परमेश्वर के वचन बाइबल के मत्ती तथा लूका रचित सुसमाचारों में लिखी गई प्रभु यीशु के जन्म की गाथा से हम इतने परिचित हो गए हैं कि उसकी वास्तविकता और महत्व हमारे लिए बहुत साधारण रह गया है। जो कुछ उस समय पर हुआ उस पर ज़रा विचार कीजिए: एक स्वर्गदूत एक कुँवारी कन्या, मरियम, से आकर कहता है कि वह पवित्र आत्मा की सामर्थ से गर्भवती होगी (लूका १:२६-३८); फिर वह स्वर्गदूत उस कन्या के मंगेतर, यूसुफ, से कहता है कि जाकर उसे ब्याह लाए और होने वाले बच्चे का नाम यीशु रखे क्योंकि वह अपने लोगों का उनके पापों से उद्धार करेगा (मत्ती १:२१)। रात में अपनी भेड़ों की रखवाली कर रहे चरवाहों को स्वर्गदूतों का समूह दिखाई देता है और बेतलेहम में जगत के उद्धारकर्ता मसीह यीशु के जन्म का समाचार देता है (लूका २:११)। सैंकड़ों मील की दूरी तय करके ज्योतिषी आकर उस राजा होने वाले बालक का पता पूछते हैं कि उसे दण्डवत कर सकें (मत्ती २:२)। सब कुछ कितना विस्मयकारी है!
लेकिन इस से भी अधिक विस्मयकारी वह प्रतिक्रीया है जो इन सभी पात्रों ने अपने तक पहुँचे परमेश्वर के सन्देश को दी। मरियम, यूसुफ, चरवाहों और ज्योतिषियों ने ठीक वही किया जैसा उन से कहा गया था। मरियम ने अपने आप को परमेश्वर के हाथों में समर्पित कर दिया; यूसुफ उसे अपनी पत्नि बनाकर अपने घर ले आया; चरवाहे अपनी भेड़ों को छोड़कर शिशु यीशु को ढ़ूँढ़ने बेतलेहम चले गए और ज्योतिषी एक तारे के पीछे पीछे चल निकले। इनमें से किसी को भी पता नहीं था कि अब इसके बाद क्या होगा, इन सब ने केवल परमेश्वर में विश्वास के सहारे अपने कदम बढ़ा लिए कि उन से कहे गए को पूरा करें। अति विस्मयकारी!
विश्वास में होकर परमेश्वर की आज्ञा मानने वाले इन लोगों के नाम २००० वर्ष से भी अधिक से लेकर आजतक संसार भर में आदर के साथ लिए जाते हैं, जो आदर और ख्याति इन्होंने विश्वास के एक कदम द्वारा इस पार्थिव संसार में प्राप्त करी है वह संसार के सब से वैभवशाली और पराक्रमी अधिपति भी अपने सारे सामर्थ और जीवन काल की मेहनत से कभी अर्जित नहीं कर पाए; लेकिन इससे भी बढ़कर बात तो यह है कि इनके नाम और काम परमेश्वर के अटल, अविनाशी और अमिट वचन में सदा के लिए आदर के साथ दर्ज हो गए हैं जहाँ वे आते काल और समयों में भी कीर्ति पाते रहेंगे।
इस क्रिसमस के समय हमारे विश्वास की दशा कैसी है? क्या अनिश्चितता के समयों और अभिभूत कर देने वाली परिस्थितियों में मैं और आप भी परमेश्वर पर ऐसा ही विश्वास दिखाएंगे और उसके आज्ञाकारी होंगे? जब हम परमेश्वर के आज्ञाकारी बने रहते हैं, समयों और हालातों पर नहीं वरन अपनी नज़रें परमेश्वर पर लगाए रहते हैं तो परिणाम वास्तव में विस्मयकारी होते हैं। - डेविड मैक्कैसलैंड
विश्वास यात्रा का लक्ष्य नहीं जानता किंतु यात्रा पर अगुवाई करने वाले को जानता है, उसे मानता है और उससे प्रेम रखता है। - चेम्बर्स
सो यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहां ले आया। - मत्ती १:२४
बाइबल पाठ: मत्ती १:१८-२५
Mat 1:18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई।
Mat 1:19 सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की।
Mat 1:20 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है।
Mat 1:21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा।
Mat 1:22 यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था वह पूरा हो।
Mat 1:23 कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिस का अर्थ यह है परमेश्वर हमारे साथ।
Mat 1:24 सो यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहां ले आया।
Mat 1:25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उस ने उसका नाम यीशु रखा।
एक साल में बाइबल:
- सपन्याह १-३
- प्रकाशितवाक्य १६
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