ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 7 जून 2019

सुनना



      एक प्रातः मेरी बेटी ने अपना सेल-फोन, कुछ पल के लिए अपनी ग्यारह माह के बेटे को दिया कि उसका मनोरंजन हो सके, और उसके यह करने के एक मिनिट से भी कम समय में मेरे फोन की घन्टी बजी; मैंने जब अपना फोन उठाया तो दूसरी ओर से मेरे नाती की आवाज़ आई। किसी तरह से उसने फोन की ‘स्पीड-डायल’ सुविधा के माध्यम से मेरा नंबर दबा दिया था, और फिर उसके और मेरे बीच एक “वार्तालाप” चला जिसे मैं बहुत समय तक स्मरण रखूँगा। मेरे नाती को कुछ ही शब्द बोलने आते हैं, परन्तु वह मेरी आवाज़ पहचानता है और प्रतिक्रया देता है। इसलिए मैं उससे बात करता रहा और उसे बताया कि मैं उससे कितना प्रेम करता हूँ।

      अपने नाती की आवाज़ सुनकर जो आनन्द मुझे मिला, वह मुझे स्मरण करवाता है कि हमारा परमेश्वर पिता हमारे साथ संबंध बनाने और बनाए रखने के लिए कितना लालियत रहता है। परमेश्वर का वचन बाइबल दिखाती है कि आरंभ से ही परमेश्वर सक्रीय होकर मनुष्य के साथ संबंध बनाने में पहल करता आया है। जब आदम और हव्वा ने परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता का पाप किया, और परमेश्वर से छिप गए, तो परमेश्वर ही उनको पुकारता हुआ आया, “तू कहाँ है?” (उत्पत्ति 3:9)।

      प्रभु यीशु मसीह में होकर भी परमेश्वर मानवजाति को खोज रहा है कि उससे एक प्रगाढ़ संबंध बना ले। क्योंकि परमेश्वर हम से प्रेम करता है, हमारे साथ संगति रखना चाहता है, इसलिए उसने प्रभु यीशु मसीह को सभी मनुष्यों के पापों के लिए क्रूस पर बलिदान होने के लिए भेजा। “जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ, कि परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा है, कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं। प्रेम इस में नहीं कि हम ने परमेश्वर ने प्रेम किया; पर इस में है, कि उसने हम से प्रेम किया; और हमारे पापों के प्रायश्‍चित्त के लिये अपने पुत्र को भेजा” (1 यूहन्ना 4:9-10)।

      यह जानना कितना भला है कि परमेश्वर हम से प्रेम करता है और उसने अपने प्रेम को प्रभु यीशु मसीह में होकर प्रकट किया है, और अब वह हमारे प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा कर रहा है। चाहे हमें समझ न भी आता हो कि उसके प्रेम के प्रत्युत्तर में हम उससे क्या कहें, फिर भी हमारा परमेश्वर पिता हमारी वाणी को सुनना चाहता है। - जेम्स बैंक्स


हमारे प्रति परमेश्वर का प्रेम प्रभु यीशु मसीह में होकर प्रगट होता है।

क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए। - यूहन्ना 3:16

बाइबल पाठ: उत्पत्ति 3:1-10
Genesis 3:1 यहोवा परमेश्वर ने जितने बनैले पशु बनाए थे, उन सब में सर्प धूर्त था, और उसने स्त्री से कहा, क्या सच है, कि परमेश्वर ने कहा, कि तुम इस बाटिका के किसी वृक्ष का फल न खाना?
Genesis 3:2 स्त्री ने सर्प से कहा, इस बाटिका के वृक्षों के फल हम खा सकते हैं।
Genesis 3:3 पर जो वृक्ष बाटिका के बीच में है, उसके फल के विषय में परमेश्वर ने कहा है कि न तो तुम उसको खाना और न उसको छूना, नहीं तो मर जाओगे।
Genesis 3:4 तब सर्प ने स्त्री से कहा, तुम निश्चय न मरोगे,
Genesis 3:5 वरन परमेश्वर आप जानता है, कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे उसी दिन तुम्हारी आंखें खुल जाएंगी, और तुम भले बुरे का ज्ञान पाकर परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।
Genesis 3:6 सो जब स्त्री ने देखा कि उस वृक्ष का फल खाने में अच्छा, और देखने में मनभाऊ, और बुद्धि देने के लिये चाहने योग्य भी है, तब उसने उस में से तोड़कर खाया; और अपने पति को भी दिया, और उसने भी खाया।
Genesis 3:7 तब उन दोनों की आंखे खुल गई, और उन को मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये।
Genesis 3:8 तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय बाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी बाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए।
Genesis 3:9 तब यहोवा परमेश्वर ने पुकार कर आदम से पूछा, तू कहां है?
Genesis 3:10 उसने कहा, मैं तेरा शब्द बारी में सुन कर डर गया क्योंकि मैं नंगा था; इसलिये छिप गया।

एक साल में बाइबल:  
  • 2 इतिहास 28-29
  • यूहन्ना 17



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें