:10 यीशु ने उस से कहा, जो नहा चुका है, उसे पांव के सिवा और कुछ धोने का प्रयोजन नहीं; परन्तु वह बिलकुल शुद्ध है: और तुम शुद्ध हो; परन्तु सब के सब नहीं। 
John 13:11 वह तो अपने पकड़वाने वाले को जानता था इसी लिये उसने कहा, तुम सब के सब शुद्ध नहीं।
John 13:12 जब वह उन के पांव धो चुका और अपने कपड़े पहिनकर फिर बैठ गया तो उन से कहने लगा, क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साथ क्या किया? 
John 13:13 तुम मुझे गुरू, और प्रभु, कहते हो, और भला कहते हो, क्योंकि मैं वही हूं। 
John 13:14 यदि मैं ने प्रभु और गुरू हो कर तुम्हारे पांव धोए; तो तुम्हें भी एक दुसरे के पांव धोना चाहिए। 
John 13:15 क्योंकि मैं ने तुम्हें नमूना दिखा दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है, तुम भी वैसा ही किया करो। 
John 13:16 मैं तुम से सच सच कहता हूं, दास अपने स्‍वामी से बड़ा नहीं; और न भेजा हुआ अपने भेजने वाले से। 
John 13:17 तुम तो ये बातें जानते हो, और यदि उन पर चलो, तो धन्य हो।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 17-18
  • यूहन्ना 13:1-20


सोमवार, 1 जून 2015

ऊबाऊ


   हमारे बच्चे जब युवावस्था में थे तो चर्च के उनकी युवा-गुट की सभाओं के पश्चात एक ही बात बार-बार सामने आती: मैं उन से पूछता, "आज शाम तुम्हारे गुट की सभा कैसी रही?" और वे उत्तर देते, "ऊबा देने वाली!" जब कई सप्ताहों तक यही चलता रहा, तो मैं ने ठाना कि मैं स्वयं पता लगाऊँगा कि वास्तविकता क्या है। एक शाम मैं उनके स्भा-स्थल पर चुपचाप से आ गया, और उनकी गतिविधियों को छुप कर देखने लगा। मैंने देखा कि बच्चे एक दुसरे के साथ वार्तालाप कर रहे थे, हँस रहे थे, सभी गतिविधियों में भाग ले रहे थे; कुल मिलाकर उनका समय अच्छे से व्यतीत हो रहा था। उस शाम उनके घर आने पर मैंने फिर वही प्रश्न किया, और हमेशा की तरह उन्होंने फिर वही उत्तर दिया, कि वह ऊबा देने वाला था। तब मैंने उनसे कहा, "मैं वहाँ आया था और मैंने सब कुछ देखा; मैंने देखा कि तुम्हारा समय अच्छे से व्यतीत हो रहा था"। उन्होंने उत्तर दिया, "शायद आज की सभा कुछ अलग थी, वह और सभाओं जितनी ऊबाऊ नहीं थी।"

   मुझे समझ आया कि उनके यह स्वीकार ना करने के पीछे कि उनका समय अच्छे से व्यतीत होता था, कारण था चर्च के बाहर के अन्य साथियों की समानता में दिखने और यह सोच कि वे औरों के समान नहीं है का दबाव। इस बात ने मुझे भी अपने बारे में सोचने पर मजबूर किया कि उन बच्चों के समान ही, अपने मसीही विश्वास और आत्मिक बातों के संबंध में क्या मैं भी दूसरों के सामने उत्साहित दिखने से कतराता हूँ?

   इस पूरी सृष्टि में मसीह यीशु के व्यक्तित्व तथा सारे संसार के उद्धार के लिए किए गए उनके कार्य से बढ़कर उत्साहित करने वाली और कोई बात हो ही नहीं सकती। प्रभु यीशु ने कहा, "...मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं" (यूहन्ना 10:10); अब यह तो ऊबाऊ का बिलकुल विपरीत है, इसे तो ऊबा देने वाला नहीं माना जा सकता। हम चाहे किसी भी उम्र के क्यों ना हों, हमें हमारे उद्धारकर्ता प्रभु ने एक ऐसी भेंट प्रदान की है जो सदा आनन्द मनाते रहने के योग्य है।

   प्रभु यीशु में लाए गए विश्वास द्वारा हमें मिलने वाली पापों की क्षमा, उद्धार, परमेश्वर की सन्तान बन जाने का गौरव, परमेश्वर की सुरक्षा, आशीष तथा सामर्थ की अविरल उपलब्धता और अनन्त काल की शान्ति तथा आनन्द आदि सब बातें हमेशा हमें उत्साहित बनाए रखने के लिए काफी हैं। - बिल क्राउडर


यदि आप मसीह यीशु के साथ जुड़ गए हैं तो आपके पास आनन्द मनाने के कारण सदा बने रहेंगे।

जैसे कि मनुष्य का पुत्र, वह इसलिये नहीं आया कि उस की सेवा टहल करी जाए, परन्तु इसलिये आया कि आप सेवा टहल करे और बहुतों की छुडौती के लिये अपने प्राण दे। - मत्ती 20:28 

बाइबल पाठ: यूहन्ना 10:7-14
John 10:7 तब यीशु ने उन से फिर कहा, मैं तुम से सच सच कहता हूं, कि भेड़ों का द्वार मैं हूं। 
John 10:8 जितने मुझ से पहिले आए; वे सब चोर और डाकू हैं परन्तु भेड़ों ने उन की न सुनी। 
John 10:9 द्वार मैं हूं: यदि कोई मेरे द्वारा भीतर प्रवेश करे तो उद्धार पाएगा और भीतर बाहर आया जाया करेगा और चारा पाएगा। 
John 10:10 चोर किसी और काम के लिये नहीं परन्तु केवल चोरी करने और घात करने और नष्‍ट करने को आता है। मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं। 
John 10:11 अच्छा चरवाहा मैं हूं; अच्छा चरवाहा भेड़ों के लिये अपना प्राण देता है। 
John 10:12 मजदूर जो न चरवाहा है, और न भेड़ों का मालिक है, भेड़िए को आते हुए देख, भेड़ों को छोड़कर भाग जाता है, और भेड़िय़ा उन्हें पकड़ता और तित्तर बित्तर कर देता है। 
John 10:13 वह इसलिये भाग जाता है कि वह मजदूर है, और उसको भेड़ों की चिन्‍ता नहीं। 
John 10:14 अच्छा चरवाहा मैं हूं; जिस तरह पिता मुझे जानता है, और मैं पिता को जानता हूं।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 15-16; 
  • यूहन्ना 12:27-50


रविवार, 31 मई 2015

अस्थिर अनुयायी


   लोकमत देखते ही देखते बदल जाता है, समर्थन करने वाले लोग भी अचानक ही विरोधी हो जाते हैं। जब खेल में हमारी मनपसन्द टीम जीत रही होती है, तो हम उसकी प्रशंसा करते हैं, उसके गुणों का बखान करते हैं; परन्तु जब वह एक-दो खेल हार जाए तो उससे विमुख होकर उसकी आलोचना करने में हमें देर नहीं लगती। जब कोई नया और उत्साहवर्धक कार्य आरंभ होता है तो उसके साथ जुड़ने में हमें संकोच नहीं होता, लेकिन कुछ समय में जब उसका वह नयापन जाता रहता है और उसके कार्य नित्यप्रायः लगने लगते हैं तो उसके प्रति हमारे उत्साह का स्तर भी गिरने लगता है।

   प्रभु यीशु ने भी लोकमत की इस अस्थिरता को अनुभव किया। जब वे फसह का पर्व मनाने यरुशालेम में आए तो लोगों ने उसका स्वागत बड़े उत्साह के साथ किया, उसे राजा माना (यूहन्ना 12:13); परन्तु स्पताह का अन्त होते होते वही भीड़ उसे क्रूस पर चढ़ाए जाने की माँग कर रही थी (यूहन्ना 19:15)। यह केवल उस भीड़ का ही बर्ताव नहीं था। जब प्रभु यीशु को पकड़वाया गया तथा क्रूस पर चढ़ाने के लिए ले जाया गया, तो उसके प्रति प्रेम और वफादारी का, तथा उसके लिए अपनी जान भी देने का दावा करने वाले उसके अनुयायी उसे अकेला छोड़ कर भाग गए। यह केवल उन अनुयायियों का ही व्यवहार नहीं था; आज मेरे जीवन में भी यही बात पाई जाती है। जब प्रभु यीशु मेरे भले के लिए कुछ असंभव कर रहे होते हैं तो मुझे उनके साथ खड़ा रहना अच्छा लगता है; परन्तु जब वे मुझे कुछ कठिन या कष्टदायक करने को कहते हैं मैं बचकर निकल लेने के प्रयास करने लगती हूँ। भीड़ की गुमनामी का भाग बनकर प्रभु यीशु का अनुयायी होने का दावा करना सरल है; जब वे चतुर लोगों की चतुराई को व्यर्थ और सामर्थी लोगों की सामर्थ को विफल करते हैं तो उन पर विश्वास रखने का दावा करना सहज है; लेकिन जब वे उस विश्वास के लिए दुख उठाने, बलिदान देने और मृत्यु का सामना करने की बात करते हैं तो उसी विश्वास को असमंजस तथा आनाकानी में बदलेते देर नहीं लगती।

   मुझे यह सोचना अच्छा लगता है कि यदी मैं वहाँ होती तो प्रभु के चेलों की तरह उन्हें छोड़कर नहीं भागती, वरन उनके साथ क्रूस तक जाती। लेकिन स्वयं मुझे ही अपने बारे में इस में कुछ शंका भी है; आखिरकर जब मैं उनके लिए अपना मूँह वहाँ भी नहीं खोलती जहाँ एक सुरक्षित माहौल है, तो मैं यह कैसे कह सकती हूँ कि उनके विरोधियों की भीड़ के समक्ष मैं उनके पक्ष में आने भी पाऊँगी, ऐसे विरोध भरे माहौल में खड़े होकर उनकी प्रशंसा करना या उनके लिए कुछ कहना तो बहुत दूर की बात है।

   हम मसीही विश्वासियों को और मुझे प्रभु परमेश्वर के प्रति और कितना अधिक धन्यवादी तथा कृतज्ञ रहना चाहिए कि हमारी दशा और व्यवहार को भली भाँति जानने के बावजूद, उसने मुझ जैसे, हम जैसे अस्थिर अनुयायियों के लिए भी अपने प्राण बलिदान किए, वह हमें आज भी अपना मानता है, हमारे साथ बना रहता है, हमारी सहायता करता रहता है जिससे कि हम उसकी संगति में रहकर, उससे सामर्थ पा सकें और उसके वफादार तथा उसे समर्पित अनुयायी बन सकें। - जूली ऐकैरमैन लिंक


मसीह यीशु अपने लिए हमारी योग्यता नहीं, वरन उसके लिए हमारी उपलब्धता और हमारा समर्पण चाहता है।

परन्तु यीशु ने अपने आप को उन के भरोसे पर नहीं छोड़ा, क्योंकि वह सब को जानता था। और उसे प्रयोजन न था, कि मनुष्य उसके विषय में कोई गवाही दे, क्योंकि वह आप ही जानता था, कि मनुष्य के मन में क्या है। - यूहन्ना 2:24-25

बाइबल पाठ: यूहन्ना 12:12-19; 19:14-16
John 12:12 दूसरे दिन बहुत से लोगों ने जो पर्व में आए थे, यह सुनकर, कि यीशु यरूशलेम में आता है। 
John 12:13 खजूर की, डालियां लीं, और उस से भेंट करने को निकले, और पुकारने लगे, कि होशाना, धन्य इस्त्राएल का राजा, जो प्रभु के नाम से आता है। 
John 12:14 जब यीशु को एक गदहे का बच्‍चा मिला, तो उस पर बैठा। 
John 12:15 जैसा लिखा है, कि हे सिय्योन की बेटी, मत डर, देख, तेरा राजा गदहे के बच्‍चा पर चढ़ा हुआ चला आता है। 
John 12:16 उसके चेले, ये बातें पहिले न समझे थे; परन्तु जब यीशु की महिमा प्रगट हुई, तो उन को स्मरण आया, कि ये बातें उसके विषय में लिखी हुई थीं; और लोगों ने उस से इस प्रकार का व्यवहार किया था। 
John 12:17 तब भीड़ के लोगों ने जो उस समय उसके साथ थे यह गवाही दी कि उसने लाजर को कब्र में से बुलाकर, मरे हुओं में से जिलाया था। 
John 12:18 इसी कारण लोग उस से भेंट करने को आए थे क्योंकि उन्होंने सुना था, कि उसने यह आश्चर्यकर्म दिखाया है। 
John 12:19 तब फरीसियों ने आपस में कहा, सोचो तो सही कि तुम से कुछ नहीं बन पड़ता: देखो, संसार उसके पीछे हो चला है।

John 19:14 यह फसह की तैयारी का दिन था और छठे घंटे के लगभग था: तब उसने यहूदियों से कहा, देखो, यही है, तुम्हारा राजा! 
John 19:15 परन्तु वे चिल्लाए कि ले जा! ले जा! उसे क्रूस पर चढ़ा: पीलातुस ने उन से कहा, क्या मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढ़ाऊं? महायाजकों ने उत्तर दिया, कि कैसर को छोड़ हमारा और कोई राजा नहीं। 
John 19:16 तब उसने उसे उन के हाथ सौंप दिया ताकि वह क्रूस पर चढ़ाया जाए।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 13-14
  • यूहन्ना 12:1-26


शनिवार, 30 मई 2015

नम्र मन


   साहित्य में अकसर देखा जाता है कि चरित्र का कोई छोटा सा ऐब, कहानी के नायक के पतन का कारण हो जाता है। परमेश्वर के वचन बाइबल में भी हम ऐसे उदाहरण पाते हैं, जिनमें से एक है राजा उज़्ज़ियाह का। उज़्ज़ियाह 16 वर्ष की आयु में यहूदा का राजा बना; राजा बनने के कई वर्ष पश्चात तक वह परमेश्वर का खोजी रहा और जब तक वह ऐसा करता रहा, परमेश्वर उसे सफलता तथा उन्नति देता रहा, उसे सामर्थी करता रहा (2 इतिहास 26:4-5)। इस सफलता, उन्नति तथा सामर्थ से उसकी ख्याति चारों ओर फैल गई; किंतु इससे उसके अन्दर घमंड भी आ गया, जो फिर उसके विनाश का कारण बन गया (2 इतिहास 26:15-16)।

   अपने घमंड में उज़्ज़ियाह को लगा कि वह परमेश्वर के नियमों की अवहेलना कर सकता है, अपनी मन-मर्ज़ी कर सकता है। वह मन्दिर में गया और मन्दिर के पुजारी के कार्य को करने लगा - परमेश्वर की वेदी पर धूप जलाने लगा। पुजारियों ने उसे चिताया कि यह करना उसके लिए सही नहीं है और रोकना चाहा, परन्तु वह उल्टे पुजारियों पर क्रोधित होने लगा; तब परमेश्वर ने उसे कोढ़ी कर दिया और वह कोढ़ की दशा में मन्दिर तथा राज-पद से निकाल दिया गया (2 इतिहास 26:16-20)।

   साहित्य तथा जीवन, दोनों में ही हम पाते हैं कि सुनामी और प्रतिष्ठित व्यक्ति अपने ही घमंड या किसी अन्य ऐब के कारण अपमान तथा कष्ठ में गिर जाते हैं; "और उज्जिय्याह राजा मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ के कारण अलग एक घर में रहता था, वह तो यहोवा के भवन में जाने न पाता था। और उसका पुत्र योताम राजघराने के काम पर नियुक्त किया गया और वह लोगों का न्याय भी करता था" (2 इतिहास 26:21)।

   प्रशंसा के अमृत को अहंकार का विष बनने से रोकने का एक ही मार्ग है, एक नम्र तथा आज्ञाकारी मन के साथ प्रभु परमेश्वर की आज्ञाकारिता में चलते रहना; उसे ही अपने मन तथा जीवन में प्राथमिकता और महिमा का स्थान देना। - डेविड मैक्कैसलैंड


जैसे चान्दी के लिये कुठाई और सोने के लिये भट्ठी हैं, वैसे ही मनुष्य के लिये उसकी प्रशंसा है। - नीतिवचन 27:21

विनाश से पहिले गर्व, और ठोकर खाने से पहिले घमण्ड होता है। - नीतिवचन 16:18

बाइबल पाठ: 2 इतिहास 26:3-21
2 Chronicles 26:3 जब उज्जिय्याह राज्य करने लगा, तब वह सोलह वर्ष का था। और यरूशलेम में बावन वर्ष तक राज्य करता रहा, और उसकी माता का नाम यकील्याह था, जो यरूशलेम की थी। 
2 Chronicles 26:4 जैसे उसका पिता अमस्याह, किया करता था वैसा ही उसने भी किया जो यहोवा की दृष्टि में ठीक था। 
2 Chronicles 26:5 और जकर्याह के दिनों में जो परमेश्वर के दर्शन के विषय समझ रखता था, वह परमेश्वर की खोज में लगा रहता था; और जब तक वह यहोवा की खोज में लगा रहा, तब तक परमेश्वर उसको भाग्यवान किए रहा। 
2 Chronicles 26:6 तब उसने जा कर पलिश्तियों से युद्ध किया, और गत, यब्ने और अशदोद की शहरपनाहें गिरा दीं, और अशदोद के आसपास और पलिश्तियों के बीच में नगर बसाए। 
2 Chronicles 26:7 और परमेश्वर ने पलिश्तियों और गूर्बालवासी, अरबियों और मूनियों के विरुद्ध उसकी सहायता की। 
2 Chronicles 26:8 और अम्मोनी उज्जिय्याह को भेंट देने लगे, वरन उसकी कीर्ति मिस्र के सिवाने तक भी फैल गई्र, क्योंकि वह अत्यन्त सामथीं हो गया था। 
2 Chronicles 26:9 फिर उज्जिय्याह ने यरूशलेम में कोने के फाटक और तराई के फाटक और शहरपनाह के मोड़ पर गुम्मट बनवा कर दृढ़ किए। 
2 Chronicles 26:10 और उसके बहुत जानवर थे इसलिये उसने जंगल में और नीचे के देश और चौरस देश में गुम्मट बनवाए और बहुत से हौद खुदवाए, और पहाड़ों पर और कर्म्मेल में उसके किसान और दाख की बारियों के माली थे, क्योंकि वह खेती किसानी करने वाला था। 
2 Chronicles 26:11 फिर उज्जिय्याह के योद्धाओं की एक सेना थी जिनकी गिनती यीएल मुंशी और मासेयाह सरदार, हनन्याह नामक राजा के एक हाकिम की आज्ञा से करते थे, और उसके अनुसार वह दल बान्ध कर लड़ने को जाती थी। 
2 Chronicles 26:12 पितरों के घरानों के मुख्य मुख्य पुरुष जो शूरवीर थे, उनकी पूरी गिनती दो हजार छ: सौ थी। 
2 Chronicles 26:13 और उनके अधिकार में तीन लाख साढ़े सात हजार की एक बड़ी बड़ी सेना थी, जो शत्रुओं के विरुद्ध राजा की सहायता करने को बड़े बल से युद्ध करने वाले थे। 
2 Chronicles 26:14 इनके लिये अर्थात पूरी सेना के लिये उज्जिय्याह ने ढालें, भाले, टोप, झिलम, धनुष और गोफन के पत्थर तैयार किए। 
2 Chronicles 26:15 फिर उसने यरूशलेम में गुम्मटों और कंगूरों पर रखने को चतुर पुरुषों के निकाले हुए यन्त्र भी बनवाए जिनके द्वारा तीर और बड़े बड़े पत्थर फेंके जाते थे। और उसकी कीर्ति दूर दूर तक फैल गई, क्योंकि उसे अदभुत सहायता यहां तक मिली कि वह सामथीं हो गया। 
2 Chronicles 26:16 परन्तु जब वह सामथीं हो गया, तब उसका मन फूल उठा; और उसने बिगड़ कर अपने परमेश्वर यहोवा का विश्वासघात किया, अर्थात वह धूप की वेदी पर धूप जलाने को यहोवा के मन्दिर में घुस गया। 
2 Chronicles 26:17 और अजर्याह याजक उसके बाद भीतर गया, और उसके संग यहोवा के अस्सी याजक भी जो वीर थे गए। 
2 Chronicles 26:18 और उन्होंने उज्जिय्याह राजा का साम्हना कर के उस से कहा, हे उज्जिय्याह यहोवा के लिये धूप जलाना तेरा काम नहीं, हारून की सन्तान अर्थात उन याजकों ही का काम है, जो धूप जलाने को पवित्र किए गए हैं। तू पवित्र स्थान से निकल जा; तू ने विश्वासघात किया है, यहोवा परमेश्वर की ओर से यह तेरी महिमा का कारण न होगा। 
2 Chronicles 26:19 तब उज्जिय्याह धूप जलाने को धूपदान हाथ में लिये हुए झुंझला उठा। और वह याजकों पर झुंझला रहा था, कि याजकों के देखते देखते यहोवा के भवन में धूप की वेदी के पास ही उसके माथे पर कोढ़ प्रगट हुआ। 
2 Chronicles 26:20 और अजर्याह महायाजक और सब याजकों ने उस पर दृष्टि की, और क्या देखा कि उसके माथे पर कोढ़ निकला है! तब उन्होंने उसको वहां से झटपट निकाल दिया, वरन यह जान कर कि यहोवा ने मुझे कोढ़ी कर दिया है, उसने आप बाहर जाने को उतावली की। 
2 Chronicles 26:21 और उज्जिय्याह राजा मरने के दिन तक कोढ़ी रहा, और कोढ़ के कारण अलग एक घर में रहता था, वह तो यहोवा के भवन में जाने न पाता था। और उसका पुत्र योताम राजघराने के काम पर नियुक्त किया गया और वह लोगों का न्याय भी करता था।

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 10-12
  • यूहन्ना 11:30-57


शुक्रवार, 29 मई 2015

शान्ति


   मेरी सहेली इलूइस जीवन की सामान्य बातों को चतुराई से अलग ही परिपेक्ष्य में ढाल देती है। एक दिन मैं ने उस से पूछा, "कहो, कैसी हो?" मुझे आशा थी कि वह इस प्रश्न का सामान्यतः दिया जाने वाला जाना-पहचाना उत्तर देगी, "ठीक हूँ"। किंतु उसने उत्तर दिया, "मुझे जाकर उसे जगाना है!" मैं यह सुनकर चकरा गई और उस से उसकी इस बाता का अर्थ पूछा। उसने बच्चों के समान चकित हुए कहा, "तुम अपनी बाइबल भी नहीं जानतीं?" फिर वह बोली, "जब प्रभु के चेलों के सामने संकट आया, तो वे प्रभु यीशु को जगाने गए थे ना; मुझे भी प्रभु को जगाने जाना है!"

   जब हम किसी परेशान कर देने वाली परिस्थिति में आ जाते हैं और उस से निकलने का कोई मार्ग सूझ नहीं पड़ता, तब हम क्या करते हैं? हो सकता है कि प्रभु के चेलों के समान हम भी प्रभु यीशु के पास जाते हैं (मरकुस 4:35-41)। लेकिन कभी कभी हम अपने ही प्रयासों से अपने आप को परिस्थिति से बाहर निकालने के प्रयास करते हुए, हमारी परिस्थिति के लिए ज़िम्मेदार व्यक्ति से बदला लेना चाहते हैं; या उसे बदनाम करने लगते हैं; या निराश और हताश होकर किसी कोने में दुबक कर बैठ जाते हैं।

   हमें प्रभु यीशु के चेलों से शिक्षा लेनी चाहिए, जो विकट परिस्थिति में अपनी एकमात्र आशा प्रभु यीशु के पास आए। हो सकता है कि प्रभु हमें तुरंत ही या हमारे सोचे तरीके से उस परिस्थिति से बाहर ना निकाले, किंतु यह ध्यान रखना कि हमारे संकट में वह हमारे साथ खड़ा है, सांत्वना देता है। हमें उसका धन्यवादी होना चाहिए कि वह सदा हमारे साथ बना रहता है और हमारे जीवन के तूफानों को भी कहता है, "शान्त रह, थम जा" (मरकुस 4:39)।

   इसलिए अपने जीवन के तूफानों में उसकी ओर देखें, उसे पुकारें, और वह अपनी शान्ती आपके जीवन में भर देगा। - जो स्टोवैल


जब जीवन में परेशानियों के तूफान भयभीत करें तो समाधान के लिए मसीह यीशु को अपना प्रथम विकल्प बनाएं।

प्रभु यीशु ने कहा: मैं तुम्हें शान्‍ति दिए जाता हूं, अपनी शान्‍ति तुम्हें देता हूं; जैसे संसार देता है, मैं तुम्हें नहीं देता: तुम्हारा मन न घबराए और न डरे। -  यूहन्ना 14:27

बाइबल पाठ: मरकुस 4:35-41
Mark 4:35 उसी दिन जब सांझ हुई, तो उसने उन से कहा; आओ, हम पार चलें,। 
Mark 4:36 और वे भीड़ को छोड़कर जैसा वह था, वैसा ही उसे नाव पर साथ ले चले; और उसके साथ, और भी नावें थीं। 
Mark 4:37 तब बड़ी आन्‍धी आई, और लहरें नाव पर यहां तक लगीं, कि वह अब पानी से भरी जाती थी। 
Mark 4:38 और वह आप पिछले भाग में गद्दी पर सो रहा था; तब उन्होंने उसे जगाकर उस से कहा; हे गुरू, क्या तुझे चिन्‍ता नहीं, कि हम नाश हुए जाते हैं? 
Mark 4:39 तब उसने उठ कर आन्‍धी को डांटा, और पानी से कहा; “शान्‍त रह, थम जा”: और आन्‍धी थम गई और बड़ा चैन हो गया। 
Mark 4:40 और उन से कहा; तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नहीं? 
Mark 4:41 और वे बहुत ही डर गए और आपस में बोले; यह कौन है, कि आन्‍धी और पानी भी उस की आज्ञा मानते हैं?

एक साल में बाइबल: 
  • 2 इतिहास 7-9
  • यूहन्ना 11:1-29