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शनिवार, 15 अप्रैल 2023

परमेश्वर का वचन – बाइबल / Bible – The Word of God – 11

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बचे रहने में अनुपम और विशिष्ट


संसार के इतिहास में जितना प्रयास बाइबल को नष्ट करने के लिए किया गया है, उतना किसी भी अन्य पुस्तक या ग्रंथ के लिए नहीं किया गया, किन्तु इन सभी प्रयासों के बावजूद, बाइबल सुरक्षित बनी रही, और संसार के इतिहास में सर्वाधिक बिकने तथा वितरित होने वाली पुस्तक है।

 

बाइबल की आरंभिक पुस्तकें papyrus (पेपिरस या भोजपत्रों) पर हाथ से लिखी गई थीं। पेपिरस मिस्र और सीरिया की नदियों और छिछले पानी के तालाबों में उगाने वाला एक प्रकार का नरकट या सरकंडा होता है, जिसे पतला काट और छील कर, उसकी परतों को आपस में दबा कर, सुखा कर कागज के समान लिखने के योग्य बनाया जाता था। अंग्रेजी शब्द paper इसी पेपिरस से बने लिखने की सामग्री से आया है। बाद में चर्मपत्रों पर, जो पशुओं की खाल से बनाए जाते थे, लिखना आरंभ हुआ। यह बहुत अचरज की बात है कि नाजुक और नाशमान, शीघ्र गल या खराब हो जाने वाले पेपिरस पर लिखे हुए उपलब्ध सबसे प्राचीन लेख लगभग 2400 ईस्वी पूर्व के हैं। 


बाइबल की लेखों की सत्यता और सही होने पर भी प्रश्न उठाए गए हैं। बाइबल के पुराने नियम की पुस्तकों को हाथ से लिखने के लिए यहूदियों में विशेष प्रशिक्षण पाए हुए लोग प्रयोग किए जाते थे। उन लेखों के हर अक्षर, मात्रा, शब्द, और परिच्छेद की गिनती की हुई थी, और प्रत्येक हस्तलिपि का प्रत्येक पृष्ठ बारीकी से उस संख्या के अनुसार सही होने के लिए लिखें वाले से भिन्न अन्य प्रशिक्षित लोगों के द्वारा जाँचा जाता था, और बिना त्रुटि के पाए जाने पर ही उसे संकलित करने के लिए स्वीकार किया जाता था, अन्यथा उसे नष्ट कर दिया जाता था, जिससे त्रुटिपूर्ण लेख की संकलित पुस्तक में सम्मिलित होने के कोई संभावना शेष न रहे। इस प्रकार से यहूदियों ने यह सुनिश्चित किया हुआ था कि उन्हें मिले परमेश्वर के वचन का हर अक्षर, मात्रा, शब्द, और अनुच्छेद ठीक वैसा ही रहे जैसे वह मूल स्वरूप में था। बाइबल की पुस्तकों से संबंधित जितने भी पुराने लेख  या उनके जो भी अंश मिले हैं, उनका अवलोकन करने से यह बात स्पष्ट है कि जैसा उन पुराने लेखों में था, लेख वैसे ही आज भी विद्यमान है। 


इन नाशमान सामग्रियों पर हाथ से इतने परिश्रम से लिखे जाने के बावजूद, बाइबल की अनेकों पुस्तकों के प्राचीन लेख या उनके अंश की प्रतिलिपियाँ आज भी विद्यमान हैं, समय और वातावरण के प्रभाव के कारण सभी नष्ट नहीं हुईं, और प्रमाणित करती हैं कि उन लेखों में लिखी बात सदियों और हजारों वर्षों से अपरिवर्तित चली आ रही है। 


संसार भर में, बाइबल के संकलित होकर एक पुस्तक बनने के आरंभ से ही, बाइबल के शत्रुओं ने उसे नष्ट करके समाप्त करने के अनगिनत प्रयास किए हैं। बाइबल के प्रसारण पर प्रतिबंध लगे गए, उसकी प्रतियों को खोज-खोज कर एकत्रित किया गया और जला दिया गया। रोमी शासन से लेकर वर्तमान समय में कम्युनिस्ट देशों में उसे कानून द्वारा वर्जित कर दिया गया, उसकी प्रतियों को अपने साथ रखना दण्डनीय अपराध घोषित किया गया। किन्तु बाइबल की प्रतियाँ फिर भी बची रहीं, और बढ़ती रहीं; लोगों ने जान पर खेलकर या जान तक देकर, बेघर होकर, बंदीगृहों में कठोर दंड सहने के लिए डाल दिए जाने के बावजूद बाइबल को बचा कर रखा, और उसे प्रकाशित तथा प्रसारित करते रहे। 


वोल्टेयर नामक विख्यात फ्रांसीसी नास्तिक और परमेश्वर का घोर विरोध एवं निन्दा करने वाले व्यक्ति ने, जिसका देहांत 1778 में हुआ था, भविष्यवाणी की थी कि उसके समय से 100 वर्ष के अंदर ही, मसीही विश्वास और बाइबल दोनों समाप्त हो जाएंगे, इतिहास में दब कर रह जाएंगे। वोल्टेयर जाता रहा, उसकी भविष्यवाणी भी बिना पूरी हुए जाती रही; किन्तु एक बहुत रोचक बात भी हुई। वोल्टेयर की मृत्यु के पचास वर्ष बाद, जेनेवा बाइबल सोसायटी ने वोल्टेयर के घर को खरीद लिया, और फिर उसके घर में लगी छापने की मशीन से बाइबल की छपाई होने लगी, छपी हुई बाइबल का प्रसार और वितरण उसी के घर से होना आरंभ हो गया। प्रभु यीशु मसीह ने कहा था, "आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी" (मरकुस 13:31), और आज तक उनकी कही यह बात सही प्रमाणित होती रही है; कोई परमेश्वर के वचन को नाश अथवा झूठा प्रमाणित करने नहीं करने पाया है। 


आलोचकों ने कई धारणाएं बनाई, कि बाइबल को झूठा या गलत प्रमाणित कर दें। एक प्रयास यह तर्क देने के द्वारा किया गए कि मूसा द्वारा लिखी बाइबल की पहली पाँच पुस्तकें उसके द्वारा लिखी हुई हो ही नहीं सकती थीं क्योंकि मूसा के समय (1500-1400 ईस्वी पूर्व) तक लिखना इतना विकसित ही नहीं होने पाया था; इसलिए वे पुस्तकें बाद में कभी लिखी गई होंगे, और उन्हें मूसा के नाम रख दिया गया है। किन्तु इस तर्क और धारणा के दिए जाने के कुछ समय बाद "हममूराबी की लाठ" खोज निकाली गई; पत्थर की इस लाठ पर उसके द्वारा उसके राज्य में लागू किए गए नियम लिखे हैं, और यह लाठ मूसा से सैकड़ों वर्ष पुरानी है - अर्थात, यह प्रमाणित हो गया कि मूसा के समय से भी बहुत पहले से लोग लिखना जानते थे, और लिखित नियम विद्यमान थे। बाद में हुई अन्य पुरातत्व खोजों ने भी यह प्रमाणित कर दिया है कि मूसा के समय से पहले भी लिखित सामग्री विद्यमान थी, भाषा विकसित हो चुकी थी। इसी प्रकार का एक अन्य तर्क यह दिया गया था कि अब्राहम के साथ उत्पत्ति की पुस्तक में जिन हित्ती लोगों का उल्लेख आया है, उनका बाइबल के बाहर कोई प्रमाण नहीं है। किन्तु पुरातत्व खोजों ने इस दावे को भी झूठा दिखा दिया और हित्तियों की प्राचीन सभ्यता को उजागर कर दिया। 


आज तक भी, सारे संसार भर में, और सारे इतिहास में, बाइबल को गलत या झूठा प्रमाणित करने, उसे नष्ट करने के सभी प्रयास असफल ही रहे हैं। बाइबल को नष्ट करने का प्रयास करने वाले नाश हो गए, किन्तु परमेश्वर का वचन बाइबल आज भी स्थिर और दृढ़ स्थापित है, अटल है, अचूक है। 


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


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Unique in its Survival

No other book or scriptures in the history of the entire world have ever faced as many attempts to destroy it as the Bible has; but in spite of all these efforts, the Bible has not only remained safe, but has also been the all-time best-selling and circulated book in the history of the world.


The earliest books of the Bible were hand-written on papyrus. A papyrus is a type of reed growing in the rivers and shallow waters of Egypt and Syria, which was thinly sliced ​​and peeled, then its layers were pressed together, dried and made like paper to write upon. The English word paper comes from the writing material made from this papyrus. Later writing began on parchments, which were made from animal skins. It is astonishing that the earliest available writings on the fragile and perishable papyrus date back to around 2400 BC, and are still surviving intact.


Questions have also been raised about the veracity and correctness of Biblical writings. People with special training were used among the Jews to hand-write the Old Testament books of the Bible. Every alphabet, punctuation, word, and paragraph of those original writings had been counted and documented, and every page of each hand written manuscript was then meticulously cross-checked by trained people, other than the person writing it, to ascertain it to be correct according to those documented numbers, and be without error. It was accepted for compilation only when it was found to be completely according to the details of the original document; otherwise, it was destroyed, leaving no possibility of the erroneous article somehow getting included in the compiled book. In this way the Jews made sure that every alphabet, punctuation, word, and paragraph of the Word of God that they received remained exactly the same as it was in its original form. By comparing and evaluating all the old documents or whatever parts of them have been found related to the books of the Bible, it is clear that the writings that exist today are the same as they were in those old writings.


Despite the text being diligently handwritten on perishable materials, many copies of ancient texts or portions of many books of the Bible still exist today, not having been destroyed by the effects of time and weather, and testify that what was written in those writings, it has remained unchanged even today, over centuries and thousands of years.


Around the world, from the very beginning of the Bible being compiled into a single book, enemies of the Bible have made countless attempts to destroy and eliminate it. Circulating copies or contents of the Bible was banned, its copies were searched out, collected and burnt. Since the time of the Roman rule, keeping copies of it was forbidden by law and was declared a punishable offense, as it is till date in communist countries. But copies of the Bible still survived, and continued to grow; People kept the Bible alive, and continued to publish and circulate it, even at the cost of being put to death or being imprisoned, being made homeless, and being subjected to many harsh punishments.


Voltaire, a noted French atheist and blasphemer who died in 1778, predicted that within 100 years from his time, both the Christian faith and the Bible would be lost, buried in history. Voltaire passed away, and his prophecy remained unfulfilled. But a very interesting thing also happened. Fifty years after Voltaire's death, the Geneva Bible Society bought Voltaire's house, and then began printing the Bible with a printing machine installed in his house; circulation and distribution of the printed Bible started happening from his home. The Lord Jesus Christ said, "Heaven and earth will pass away, but My words will by no means pass away" (Mark 13:31), and to this day He has always been proved to be true; No one has been able to prove the Word of God to be destructible or false.


Critics cooked up several theories, to prove the Bible to be false or wrong. One attempt was made by arguing that the first five books of the Bible said to have been written by Moses could not have been written by him because writing had not developed to that extent till Moses' time (1500–1400 AD). So those books must have been written sometime later, and then named after Moses. But sometime after this argument and theory was given, the "Pillar of Hammurabi" was discovered. This stone pillar bears the inscribed rules that he enforced in his kingdom, and is hundreds of years older than Moses, proving that people knew how to write, and written rules were present long before Moses' time. Other later archaeological discoveries have also proved that written material existed, and language had developed even before the time of Moses. Another similar argument was made that about the existence of Hittites, mentioned with Abraham in the book of Genesis, that there is no evidence of Hittites outside the Bible. But archeological discoveries also proved this claim to be false and exposed the ancient civilization of the Hittites.


To this day, throughout the world, and throughout history, all attempts to destroy the Bible have been unsuccessful. Those who tried to destroy the Bible perished, but the Word of God, the Bible, still remains established and firm, unshakable, infallible.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


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