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सोमवार, 30 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 5

 

पाप का समाधान - उद्धार - 1

यूनानी भाषा, जिसमें परमेश्वर के वचन बाइबल का नया नियम खण्ड मूल में लिखा गया है, उसमें प्रयुक्त जिस शब्द का अनुवादउद्धारयाबचावकिया गया है, उसका अर्थ होता हैकिसी खतरे अथवा हानि से सुरक्षा प्रदान करना”; अर्थात उद्धार दिए जाने का अर्थ है बचाया जाना, सुरक्षित कर दिया जाना। यहाँ पर एक बहुत महत्वपूर्ण, और इस संदर्भ में सर्वदा ध्यान में रखने वाली बात है कि उद्धार हमेशा परमेश्वर की ओर से दिया जाता है; कोई भी व्यक्ति कभी भी, किसी भी रीति से परमेश्वर के उद्धार को कमा नहीं सकता है; अर्थात अपने किसी भी प्रयास से अपने आप को उद्धार प्राप्त करने का अधिकारी अथवा योग्य नहीं कर सकता है। हम आगे चलकर इसे कुछ और विस्तार से देखेंगे और समझेंगे। 

प्रभु यीशु मसीह के पृथ्वी पर आने का उद्देश्य, स्वयँ उन्हीं के शब्दों में, सँसार के सभी पाप में खोए हुए लोगों को बचाना, यही सुरक्षा, अर्थात उद्धार, सारे सँसार के सभी लोगों को उपलब्ध करवाना थाक्योंकि मनुष्य का पुत्र लोगों के प्राणों को नाश करने नहीं वरन बचाने के लिये आया है ...” (लूका 9:56); “यदि कोई मेरी बातें सुनकर न माने, तो मैं उसे दोषी नहीं ठहराता, क्योंकि मैं जगत को दोषी ठहराने के लिये नहीं, परन्तु जगत का उद्धार करने के लिये आया हूं” (यूहन्ना 12:47)। प्रभु द्वारा दिए जाने वाले इस उद्धार के विषय कुछ आधारभूत प्रश्न हैं, जिनके उत्तर जानना और समझना परमेश्वर की मानव जाति को अपनी संगति में बहाल करने की इस योजना को जानने, समझने, और मानने के लिए बहुत आवश्यक है। 

ये प्रश्न हैं:

·        यह उद्धार, अर्थात बचाव, या सुरक्षा किस से और क्यों होना है?

·        व्यक्ति इस उद्धार को कैसे प्राप्त कर सकता है?

·        इसके लिए यह इतना आवश्यक क्यों हुआ कि स्वयं परमेश्वर प्रभु यीशु को स्वर्ग छोड़कर सँसार में बलिदान होने के लिए आना पड़ा?

उद्धार - किस से और क्यों

 कल हमने देखा था कि मनुष्य के प्रति परमेश्वर के प्रेम का संकेत इस बात से मिलता है कि केवल मनुष्य ही है जिसको परमेश्वर ने, अपनी समस्त सृष्टि में से, अपने ही हाथों से, अपनी ही स्वरूप में रचा, और उसके नथनों में अपनी श्वास डालकर उसे जीवित प्राणी बनाया, तथा उसे समस्त पृथ्वी और उसकी सभी बातों और प्राणियों पर अधिकार दिया (उत्पत्ति 1:26-28; 2:7)। केवल मनुष्य ही है जिससे संगति रखने के लिए परमेश्वर अदन की वाटिका में आया करता था। किन्तु आदम और हव्वा के द्वारा किए गए परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता के पाप के कारण, परमेश्वर और मनुष्य की यह संगति टूट गई, और मनुष्य मृत्यु, अर्थात परमेश्वर से सदा के लिए अलग रहने के खतरे में आ गया। यह बहुत महत्वपूर्ण तथा आधारभूत तथ्य है, जिसे समझे बिना उद्धार के बारे में समझना असंभव है। क्योंकि निष्पाप, निष्कलंक परमेश्वर पाप के साथ संगति रखना तो दूर, पाप को देख भी नहीं सकता है (हबक्कूक 1:13) इसलिए उस प्रथम पाप, उस अनाज्ञाकारिता के कारण परमेश्वर और मनुष्य की संगति में अवरोध आ गया (यशायाह 59:1-2), मनुष्य परमेश्वर की संगति से दूर हो गया, और उससे हमेशा के लिए दूर हो जाने, अर्थात, मृत्यु के खतरे में आ गया।

परमेश्वर का वचन बाइबल बताती है कि पाप करने के बाद, पवित्र परमेश्वर के समक्ष निःसंकोच आने, और उससे उन्मुक्त होकर संगति और वार्तालाप करने की मनुष्य, आदम और हव्वा, की प्रवृत्ति बदल गई। उनके अंदर परमेश्वर की दृष्टि में दोषी होने का बोध आ गया, उन्होंने अपने इस नंगेपन, अपनी लज्जा को अपनी दृष्टि में उपयुक्त और उचित, अपने प्रयासों, अंजीर के पत्तों से बने आवरण के द्वारा ढाँप लिया, और जब परमेश्वर उनसे मिलने, संगति करने आया, तो वे परमेश्वर द्वारा उन्हें लगाकर दी गई वाटिका के वृक्षों में छिप गए:तब उन दोनों की आंखें खुल गई, और उन को मालूम हुआ कि वे नंगे है; सो उन्होंने अंजीर के पत्ते जोड़ जोड़ कर लंगोट बना लिये। तब यहोवा परमेश्वर जो दिन के ठंडे समय वाटिका में फिरता था उसका शब्द उन को सुनाई दिया। तब आदम और उसकी पत्नी वाटिका के वृक्षों के बीच यहोवा परमेश्वर से छिप गए” (उत्पत्ति 3:7-8)। यहाँ सांकेतिक भाषा में, पाप के प्रभाव और मनुष्य में आए परिवर्तनों के विषय कुछ महत्वपूर्ण बातें दी गई हैं:

·        आँखें खुलनाउन्हें पवित्र परमेश्वर के सम्मुख उनकी वास्तविक दशा तथा अपने किए पाप के दोषी होने का बोध होना दिखाता है।

·        नंगापनपाप के कारण उत्पन्न आत्म-ग्लानि, लज्जा को दिखाता है। उनकी सृष्टि से लेकर उस समय तक, वे अपनी इसी निर्वस्त्र दशा में परमेश्वर के साथ मिला करते थे, संगति करते थे, किन्तु उन्हें इसमें कोई लज्जा नहीं होती थी, उन्हें कभी अपने आप को ढाँपने की आवश्यकता नहीं हुई, क्योंकि वे भी निष्पाप और पवित्र दशा में थे। 

·        उनकी सृष्टि के समय से लेकर उनकी यह निर्वस्त्र दशा परमेश्वर के सम्मुख उनके बिल्कुल खुले, प्रकट और किसी भी प्रकार के आवरण रहित होने, और परमेश्वर द्वारा उनके विषय में सब कुछ जानने की ओर भी संकेत करता है।

·        अंजीर के पत्तों के लंगोट पहननामनुष्य के अपने आप को अपने ही प्रयासों से परमेश्वर के सम्मुख प्रस्तुत कर पाने योग्य बनाने को दिखाता है। मनुष्य अपने धर्म के कामों, अपने भले कार्यों, अपने ही बनाए तौर-तरीकों से अपनी लज्जा, परमेश्वर के प्रति अनाज्ञाकारिता और पाप की दशा, को छुपाने का प्रयास करता है। वह यह भूल जाता है कि परमेश्वर के सामने उसका सब हाल खुला है, बेपरदा है। वह अपना कुछ भी परमेश्वर से छिपा नहीं सकता है। 

·        जिस प्रकार वे अंजीर के पत्ते वास्तविकता में केवल एक अस्थाई समाधान थे - थोड़े समय वे मुरझा जाते, सूख कर गिर जाते, और मनुष्य का नंगापन फिर से प्रकट हो जाता, उन्हें फिर से कुछ नया प्रावधान करना पड़ता; उसी प्रकार मनुष्य की धार्मिकता के काम, उसके अपने भलाई के प्रयास, सभी अस्थाई और नश्वर हैं, उसे कभी परमेश्वर के सम्मुखढँपाहुआ और प्रस्तुत होने योग्य नहीं बना सकते हैं। वह बार-बार अपने इन प्रयासों को दोहराता रहता है, किन्तु पाप का दोषी होने का बोध उसके विवेक से नहीं जाता है।

·        उन्होंने परमेश्वर की आवाज़ सुनकर अपने आप को “वाटिका के वृक्षोंमें छुपा लिया। आज भी मनुष्य अपनी ही गढ़ी हुई धार्मिकता को ओढ़ कर, अपने आप को परमेश्वर की सृष्टि की बातों में छुपाए रखने के प्रयास करता है; परमेश्वर के सामने अपनी वास्तविकता में आने के स्थान पर, वह अपने बनाए हुए आवरण ओढ़े हुए, अपने आप को अपनी ही गढ़ी हुई नश्वर बातों में छिपाए रखना चाहता है। 

 

आज किसी भी पूछ लें, सब के पास परमेश्वर की संगति में और उसके वचन के साथ समय न बिताने का एक ही बहाना है -जीवन इतना व्यस्त है कि इन बातों के लिए समय ही नहीं मिलता है; जो थोड़ा बहुत कर सकते हैं, वह कर लेते हैं, वरना संसार की माँगें यह सब करने के लिए समय ही नहीं देती हैं” - सभी अपने आप को संसार की बातों वाटिका के वृक्षोंमें छुपाए रखना चाहते हैं। यह जानते हुए भी कि संसार की यह सब बातें अस्थाई हैं, नश्वर हैं, यहीं रह जाएंगी, इनमें से कोई भी साथ नहीं जाएगी, ऐसा कोई बहाना परमेश्वर के सामने नहीं चलेगा।

अन्ततः वह समय सभी के जीवन में आएगा जब उन्हें परमेश्वर के सम्मुख अपनी वास्तविकनिर्वस्त्रदशा में आना ही होगा, और अपने जीवन की हर बात का हिसाब उसे देना होगा। तब उनके बनाए हुएअंजीर के पत्तों के लंगोटउनके पाप की दशा को ढाँपने पाएँगे, और उनके अपने नहीं वरन परमेश्वर के मानकों के आधार पर उन्हें न्यायसंगत ठहराने नहीं पाएंगे। परमेश्वर से उनकी वास्तविकता न अभी छुपी हुई है, और न तब छुपी हुई होगी, “सो जब तक प्रभु न आए, समय से पहिले किसी बात का न्याय न करो: वही तो अन्धकार की छिपी बातें ज्योति में दिखाएगा, और मनों की मतियों को प्रगट करेगा, तब परमेश्वर की ओर से हर एक की प्रशंसा होगी” (1 कुरिन्थियों 4:5) 

       पहले पाप से उत्पन्न हुई स्थिति के बारे में हम आगे अगले लेख में देखेंगे। अभी के लिए आप से निवेदन है कि अपने जीवनों को परमेश्वर के दृष्टिकोण से जाँच कर देखें, आप की वास्तविक स्थिति क्या है? ध्यान करें, आपके अपने कोई भी प्रयास और उपाय आपको परमेश्वर की दृष्टि से छुपा नहीं सकते हैं; आपकी लज्जा - आपके पाप की दशा उसके सामने खुली है। फिर भी वह आप से प्रेम करता है, आपके साथ संगति को बहाल करना चाहता है। लेकिन यह संभव हो पाना आपके निर्णय पर आधारित है। आपकी स्वेच्छा और सच्चे पश्चाताप तथा समर्पित मन से की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु, मैं मान लेता हूँ कि मन-ध्यान-विचार-व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता करके मैंने पाप किया है। मैं धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों को अपने ऊपर लेकर, मेरे स्थान पर उनके मृत्यु-दण्ड को कलवरी के क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा सह लिया। आप मेरे स्थान पर मारे गए, और मेरे उद्धार के लिए मृतकों में से जी भी उठे। कृपया मुझ पर दया करें और मेरे पाप क्षमा करें। मुझे अपना शिष्य बना लें, अपनी आज्ञाकारिता में अपने साथ बना कर रखें।परमेश्वर आपकी संगति की लालसा रखता है, आपको आशीषित देखना चाहता है; इसे संभव करना या न करना, आपका अपना व्यक्तिगत निर्णय है। 

 

बाइबल पाठ: रोमियों 6:19-23 

रोमियों 6:19 मैं तुम्हारी शारीरिक दुर्बलता के कारण मनुष्यों की रीति पर कहता हूं, जैसे तुम ने अपने अंगों को कुकर्म के लिये अशुद्धता और कुकर्म के दास कर के सौंपा था, वैसे ही अब अपने अंगों को पवित्रता के लिये धर्म के दास कर के सौंप दो।

रोमियों 6:20 जब तुम पाप के दास थे, तो धर्म की ओर से स्वतंत्र थे।

रोमियों 6:21 सो जिन बातों से अब तुम लज्जित होते हो, उन से उस समय तुम क्या फल पाते थे?

रोमियों 6:22 क्योंकि उन का अन्त तो मृत्यु है परन्तु अब पाप से स्वतंत्र हो कर और परमेश्वर के दास बनकर तुम को फल मिला जिस से पवित्रता प्राप्त होती है, और उसका अन्त अनन्त जीवन है।

रोमियों 6:23 क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है, परन्तु परमेश्वर का वरदान हमारे प्रभु मसीह यीशु में अनन्त जीवन है। 

 

एक साल में बाइबल:

·      भजन 129; 130; 131

·      1 कुरिन्थियों 11:1-16

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