Click Here for the English Translation
आरंभिक विचार (3) – शब्द का अर्थ
बपतिस्मे पर हमारे अध्ययन में, इन आरंभिक विचारों के आरंभ में, हम ने देखा था कि परमेश्वर के वचन बाइबल के गुण यह माँग करते हैं कि बाइबल में से किसी भी बात की हमारी समझ अथवा व्याख्या उस समझ और अर्थ के अनुरूप होनी चाहिए, जो उन लोगों के लिए थे जिन्हें सबसे पहले उस बात को कहा गया था। वही उस बात का मूल और अपरिवर्तनीय अर्थ है, अन्य अर्थ या व्याख्या उसके सहायक हो सकते हैं, किन्तु कभी भी उस में परिवर्तन नहीं कर सकते है, उसका स्थान नहीं ले सकते हैं। इसके बाद हमने देखा था कि यहूदी लोग रीति के अनुसार या पारंपरिक शुद्धि के लिए स्नान, पानी से धोए जाने से, और अन्दर से हुई पापों की शुद्धि के प्रतीक के रूप में बाहर से जल द्वारा शुद्धि से, भली-भांति परिचित थे। पुराने नियम में व्यवस्था में तथा भविष्यद्वक्ताओं की पुस्तकों में इन बातों के पर्याप्त हवाले हैं। संभवतः यही कारण था कि किसी ने भी न तो यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले से और न ही पतरस से बपतिस्मे के बारे में कोई विवाद किया, और न ही उन पर पवित्र शास्त्र से बाहर की किसी नई प्रथा को देने का दोष लगाया। इन आरंभिक विचारों को आगे बढ़ाते हुए, आज हम शब्द ‘बपतिस्मा’ या ‘बपतिस्मा लेने’ के अर्थ को देखेंगे; कि उस समय जब यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने, और बाद में मसीह के शिष्यों ने बपतिस्मे के लिए आह्वान किया, तब उस समय के लोग इसे कैसे समझे होंगे।
इस शब्द का पहला उल्लेख यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की सेवकाई के साथ आया है, मत्ती 3:6 - “और अपने अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उस से बपतिस्मा लिया।” मूल यूनानी भाषा में जो शब्द प्रयोग हुआ है, जिसका अनुवाद हिन्दी में ‘बपतिस्मा’ किया गया है, वह है “बैप्टिज़ो”, और मिकलसंस एनहाँसड स्ट्रॉनगस ग्रीक एण्ड हीब्रयू डिक्शनरी में दिए गए इस के अर्थ हैं: 1. डुबो देना, पूरी तरह से अन्दर कर देना; और 2. ओतप्रोत कर देना, पूर्णतः भिगो देना। यूनानी भाषा का यह शब्द “बैप्टिज़ो”, मूल शब्द “बैप्टो” से आया है; और “बैप्टो” की स्ट्रॉंग के द्वारा दी गई परिभाषा है “ओतप्रोत कर देना, अर्थात किसी तरल पदार्थ से पूरी तरह से ढक देना”; और थैयर ने बैप्टो की परिभाषा दी है - 1. डुबोना, अन्दर डुबो देना, पूर्णतः अन्दर कर देना; और 2. किसी रंग में डुबोना, रंग देना, रंग करना। ये अर्थ यहूदियों की अनुष्ठान के अनुसार शुद्धि के लिए स्नान और स्वच्छ करने के तात्पर्य के साथ भली-भांति मेल रखते हैं। यहूदियों में यह अनुष्ठान की शुद्धि सामान्यतः या तो जलाशयों में या पानी के कुंडों में की जाती थी, और जिसकी शुद्धि की जाती थी, पानी को उसके शरीर के प्रत्येक भाग पर आना अनिवार्य होता था। इस लिए यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले की सेवकाई, प्रभु यीशु की पृथ्वी की सेवकाई, और प्रभु के शिष्यों की सेवकाई के समय यदि किसी से कहा जाता कि उन्हें ‘बपतिस्मा’ लेना है, तो वे स्पष्ट समझते थे कि इसका अर्थ है पानी में डुबोया जाना और जल के द्वारा शुद्ध किया जाना। इस अर्थ के तात्पर्यों के बारे में हम आगे के लेखों में भी देखेंगे। लेकिन अभी के लिए, इन आरंभिक विचारों में, वे आरंभिक लोग यह जानते और समझते थे कि बपतिस्मा लेने का अर्थ है शुद्धि के प्रतीक के रूप में पानी में डुबोया जाना, पानी से पूर्णतः ढाँपा जाना।
प्रभु यीशु ने भी इस शब्द का प्रतीक के समान प्रयोग किया था, और वह भी उसके इस मूल अर्थ पर ही आधारित है, और इसकी पुष्टि करता है कि बपतिस्मा लेने का अर्थ है डुबोया जाना या अन्दर कर दिया जाना। उनके पकड़वाए जाने और क्रूस पर मारे जाने के संदर्भ में, प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से कहा था, “मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है; और जब तक वह न हो ले तब तक मैं कैसी सकेती में रहूंगा?” (लूका 12:50; साथ ही मत्ती 20:22; मरकुस 10:38 भी देखें)। यहाँ पर भी प्रभु यीशु ने मत्ती 3:6 के समान शब्द “बैप्टिज़ो” का प्रयोग किया है। प्रभु यीशु अपने शिष्यों से जो कह रहा है उससे यह स्पष्ट है कि वह किसी ऐसी बात के बारे में कह रहा है जिससे वह शीघ्र ही ओतप्रोत होने वाला था, अर्थात जिसमें वह पूर्णतः संलग्न हो जाएगा, उससे ढाँप दिया जाएगा, उसमें डूब जाएगा।
इसी प्रकार से रोमियों 6:3 में, पवित्र आत्मा की अगुवाई में, पौलुस भी उसी शब्द “बैप्टिज़ो” का प्रयोग करते हुए लिखता है “क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया”। उसके इस वाक्य का अभिप्राय प्रकट है, मसीही विश्वासियों पर मसीह यीशु का या उसकी मृत्यु का न तो छिड़काव किया गया, न ही उनके शरीर छूए गए, वरन वे प्रभु यीशु में ढाँपे गए (रोमियों 13:14; गलातियों 3:27), प्रभु की मृत्यु में उसके साथ जोड़े गए (रोमियों 6:5; फिलिप्पियों 3:10) हैं।
इससे हम देखते हैं कि पवित्र आत्मा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि परमेश्वर के वचन में जब भी शब्द ‘बपतिस्मा’ प्रयोग किया गया है, हमेशा ही उसका अर्थ ढाँप दिए जाने या डुबो दिए जाने का है। और यहूदी भी अनुष्ठान के अनुसार स्नान या धोए जाने द्वारा शुद्धि के लिए यही समझते थे - पानी द्वारा ढाँपा जाना, उनके सारे शरीर को पानी के संपर्क में लाकर शुद्ध करना। उनके लिए शब्द बपतिस्मे का अर्थ कभी भी पानी का छिड़काव करना या शरीर पर पाने द्वारा छूआ जाना नहीं होता था। इस बात का कोई इनकार नहीं है कि पुराने नियम में व्यवस्था में रीति के अनुसार शुद्धि के लिए छिड़काव के द्वारा शुद्ध करने के बारे में भी लिखा हुआ है; परंतु क्या इसकी तुलना नए नियम के बपतिस्मे से की जा सकती है, विशेषकर तब जब बपतिस्मे के लिए शब्द “बैप्टिज़ो” का विशेष प्रयोग किया गया है? इस के बारे में हम आने वाले लेखों में देखेंगे। अगले लेख में हम बपतिस्मे के उद्देश्य के बारे में समझने का प्रयास करेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में नया जन्म पाए हुए प्रभु यीशु के शिष्य हैं, पापों से छुड़ाए गए हैं तथा आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है। आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
निर्गमन 36-38
मत्ती 23:1-22
कृपया इस संदेश के लिंक को औरों को भी भेजें और साझा करें
**********************************************************************
Preliminary Considerations (3) - The Meaning
In our study on Baptism, at the beginning of these Preliminary Considerations we have seen that the characteristics of God’s Word, the Bible demand that our understanding and interpretation of anything from the Bible should be consistent with the understanding and meaning that the people to whom it was initially mentioned, had about it. That remains the basic unalterable meaning, and other meanings and interpretations can supplement it, but never replace or alter it. We then saw that the Jews were quite familiar with bathing or washing in water, for ceremonial cleansing, and even as an external sign of inner cleansing from sins. There are ample references in the Old Testament Law as well as the writings of the Prophets to show this. This was probably why no one disputed with either John the Baptist or Peter when they asked people to be baptized; no one accused them of starting something outside of Scriptures. They all readily accepted the call to be baptized as a form of cleansing, and submitted to it. Carrying our Preliminary Considerations further, today we will see what the word ‘baptism’ or ‘to be baptized’ meant for those people at that time, when John the Baptist, and later the disciples of Christ gave the call for it.
The first use of this word is given in relation to the ministry of John the Baptist, in Matthew 3:6 - “And were baptized of him in Jordan, confessing their sins.” The word used in the original Greek language, and translated in English as ‘baptized’, is “baptizo”, and Mickelson's Enhanced Strong's Greek and Hebrew Dictionaries states its meanings as: 1. to immerse, submerge; and 2. to make whelmed or soaked (i.e. fully wet). This Greek word “baptizo” is a derivative of its root word “bapto”; Strong’s definition of “bapto” is “to whelm, i.e., to cover wholly with fluid”; and Thayer defines “bapto” as - 1. To dip, dip in, immerse; and 2. To dip into dye, to dye, color. These meanings fit very well with the Jew’s understanding of ceremonial washings and bathing, which were usually carried out in pools or tanks of water, and the one being cleansed had the cleaning water touch every part of his body. Therefore, at the time of the ministry of John the Baptist, the earthly ministry of the Lord Jesus, and the ministry of the disciples, if anyone was told to be ‘baptized’ they would understand it as getting dipped into water and be cleansed by water. We will look further into the implications of this meaning in later articles, but for now, in these preliminary considerations, those initial people getting baptized understood and accepted it as being dipped into or wholly covered with water as a symbol of being cleansed.
The Lord Jesus used this word symbolically also, which draws from this primary meaning we have seen above, and again affirms that to be baptized meant to be dipped into or immersed into. In context of His being caught and crucified, to be killed, the Lord said to His disciples, “But I have a baptism to be baptized with, and how distressed I am till it is accomplished!” (Luke 12:50; see also Matthew 20:22; Mark 10:38). Here too, the Lord Jesus uses the same word, “baptizo”, as is used in Matthew 3:6. From what the Lord is saying to His disciples, it is apparent He is talking about something into which He will soon be whelmed, i.e., He will be totally caught up with, be wholly covered or totally submerged into.
Similarly, in Romans 6:3, when Paul under the guidance of the Holy Spirit, using the same word “baptizo” writes, “Or do you not know that as many of us as were baptized into Christ Jesus were baptized into His death?”, take note of his using “into” and not “with”. The implication of his statement is clear, the Christian Believers have not been sprinkled with or touched with Christ Jesus and His death, but have been covered by Christ Jesus (Romans 13:14; Galatians 3:27), have been made a part of Him in His death (Romans 6:5; Philippians 3:10).
Therefore, the Holy Spirit has made it clear that whenever the word ‘baptism’ is used in God’s Word, it is always with the meaning of being covered with or immersed into. Which is the same as the Jews understood about their ceremonial cleansing through bathing and washing, by being covered with water, or their whole body was brought in contact with the cleaning water. The word “baptizo”, to them, never meant being sprinkled upon, or just a part of their body being touched with water. There is no denying the fact that in the Old Testament Law, sprinkling is mentioned for ritual purification; but can it be equated with the New Testament Baptism, especially in context of this word “baptizo” being specifically used? We will see about it in later articles. In the next article, we will try to understand the purpose of baptism.
If you are a Christian Believer, then please examine your life and make sure that you are actually a Born-Again disciple of the Lord, i.e., are redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word. Whoever may be the preacher or teacher, but you should always, like the Berean Believers, first cross-check and test all teachings that you receive, from the Word of God. Only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Exodus 36-38
Matthew 23:1-22
Please Share The Link & Pass This Message To Others As Well
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें