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शनिवार, 4 अगस्त 2018

सिद्ध



      अपनी पुस्तक Jumping Through Fires में डेविड नास्सेर ने अपने आत्मिक जीवन की यात्रा को बताया है। मसीह यीशु के साथ संबंध बनाने से पहले, उनकी मित्रता कुछ मसीही किशोरों के साथ हुई थी। उनके ये मित्र अधिकांश समय पर उदार, मृदु, और आलोचनाएं नहीं करने वाले होते थे, लेकिन डेविड ने उन में से एक को अपनी गर्लफ्रेंड से झूठ बोलते देखा। लेकिन फिर उस जवान लड़के ने अपने इस झूठ से कायल होकर उसे अपनी गर्लफ्रेंड के सामने स्वीकार कर लिया और उससे इसके लिए क्षमा माँगी। इस घटना पर विचार करते हुए डेविड ने कहा कि इसके कारण वह अपने मसीही विश्वासी मित्रों के और अधिक निकट आ गया। उसे यह एहसास हुआ कि उन्हें भी उसके समान ही प्रभु के अनुग्रह की आवश्यकता रहती है।

      हम मसीही विश्वासियों को अपने जानकार लोगों के मध्य यह नहीं जताना चाहिए कि हम सिद्ध हैं। अपनी गलतियों तथा संघर्षों के विषय ईमानदार और खुला होने में कोई गलत बात नहीं है। हम परमेश्वर के वचन बाइबल में देखते हैं कि प्रेरित पौलुस ने अपने आप को सबसे बड़ा पापी बताया है (1 तिमुथियुस 1:15)। पौलुस ने रोमियों 7 में पाप के साथ अपने संघर्ष का भी स्पष्ट वर्णन किया है, जहाँ वह स्वीकार करता है कि भलाई करने की लालसा रखते हुए भी बहुधा वह वैसा करने नहीं पाता है, और कभी-कभी, न चाहते हुए भी, बुरा भी कर बैठता है (रोमियों 7:18-19)।

      मसीही जीवन और व्यवहार को लेकर अपने संघर्षों के बारे में खुला होने से हम अन्य सभी मनुष्यों के समान हो जाते हैं – और यही हमारा सही स्थान भी है! परन्तु प्रभु यीशु मसीह में मिली पापों की क्षमा और उद्धार के कारण, हमारे पाप हमारे साथ परलोक में नहीं जाएँगे। यह उस पुरानी कहावत के अनुरूप है कि, “मसीही विश्वासी सिद्ध नहीं केवल क्षमा पाए हुए होते हैं।” – जेनिफर बेन्सन शुल्ट


मसीही विश्वासियों और अन्य लोगों के मध्य एकमात्र भिन्नता, 
उनका पापों की क्षमा पाया हुआ होना है।

यह बात सच और हर प्रकार से मानने के योग्य है, कि मसीह यीशु पापियों का उद्धार करने के लिये जगत में आया, जिन में सब से बड़ा मैं हूं। पर मुझ पर इसलिये दया हुई, कि मुझ सब से बड़े पापी में यीशु मसीह अपनी पूरी सहनशीलता दिखाए, कि जो लोग उस पर अनन्त जीवन के लिये विश्वास करेंगे, उन के लिये मैं एक आदर्श बनूं। - 1 तिमुथियुस 1:15-16

बाइबल पाठ: रोमियों 7:14-25
Romans 7:14 क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शरीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूं।
Romans 7:15 और जो मैं करता हूं, उसको नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूं, वह नहीं किया करता, परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है, वही करता हूं।
Romans 7:16 और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूं, तो मैं मान लेता हूं, कि व्यवस्था भली है।
Romans 7:17 तो ऐसी दशा में उसका करने वाला मैं नहीं, वरन पाप है, जो मुझ में बसा हुआ है।
Romans 7:18 क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।
Romans 7:19 क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं।
Romans 7:20 परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करने वाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।
Romans 7:21 सो मैं यह व्यवस्था पाता हूं, कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूं, तो बुराई मेरे पास आती है।
Romans 7:22 क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं।
Romans 7:23 परन्तु मुझे अपने अंगो में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।
Romans 7:24 मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?
Romans 7:25 मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं: निदान मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का, परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूँ।


एक साल में बाइबल: 
  • भजन 66-67
  • रोमियों 7



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