ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 20 मई 2013

नम्रता से ग्रहण करो


   परमेश्वर के वचन बाइबल के अपने अध्ययन में, याकूब की पत्री के पहले अध्याय को पढ़ते हुए, वहाँ लिखित एक वाक्याँश को पढ़कर मैं चौंक गया; जिस पद पर मैं पहुँचा था वह था: "इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर कर के, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है" (याकूब 1:21) और वाक्याँश था "उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है"। तुरंत मुझे वह निर्णय स्मरण हो आया जिस से मैं जूझ रहा था, और साथ ही यह विचार भी कि, "मुझे इस निर्णय के लिए कोई अन्य पुस्तक पढ़ने, किसी गोष्ठी या परिसंवाद में भाग लेकर सीखने, या किसी मित्र से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है। मुझे केवल वह करना है जो बाइबल मुझे इस विषय के बारे में सिखाती है।" याकूब ने प्रभु यीशु के अनुयायियों को लिखी इस पत्री में आगे यह भी लिखा: "परन्तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं" (याकूब 1:22) और मैंने एहसास किया कि मेरा परमेश्वर के वचन को और अधिक तथा और गहराई से सीखने के प्रयास ही मेरे लिए परमेश्वर के वचन की शिक्षाओं की उपेक्षा के कारण बन गए थे; मैं उस जीवित वचन को मानने वाला बनने की बजाए केवल सीखने वाला ही बन कर रह गया था।

   बाइबल विद्वान डब्ल्यु. ई. वाईन ने, जो बाइबल में प्रयुक्त मूल यूनानी भाषा के शब्दों के अर्थों को समझाने के लिए विख्यात हैं, इन पदों में प्रयुक्त शब्द जिसका अनुवाद "ग्रहण करो" हुआ है, के बारे में लिखा है कि मूल भाषा में इस शब्द का तात्पर्य है, "भली-भांति जानते, विचारते और पूर्ण सहमति के साथ प्रदान की हुई वस्तु को ग्रहण करो या स्वीकार करो" और इस पद में याकूब इस सब के साथ एक सदगुण और जोड़ रहा है - नम्रता। एक नम्र मन परमेश्वर के साथ विवाद नहीं करता, ना ही उससे कोई झगड़ा करता है, वरन समर्पण के साथ उसकी सहर्ष मान लेता है। याकूब के कहने का तात्पर्य यह बना कि "अपने प्रति परमेश्वर की बातों और कार्यों का किसी रीति से कोई प्रतिरोध नहीं करो वरन उन्हें सहर्ष मान लो, स्वीकार कर लो क्योंकि परमेश्वर हर बात में हमारा भला ही चाहता है और हमारे लिए वही करता है जो हमारे लिए सर्वोत्तम है।"

   परमेश्वर अपना सामर्थी वचन हमारे हृदयों में इसलिए बोता है जिससे कि वह वचन हमारे लिए आत्मिक समझ-बूझ और सामर्थ का विश्वासयोग्य और बहुमूल्य स्त्रोत बन कर हमारा मार्गदर्शन करे। परमेश्वर के वचन की यह आशीष हमें तब प्राप्त होती है जब हम उसे नम्रता से ग्रहण करते और आदर से उसका पालन करते हैं। - डेविड मैक्कैसलैंड


अपनी बाइबल प्रार्थनापूर्वक खोलें, ध्यान लगाकर उसे पढ़ें और आनन्द के साथ उसका पालन करें।

इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर कर के, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है। - याकूब 1:21

बाइबल पाठ: याकूब 1:13-22
James 1:13 जब किसी की परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वह किसी की परीक्षा आप करता है।
James 1:14 परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंच कर, और फंस कर परीक्षा में पड़ता है।
James 1:15 फिर अभिलाषा गर्भवती हो कर पाप को जनती है और पाप जब बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।
James 1:16 हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ।
James 1:17 क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है।
James 1:18 उसने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उस की सृष्‍टि की हुई वस्‍तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल हों।
James 1:19 हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्‍पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।
James 1:20 क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता है।
James 1:21 इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर कर के, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
James 1:22 परन्तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।

एक साल में बाइबल: 
  • 1 इतिहास 10-12 
  • यूहन्ना 6:45-71



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें