आत्मिक वरदानों के
प्रयोगकर्ता (1)
हमने पिछले लेख में 1 कुरिन्थियों 12:7
और 11 से देखा है कि (1) मसीही विश्वासी से उसके आत्मिक वरदानों का सदुपयोग परमेश्वर पवित्र आत्मा
ही करवाता है; पवित्र आत्मा की सामर्थ्य एवं मार्गदर्शन के
बिना मसीही विश्वासी उन आत्मिक वरदानों को सही रीति से प्रयोग नहीं कर सकता है। (2) हर मसीही विश्वासी को
उसके सभी आत्मिक वरदान परमेश्वर द्वारा उसके लिए निर्धारित की गई सेवकाई के अनुसार,
पवित्र आत्मा अपनी ओर से प्रदान करता है। इन वरदानों का दिया जाना
किसी की इच्छा के अनुसार नहीं है; मसीही विश्वासी को अपने आप
को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार ढालना और कार्य करना है, न
कि उसे परमेश्वर को अपनी इच्छा के अनुसार चलाने और प्रयोग करने के प्रयास करने
हैं। मसीही विश्वासी की आशीष उसकी परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारिता और समर्पण में है,
न कि उसके द्वारा परमेश्वर को अपनी इच्छा-पूर्ति के लिए उपयोग करने
के प्रयासों में।
आत्मिक वरदानों के प्रयोग से संबंधित इस
अध्याय का एक और महत्वपूर्ण पद है “और परमेश्वर ने कलीसिया में अलग अलग व्यक्ति नियुक्त
किए हैं; प्रथम प्रेरित, दूसरे
भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक, फिर सामर्थ्य
के काम करने वाले, फिर चंगा करने वाले, और उपकार करने वाले, और प्रधान, और नाना प्रकार की भाषा बोलने वाले” (1 कुरिन्थियों
12:28), और यहाँ पर आत्मिक वरदानों का प्रयोग करने वालों को
पवित्र आत्मा ने एक क्रम-संख्या के साथ लिखवाया है। रोचक बात है कि पवित्र आत्मा
के नाम से गलत शिक्षाएं देने वालों में सर्वाधिक प्रचलित और माँग किया जाने वाला
वरदान - अन्य भाषा बोलना, यहाँ दिए गए क्रम में सबसे अंत में
रखा गया है; अर्थात कलीसिया में इस वरदान का तुलनात्मक रीति
से स्थान बहुत बाद में, अंत में आता है। यह नहीं कि यह वरदान
कम महत्वपूर्ण है या छोटा अथवा गौण है, वरन इसलिए क्योंकि
किसी भी स्थानीय मण्डली के कार्यों में इसकी उपयोगिता अन्यों की तुलना में उतनी
अधिक नहीं है - क्योंकि इसका उपयोग तब ही होगा जब कोई ऐसा परदेशी प्रचारक, जो स्थानीय भाषा नहीं जानता है, आए और वचन की सेवकाई
करे। अन्यथा मण्डली के प्रतिदिन के सामान्य कार्यों के लिए इस वरदान की कोई
आवश्यकता नहीं है।
इस वरदान से ठीक पहले, अर्थात वरदानों के क्रम
में अंत की ओर, एक और ऐसा वरदान है, सामान्यतः
मनुष्य जिसकी बहुत लालसा रखते हैं, जिसे प्राप्त करना चाहते
हैं - “प्रधान” (अँग्रेज़ी में administrations)
होना, अर्थात मण्डली में, मण्डली के कार्यों को नियोजित करने और प्रबंधन करने का स्थान। आज इसे औरों
पर अधिकार रखने और अधिकार दिखाने, अपने आप को ऊंचा और दूसरों
को नियंत्रित कर सकने वाला दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किन्तु उपयोगिता के
दृष्टिकोण से इस वरदान की वरीयता भी अन्य की तुलना में अंत की ओर ही है। ऐसा इसलिए
क्योंकि उस आरंभिक मसीही मण्डली के समय में लोग प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं को
गंभीरता से लेते और पालन करते थे। प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से कहा था, “तब उसने बैठकर बारहों को बुलाया, और उन से कहा,
यदि कोई बड़ा होना चाहे, तो सब से छोटा और सब
का सेवक बने” (मरकुस 9:35)। इसलिए
उस पहली कलीसिया के समय में “प्रधान” (या
administrator) होने का तात्पर्य था वास्तव में सब से छोटा
होना और सब का सेवक होना, जो इस वरदान और कार्य से संबंधित
आज के व्यवहार के बिलकुल विपरीत है; इसलिए उस समय इसके लिए
कोई होड़ भी नहीं रहती थी।
उपयोगिता के अनुसार दिए गए वरीयता के
क्रम के मध्य में “सामर्थ्य
के काम करने वाले, फिर चंगा करने वाले, और उपकार करने वाले” दिए गए हैं। किन्तु
प्राथमिक स्थान वचन की सेवकाई से संबंधित काम करने वालों का है “प्रथम प्रेरित, दूसरे भविष्यद्वक्ता, तीसरे शिक्षक”; अर्थात, परमेश्वर
के दृष्टिकोण से, मण्डली के कार्यों और सेवकाई के लिए,
मण्डली की उन्नति के लिए सबसे अधिक उपयोगिता परमेश्वर के वचन की
सेवकाई करने वालों, वचन को ठीक से सिखाने और समझाने वालों की है। इन प्राथमिक सेवकाई के वरदानों के
उचित निर्वाह के लिए व्यक्ति को परमेश्वर के वचन के साथ और प्रार्थना में समय
बिताना होता है। प्रेरितों 6:1-7 में आरंभिक मण्डली की एक घटना दी गई है, जो मण्डली में विवाद और मतभेद का कारण बन रही थी। किन्तु प्रेरितों ने
उसके कारण प्रार्थना और वचन की सेवा करने के महत्व के साथ कोई समझौता नहीं किया।
उन्होंने समस्या को सुलझाने के लिए समाधान बताया, किन्तु
अपनी सेवकाई की थोड़े समय के लिए भी अनदेखी नहीं की, जिसके
परिणामस्वरूप “परमेश्वर का वचन फैलता गया और यरूशलेम में
चेलों की गिनती बहुत बढ़ती गई; और याजकों का एक बड़ा समाज इस
मत के आधीन हो गया” (प्रेरितों 6:7)।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो, आपकी प्राथमिकताएं क्या
हैं? क्या परमेश्वर के वचन में दृढ़ और स्थापित होना, उसे दूसरों तक उसके सही स्वरूप में पहुँचाना आपकी इच्छा और प्राथमिकता है,
या आप भी दिखने में बहुत प्रभावी किन्तु मण्डली के लिए उपयोगिता में
कम वरीयता रखने वाली बातों के पीछे पड़े हैं? अपनी सेवकाई और
अपने वरदान को पहचानिए; प्रभु के लिए उपयोगी बनिए।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- होशे
1-3
- प्रकाशितवाक्य 5
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