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बुधवार, 19 अप्रैल 2023

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान / Word of God – Bible; & Science -3

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बाइबल और अंतरिक्ष

पिछले लेख में हमने सृष्टि की रचना से संबंधित कुछ वैज्ञानिक बातों के द्वारा देखा था कि वे बातें और जानकारियाँ परमेश्वर के वचन बाइबल का समर्थन करती हैं, और वैज्ञानिकों द्वारा उनके खोजे जाने से सदियों पहले, परमेश्वर ने अपने वचन में उन्हें लिखवा दिया था। 

आज हम देखेंगे कि किस प्रकार से अंतरिक्ष से संबंधित बातें भी यही दिखाती हैं कि वैज्ञानिकों की खोज परमेश्वर के वचन बाइबल के तथ्यों की ही पुष्टि करती है; जिसे वे नई खोज कहते हैं, वह बाइबल में हजारों वर्ष पहले ही लिख दी गई थी। 


    अंतरिक्ष अर्थात खगोल-शास्त्र से संबंधित कुछ तथ्यों पर ध्यान कीजिए:

  • दूरबीन और अंतरिक्ष में स्थापित किए गए हबल टेलिस्कोप से भी लगभग 4000 हजार वर्ष पहले बाइबल में व्यवस्थाविवरण 10:14 में "स्वर्ग(आकाश) और सबसे ऊंचा स्वर्ग (आकाश)" ("heavens and the highest heavens") तथा "सबसे ऊंचे स्वर्ग; heaven of heavens" (1 राजाओं 8:27) की बात लिखी है। अब दूरबीन तथा हबल टेलिस्कोप के द्वारा विज्ञान यह कहने पाया है कि आकाशमण्डल में एक तो हमारे चारों ओर का वातावरण वाला 'आकाश' है, तथा उससे आगे फिर सुदूर अंतरिक्ष है जिसमें सितारे और नक्षत्र आदि स्थित हैं। 

  • बिना किसी उपकरण की सहायता के, मानवीय आँखों से देखे जा सकने वाले सितारों की संख्या लगभग 5000 ही आँकी गई है। दूरबीन के आविष्कार से हजारों वर्ष पहले, जब किसी भी मनुष्य के पास अंतरिक्ष में दूर तक देख पाने का कोई साधन नहीं था, आज से लगभग 2600 वर्ष पहले परमेश्वर ने अपने नबी, यिर्मयाह की भविष्यवाणी में अपने लोगों की संख्या में बढ़ोतरी की तुलना देने के लिए लिखवाया था, "जैसा आकाश की सेना की गिनती और समुद्र की बालू के किनकों का परिमाण नहीं हो सकता है उसी प्रकार मैं अपने दास दाऊद के वंश और अपने सेवक लेवियों को बढ़ा कर अनगिनत कर दूंगा" (यिर्मयाह 33:22); अर्थात समुद्र-तट  के बालू के किनकों के समान आकाशमंडल के सितारों की संख्या अनगिनत है। गैलीलियो ने 17वीं शताब्दी में दूरबीन का आविष्कार किया और आकाशमंडल के सितारों और नक्षत्रों को देखना तथा अध्ययन करना आरंभ किया, और पहचाना कि अंतरिक्ष कितना विशाल है और उसके खगोलीय पिंड कितने अनगिनत हैं। आज भी वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में अनेकों प्रकार के बहुत दूर तक देख पाने वाले उपकरणों के द्वारा अरबों-खरबों सितारों, नक्षत्रों, खगोल पिंडों के होने का अनुमान लगाया है, उनके बारे में बहुत सी बातों की खोज की है, किन्तु अंतरिक्ष की सीमाएं और सितारों की सही संख्या अभी भी एक अनुमान है, स्थापित तथ्य नहीं। यिर्मयाह में होकर परमेश्वर द्वारा बाइबल में लिखवाई गई बात, लिखवाए जाने के 2600 वर्ष बाद भी सही है, अकाट्य है। 

  • यद्यपि सितारों, नक्षत्रों और विभिन्न खगोल पिंडों की कुल संख्या मनुष्य आज तक ठीक जान नहीं पाया है, किन्तु यह भी एक वैज्ञानिक तथ्य है कि यह संख्या चाहे बहुत विशाल हो, किन्तु अंततः सीमित (finite) है। बाइबल में परमेश्वर के एक अन्य नबी, यशायाह ने यह बात आज से लगभग 2750 वर्ष पहले अपने भविष्यवाणी की पुस्तक में परमेश्वर की प्रेरणा से लिख दी थी: "अपनी आंखें ऊपर उठा कर देखो, किस ने इन को सिरजा? वह इन गणों को गिन गिनकर निकालता, उन सब को नाम ले ले कर बुलाता है? वह ऐसा सामर्थी और अत्यन्त बली है कि उन में के कोई बिना आए नहीं रहता" (यशायाह 40:26)। न केवल यहाँ पर, वरन भजन संहिता में भी परमेश्वर ने लिखवा दिया था कि वह तारों को गिनता है, उनमें से प्रत्येक का नाम रखता है: "वह तारों को गिनता, और उन में से एक एक का नाम रखता है" (भजन 147:4) - अर्थात उनकी संख्या कितनी भी विशाल क्यों न हो, सीमित है। 

  • दूरबीन के आविष्कार से सदियों पहले बाइबल में लिख दिया गया था कि प्रत्येक सितारा या नक्षत्र अपने आप में अनुपम है, अनूठा है:  "सूर्य का तेज और है, चान्‍द का तेज और है, और तारागणों का तेज और है, (क्योंकि एक तारे से दूसरे तारे के तेज में अन्तर है)" (1 कुरिन्थियों 15:41)। जिसे वैज्ञानिक अब जानने और पहचानने लगे हैं, वह बाइबल में लगभग दो हज़ार वर्ष पहले लिखा जा चुका था। 

  • बाइबल में परमेश्वर ने बारंबार यह कहा है कि वह आकाश या आकाशमण्डल को 'तानता' या 'फैलाता' है:

    • अय्युब 9:8 – वह आकाशमण्डल को अकेला ही फैलाता है, और समुद्र की ऊंची ऊंची लहरों पर चलता है;

    •  यशायाह 42:5 – ईश्वर जो आकाश का सृजने और तानने वाला है, जो उपज सहित पृथ्वी का फैलाने वाला और उस पर के लोगों को सांस और उस पर के चलने वालों को आत्मा देने वाला यहोवा है, वह यों कहता है:

    • यिर्मयाह 51:15 – उसी ने पृथ्वी को अपने सामर्थ्य से बनाया, और जगत को अपनी बुद्धि से स्थिर किया; और आकाश को अपनी प्रवीणता से तान दिया है

    • ज़कर्याह 12:1 इस्राएल के विषय में यहोवा का कहा हुआ भारी वचन: यहोवा को आकाश का तानने वाला, पृथ्वी की नेव डालने वाला और मनुष्य की आत्मा का रचने वाला है, उसकी यह वाणी है। 

    बीसवीं सदी के आरंभिक समय तक भी वैज्ञानिकों (आईंस्टाईन सहित) का यही मानना था कि अंतरिक्ष या आकाशमण्डल गतिहीन या स्थिर (static) है। कुछ अन्य यह कहते थे कि गुरुत्वाकर्षण के बल के कारण अंतरिक्ष को सिकुड़ कर संक्षिप्त (collapsed) हो जाना चाहिए था। फिर खगोल-शास्त्री और अंतरिक्ष वैज्ञानिक एडविन हबल ने 1929 में यह दिखाया कि दूर स्थित नक्षत्र (galaxies) पृथ्वी से और भी दूर होते चले जा रहे हैं, तथा वे जितने अधिक दूर स्थित हैं, उतनी ही अधिक तेजी से और दूर होते चले जा रहे हैं। इस खोज ने अंतरिक्ष विज्ञान में खलबली मचा दी, और अनेकों नई धारणाओं को जन्म दिया, तथा आईंस्टाईन ने भी अपनी गलती को माना और सुधारा। जिसे अंतरिक्ष वैज्ञानिक आज तथ्य मानने लगे हैं, वह परमेश्वर ने 4000 वर्ष से भी पहले अपने वचन बाइबल में लिख दिया था। 

  • बाइबल की प्राचीनतम पुस्तकों में से एक, अय्यूब की पुस्तक में, लगभग 4000 वर्ष पहले, परमेश्वर अय्यूब से प्रश्न करता है, “क्या तू कचपचिया (Pleiades) का गुच्छा गूंथ सकता वा मृगशिरा (Orion) के बन्धन खोल सकता है? ["Can you bind the cluster of the Pleiades, Or loose the belt of Orion?]” (अय्यूब 38:31)। यह विज्ञान को अब पता चला है कि कचपचिया (Pleiades) का गुच्छा गुरुत्वाकर्षण के बल के द्वारा परस्पर गूँथा या बंधा हुआ है; जबकि मृगशिरा (Orion) के बन्धन खुले हुए हैं और इस कारण उसके सितारे एक-दूसरे से दूर होते चले जा रहे हैं क्योंकि उनका परस्पर गुरुत्वाकर्षण बल उन्हें एक साथ बांधे रखने के लिए पर्याप्त नहीं है। 

  • बाइबल में लगभग 3000 वर्ष पहले भजन 19:6 में, सूर्य के विषय लिखा है “वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सब को पहुंचती है।” एक समय था जब वैज्ञानिक बाइबल के इस पद का उपहास करते थे, और उन्हें लगता था कि यह पद पृथ्वी को केंद्र और सूर्य को उसके चारों ओर घूमने वाला बताता है। साथ ही, उनकी यह भी धारणा थी कि सूर्य अंतरिक्ष में अपने स्थान पर स्थिर (stationary) है। किन्तु अब विज्ञान यह जान गया है कि बाइबल की बात सही है, सूर्य एक स्थान पर स्थिर नहीं है, वरन वास्तव में अंतरिक्ष में एक बहुत विशाल चक्र की परिधि पर लगभग 600,000 मील प्रति घंटे की गति से चक्कर लगा रहा है। 

एक बार फिर, सृष्टि अपने सृष्टिकर्ता की पुष्टि करती है, उसकी महिमा करती है; उसके विरुद्ध कोई गवाही नहीं देती है। यही अद्भुत सृष्टिकर्ता, आपके प्रति अपने महान प्रेम के अंतर्गत, आपको अपने साथ रहने और संसार पर आने वाले विनाश से बच जाने के लिए निमंत्रण दे रहा है। क्योंकि उसने अपने इस महान प्रेम के अंतर्गत आपके पापों की सजा को अपने ऊपर लेकर क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा सह लिया, और आपके लिए उस सजा से मुक्त होने का प्रावधान तैयार कर के दे दिया है; इसलिए सच्चे मन और वास्तविक पश्चाताप से की गई आपकी एक प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मेरे पाप क्षमा करें, और मुझे अपनी शरण में ले लें; मुझे अपना लें” आपके अनन्तकाल को सदा के लिए बदल कर सुरक्षित कर देगी। 

क्या आप अपने सृष्टिकर्ता के इस प्रेम और क्षमा भरे निमंत्रण को स्वीकार करेंगे, और उसकी शरण में आ जाएँगे, और सुरक्षित हो जाएँगे? वह आपसे प्रेम करता है, आपका भला ही चाहता है, और आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

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Bible and Space/Astronomy


In the previous article, we saw through some of the scientific facts about the creation of the universe, that scientific facts support the information given in God's Word, the Bible; and that God had that information written down in His Word, centuries before scientists discovered them.


Today we will see how things related to space also show that what the scientists have discovered only confirm and support the facts of God's Word, the Bible. What science and scientists call a ‘new discovery’ was already written down in the Bible thousands of years ago.


Consider some facts related to space and astronomy:

  • About 4000 thousand years before the invention of the telescope and the Hubble telescope being installed in space, in the Bible, in Deuteronomy 10:14 "heaven and the highest heavens" has been mentioned; and 1 Kings 8:27 speaks of "heaven and the heaven of heavens". Now, through the use of the telescope and the Hubble Telescope, science has been able to say that one ‘heaven’ is the sky and the atmosphere around us on earth, and beyond that there is another ‘heaven’, i.e., a vast space in which stars and constellations etc. are located - effectively "heaven and the highest heavens" and "heaven and the heaven of heavens" when stated in an uneducated common man’s easy-to-understand language.

  • The number of stars that can be seen by the human eye without the aid of any equipment has been estimated to be only about 5000. Thousands of years before the invention of the telescope, when no man had any means of seeing far into space, about 2600 years ago, God through the prophecy of His prophet, Jeremiah had compared the increase in the number of his people to. "As the host of heaven cannot be numbered, nor the sand of the sea measured, so will I multiply the descendants of David My servant and the Levites who minister to Me." (Jeremiah 33:22); i.e., the number of stars in the sky is as innumerable as the grains of sand on the beach. Galileo invented the telescope in the 17th century and began observing and studying the stars and constellations of the sky, and recognized how vast space is and the celestial bodies are innumerable. Even today, through many types of very far-seeing instruments in space, scientists have only been able to estimate the existence of trillions of stars, constellations, celestial bodies. And though they have discovered many things about them, but the limits of space and the exact number of stars still remains an estimate, not an established fact. What God wrote in the Bible through Jeremiah remains irrefutable, is still true, 2600 years after it was written.

  • Although the actual total number of stars, constellations and various celestial bodies is not known to man, yet it is a scientific fact that this number, however large it may be, ultimately is finite. Another prophet of God, Isaiah, wrote this in the Bible about 2750 years ago, through the inspiration of God in his prophetic book: “Lift up your eyes on high, And see who has created these things, Who brings out their host by number; He calls them all by name, By the greatness of His might And the strength of His power; Not one is missing" (Isaiah 40:26). Not only here, but also in the Psalms, God had it written down that He counts the stars, and names each one of them: "He counts the number of the stars; He calls them all by name" (Psalm 147:4) - i.e., their number, however large it may be, is still finite, and known to God.

  • Centuries before the invention of the telescope, it had been written in the Bible that each star or constellation is unique in itself, one of a kind: "There is one glory of the sun, another glory of the moon, and another glory of the stars; for one star differs from another star in glory" (1 Corinthians 15:41).

  • What scientists are now beginning to know and recognize, that space is expanding, or being stretched out, was written in the Bible about two thousand years ago. God has repeatedly said in the Bible that He 'stretches' or 'expands' the sky or the sky:

    • Job 9:8 - “He alone spreads out the heavens, And treads on the waves of the sea;

    • Isaiah 42:5 – “Thus says God the Lord, Who created the heavens and stretched them out, Who spread forth the earth and that which comes from it, Who gives breath to the people on it, And spirit to those who walk on it

    • Jeremiah 51:15 - “He has made the earth by His power; He has established the world by His wisdom, And stretched out the heaven by His understanding

    • Zechariah 12:1 “The burden of the word of the Lord against Israel. Thus says the Lord, who stretches out the heavens, lays the foundation of the earth, and forms the spirit of man within him


Even until the early twentieth century, scientists (including Einstein) believed that space or the sky was static. Others said that space should have collapsed due to the force of gravity. Then astronomer and space scientist Edwin Hubble showed in 1929 that the distant galaxies are getting further away from Earth, and the more distant they are, the faster they are receding. This discovery caused an uproar in space science, and gave rise to many new concepts; Einstein also accepted and corrected his mistake. 


What space scientists are beginning to accept as fact today, about the mutual bonding and relationship of galaxies, God had written his word in the Bible more than 4000 years ago.

  • In the Book of Job, one of the oldest books of the Bible, about 4000 years ago, God asks Job, “Can you bind the cluster of the Pleiades, Or loose the belt of Orion?" (Job 38:31). Science has now come to know that the stars of the constellation Pleiades are bound together by their strong gravitational force; whereas the constellation Orion's stars are not loosely bound together, and because of this its stars are moving away from each other, because their mutual gravitational force is not enough to hold them together.

  • About 3000 years ago in the Bible, in Psalm 19:6, it is written of the Sun “Its rising is from one end of heaven, And its circuit to the other end; And there is nothing hidden from its heat." There was a time when scientists ridiculed this Biblical verse, and they thought this verse implies that the Earth is the center and the Sun revolves around it. At the same time, they also believed that the Sun is stationary at its place in space. But now science has learned that the Bible is true, the Sun is not stationary in one place, but is actually moving around a very large circuit in space at a speed of about 600,000 miles per hour.


Once again, creation affirms, and glorifies its Creator; does not testify against Him. This wonderful Creator, in His great love for you, is inviting you to be with Him and escape the imminent destruction of the world. Because in His great love for you, He has taken upon himself the punishment of your sins through his sacrifice on the cross, and has prepared for you a provision to be free from that punishment; Hence your one prayers with a sincere heart and genuine repentance, “Lord Jesus please forgive my sins, and take me under your shelter; Take charge of me" will save your eternity by turning it into an everlasting one. Will you accept this loving and forgiving invitation from your Creator, and take refuge in Him, and be safe? He loves you, wants your best, and is waiting for you.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


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