पुस्तक A General Theory of Love के लेखक लिखते हैं कि "जब भी ज्ञान और भावनाएं टकराते हैं, तो बहुधा हृदय की बात ही अधिक समझदारी वाली होती है।" उनका कहना है कि पहले माना जाता था कि मस्तिष्क को मन पर राज्य करना चाहिए, परन्तु विज्ञान अब पहचान रही है कि इसका विपरीत ही सही है; "जो हम हैं, और जो हम बन जाएंगे, कुछ सीमा तक इस बात पर निर्भर करता है कि हम किससे प्रेम रखते हैं।"
जो परमेश्वर के वचन बाइबल से परिचित हैं वे जानते हैं कि इन लेखकों की यह बात कोई नई खोज नहीं है, वरन एक पुराना सत्य है। परमेश्वर ने जो सबसे महत्वपूर्ण आज्ञा अपने लोगों को दी उसमें मन का प्रमुख स्थान है: "तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना" (व्यवस्थाविवरण 6:5)। बाद में पुराने नियम में दी गई इस आज्ञा को उध्दत करते समय प्रभु यीशु ने इसमें ’बुद्धि’ को भी जोड़ दिया (मरकुस 12:30; लूका 10:27। जो वैज्ञनिक आज पता लगा रहे हैं उसे बाइबल सदा से ही सिखाती आई है।
हम में से जो प्रभु यीशु के अनुयायी हैं वे इसके महत्व को पहचानते हैं कि वे किस से प्रेम रखते हैं। जब हम परमेश्वर की सबसे महान आज्ञा का पालन करते हैं और परमेश्वर को अपने प्रेम का विषय बना लेते हैं, तो हम इस बात के भी आश्वस्त हो जाते हैं कि अब हमारा उद्देश्य हमारी कल्पना तथा कुछ करने की हमारी अपनी क्षमता से भी कहीं अधिक बढ़कर है। जब परमेश्वर के प्रति लालसा हमारे मन पर राज्य करती है, तब हमारा मस्तिष्क उसकी सेवा करने के तरीकों पर केंद्रित रहता है, और हमारे कार्य पृथ्वी पर परमेश्वर के राज्य की बढ़ोतरी तथा स्वर्ग में उसकी महिमा के लिए होते हैं। - जूली ऐकैरमैन लिंक
हर उस दिन को व्यर्थ गिनें जिसे आपने परमेश्वर से प्रेम करने में व्यतीत नहीं किया है। - ब्रदर लॉरेंस
और अब, हे इस्राएल, तेरा परमेश्वर यहोवा तुझ से इसके सिवाय और क्या चाहता है, कि तू अपने परमेश्वर यहोवा का भय मानें, और उसके सारे मार्गों पर चले, उस से प्रेम रखे, और अपने पूरे मन और अपने सारे प्राण से उसकी सेवा करे - व्यवस्थाविवरण 10:12
बाइबल पाठ: मरकुस 12:28-34
Mark 12:28 और शास्त्रियों में से एक ने आकर उन्हें विवाद करते सुना, और यह जानकर कि उसने उन्हें अच्छी रीति से उत्तर दिया; उस से पूछा, सब से मुख्य आज्ञा कौन सी है?
Mark 12:29 यीशु ने उसे उत्तर दिया, सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; हे इस्राएल सुन; प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है।
Mark 12:30 और तू प्रभु अपने परमेश्वर से अपने सारे मन से और अपने सारे प्राण से, और अपनी सारी बुद्धि से, और अपनी सारी शक्ति से प्रेम रखना।
Mark 12:31 और दूसरी यह है, कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना: इस से बड़ी और कोई आज्ञा नहीं।
Mark 12:32 शास्त्री ने उस से कहा; हे गुरू, बहुत ठीक! तू ने सच कहा, कि वह एक ही है, और उसे छोड़ और कोई नहीं।
Mark 12:33 और उस से सारे मन और सारी बुद्धि और सारे प्राण और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना और पड़ोसी से अपने समान प्रेम रखना, सारे होमों और बलिदानों से बढ़कर है।
Mark 12:34 जब यीशु ने देखा कि उसने समझ से उत्तर दिया, तो उस से कहा; तू परमेश्वर के राज्य से दूर नहीं: और किसी को फिर उस से कुछ पूछने का साहस न हुआ।
एक साल में बाइबल:
- लैव्यवस्था 15-16
- मत्ती 27:1-26
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