छोटे से राष्ट्र हेती में सन 2010 में आए विनाशकारी भूकम्प से हुई बरबादी और जान-माल के नुकसान तथा उसके कारण वहाँ के लोगों द्वारा झेली जाने वाली कठिनाईयों की तसवीरें टेलिविज़न पर हम सब ने देखी हैं और उनसे अभिभूत भी हुए हैं। उन अनेक दिल दहला देने वाली तस्वीरों में से एक थी एक महिला की जो अपने चारों ओर की तबाही को देखकर फूट-फूट कर रो रही थी। उस स्त्री का मस्तिष्क अपने लोगों की उस भयानक त्रासदी को संभाल नहीं पा रहा था, उसका हृदय टूट गया था और परिणामस्वरूप उसके आँसू बहे जा रहे थे। उसकी यह प्रतिक्रीया समझ में आती थी क्योंकि कभी कभी जिस कष्ट का सामना हम करते हैं उसके लिए आँसू ही उचित प्रत्युत्तर होते हैं।
मैं जब उस तस्वीर को ग़ौर से देख रहा था तो मुझे अपने प्रभु यीशु की अनुकंपा स्मरण हो आई। प्रभु यीशु भी आँसुओं के महत्व को जानते थे, और वे भी रोए थे। लेकिन उनका रोना एक अलग ही प्रकार के विनाश के कारण था - पाप द्वारा लाए गए विनाश के कारण। जब वे अपने पकड़वाए और क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले यरुशलेम की ओर बढ़ रहे थे, उस यरुशलेम शहर की ओर जहाँ परमेश्वर का मन्दिर भी था लेकिन जो अब भ्रष्टाचार और अन्याय जैसे दुराचारों के कारण लोगों को होने वाली परेशानियों तथा तकलीफों से भरा हुआ था, तो प्रभु के आँसू बहने लगे: "जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया" (लूका 19:41)। प्रभु यीशु उस नगर के प्रति अपने दुख और वहाँ के लोगों पर तरस आने के कारण रोया।
आज जब हम अपने आस-पास संसार में अमानुषिकता, पीड़ा तथा पाप को देखते हैं जिसके कारण संसार में विनाश और त्रासदी व्याप्त है, तो हमारा प्रत्युत्तर क्या होता है? यदि हमारे प्रभु यीशु का हृदय संसार की इस दुर्दशा से टूटता है तो क्या हमारा नहीं टूटना चाहिए? जब हम अपने प्रभु की उस पीड़ा को पहचानेंगे तथा अनुभव करेंगे तो उसके समान ही हम भी संसार को पाप की पीड़ा और त्रासदी से छुड़ाने के लिए प्रयास करने वाले बन जाएंगे - वह छुटकारा जो प्रभु यीशु में मिलने वाली पापों की क्षमा के द्वारा समस्त संसार के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध है। - बिल क्राउडर
अनुकंपा दूसरों के दुख में उन्हें आराम पहुँचाने हेतु जो भी आवश्य्क हो उसका प्रबंध करती है।
जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया। - लूका 19:41
बाइबल पाठ: लूका 19:37-44
Luke 19:37 और निकट आते हुए जब वह जैतून पहाड़ की ढलान पर पहुंचा, तो चेलों की सारी मण्डली उन सब सामर्थ के कामों के कारण जो उन्होंने देखे थे, आनन्दित हो कर बड़े शब्द से परमेश्वर की स्तुति करने लगी।
Luke 19:38 कि धन्य है वह राजा, जो प्रभु के नाम से आता है; स्वर्ग में शान्ति और आकाश मण्डल में महिमा हो।
Luke 19:39 तब भीड़ में से कितने फरीसी उस से कहने लगे, हे गुरू अपने चेलों को डांट।
Luke 19:40 उसने उत्तर दिया, कि तुम से कहता हूं, यदि ये चुप रहें, तो पत्थर चिल्ला उठेंगे।
Luke 19:41 जब वह निकट आया तो नगर को देखकर उस पर रोया।
Luke 19:42 और कहा, क्या ही भला होता, कि तू; हां, तू ही, इसी दिन में कुशल की बातें जानता, परन्तु अब वे तेरी आंखों से छिप गई हैं।
Luke 19:43 क्योंकि वे दिन तुझ पर आएंगे कि तेरे बैरी मोर्चा बान्धकर तुझे घेर लेंगे, और चारों ओर से तुझे दबाएंगे।
Luke 19:44 और तुझे और तेरे बालकों को जो तुझ में हैं, मिट्टी में मिलाएंगे, और तुझ में पत्थर पर पत्थर भी न छोड़ेंगे; क्योंकि तू ने वह अवसर जब तुझ पर कृपा दृष्टि की गई न पहिचाना।
एक साल में बाइबल:
- भजन 140-142
- 1 कुरिन्थियों 14:1-20
बाइबल-हम सब को सही दिशा दिखाती है..
जवाब देंहटाएंइसमें अपार ज्ञान- भरा है जिसको अपनाने से जीवन धन्य हो जाता है.
Informative and enlightening !
जवाब देंहटाएंहिंदी फोरम एग्रीगेटर पर करिए अपने ब्लॉग का प्रचार !