ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 19 जुलाई 2015

आशीषों का उपयोग


   मैं उन लोगों से सहमत नहीं हूँ जो भौतिक वस्तुओं के विरुद्ध कहते और प्रचार करते रहते हैं, तथा जिनका यह मानना है कि जीवन में भौतिक वस्तुओं का होना बुरा है। मैं मानता हूँ कि मैं स्वभाव से एक उपभोगता हूँ और वे वस्तुएं जमा करना, जिनकी मुझे आवश्यकता है, मुझे अच्छा लगता है।

   लेकिन मैं यह भी स्वीकार करता हूँ की भौतिक वस्तुओं से आवशयकता से अधिक प्रेम करना या उन्हें अनावश्यक होने पर भी जमा करते रहना, आत्मिक हानि का कारण हो सकता है। मैं यह भी मानता हूँ कि हमारे पास भौतिक वस्तुएं जितनी अधिक होंगी, और हम जितना यह मान कर चलेंगे कि हमें अपने लिए जो चाहिए हम वह अर्जित कर सकते हैं, उतना ही अधिक हम अपने जीवन में परमेश्वर की आवश्यकता तथा उस पर निर्भरता को भुला देने के खतरे में बढ़ते चले जाएंगे। हम यह भूलने के जोखिम में आ जाएंगे कि अन्ततः परमेश्वर ही है जो हमारे आनन्द के लिए हमें सब कुछ प्रदान करता है (1 तिमुथियुस 6:17)।

   यह भी एक कड़ुवा सत्य है कि मनुष्य अकसर परमेश्वर से अपने आनन्द की वस्तुएं पाने के पश्चात वस्तु से प्रेम परन्तु उस वस्तु के देने वाले परमेश्वर को नज़रंदाज़ करने लगता है। इसी लिए जब परमेश्वर अपने लोगों को वाचा किए हुए कनान देश में बहुतायत का जीवन देने जा रहा था तो उसने उन्हें सचेत किया: "इसलिये सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि अपने परमेश्वर यहोवा को भूलकर उसकी जो जो आज्ञा, नियम, और विधि, मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका मानना छोड़ दे" (व्यव्स्थाविवरण 8:11)।

   यदि परमेश्वर ने आपको भौतिक आशीषों से परिपूर्ण किया है, तो यह कभी ना भूलें कि उन आशीषों का स्त्रोत कौन है, वरन अपने आप को आशीषों के स्त्रोत अपने परमेश्वर पिता के बारे में स्मरण दिलाते रहें। साथ ही यह भी ना भूलें कि उसने आपको आशीषें केवल आप के प्रयोग के लिए ही नहीं दी हैं वरन मुख्यतः इसलिए दी हैं कि उन्हें उस सब कुछ देने वाले परमेश्वर के राज्य की बढ़ोतरी तथा सुसमाचार के प्रचार में लगाएं। अपनी आशीषों के लिए सदा परमेश्वर के धन्यवादी और कृतज्ञ रहें तथा उससे प्रार्थना करते रहें कि उन आशीषों का उपयोग कैसे करना है यह वह आपको बताता रहे। - जो स्टोवैल


उपहार से अधिक उपहार को देने वाले को महत्व दें।

इस संसार के धनवानों को आज्ञा दे, कि वे अभिमानी न हों और चंचल धन पर आशा न रखें, परन्तु परमेश्वर पर जो हमारे सुख के लिये सब कुछ बहुतायत से देता है। - 1 तिमुथियुस 6:17

बाइबल पाठ: व्यव्स्थाविवरण 8:7-18
Deuteronomy 8:7 क्योंकि तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे एक उत्तम देश में लिये जा रहा है, जो जल की नदियों का, और तराइयों और पहाड़ों से निकले हुए गहिरे गहिरे सोतों का देश है। 
Deuteronomy 8:8 फिर वह गेहूं, जौ, दाखलताओं, अंजीरों, और अनारों का देश है; और तेलवाली जलपाई और मधु का भी देश है। 
Deuteronomy 8:9 उस देश में अन्न की महंगी न होगी, और न उस में तुझे किसी पदार्थ की घटी होगी; वहां के पत्थर लोहे के हैं, और वहां के पहाड़ों में से तू तांबा खोदकर निकाल सकेगा। 
Deuteronomy 8:10 और तू पेट भर खाएगा, और उस उत्तम देश के कारण जो तेरा परमेश्वर यहोवा तुझे देगा उसका धन्य मानेगा। 
Deuteronomy 8:11 इसलिये सावधान रहना, कहीं ऐसा न हो कि अपने परमेश्वर यहोवा को भूलकर उसकी जो जो आज्ञा, नियम, और विधि, मैं आज तुझे सुनाता हूं उनका मानना छोड़ दे; 
Deuteronomy 8:12 ऐसा न हो कि जब तू खाकर तृप्त हो, और अच्छे अच्छे घर बनाकर उन में रहने लगे, 
Deuteronomy 8:13 और तेरी गाय-बैलों और भेड़-बकरियों की बढ़ती हो, और तेरा सोना, चांदी, और तेरा सब प्रकार का धन बढ़ जाए, 
Deuteronomy 8:14 तब तेरे मन में अहंकार समा जाए, और तू अपने परमेश्वर यहोवा को भूल जाए, जो तुझ को दासत्व के घर अर्थात मिस्र देश से निकाल लाया है, 
Deuteronomy 8:15 और उस बड़े और भयानक जंगल में से ले आया है, जहां तेज विष वाले सर्प और बिच्छू हैं, और जलरहित सूखे देश में उसने तेरे लिये चकमक की चट्ठान से जल निकाला, 
Deuteronomy 8:16 और तुझे जंगल में मन्ना खिलाया, जिसे तुम्हारे पुरखा जानते भी न थे, इसलिये कि वह तुझे नम्र बनाए, और तेरी परीक्षा कर के अन्त में तेरा भला ही करे। 
Deuteronomy 8:17 और कहीं ऐसा न हो कि तू सोचने लगे, कि यह सम्पत्ति मेरे ही सामर्थ्य और मेरे ही भुजबल से मुझे प्राप्त हुई। 
Deuteronomy 8:18 परन्तु तू अपने परमेश्वर यहोवा को स्मरण रखना, क्योंकि वही है जो तुझे सम्पति प्राप्त करने का सामर्थ्य इसलिये देता है, कि जो वाचा उसने तेरे पूर्वजों से शपथ खाकर बान्धी थी उसको पूरा करे, जैसा आज प्रगट है।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 23-25
  • प्रेरितों 21:18-40


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें