पाप और उद्धार को समझना – 25
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पाप का समाधान - उद्धार - 22
प्रभु यीशु - मृतकों में से जीवित हुआ (1)
पिछले लेख में हमने प्रभु यीशु मसीह के पुनरुत्थान और उसके महत्व को देखना आरंभ किया था। हमने देखा था कि यदि प्रभु यीशु मसीह का पुनरुत्थान मसीही विश्वास में से हटा दिया जाए, या उसे झूठ प्रमाणित कर दिया जाए, तो फिर मसीही विश्वास, संसार के किसी भी अन्य धर्म से भिन्न नहीं रह जाता है, उसका महत्व समाप्त हो जाता है। मनुष्यों के पापों का समाधान और निवारण प्रदान करने वाले सिद्ध मनुष्य के लिए यह अनिवार्य था कि वह मनुष्यों पर से मृत्यु के प्रभाव को मिटा दे। इसलिए यह अनिवार्य था कि पहले वह स्वयं मृत्यु को पराजित करे, और फिर इस विजय को औरों को, जितने उसके द्वारा उपलब्ध करवाए गए समाधान को स्वीकार करते हैं, भी पहुँचा दे। क्योंकि प्रभु यीशु का यह पुनरुत्थान इतना अधिक महत्व रखता था, शैतान और उसके राज्य के लिए इतना घातक था, इसीलिए प्रभु यीशु के पुनरुत्थान के साथ ही उसे झुठलाने के प्रयास भी शैतान द्वारा फैलाए जाने लगे।
प्रभु यीशु के पुनरुत्थान को नकारने, उसे झूठ दिखाने के प्रयासों के लिए जो मनगढ़ंत बातें कही जाती हैं, वे प्रभु यीशु के मारे जाने, गाड़े जाने और तीसरे दिन मृतकों में से जी उठने के बाइबल में दिए विवरण से कदापि मेल नहीं खाती हैं; और इन कहानियों की पुष्टि के लिए कोई भी प्रमाण विद्यमान नहीं हैं। सामान्यतः लोगों में फैलाई गई मन-गढ़न्त बातें हैं:
* पुनरुत्थान को झूठा ठहराने का पहला प्रयास तो पुनरुत्थान के दिन ही किया गया था – मत्ती 28:11-15 – लोगों में यह बात फैला दी गई कि प्रभु जी नहीं उठा, वरन उसकी लोथ उसके चेलों ने चुरा ली – किन्तु कोई भी, कभी भी, उन भयभीत और जान बचाकर छुपे हुए शिष्यों के पास से उस लोथ को निकलवाकर उनके द्वारा किए जा रहे प्रभु के पुनरुत्थान के प्रचार को झूठ प्रमाणित नहीं कर सका।
* प्रभु की लोथ चुराने से संबंधित कुछ अन्य कहानियाँ यह भी हैं:
** अरिमथिया के यूसुफ ने, जिसने निकुदेमुस के साथ मिलाकर प्रभु यीशु को दफनाया था (यूहन्ना 19:38-42), उसी ने प्रभु को किसी और स्थान पर ले जाकर दफना दिया। क्योंकि उस दिन सबत आरंभ होने वाला था, इसलिए तब उसे यह कार्य शीघ्रता से करना पड़ा था; लेकिन सबत के बाद उसने प्रभु यीशु की देह को ले जाकर किसी अन्य स्थान पर ठीक से दफना दिया। अब, यूसुफ क्योंकि एक गुप्त शिष्य था, इसलिए उसके द्वारा बिना अन्य शिष्यों को इसके विषय बताए, किसी और स्थान पर ले जाकर दफनाना उचित नहीं लगता है; और ऐसा करने से क्या लाभ होने वाला था? और फिर शिष्यों में, यदि वे जानते थे कि प्रभु जी नहीं उठा है, इतनी हिम्मत क्यों और कैसे आ गई कि वे हर सताव और दुःख सहते हुए भी प्रभु के पुनरुत्थान और सुसमाचार का प्रचार करने से रोके नहीं जा सके?
** रोमियों ने लोथ ले जाकर कहीं और दफना दी – पिलातुस यरूशलेम में शान्ति रखना चाहता था – ऐसा करने से तो अशांति फैलने की संभावना अधिक थी। पिलातुस के पास देह को हटाकर किसी अन्य स्थान पर दफनाने का क्या कारण हो सकता था? वह ऐसा क्यों करता? और पुनरुत्थान की खबर फैलने के बाद उसने उस लोथ के स्थान को दिखाकर इस बात का तुरन्त अन्त क्यों नहीं कर दिया?
** यहूदियों ने ही लोथ निकालकर कही और दफना दी – तो फिर जब शिष्य उसके पुनरुत्थान का प्रचार करने लगे, तो उन्होंने वह लोथ निकालकर क्यों नहीं दिखाई?
* एक कहानी यह भी कही जाती है कि प्रभु यीशु मसीह को क्रूस पर नहीं चढ़ाया गया, वरन उसके स्थान पर उसके जैसा दिखने वाला कोई व्यक्ति चढ़ा दिया गया। इस सन्दर्भ में यह विचार करने वाली बात है कि जिसे पूरे लश्कर के साथ जाकर पकड़ा गया था; जिसे सारी रात से एक से दूसरी कचहरी में घसीटते रहे, मारते-पीटते रहे, फिर उसे दिन चढ़े छोड़ क्यों दिया गया; या वह उनके हाथों से कैसे बच निकला? और जिस व्यक्ति को उसके स्थान पर क्रूस पर चढ़ाया गया, वह व्यक्ति अकारण ही क्यों चुपचाप क्रूस पर चढ़ गया, और सब कुछ चुपचाप क्यों सहता रहा? और फिर क्रूस पर से कहे गए सात वचनों के साथ, जो प्रभु यीशु की परमेश्वर के वचन के बारे में समझ और उसके पूरा होने की अनिवार्यता को दिखाते हैं, कैसे इस बात का तालमेल बैठा सकते हैं – प्रभु द्वारा अपने सताने वालों को क्षमा करने, यूहन्ना को अपनी माता को सौंपने, साथ टंगे हुए डाकू को क्षमा और स्वर्ग का आश्वासन देने, वचन में लिखी उसके विषय की भविष्यवाणियों पर ध्यान करके उन्हें पूरा करने, परमेश्वर को पिता कहने, आदि बातें कोई साधारण मनुष्य कैसे पूरा कर सकता था?
हम अगले लेख में प्रभु यीशु मसीह के पुनरुत्थान के प्रमाणों के बारे देखना जारी रखेंगे। यदि आप अभी भी प्रभु यीशु मसीह में, उनके जीवन, शिक्षाओं, बलिदान, और पुनरुत्थान में; आपकी वास्तविक स्थिति के बावजूद आपके लिए उनके प्रेम में विश्वास नहीं करते हैं, तो आप भी प्रभु यीशु के पुनरुत्थान से संबंधित प्रमाणों की जाँच कर सकते हैं, अपने आप को संतुष्ट कर सकते हैं। प्रभु यीशु आपको इस सांसारिक नाशमान जीवन से अविनाशी जीवन में लाना चाहता है; पाप के परिणाम से निकालकर परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप करवाकर अब से लेकर अनन्तकाल के लिए आपको स्वर्गीय आशीषों का वारिस बनाना चाहता है। शैतान की किसी बात में न आएं, उसके द्वारा फैलाई जा रही किसी गलतफहमी में न पड़ें, अभी समय और अवसर के रहते स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों से पश्चाताप कर लें, अपना जीवन उसे समर्पित कर के, उसके शिष्य बन जाएं। स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लें।” आपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को स्वर्गीय जीवन बना देगा।
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Understanding Sin and Salvation – 25
The Solution For Sin - Salvation - 22
The Lord Jesus - Resurrected From the Dead (1)
From the last article we have started looking at the resurrection of the Lord Jesus Christ and its importance. We have seen that if the resurrection of the Lord Jesus is taken away from the Christian faith, or is proven to be false, then the Christian faith remains no different from any other religion of the world, and it loses its importance. For the man who was to provide the atonement and solution of sin for mankind, it was mandatory that he would also remove the hold of death from man. Therefore, first he had to defeat death, and then pass on that victory to those who would accept the solution provided by him. Since the resurrection of the Lord was so very important, was so fatally detrimental to Satan and his kingdom, therefore, since the time of the resurrection, Satan immediately started to spread false information, to somehow deny it.
All the concocted stories and false notions spread to deny the resurrection of the Lord Jesus, none of them can stand up to the Biblical descriptions of the Lord Jesus’s crucifixion, death, burial, and resurrection on the third day. There are no available proofs to support and verify these concocted stories. The false stories about the resurrection, commonly spread amongst the people are:
* The first attempt to deny the resurrection was made on the day of the resurrection itself - Matthew 28:11-15 - it was told to the people that the Lord had not risen again; rather, His disciples had come and stolen away the body of the Lord. But no one could ever show or prove that those fearful disciples, hiding for their lives, could come and steal away the body from a sealed and guarded tomb. Nor could anyone ever show the dead body of the Lord hidden by those disciples.
* Some other stories related to the stealing away of the dead body of the Lord by someone or another are:
** Joseph of Arimathea, who along with Nicodemus had buried the Lord (John 19:38-42), he came and took the body away to some other place and buried it there. At the time of the first burial, since the sabbath was about to begin, so they had to do the burial hastily, but after the sabbath he arranged for and gave a proper burial at another place. Now, Joseph was a secret believer in the Lord, therefore, for him to have come all by himself, without informing or bringing the other disciples, and taking the body away to be buried at some other place, does not seem likely or plausible; and what would he have gained by doing this? Moreover, how did the disciples get such courage and strength that despite all the persecutions and sufferings, they could not keep themselves from preaching the Gospel of the risen Lord? Could they have done this, if they knew that the Lord’s dead body was actually present at some place?
** The Romans took away the body and got it buried at some other place. Pilate, wanting to maintain peace and order in Jerusalem had succumbed to the demand to have the Lord crucified; now by allowing the handling and shifting of the dead body, he could not risk the possibility of an unrest; so why at all would he shift the body to some other place? And then, when the stories of the Lord's resurrection started to go around, why didn't Pilate bring out the dead body and put an end to the stories?
** The Jews themselves had the body removed and buried at some other place - in that case, when the disciples started to preach the resurrection of the Lord so courageously and effectively, why didn’t the Jews produce the dead body and put an end to their preaching?
* Another concocted story is that the Lord Jesus Christ was not crucified, but someone resembling Him was crucified instead. Imagine, the person whom they caught hold of by going as a big crowd at night; had kept under their custody all the time; dragged Him from one judicial person to another, including the Roman governor, and had Him beaten up, why would they release Him in the daytime, or allow him to escape fom their hands, and take hold of someone else to crucify him instead? Moreover, the person whom they were taking to be crucified, why would he silently suffer everything and permit himself to be crucified, without protesting even once? Then how can this story be reconciled with the Lord Jesus’s seven statements spoken from the cross, that demonstrated His understanding of the Scriptures and the necessity of fulfilling them? Also, the Lord’s forgiving His tormentors, His handing over His mother to His disciple John for taking care of her, forgiving the thief crucified with Him and assuring him of being in paradise, recalling the prophecies written about Him in God’s Word and ensuring that they were fulfilled, addressing God as Father from the cross, how can all of these be reconciled with the crucifixion of someone other than the Lord Jesus?
We will continue with some other proofs that confirm the resurrection of the Lord Jesus from the dead in the next article.
If you are still not Born Again, have not obtained salvation, have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heart-felt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company, wants to see you blessed; but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
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