हम दोस्तों ने झील से मछली पकड़ने का मन बनाया और उसकी तैयारी करने लगे। मछली पकड़ने के विभिन्न प्रकार चारे हमने एकत्रित किए, वे अलग अलग रंग और प्रकार के थे, देखने में बहुत लुभावने थे और मछली पकड़ने के लिए शर्तीया कारगर थे। लेकिन फिर भी, यदि मछलियां उन लुभावने चारों से आकर्षित नहीं हों तो आखिरी दांव के रूप में कुछ छोटी मछलियां भी चारे के रूप में लगाने को रख लीं। अगले दिन प्रातः होते ही हम झील की ओर चल पड़े और सबने अपने अपने मन पसन्द स्थानों को चुन लिया और बंसी डाल कर बैठ गए। समय बीतता गया और किसी के हाथ कोई मछली नहीं लगी। हमने अपनी हर विधि आज़मा ली, हर चारे का उपयोग कर लिया, लेकिन कोई मछली किसी से नहीं फंसी। थक हार कर हम अपनी अपनी बंसी उठा कर खाली हाथ वापस लौटने लगे, और एक दूसरे को यह कह कर सांतवना देते रहे कि "आज मछलीयां भूखी नहीं हैं।"
शैतान के पास भी प्रलोभनों और लालचों का बक्सा भरा है, जिन्हें वह हमें पाप में फंसाने के लिए प्रयोग करता है। कुछ प्रलोभन दिखने में बड़े आकर्षक होते हैं - वे प्रलोभन के रुप में दीख भी जाते हैं, लेकिन इतने रिझाने वाले होते हैं कि उनका इन्कार कर पाना बहुत कठिन होता है। कुछ अन्य हमारी किसी आवश्यक्ता या इच्छा को उकसाते हैं, ऊपर से देखने में अहानिकारक प्रतीत होते हैं, लेकिन वास्तविकता तो चारा खा लेने के बाद ही पता चलती है। शैतान के ये प्रलोभन और लालच कैसे भी क्यों न हों, उन सब में एक बात सामन्य है - वे हमारी शारीरिक एवं सांसारिक इच्छाओं और लालसाओं की पूर्ति के आश्वासनों या दावों के द्वारा ही हमें फंसाने पाते हैं। यदि हमारा ध्यान और मन शारीरिक अथवा सांसारिक बातों पर लगा नहीं होगा तो शैतान के ये हथियार भी हमारे विरुद्ध कारगर नहीं हो पाएंगे।
इसलिए परमेश्वर का वचन हमें चिताता है कि "निदान, हे भाइयों, जो जो बातें सत्य हैं, और जो जो बातें आदरणीय हैं, और जो जो बातें उचित हैं, और जो जो बातें पवित्र हैं, और जो जो बातें सुहावनी हैं, और जो जो बातें मनभावनी हैं, निदान, जो जो सदगुण और प्रशंसा की बातें हैं, उन्हीं पर ध्यान लगाया करो। जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण की, और सुनी, और मुझ में देखीं, उन्हीं का पालन किया करो, तब परमेश्वर जो शान्ति का सोता है तुम्हारे साथ रहेगा।" (फिलिप्पियों४:८, ९)
मानसिक अनुशासन और परमेश्वर के आत्मा की सहायता से हम अपने हृदय को भली बातों से भरा रख सकते हैं, और शारीरिक लालसओं और प्रलोभनों में पड़ने से बच सकते हैं। तब शैतान भी खिसिया कर यही कहेगा, "वे भूखे नहीं हैं।" - डेव एग्नर
बुराई से दूरी के लिए उठाया गया हमारा हर कदम हमें परमेश्वर के एक कदम और निकट ले आता है।
क्योंकि जब उस ने परीक्षा की दशा में दुख उठाया, तो वह उन की भी सहायता कर सकता है, जिन की परीक्षा होती है। - इब्रानियों २:१८
बाइबल पाठ: याकूब १:१२-१८
Jas 1:12 धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकल कर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों को दी है।
Jas 1:13 जब किसी ही परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वही किसी की परीक्षा आप करता है।
Jas 1:14 परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है।
Jas 1:15 फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।
Jas 1:16 हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ।
Jas 1:17 क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है।
Jas 1:18 उस ने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उस की सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल हों।
Jas 1:12 धन्य है वह मनुष्य, जो परीक्षा में स्थिर रहता है; क्योंकि वह खरा निकल कर जीवन का वह मुकुट पाएगा, जिस की प्रतिज्ञा प्रभु ने अपने प्रेम करने वालों को दी है।
Jas 1:13 जब किसी ही परीक्षा हो, तो वह यह न कहे, कि मेरी परीक्षा परमेश्वर की ओर से होती है; क्योंकि न तो बुरी बातों से परमेश्वर की परीक्षा हो सकती है, और न वही किसी की परीक्षा आप करता है।
Jas 1:14 परन्तु प्रत्येक व्यक्ति अपनी ही अभिलाषा में खिंचकर, और फंसकर परीक्षा में पड़ता है।
Jas 1:15 फिर अभिलाषा गर्भवती होकर पाप को जनती है और पाप बढ़ जाता है तो मृत्यु को उत्पन्न करता है।
Jas 1:16 हे मेरे प्रिय भाइयों, धोखा न खाओ।
Jas 1:17 क्योंकि हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान ऊपर ही से है, और ज्योतियों के पिता की ओर से मिलता है, जिस में न तो कोई परिवर्तन हो सकता है, ओर न अदल बदल के कारण उस पर छाया पड़ती है।
Jas 1:18 उस ने अपनी ही इच्छा से हमें सत्य के वचन के द्वारा उत्पन्न किया, ताकि हम उस की सृष्टि की हुई वस्तुओं में से एक प्रकार के प्रथम फल हों।
एक साल में बाइबल:
- नीतिवचन १९-२१
- २ कुरिन्थियों ७
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें