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शनिवार, 18 जुलाई 2015

सेवकाई और नम्रता


   मुझे स्वावलंबी बनने में सहायता करने वाली एक पुस्तक में दी गई सलाह अच्छी तो लगी, परन्तु उसके व्यावहारिक होने पर मुझे सन्देह है। पुस्तक के लेखक ने कहा कि केवल वह करो जिसे करने में तुम निपुण हो, क्योंकि तब तुम सबसे अधिक सन्तुष्टि प्राप्त करोगे। लेखक चाह रहा था कि उसके पाठक अपने लिए ऐसी जीवन शैली बनाएं जो उनके अनुकूल हो। अब मैं आपके बारे में तो नहीं जानता किंतु अपने लिए कह सकता हूँ कि यदि मैं केवल वही करूँ जिसमें मैं निपुण हूँ, तो कुछ खास नहीं कर पाऊँगा!

   परमेश्वर के वचन बाइबल में मरकुस 10 अध्याय में हम दो भाईयों तथा प्रभु यीशु के चेलों के बारे में पढ़ते हैं जो अपने जीवन के लिए कुछ विशेष चाहते थे; वे चाहते थे कि प्रभु यीशु के राज्य में वे दोनों प्रभु यीशु के दाएं और बाएं ओर बैठें (पद 37)। उनकी यह इच्छा सुनकर शेष 10 चेलों को बहुत बुरा लगा (पद 41); संभवतः वे 10 चेले भी अपने लिए यही चाहते होंगे! लेकिन प्रभु यीशु ने इस विवाद के अवसर का सदुपयोग अपने चेलों को एक अन्य प्रकार का जीवन जीने के बारे में सिखाने के लिए किया - सेवकाई का जीवन। प्रभु यीशु ने उन सब से कहा: "...जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने। और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने" (पद 43-44)। प्रभु यीशु के कथन से स्पष्ट है कि परमेश्वर की नज़रों में उसके अनुयायियों को अन्य मनुष्यों पर प्रभुता एवं घमण्ड का नहीं वरन सब के प्रति सेवकाई और नम्रता का जीवन जीना है।

   स्वयं प्रभु यीशु, परमेश्वर के पुत्र ने यही करके अपने जीवन से सब के लिए यह उदाहरण प्रस्तुतु किया। इसी वार्तालाप में प्रभु यीशु ने अपने विषय में अपने चेलों से कहा: "क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे" (पद 45)। अपने तथा सम्पूर्ण जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु के उदाहरण का परमेश्वर की पवित्र आत्मा की सामर्थ से अनुसरण कर के, हम भी परमेश्वर को भाने वाला यह सेवकाई और नम्रता का जीवन जी सकते हैं। - ऐनी सेटास


परमेश्वर के लिए बड़ी सेवकाई के अवसर तो कम ही आते हैं, परन्तु मनुष्यों की सेवकाई के छोटे छोटे अवसर सदा ही हमारे चारों ओर रहते हैं।

जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो। जिसने परमेश्वर के स्‍वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा। वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। - फिलिप्पियों 2:5-7 

बाइबल पाठ: मरकुस 10:35-45
Mark 10:35 तब जब्‍दी के पुत्र याकूब और यूहन्ना ने उसके पास आकर कहा, हे गुरू, हम चाहते हैं, कि जो कुछ हम तुझ से मांगे, वही तू हमारे लिये करे। 
Mark 10:36 उसने उन से कहा, तुम क्या चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये करूं? 
Mark 10:37 उन्होंने उस से कहा, कि हमें यह दे, कि तेरी महिमा में हम में से एक तेरे दाहिने और दूसरा तेरे बांए बैठे। 
Mark 10:38 यीशु ने उन से कहा, तुम नहीं जानते, कि क्या मांगते हो? जो कटोरा मैं पीने पर हूं, क्या पी सकते हो? और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूं, क्या ले सकते हो? 
Mark 10:39 उन्होंने उस से कहा, हम से हो सकता है: यीशु ने उन से कहा: जो कटोरा मैं पीने पर हूं, तुम पीओगे; और जो बपतिस्मा मैं लेने पर हूं, उसे लोगे। 
Mark 10:40 पर जिन के लिये तैयार किया गया है, उन्हें छोड़ और किसी को अपने दाहिने और अपने बाएं बिठाना मेरा काम नहीं। 
Mark 10:41 यह सुन कर दसों याकूब और यूहन्ना पर रिसयाने लगे। 
Mark 10:42 और यीशु ने उन को पास बुला कर उन से कहा, तुम जानते हो, कि जो अन्यजातियों के हाकिम समझे जाते हैं, वे उन पर प्रभुता करते हैं; और उन में जो बड़ें हैं, उन पर अधिकार जताते हैं। 
Mark 10:43 पर तुम में ऐसा नहीं है, वरन जो कोई तुम में बड़ा होना चाहे वह तुम्हारा सेवक बने। 
Mark 10:44 और जो कोई तुम में प्रधान होना चाहे, वह सब का दास बने। 
Mark 10:45 क्योंकि मनुष्य का पुत्र इसलिये नहीं आया, कि उस की सेवा टहल की जाए, पर इसलिये आया, कि आप सेवा टहल करे, और बहुतों की छुड़ौती के लिये अपना प्राण दे।

एक साल में बाइबल: 
  • भजन 20-22
  • प्रेरितों 21:1-17


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