ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 23 मई 2019

प्रतिनिधि



      उस कार पर परमेश्वर के विरोध में लगे स्टिकर्स ने एक विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर का ध्यान आकर्षित किया। वह प्रोफ़ेसर कभी स्वयँ भी नास्तिक हुआ करता था, और उसने सोचा कि कार का मालिक परमेश्वर में विश्वास करने वालों को उत्तेजित और क्रुद्ध करना चाहता था। प्रोफ़ेसर ने स्पष्ट किया, “क्रोध के द्वारा नास्तिक अपनी नास्तिकता को तर्कसंगत जताना चाहता है”; और फिर उन्होंने सचेत किया, “अधिकाँशतः इस क्रोध के प्रत्युत्तर में उसे फिर क्रोध ही मिलता है।”

      मसीही विश्वास में आने की अपनी यात्रा के बारे में याद करते हुए उन्होंने अपने एक मसीही विश्वासी मित्र की उनके प्रति चिन्ता का ध्यान किया। उस मित्र ने उन्हें निमंत्रण दिया कि वे मसीह के सत्य पर विचार करें; प्रोफ़ेसर ने कहा, “मेरे मित्र के उस आग्रह में कोई क्रोध की अभिव्यक्ति नहीं थी।” प्रोफ़ेसर अपने मित्र के उस तीव्र आग्रह में निहित वास्तविक आदर और नम्रता को कभी नहीं भुला सका।

      मसीह यीशु में विश्वास करने वाले बहुधा अपमानित अनुभव करते हैं जब और लोग मसीह यीशु पर विश्वास नहीं लाते हैं। परन्तु अपने इस तिरिस्कार के प्रति स्वयं प्रभु यीशु की क्या प्रतिक्रिया होती है? पृथ्वी पर अपनी सेवकाई के दिनों में प्रभु यीशु को लगातार धमकियों और घृणा का सामना करना पड़ा था, परन्तु उन्होंने कभी इसे व्यक्तिगत रीति से नहीं लिया, इस व्यवहार के कारण अपने ईश्वरत्व पर कभी संदेह नहीं होने दिया। एक बार जब वे अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे और एक गाँव के लोगों ने उन्हें आने नहीं दिया तो उनके दो शिष्य, यूहन्ना और याकूब ने तुरंत प्रतिक्रिया में उस गाँव को भस्म करने की इच्छा व्यक्त की, “हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दें” (लूका  9:54)। लेकिंन प्रभु यीशु यह नहीं चाहते थे, और उन्होंने उन शिष्यों को इस प्रतिक्रिया के लिए उलाहना दिया (पद 55)। यह इसलिए क्योंकि परमेश्वर ने प्रभु यीशु को जगत के नाश के लिए नहीं वरन उसे बचाने के लिए भेजा था (यूहन्ना 3:17)।

      यह हमारे लिए चकित होने वाली बात हो सकती है कि परमेश्वर को हमारी आवश्यकता उसका बचाव करने के लिए कदापि नहीं है। वह चाहता है कि हम उसके प्रतिनिधि बनकर सँसार के सामने उसके गुणों, उसके प्रेम और क्षमा के सुसमाचार को प्रगट करें। परमेश्वर का प्रतिनिधि बनकर, उसे सँसार के सामने रखने में समय, परिश्रम, संयम, धैर्य और प्रेम की आवश्यकता होती है। - टिम गुस्ताफसन


प्रभु यीशु मसीह का बचाव करने की सर्वोत्तम विधि है उसके समान जीवन जी कर दिखाना।

परमेश्वर ने अपने पुत्र को जगत में इसलिये नहीं भेजा, कि जगत पर दंड की आज्ञा दे परन्तु इसलिये कि जगत उसके द्वारा उद्धार पाए। - यूहन्ना 3:17

बाइबल पाठ: लूका 9:51-56
Luke 9:51 जब उसके ऊपर उठाए जाने के दिन पूरे होने पर थे, जो उसने यरूशलेम को जाने का विचार दृढ़ किया।
Luke 9:52 और उसने अपने आगे दूत भेजे: वे सामरियों के एक गांव में गए, कि उसके लिये जगह तैयार करें।
Luke 9:53 परन्तु उन लोगों ने उसे उतरने न दिया, क्योंकि वह यरूशलेम को जा रहा था।
Luke 9:54 यह देखकर उसके चेले याकूब और यूहन्ना ने कहा; हे प्रभु; क्या तू चाहता है, कि हम आज्ञा दें, कि आकाश से आग गिरकर उन्हें भस्म कर दे।
Luke 9:55 परन्तु उसने फिरकर उन्हें डांटा और कहा, तुम नहीं जानते कि तुम कैसी आत्मा के हो।
Luke 9:56 क्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगों के प्राणों को नाश करने नहीं वरन बचाने के लिये आया है: और वे किसी और गांव में चले गए।

एक साल में बाइबल:  
  • 1 इतिहास 19-21
  • यूहन्ना 8:1-27



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें