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शनिवार, 18 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा के वरदान - 16

  

आत्मिक वरदानों के प्रयोगकर्ता - भविष्यद्वक्ता  

हम परमेश्वर के वचन से मसीही जीवन और सेवकाई के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा द्वारा दिए जाने वाले वरदानों के बारे में देख रहे हैं। यद्यपि पवित्र आत्मा के द्वारा दिए गए सभी आत्मिक वरदान और परमेश्वर द्वारा निर्धारित की गई सभी सेवकाइयां समान स्तर की हैं, और कोई किसी अन्य से छोटी या बड़ी अथवा कम या अधिक महत्वपूर्ण नहीं है; किन्तु मण्डली में उनके अधिकांशतः या कभी-कभी उपयोग करने के अनुसार, 1 कुरिन्थियों 12:28 में कुछ वरदानों को उपयोगिता के अनुसार वरीयता क्रम में रखा गया है। इस क्रम में सबसे अधिक उपयोगी वचन की सेवकाई से संबंधित वरदान हैं; और सबसे कम उपयोग में आने वाले अन्य भाषाएं बोलने और अनुवाद करने के वरदान हैं। अन्य भाषाएं बोलने से संबंधित वरदानों के बारे में हम पहले देख चुके हैं। वचन की सेवकाई से संबंधित वरदानों में सबसे पहले प्रेरित होने का वरदान है, जिसके बारे में हम पिछले दो लेखों में देख चुके हैं। आज हम वचन की सेवकाई से संबंधित दूसरे वरदान, भविष्यद्वक्ता होने के बारे में परमेश्वर के वचन से देखेंगे।

सामान्यतः जब शब्द भविष्यद्वक्ता या भविष्यवाणी करना हमारे सामने आते हैं, तो हम यही समझते हैं कि इसका अर्थ है भविष्य की बातें बताने वाला व्यक्ति, अथवा भविष्य की बातें बताना। किन्तु बाइबल की मूल भाषाओं में प्रयोग किए गए शब्दों का केवल यही अनुवाद अथवा अर्थ नहीं है। नए नियम की मूल यूनानी भाषा में प्रयोग किए गए शब्दों का अर्थ हैसामने या समक्ष, अथवा आगे, बोलने वाला”, औरसामने या समक्ष, अथवा आगे, बोला गया”; और इसके समान पुराने नियम की मूल इब्रानी भाषा के शब्दों का भी यही अर्थ और अभिप्राय होता है। इस शब्दार्थ से यह प्रकट है कि मूल भाषा के शब्दों के अनुसार, न केवल भविष्य की बातें बताने वाला और भविष्य की बातों को बताना भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी है, वरन यदि कोई लोगों के सामने या समक्ष आकर परमेश्वर की ओर से बोले,  वर्तमान की ही किसी बात के लिए सन्देश अथवा शिक्षा दे, तो वह भी भविष्यद्वक्ता है, और उसकी कही बात भी भविष्यवाणी है। 

इस संदर्भ में बाइबल की एक और बहुत महत्वपूर्ण शिक्षा का भी ध्यान कीजिए - यद्यपि परमेश्वर ने ऐसे लोगों को खड़ा किया जो उसकी ओर से दर्शन और संदेश पाकर उसके लोगों को उनका भविष्य, उन पर आने वाले दण्ड अथवा आशीषें, और संसार के अंत एवं न्याय आदि के बारे में बताएं, और परमेश्वर की ओर से नियुक्त किए गए इन लोगों को बाइबल में नबी या भविष्यद्वक्ता, और उनकी बातों और संदेशों को भविष्यवाणी कहा गया, किन्तु यह बात न तो पुराने नियम में परमेश्वर के लोगों, इस्राएल पर सामान्यतः, और न ही नए नियम में मसीही विश्वासियों पर सामान्य रीति से, परमेश्वर के नाम से बोलने वाले सभी व्यक्तियों के लिए लागू और वैध कही गई है। बाइबल में सामान्यतः, दोनों पुराने और नए नियमों में, भविष्य की बातों को बताने वालों के विरुद्ध लिखा गया है, उन्हें परमेश्वर और उसकी शिक्षाओं के विमुख एवं दण्डनीय बताया गया है, दुष्टात्माओं के प्रभाव में आकर कार्य करने वाले शैतान के लोग दिखाया गया है (व्यवस्थाविवरण 18:9-14; प्रेरितों 16:16-18)। तात्पर्य यह कि हर वह जन जो परमेश्वर के नाम में बोलने और भविष्य की बातें बताने का दावा करता है, वह निश्चित ही परमेश्वर की ओर से नहीं है; शैतान भी अपने लोगों को इन्हीं शक्तियों के साथ खड़ा कर सकता है। और वास्तविकता यही है कि परमेश्वर के कार्यों में बाधा तथा लोगों भ्रम उत्पन्न करने के लिए शैतान ऐसा करता भी हैसाथ ही हम बाइबल में यह भी देखते हैं कि अपने आप को भविष्यद्वक्ता कहने वाले और भविष्यवाणी करने वाले के लिए यह भी बाध्य था कि उसकी कही बात पूरी भी हो; अन्यथा परमेश्वर ने अपनी व्यवस्था में ऐसे नबियों/लोगों को मार डालने की आज्ञा दी थी (व्यवस्थाविवरण 18:20-22); जिससे लोग परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता होने और उसके नाम में व्यर्थ भविष्यवाणी करके उसके लोगों न बहकाएं, न ही परमेश्वर के लोगों से कोई अनुचित लाभ ले सकें। और नए नियम में झूठे  भविष्यद्वक्ताओं की पहचान करके उनसे सचेत रहने के लिए कहा गया है (1 यूहन्ना 4:1-6)

परमेश्वर की ओर से नियुक्त भविष्यद्वक्ता होने, और परमेश्वर की ओर से उसके लोगों तक परमेश्वर के संदेश पहुँचाने वालों के लिए एक और संबंधित एवं महत्वपूर्ण बात यह भी थी कि यदि वह अपनी समझ और इच्छा से परमेश्वर के नाम से कुछ कह दे, तो परमेश्वर उसकी ऐसी बात को अस्वीकार कर देता था। उस नबी की केवल वही बात परमेश्वर को स्वीकार्य होती थी, जो परमेश्वर उसे कहने के लिए कहता था, यदि वह अपनी ओर से परमेश्वर के नाम में कुछ कहता था, तो परमेश्वर उसे उसकी गलती ता देता था, और सही करने के लिए कहता था, जैसे नातान द्वारा परमेश्वर के नाम में दाऊद के साथ परमेश्वर का मंदिर बनवाने के लिए सहमत होना, और फिर परमेश्वर द्वारा उसे गलती सुधार कर सही बात दाऊद से कहने के लिए भेजना (2 शमूएल 7:1-5)। इसके विपरीत, यदि परमेश्वर द्वारा नियुक्त कोई नबी, परमेश्वर की बात कहने में आनाकानी करता था, परमेश्वर की बात को नहीं बताता था, तो भी वह परमेश्वर के सत्य को कहने की ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकता था। ऐसे नबियों के अन्दर परमेश्वर ऐसी बेचैनी उत्पन्न करता था कि अन्ततः उन्हें बोलना ही पड़ता था (यिर्मयाह 20:9), या उनके चारों ओर ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न करता था कि उन्हें परमेश्वर के कहे के अनुसार करना ही पड़ता था, जैसे योना नबी द्वारा नीनवे में प्रचार करने से बचने के प्रयास करना और फिर जाकर वहाँ प्रचार करना। 

परमेश्वर के वचन बाइबल के अनुसार, परमेश्वर का नबी या भविष्यद्वक्ता, अर्थात परमेश्वर का संदेशवाहक होना, और परमेश्वर के नाम में भविष्यवाणी करना, अर्थात, परमेश्वर की बात को लोगों के सामने बोलना - यह चाहे भविष्य की बात बताना हो अथवा वर्तमान के किसी विषय पर कोई संदेश या शिक्षा देना हो, कोई हल्के में लिए जाने वाली बात न तो कभी थी, और न ही है। परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता कहलाना कोई पदवी या उपाधि प्राप्त करना और फिर उसके द्वारा लोगों से प्रशंसा, आदर, और महत्व पाने की कामना रखने का तरीका नहीं था, वरन परमेश्वर द्वारा दी गई सेवकाई और ज़िम्मेदारी थी, और अभी भी है। यदि हम बाइबल के भविष्यद्वक्ताओं को देखें, वे चाहे पुराने नियम के हों या नए नियम के, उन सभी का जीवन कठिन था, लोगों द्वारा उन्हें कोई विशेष महत्व नहीं दिया जाता था, और बहुत कम लोग उनकी बातों पर ध्यान देते थे या उनकी बातों को पसंद करते थे। परमेश्वर का भविष्यद्वक्ता होना और परमेश्वर की ओर से भविष्यवाणी करना समाज में बुरा बनना और लोगों से बैर मोल लेना होता था, क्योंकि वे भविष्यद्वक्ता अधिकारियों, लोगों और समाज से संबंधित परमेश्वर के कटु सत्य; उनके समय-काल के समाज, अधिकारियों और लोगों की बुराइयाँ, और उनका परमेश्वर से विमुख होने कोसमाज से तिरस्कृत होकर, और अपनी जान पर खेल कर भी प्रकट करते थे, अपने समय के लोगों से इसके लिए सताव और उत्पीड़न को झेलते थे किन्तु इसके विपरीत, आजभविष्यद्वक्ताकहलाना, औरभविष्यवाणीकरना, समाज और लोगों से उनकी पसंद के अनुसार बातें कहने, लोगों से उनकी संपन्नता, प्रसन्नता, और सांसारिक लाभ की प्रतिज्ञाएं करने के लिए प्रयोग किया जाता है। आज लोग इस आत्मिक वरदान को समाज तथा लोगों में व्याप्त बुराइयों को प्रकट करने और उन पर परमेश्वर के सत्य प्रकट करने के लिए नहीं, वरन, अपने आप को विशिष्ट और आदरणीय दिखाने के लिए एक उपाधि, या पदवी के समान प्रयोग करते हैं, जो बाइबल के अनुरूप नहीं है। हम अगले लेख में देखेंगे कि परमेश्वर के वचन मेंभविष्यवाणीशब्द किन विभिन्न अभिप्रायों में प्रयोग किया गया है, और उसके द्वारा इन शब्दों के बाइबल के अनुसार अर्थ को और गहराई से समझेंगे। 

यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो आपको भी परमेश्वर के वचन के अनुसार वचन में लिखी बातों को देखना, जानना, और समझना चाहिए। सेवकाई के आत्मिक वरदान को परमेश्वर के सत्य के स्थान पर लुभावनी बातें कहने और शारीरिक या सांसारिक महत्व एवं स्थान प्राप्त करने के लिए प्रयोग करने वालों से बच कर रहना चाहिए, और वचन की वास्तविकता के अनुसार देख-परख कर ही लोगों द्वारा कही जाने वाली बातों को मानना चाहिए। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • ओबद्याह 1    
  • प्रकाशितवाक्य 9

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