ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 8 नवंबर 2021

मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की भूमिका - 8


व्यक्तिगत जीवन में भूमिका (4) - यूहन्ना 14:30

 हम पिछले लेखों में देखते आ रहे हैं कि एक मसीही विश्वासी के मसीही सेवकाई के जीवन में उसे व्यक्तिगत रीति से परमेश्वर पवित्र आत्मा किस प्रकार सहायता एवं मार्गदर्शन प्रदान करता है। पिछले लेख में हमने देखा था कि पवित्र आत्मा अपनी ओर से कभी कुछ नया नहीं कहता है; वह मसीहियों को मसीह यीशु के वचन, प्रभु की शिक्षाएं स्मरण करवाता है, और सेवकाई तथा मसीही जीवन से संबंधित सभी बातें सिखाता है। सीखने में व्यक्ति के परिश्रम, प्रयास, और पवित्र आत्मा की आज्ञाकारिता की आवश्यकता होती है। पवित्र आत्मा ने पतरस प्रेरित के द्वारा 2 पतरस 1:3-4 में लिखवाया है कि जीवन और भक्ति से संबंधित सभी बातें, प्रभु यीशु मसीह की पहचान में होकर हमें उपलब्ध करवा दी गई हैं; तथा साथ ही इस संसार की सड़ाहट से बचने और ईश्वरीय स्वभाव के संभागी होने का मार्ग भी दे दिया गया है। अर्थात पहली कलीसिया के उस युग में, जब परमेश्वर पवित्र आत्मा के अगुवाई में प्रेरित और प्रभु के जन उन पत्रियों की रचना कर रहे थे, जिन्हें संकलित करके नए नियम के रूप में बाइबल में रखा जाना था, उसी समय मसीही विश्वासी के लिए मसीही जीवन और सेवकाई से संबंधित जो कुछ भी आवश्यक था, वह उन्हें दे दिया गया था, लिखवा दिया गया था, और अब नए नियम के रूप में हमारे हाथों में विद्यमान है। तात्पर्य यह कि परमेश्वर का वचन आरंभिक कलीसिया के समय से ही पूर्ण हो चुका है, उसमें और कुछ जोड़ने, कुछ नया बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। ऐसा करना परमेश्वर के वचन की अनाज्ञाकारिता है, परमेश्वर द्वारा दण्डनीय है (व्यवस्थाविवरण 12:32; नीतिवचन 30:6; प्रकाशितवाक्य 22:18-19)। परमेश्वर को स्वीकार्य और उसे प्रसन्न करने वाला जीवन जीने के लिए मानवजाति के लिए जो कुछ भी आवश्यक है, वह सब परमेश्वर पवित्र आत्मा ने लिखवा दिया है, उपलब्ध करवा दिया है। 

इसलिए आज के उननएदर्शनों, भविष्यवाणियों, शिक्षाओं, चमत्कारिक बातों, आदि का कोई औचित्य अथवा आवश्यकता नहीं है; और न ही परमेश्वर के वचन बाइबल से उनके लिए कोई समर्थन है, जिन्हेंपवित्र आत्मा की ओर सेप्राप्त करने का दावा आज बहुत से मत और समुदाय, या डिनॉमिनेशन के अनुयायी करते हैं, जिनके बारे में औरों को भी सिखाते हैं, तथा औरों को भी करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यदि पवित्र आत्मा से संबंधित बाइबल की शिक्षाएं, प्रभु यीशु की कही बातें सही हैं, तो इन लोगों के ऐसे सभी दावे बेबुनियाद हैं, व्यर्थ हैं, झूठे हैं, और उनमें पड़ने या उन्हें स्वीकार करने का कोई आधार नहीं है। परमेश्वर पवित्र आत्मा सत्य का आत्मा है, वह न तो कभी झूठ कहेगा या करेगा, न झूठ बुलवाएगा या करवाएगा। वह वही कहेगा और करेगा जो परमेश्वर के वचन में उसने अपने विषय पहले ही लिखवा कर रखा है। इसलिए इन भ्रामक और वचन के विपरीत शिक्षाओं से बच कर रहें, उन्हें स्वीकार न करें। ऐसी सभी लुभावनी, चमत्कारिक, आकर्षक, किन्तु वचन से असंगत बातें परमेश्वर की ओर से कदापि नहीं हैं, और उनके निर्वाह से परमेश्वर को प्रसन्न नहीं किया जा सकता है। ऐसी बातों के संदर्भ में मत्ती 7:21-23 तथा 2 थिस्सलुनीकियों 2:9 को सदा स्मरण रखें और 1 थिस्सलुनीकियों 5:21 के अनुसार सभी शिक्षाओं को बारीकी से जाँच-परख कर ही स्वीकार करें। 

प्रभु ने यूहन्ना 14:30 में शिष्यों को इसी खतरे से सचेत किया, जब उन्होंने शिष्यों से कहा, “मैं अब से तुम्हारे साथ और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता है, और मुझ में उसका कुछ नहीं। प्रभु जानता था कि शिष्यों द्वारा मसीही सेवकाई पर निकलते ही, उनके द्वारा सुसमाचार प्रचार आरंभ होते ही, 'संसार का सरदार' अर्थात शैतान उन पर टूट कर पड़ने वाला था। और यूहन्ना ने अपनी पहली ही पत्री में अपने पाठकों को लिखा, “हे लड़कों, यह अन्तिम समय है, और जैसा तुम ने सुना है, कि मसीह का विरोधी आने वाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह के विरोधी उठे हैं; इस से हम जानते हैं, कि यह अन्तिम समय है” (1 यूहन्ना 2:18)। उस मसीह विरोधी का सामना करने और उसकी युक्तियों पर शिष्यों को जयवंत रखने के लिए (2 कुरिन्थियों 2:11), प्रभु ने शिष्यों के लिए उनमें व्यक्तिगत रीति से परमेश्वर पवित्र आत्मा के सर्वदा निवास करते रहने का यह अद्भुत और अभूतपूर्व इंतजाम कर के दिया था कि वे कभी अकेले, निःसहाय न हों; भरमाए या भटकाए न जाएं, वरन हमेशा ईश्वरीय सामर्थ्य के द्वारा सुरक्षित रह सकें। किन्तु यह तब ही संभव है जब हम पवित्र आत्मा द्वारा कहे के अनुसार करें (गलातीयों 5:16-18, 25)। किन्तु यदि हम परमेश्वर द्वारा हमारे लिए निर्धारित की गई सीमाओं के बाहर जाएंगे, तो उसकी सुरक्षा के बाड़े के बाहर आ जाएंगे, और तब शैतान हमें डस लेगा, हमें मुसीबतों में डाल देगा (अय्यूब 1:10; सभोपदेशक 10:8) 

इसीलिए, यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो परमेश्वर के वचन, को जानने और मानने में अपना समय और ध्यान लगाइए; अपनी मन-मर्जी और पसंद के अनुसार नहीं, अपितु उसकी आज्ञाकारिता में जीवन व्यतीत करें। प्रत्येक मसीही विश्वासी को व्यक्तिगत रीति से पवित्र आत्मा की सामर्थ्य दिए जाने का उद्देश्य यही है कि वह शैतान की युक्तियों को समझे, उनके प्रति सचेत रहे, और परमेश्वर के वचन को सीख समझ कर अपनी मसीही सेवकाई के लिए सक्षम, तत्पर, और तैयार हो जाए, उस सेवकाई में लग जाए।  

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन करके दे? और फिर, आप में होकर अपने आप को औरों पर प्रकट करे, तथा पाप में भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे, जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।प्रभु की शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यिर्मयाह 43-45
  • इब्रानियों 5

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें