डगलस कौरिगन, १९३८ में, एक उपनाम, ’गलत राह लेने वाले कौरिगन’ के नाम से मशहूर हो गए, जब उन्होंने अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर से कैलिफोर्निया शहर के लिये अपने हवाईजहाज़ में उड़ान भरी और २३ घंटे बाद प्रशांत महासागर पार योरप में आयरलेंड के डबलिन शहर में उतर कर उन्होंने वहां के अधिकारियों से पूछा, "क्या यह लॉस एंजिलिस है?" इस बात के लिये, सालों तक लोग उनका मज़ाक उड़ाते रहे, परन्तु १९६३ में उन्हों ने अन्ततः यह मान लिया कि प्रशांत महासागर के पार की उनकी यह उड़ान "गलती से" नहीं हुई थी वरन योजनाबद्ध थी। क्योंकि उन्हें सागर के पार उड़ान भरने की अनुमति नहीं दी जा रही थी, इसलिये उन्होंने जान बूझ कर यह "गलती" करी।
कौरिगन ने जो किया, उसमें और हमारे मसीही जीवन के अनुभवों में बहुत समानान्तर हैं। रोमियों १ में लिखा है कि मनुष्य की स्वभाविक प्रकृति स्वार्थी, पाप करने और परमेश्वर की अवलेहना करने की है। पाप करने की मनशा विश्वासी के जीवन में ज़ोर मारती रहती है (रोमियों७:१५-१९)। यद्यपि विश्वासी मसीह में नई सृष्टि हो जाता है, लेकिन उसमें पाप करने की प्रवृति सिर उठाती रहती है, जिसे लगातार मसीह की सामर्थ से दबा कर काबू में रखना होता है।
कुछ लोग सोचते हैं कि मसीही जान बूझ कर पाप नहीं कर सकते, लेकिन बाइबल स्पष्ट बताती है कि प्रत्येक विश्वासी शरीर की लालसाओं और उस के अन्दर बसने वाली पवित्र आत्मा के बीच के संघर्ष को अनुभव करता है (गलतियों ५:१६, १७)। इसिलिये हमें लगातार अपने आप को परमेश्वर के आधीन करते रहना पड़ता है, क्योंकि वह ही हमें धार्मिकता के सही मार्ग पर चलते रहने की इच्छा और योग्य शक्ति देता है।
इस तरह का जान बूझ कर किया गया परमेश्वर को समर्पण, हमें जान बूझ कर "गलती से" गलत राह पर चल निकलने से बचाए रखेगा। - मार्ट डी हॉन
...उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा... - रोमियों १:२८
बाइबल पाठ: रोमियों १:१८-२५
परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
इसलिये कि परमश्ेवर के विषय में ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूत्तर हैं।
इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया।
वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।
और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगने वाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।
इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उन के मन के अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।
क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदल कर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन।
एक साल में बाइबल:
कौरिगन ने जो किया, उसमें और हमारे मसीही जीवन के अनुभवों में बहुत समानान्तर हैं। रोमियों १ में लिखा है कि मनुष्य की स्वभाविक प्रकृति स्वार्थी, पाप करने और परमेश्वर की अवलेहना करने की है। पाप करने की मनशा विश्वासी के जीवन में ज़ोर मारती रहती है (रोमियों७:१५-१९)। यद्यपि विश्वासी मसीह में नई सृष्टि हो जाता है, लेकिन उसमें पाप करने की प्रवृति सिर उठाती रहती है, जिसे लगातार मसीह की सामर्थ से दबा कर काबू में रखना होता है।
कुछ लोग सोचते हैं कि मसीही जान बूझ कर पाप नहीं कर सकते, लेकिन बाइबल स्पष्ट बताती है कि प्रत्येक विश्वासी शरीर की लालसाओं और उस के अन्दर बसने वाली पवित्र आत्मा के बीच के संघर्ष को अनुभव करता है (गलतियों ५:१६, १७)। इसिलिये हमें लगातार अपने आप को परमेश्वर के आधीन करते रहना पड़ता है, क्योंकि वह ही हमें धार्मिकता के सही मार्ग पर चलते रहने की इच्छा और योग्य शक्ति देता है।
इस तरह का जान बूझ कर किया गया परमेश्वर को समर्पण, हमें जान बूझ कर "गलती से" गलत राह पर चल निकलने से बचाए रखेगा। - मार्ट डी हॉन
जो संपूर्ण रीति से परमेश्वर को समर्पित हैं, वे कभी जान बूझ कर शैतान के आगे घुटने नहीं टेकेंगे।
...उन्होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा... - रोमियों १:२८
बाइबल पाठ: रोमियों १:१८-२५
परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
इसलिये कि परमश्ेवर के विषय में ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
क्योंकि उसके अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्व जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूत्तर हैं।
इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्धेरा हो गया।
वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।
और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगने वाले जन्तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।
इस कारण परमेश्वर ने उन्हें उन के मन के अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।
क्योंकि उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदल कर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन।
एक साल में बाइबल:
- उत्पत्ति २३-२४
- मत्ती ७
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें