हमारी प्रवृत्ति है कि हम अपने दिन और समय को उपखंडों में बांट लेते हैं और फिर उन उपखंडों को विभिन्न गतिविधियों से भर लेते हैं, जैसे इस समय में घर का कार्य, इस समय में बाहर का कार्य, जीविका के कार्य के लिए यह समय, बच्चों की देखभाल के लिए वह समय आदि। इस सब के बाद फिर हम आत्मिक गतिविधियों के लिए समय निकालने के प्रयास करते हैं जिससे चर्च जाना, प्रार्थना सभा और बाइबल अध्ययन में सम्मिलित होना संभव हो सके। हमारे लिए ये आत्मिक गतिविधियां, सांसारिक गतिविधियों से अधिक महत्वपुर्ण शायद ही कभी होती हों।
परन्तु जब मैं परमेश्वर के वचन बाइबल में भजन संहिता में लिखे भजनों को पढ़ता हूँ तो मुझे इस प्रकार जीवन को उपखंडों में बांटकर उसका उपयोग करना और फिर आत्मिक बातों के लिए समय निकालने का प्रयास करना कहीं दिखलाई नहीं देता। वरन मैं पाता हूँ कि भजनकार दाऊद तथा अन्य भजन लेखकों ने तो परमेश्वर को अपने जीवन का केंद्र बिंदु बना रखा था और इनके जीवन की हर गतिविधि परमेश्वर से जुड़ी होती थी। उनके लिए परमेश्वर कि आराधना और उपासना जीवन का मूल कार्य थी, ना कि कोई ऐसा कार्य जिसके लिए अन्य बातों से कुछ समय निकाल कर एक औपचारिकता पूरी कर ली जाए और फिर वापस उन्हीं बातों में व्यस्त हो जाएं। उन भजनकारों के समान आशीषित होने के लिए अपनी प्राथमिकताओं का ऐसा ही निर्धारण आज हमारे लिए भी अति आवश्यक है। हमें परमेश्वर को अपने जीवन और कार्य की हर बात से संबंधित रखना चाहिए तब ही उसका मार्गदर्शन और आशीष हमारे जीवन के हर कार्य पर होगी।
मेरे लिए ये भजन परमेश्वर को अपने जीवन में केंद्रीय स्थान पर रखने की प्रेर्णा के स्त्रोत हो गए हैं। उन भजनकारों की परमेश्वर के लिए तीव्र भूख-प्यास और लालसा के सामने परमेश्वर के लिए मेरी अपनी भूख-प्यास और लालसा बिलकुल फीकी प्रतीत होती है। हरिणी जैसे जल के लिए हांफती है वैसे ही वे परमेश्वर के लिए हांफते थे (भजन ४२:१-२); वे रात भर जागते थे और परमेश्वर की मनोहरता पर मनन करते रहते थे (भजन २७:४); उनके लिए हज़ार वर्ष किसी अन्य स्थान पर बिताने से अच्छा था परमेश्वर की उपस्थिति में एक दिन बिता लेना (भजन ८४:१०)।
ऐसा लगता है कि ये भजनकार परमेश्वर की पहचान की किसी उन्नत पाठशाला में रहते और अध्ययन करते थे। उनके लिखे भजन पढ़ने, मनन करने और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में लागू करने से उस उन्नत पाठशाला के वे उन्नत पाठ हमारे जीवनों में भी आ सकते हैं। - फिलिप यैन्सी
परमेश्वर को पूर्णतः समर्पित हृदय ही परमेश्वर के लिए उपयोगी हृदय हो सकता है।
यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं? - भजन २७:१
बाइबल पाठ: भजन २७
Psa 27:1 यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार है; मैं किस से डरूं? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊं?
Psa 27:2 जब कुकर्मियों ने जो मुझे सताते और मुझी से बैर रखते थे, मुझे खा डालने के लिये मुझ पर चढ़ाई की, तब वे ही ठोकर खाकर गिर पड़े।
Psa 27:3 चाहे सेना भी मेरे विरूद्ध छावनी डाले, तौभी मैं न डरूंगा; चाहे मेरे विरूद्ध लड़ाई ठन जाए, उस दशा में भी मैं हियाव बान्धे निशचित रहूंगा।
Psa 27:4 एक वर मैं ने यहोवा से मांगा है, उसी के यत्न में लगा रहूंगा; कि मैं जीवन भर यहोवा के भवन में रहने पाऊं, जिस से यहोवा की मनोहरता पर दृष्टि लगाए रहूं, और उसके मन्दिर में ध्यान किया करूं।
Psa 27:5 क्योंकि वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपने मण्डप में छिपा रखेगा; अपने तम्बू के गुप्तस्थान में वह मुझे छिपा लेगा, और चट्टान पर चढ़ाएगा।
Psa 27:6 अब मेरा सिर मेरे चारों ओर के शत्रुओं से ऊंचा होगा; और मैं यहोवा के तम्बू में जयजयकार के साथ बलिदान चढ़ाऊंगा और उसका भजन गाऊंगा।
Psa 27:7 हे यहोवा, मेरा शब्द सुन, मैं पुकारता हूं, तू मुझ पर अनुग्रह कर और मुझे उत्तर दे।
Psa 27:8 तू ने कहा है, कि मेरे दर्शन के खोजी हो। इसलिये मेरा मन तुझ से कहता है, कि हे यहोवा, तेरे दर्शन का मैं खोजी रहूंगा।
Psa 27:9 अपना मुख मुझ से न छिपा। अपने दास को क्रोध करके न हटा, तू मेरा सहायक बना है। हे मेरे उद्धार करने वाले परमेश्वर मुझे त्याग न दे, और मुझे छोड़ न दे!
Psa 27:10 मेरे माता पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।
Psa 27:11 हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर, और मेरे द्रोहियों के कारण मुझ को चौरस रास्ते पर ले चल।
Psa 27:12 मुझ को मेरे सताने वालों की इच्छा पर न छोड़, क्योंकि झूठे साक्षी जो उपद्रव करने की धुन में हैं मेरे विरूद्ध उठे हैं।
Psa 27:13 यदि मुझे विश्वास न होता कि जीवितों की पृथ्वी पर यहोवा की भलाई को देखूंगा, तो मैं मूर्च्छित हो जाता।
Psa 27:14 यहोवा की बाट जोहता रह; हियाव बान्ध और तेरा हृदय दृढ़ रहे; हां, यहोवा ही की बाट जोहता रह!
एक साल में बाइबल:
- यहेजकेल २७-२९
- १ पतरस ३
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