मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा का प्रमाण
- न्याय के लिए कायल करना (यूहन्ना 16:11).
पिछले लेखों में हमने देखा है कि मसीही
सेवकाई में, परमेश्वर
पवित्र आत्मा अपने कार्य और सामर्थ्य को प्रभु यीशु के शिष्यों, अर्थात मसीही विश्वासियों में होकर करता है, और
उनमें होकर संसार के लोगों के समक्ष मसीही जीवन के उदाहरण तथा वचन की शिक्षाओं को
प्रत्यक्ष करता है। इस प्रकार से परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी यानि कि
प्रभु यीशु के शिष्य बनने वालों के जीवन, व्यवहार, और विचारधारा में, मसीही विश्वास में आने के बाद आए परिवर्तन का प्रत्यक्ष
एवं व्यावहारिक प्रमाण प्रदान करता है। साथ ही यह प्रत्यक्ष एवं व्यावहारिक प्रमाण
औरों को भी प्रभावित एवं प्रोत्साहित करता है कि जैसा औरों के जीवन में हुआ है,
वैसे ही उनके जीवन में भी हो। यूहन्ना 16:8 में
पवित्र आत्मा ने तीन बातें लिखवाई हैं, जिनके विषय वह प्रभु
यीशु के शिष्यों में होकर संसार को दोषी ठहराता, या कायल
करता है। ये तीन बातें हैं - पाप, धार्मिकता, और न्याय। और फिर पद 9, 10, और 11 में इन तीनों के विषय टिप्पणी दी है। इनमें से पहली दो बातें, पाप तथा धार्मिकता के विषय कायल करना को हम यूहन्ना 16:9, 10 से पिछले दो लेखों में देख चुके हैं। आज हम तीसरी बात, न्याय के लिए कायल करने के विषय हम यूहन्ना 16:11 “न्याय के विषय में इसलिये कि संसार का सरदार दोषी
ठहराया गया है” से कुछ शिक्षाएं लेंगे।
मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद
यहाँ ‘न्याय’
किया गया है, उसका अर्थ होता है ‘पहचान करना’ या ‘निर्णय लेना’। जिससे ‘न्याय’ शब्द का
सामान्य अभिप्राय, वैधानिक या कानूनी न्याय करना, यानि कि
उनके अपराधों के लिए लोगों को दोषी ठहराना और दण्ड देना ध्यान में आता है। किन्तु
इस शब्द का केवल यही - दोषी ठहराना और दण्ड देना ही एकमात्र अभिप्राय और प्रयोग
नहीं है। इस शब्द का प्रयोग और अर्थ सही पहचान करने, परिस्थितियों
का सही विश्लेषण करने, या व्यक्तियों का सही आँकलन करने और
उनके विषय सही निर्णय करने, आदि के लिए भी किया जाता है।
यूहन्ना 16:11 में पवित्र आत्मा द्वारा करवाए गए ‘न्याय’ और “संसार का सरदार”
अर्थात शैतान के ‘न्याय’ के मध्य एक तुलना (contrast) रखी गई है। अर्थात, दोनों के ‘न्याय’ करने, यानि कि सही
निर्णय देने, या सही पहचान, अथवा आँकलन
करने में भिन्नता है। और परमेश्वर पवित्र आत्मा, मसीही
विश्वासियों में होकर बिलकुल सटीक, सही, और पक्षपात रहित न्याय, उचित व्यवहार, या निर्णय करवाने के द्वारा, ऐसे उदाहरण प्रस्तुत
करेगा जो संसार के लोगों द्वारा सांसारिक विचार और व्यवहार के अनुसार, “संसार के सरदार” के प्रभाव में होकर किए जाने
वाले अनुचित एवं अपूर्ण न्याय, या निर्णय के बारे में उनको
दोषी ठहराएंगे। एकमात्र सच्चे और जीवते प्रभु परमेश्वर का न्याय सदा सच्चा,
खरा, और पक्षपात रहित होता है। परमेश्वर के
वचन बाइबल से इसके विषय कुछ हवाले देखिए:
परमेश्वर का भय मानने वाले, तथा परमेश्वर के भय में
होकर राज्य करने वाले यहूदा के राजा यहोशापात ने अपने प्रजा के ऊपर जब न्यायी
ठहराए: “फिर उसने यहूदा के एक एक गढ़ वाले नगर में न्यायी
ठहराया। और उसने न्यायियों से कहा, सोचो कि क्या करते हो,
क्योंकि तुम जो न्याय करोगे, वह
मनुष्य के लिये नहीं, यहोवा के लिये करोगे; और वह न्याय करते समय तुम्हारे साथ रहेगा। अब
यहोवा का भय तुम में बना रहे; चौकसी से काम करना, क्योंकि हमारे परमेश्वर यहोवा में कुछ कुटिलता नहीं है, और न वह किसी का पक्ष करता और न घूस लेता है” (2 इतिहास 19:5-7)।
प्रभु यीशु मसीह ने अपने समय के धर्म के
अगुवों को उनके व्यवहार और ‘न्याय’ के विषय उलाहना देते हुए,
उन ‘धार्मिक’ लोगों से
अपने विषय में कहा, “मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता;
जैसा सुनता हूं, वैसा न्याय करता हूं, और मेरा न्याय सच्चा है; क्योंकि मैं अपनी
इच्छा नहीं, परन्तु अपने भेजने वाले की इच्छा चाहता हूं”
(यूहन्ना 5:30); और “मुंह देखकर न्याय न चुकाओ, परन्तु ठीक ठीक न्याय
चुकाओ” (यूहन्ना 7:24)।
निष्कर्ष यह कि मसीही विश्वास में आने के
द्वारा व्यक्ति के मन, जीवन,
विचार, और व्यवहार में जो परिवर्तन आता है,
वह उसे परमेश्वर पवित्र आत्मा की अधीनता में खरा और सच्चा न्याय
करने, या जाँच-परख करने, या सही आँकलन
करके पक्षपात रहित निर्णय करने वाला बना देता है। उसका यह बदला हुआ व्यवहार,
उसमें परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है। साथ ही उसका
इस प्रकार का जीवन, पाप और पापमय प्रवृत्तियों तथा विचारधाराओं में रहने वाले,
“संसार के सरदार” के प्रभाव में होकर
कार्य करने वाले लोगों के समक्ष एक तुलना (contrast) रखता है,
और उन्हें उनके अनुचित न्याय, व्यवहार,
और विचार के लिए दोषी ठहराता है।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो यूहन्ना 16:11
के समक्ष आपका जीवन कैसा है? यदि आप अभी इस पद
के समक्ष अपने आप को दोषी पाते हैं, तो फिर आपको 2 कुरिन्थियों 13:5 के अनुसार अपने आप को और अपने
मसीही विश्वास में होने के दावे का पुनः अवलोकन करने, अपने
मसीही विश्वासी होने की समीक्षा करने की आवश्यकता है। मसीही विश्वासी होने के नाते,
आप में विद्यमान परमेश्वर पवित्र आत्मा आपको संसार के लोगों के समान
अनुचित न्याय नहीं करने देगा। आप जब भी ऐसा करेंगे, वह आपके जीवन में खलबली उत्पन्न करेगा, आपके जीवन में तब तक बेचैनी रहेगी जब तक आप अपने इस गलत
व्यवहार को सही नहीं कर लेंगे। और यदि आप फिर भी ढिठाई में ऐसे व्यवहार में बने
रहेंगे, जो एक मसीही विश्वासी के लिए सही नहीं है, तो आपको ताड़ना में से भी होकर निकलना पड़ेगा, जिससे
आप सुधारे जा सकें (इब्रानियों 12:5-11)।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त
आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको धर्मी बनाए; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन
करके दे? और फिर, आप में होकर अपने आप
को तथा अपनी धार्मिकता को औरों पर प्रकट करे, आपको खरा आँकलन
करने और सच्चा न्याय करने वाला बनाए; तथा आप में होकर पाप
में भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे,
जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी
प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है,
उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ
प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए
पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन
का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं,
“प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा
और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके
कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और
आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” प्रभु की
शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक
प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक
के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- विलापगीत
3-5
- इब्रानियों 10:19-39
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