आत्मिकता का प्रमाण -
आज्ञाकारिता या चिन्ह और चमत्कार?
पिछले लेख में हमने देखा है कि मनुष्य द्वारा परमेश्वर को प्रसन्न करने और
उसके कार्य करने के लिए परमेश्वर की दृष्टि में परमेश्वर की आज्ञाकारिता का ही
सर्वोपरि स्थान है। हम यह भी देख चुके हैं कि परमेश्वर अपने सभी अनुयायियों से कुछ
न कुछ कार्य चाहता है, और उसने वे कार्य पहले से ही
निर्धारित भी किए हुए हैं, तथा उस सेवकाई के लिए उपयुक्त
सामर्थ्य एवं योग्यता प्रदान करने के लिए मसीही विश्वासी में सर्वदा निवास करने
वाला परमेश्वर पवित्र आत्मा प्रत्येक मसीही विश्वासी को आवश्यक वरदान भी देता है।
यह बाइबल का स्थापित तथ्य है कि उद्धार पाते ही, वास्तविकता
में मसीही विश्वासी बनते ही, उसी पल से परमेश्वर पवित्र
आत्मा उद्धार पाए हुए व्यक्ति में आकर निवास करने लग जाता है; और व्यक्ति में उनकी उपस्थिति उस व्यक्ति के बदल हुए जीवन तथा पवित्र
आत्मा के फलों के दिखने लग जाने के द्वारा प्रमाणित हो जाती है (मत्ती 7:15-20)। ये सभी परमेश्वर द्वारा पूर्व-निर्धारित और उसकी योजना के अनुसार दी
जाने वाली बातें हैं, जिनके लिए किसी भी उद्धार पाए हुए जन
को अलग से कोई प्रयास अथवा प्रार्थनाएं करने की आवश्यकता नहीं है।
किन्तु फिर भी पवित्र आत्मा के नाम से
अनेकों प्रकार की गलत शिक्षाएं और अनुचित धारणाएं बताने-सिखाने वाले लोग, मसीही विश्वासी में
पवित्र आत्मा के होने को लेकर लोगों में भ्रम और संदेह उत्पन्न करते रहते हैं,
और पवित्र आत्मा की उपस्थिति प्रमाणित करने के लिए व्यक्ति में
विभिन्न बातों के होने की अनिवार्यता को सिखाते हैं, नाहक उन
पर बल देते रहते हैं। इन गलत शिक्षाओं को सिखाने वाले लोगों द्वारा कही जाने वाली बातों
में से एक है पवित्र आत्मा पाए हुए व्यक्ति में अद्भुत चिह्न और चमत्कार करने की
सामर्थ्य होना। निःसंदेह चिह्न और चमत्कार करने की सामर्थ्य देना परमेश्वर पवित्र
आत्मा द्वारा दिए जाने वाले वरदानों में से एक है; किन्तु बाइबल में ऐसी कोई शिक्षा
नहीं है कि यह वरदान प्रत्येक मसीही विश्वासी को दिया जाएगा, या, किसी व्यक्ति में इस गुण की उपस्थिति उसमें
पवित्र आत्मा होने का प्रमाण है। वरन, इसके ठीक विपरीत,
परमेश्वर ने पुराने और नए नियम, दोनों में
अपने लोगों को सचेत किया है कि वे चिह्न और चमत्कारों के द्वारा लोगों को भरमाने
और परमेश्वर से दूर कर देने वालों से सावधान रहें, उनके छल
में फंस न जाएं, और परमेश्वर के वचन को ही वास्तविकता को
जाँचने की खरी कसौटी के समान प्रयोग करें।
यह न केवल बाइबल का, वरन सामान्य जीवन का भी
एक व्यावहारिक सत्य है कि शैतान और उसके दूत भी अद्भुत कार्य, चिह्न और चमत्कार, जादू-टोना, भावी
कहना, आदि करने की सामर्थ्य रखते हैं और इनके द्वारा लोगों
को प्रभावित करते हैं, अपने वश में लाते हैं, और परमेश्वर के वचन की सच्चाई एवं वास्तविकता से बहका देते हैं, गलत मार्गों पर भटका देते हैं। कुछ लोगों में ऐसा करने की योग्यता और इसके
द्वारा समाज पर उनका प्रभाव होना यह प्रमाणित करता है कि उनमें कुछ ऐसी शक्तियां थीं जिनके द्वारा वे ये सब
किया करते थे। अन्यथा, यदि उनमें
ये सब करने की शक्ति नहीं होती तो लोग क्यों उन्हें मानते और उनके अधीनता में आते?
और साथ ही जब परमेश्वर ने उनके साथ न जाने, उनसे
दूर रहने के लिए निर्देश दिए, तो यह प्रकट है कि उन लोगों की
शक्ति परमेश्वर की ओर से नहीं थी, वरन परमेश्वर के बैरी और विरोधी शैतान की ओर से थी।
इस संदर्भ में बाइबल
से ही कुछ उदाहरणों को देखते हैं:
- मूसा
तथा हारून ने परमेश्वर की आज्ञाकारिता और सामर्थ्य से जो चिह्न फिरौन के
सामने दिखाए, फिरौन के
‘पंडितों और टोन्हा’ करने वालों ने भी
वही करके दिखा दिया (निर्गमन 7:8-12, 19-22; 8:5-7)।
- परमेश्वर
ने अपनी व्यवस्था में भावी कहने वालों, शुभ-अशुभ मुहूर्तों को मानने वालों, टोन्हा
करने वालों, और तांत्रिकों, आदि
से दूर रहने को कहा (व्यवस्थाविवरण 8:9-14)।
- राजा
नबूकदनेस्सर ने अपने दरबार में ज्योतिषी, तन्त्री, टोन्हे, आदि रखे हुए थे; किन्तु अब वे परमेश्वर द्वारा
दिखाए गए स्वप्न को नहीं बूझ सके (दानिय्येल 2:2-7; 4:4-7)।
- शमौन
टोन्हा करने वाला लोगों को अपनी विद्या और कार्यों से चकित करता था, और लोग इतने प्रभावित थे कि
उसमें ईश्वरीय शक्ति होने की बात करते थे (प्रेरितों 8:9-11)।
- पौलुस
ने एक दासी में से भावी कहने वाली आत्मा को निकाला, जो भावी कहा करती थी (प्रेरितों
16:16-18)।
- मसीही
विश्वास में आने से पहले जादू करने वालों ने मसीही विश्वास में आने के बाद
अपनी पुस्तकें लाकर जलाईं (प्रेरितों 19:18-19);
अर्थात उनकी विद्या मानी, सीखी, और सिखाई जाती थी। अन्यथा उस समय में जब सभी पुस्तकें हाथ से लिखी
जाती थीं, तो ऐसी बातों के लिए जो मिथ्या और
प्रमाण-रहित थीं, पुस्तकें क्यों लिखी जातीं? उन पुस्तकों की बातों में चाहे सब कुछ न सही, किन्तु कुछ तो यथार्थ
होगा, जिसके द्वारा जन-साधारण को प्रभावित एवं वशीभूत
किया जाता था।
- परमेश्वर
पवित्र आत्मा ने पौलुस द्वारा थिस्सलुनीकियों को लिखवाई पत्री में मसीही
विश्वासियों को सचेत किया कि वे चिह्न-चमत्कारों के पीछे न जाएं, क्योंकि अंत के दिनों में शैतान
ऐसे कार्यों के द्वारा लोगों को भटका देगा और विनाश में ले जाएगा, क्योंकि उन्होंने परमेश्वर के वचन पर विश्वास करने के स्थान पर
अलौकिक बातों पर विश्वास किया और झूठ में फंस गए (2 थिस्सलुनीकियों
2:9-12);
- प्रभु
यीशु ने, और पुराने
नियम के नबियों तथा नए नियम के प्रेरितों ने तो मुर्दों में प्राण डाले थे;
किन्तु अंत के समय में तो यहाँ तक होगा कि शैतान मूरत में भी
प्राण डालेगा और उससे बुलवाएगा (प्रकाशितवाक्य 13:14-15)।
परमेश्वर का वचन इस बात के लिए बहुत
स्पष्ट है परमेश्वर की दृष्टि में प्राथमिकता और महत्व परमेश्वर के वचन और उसकी
आज्ञाकारिता का है। प्रभु यीशु ने अपने पहाड़ी उपदेश में, एक बहुत महत्वपूर्ण
शिक्षा दी है, “जो मुझ से, हे प्रभु,
हे प्रभु कहता है, उन में से हर एक स्वर्ग के
राज्य में प्रवेश न करेगा, परन्तु वही जो मेरे स्वर्गीय पिता
की इच्छा पर चलता है। उस दिन बहुतेरे मुझ से कहेंगे; हे
प्रभु, हे प्रभु, क्या हम ने तेरे नाम
से भविष्यवाणी नहीं की, और तेरे नाम से दुष्टात्माओं को नहीं
निकाला, और तेरे नाम से बहुत अचम्भे के काम नहीं किए?
तब मैं उन से खुलकर कह दूंगा कि मैं ने तुम को कभी नहीं जाना,
हे कुकर्म करने वालों, मेरे पास से चले जाओ”
(मत्ती 7:21-23)। यहाँ प्रभु द्वारा कही गई
बातों पर ध्यान दीजिए:
- जिनके
लिए प्रभु ने यह बात कही है, वे प्रभु को संबोधित कर रहे थे, किसी अन्य
देवी-देवता या अलौकिक शक्ति को नहीं;
- वे
संख्या में “बहुतेरे”
होंगे, थोड़े से नहीं;
- उन्होंने
जो कुछ भी किया, वह प्रभु
यीशु के नाम से किया, अपने नाम से या किसी अन्य
देवी-देवता के नाम से नहीं;
- उन्होंने
जो कुछ किया, वह वही सब था
जो आज पवित्र आत्मा के नाम से गलत शिक्षाएं सिखाने और फैलाने वाले करने पर
ज़ोर देते हैं - भविष्यवाणियाँ करना, दुष्टात्माओं को
निकालना, अचंभे के कार्य करना;
- उन्होंने
यह सब थोड़ा सा या कभी-कभार नहीं वरन बहुतायत से किया;
- उन्होंने
यह नहीं कहा कि “हमने करने के
प्रयास किए”, या “हमने यह सब करने
की लालसा रखी”; वरन यह कि हमने किया! अर्थात ये सभी
कार्य उनके द्वारा हुए, उनके ये कार्य लोगों के सामने
प्रत्यक्ष थे।
- प्रभु
यीशु ने उन से यह नहीं कहा कि “तुमने यह सब करने का प्रयास तो किया किन्तु तुम से हो नहीं सका”;
वरन उनके इन दावों को झूठ या गलत न बताने के द्वारा प्रभु ने
अप्रत्यक्ष रीति से उनके द्वारा यह सब किए जाने की पुष्टि भी की;
- किन्तु
फिर भी प्रभु ने उन्हें कहा “मैंने तुम्हें कभी नहीं जाना” और उन्हें
पूर्णतः अस्वीकार कर दिया;
- प्रभु
ने उनके कार्यों को झुठलाया नहीं, वरन उन कार्यों को “कुकर्म” कहा।
प्रभु द्वारा उनके लिए कही गई इस
अनपेक्षित और कठोर बात का आधार पद 21 के अंत में प्रभु यीशु द्वारा कहा गया वाक्य है “वही जो मेरे स्वर्गीय पिता की इच्छा पर चलता है”; अर्थात इन लोगों में परमेश्वर तथा उसके वचन की आज्ञाकारिता का स्थान नहीं
था। चाहे वे संख्या में बहुत थे, और वे प्रभु के नाम से और बहुतायत से ये सभी
भविष्यवाणियाँ, चिह्न
और चमत्कार करते थे किन्तु वे परमेश्वर की इच्छा पर नहीं चलते थे, उनकी अपनी ही धारणाएं, अपने ही विश्वास, अपनी ही बातें और शिक्षाएं थीं, जिन्हें वे मानते,
मनाते, और मनवाते थे - और अपनी यह मन-गढ़न्त
बातें, अपनी मन-मर्ज़ी वे प्रभु परमेश्वर के नाम से बताते,
चलाते, सिखाते और दिखाते थे। किन्तु उनके
द्वारा अपनी बातों को प्रभु के नाम से बताने, सिखाने,
और दिखाने के द्वारा, उनकी बातें प्रभु
परमेश्वर की बातें नहीं बन गईं। वे मनुष्यों की बातें और शिक्षाएं थीं, और मनुष्यों ही की रहीं; प्रभु परमेश्वर ने उन्हें
कोई महत्व अथवा स्वीकृति नहीं दी, बल्कि न केवल उन्हें
पूर्णतः तिरस्कार कर दिया, वरन ऐसा करने वालों को अपने पास
से निकाल बाहर भी कर दिया।
हमारी आत्मिकता का प्रमाण हमारे द्वारा
प्रभु परमेश्वर और उसके वचन को दी जाने वाली प्राथमिकता और आज्ञाकारिता है; हम में विद्यमान पवित्र
आत्मा के फलों की हमारे जीवन और व्यवहार उपस्थिति है। जो प्रभु के वचन को आदर और
महत्व देता है, प्रभु और परमेश्वर पिता उसे आदर और महत्व देते
हैं, उसमें और उसके साथ आकर रहते हैं, और
परमेश्वर के वचन के प्रति उस व्यक्ति का प्रेम ही परमेश्वर के प्रति उसके
प्रेम का सूचक एवं प्रमाण है (यूहन्ना 14:21, 23)। इसके अतिरिक्त और कोई प्रमाण परमेश्वर ने बाइबल
में नहीं दिया है।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो अपने जीवन को
जाँच-परख कर देख लीजिए कि परमेश्वर के वचन और आज्ञाकारिता के प्रति आपकी स्थिति,
आपके जीवन में उनके लिए प्राथमिकता की दशा क्या है? क्या आप परमेश्वर के प्रति अपने समर्पण, और उसकी
आज्ञाकारिता में जीवन जीने के द्वारा अपनी आत्मिकता को प्रदर्शित एवं प्रमाणित
करते हैं; या फिर उन झूठी शिक्षाएं देने वालों और
चिह्न-चमत्कारों की बातों पर ज़ोर देने वालों की बातों में फंसे हुए हैं? सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है, बहुत सीधा
और स्पष्ट है - जो बातें, कार्य, और
व्यवहार लोग पवित्र आत्मा के नाम से करते हैं, क्या प्रभु
यीशु मसीह और उनके शिष्यों की बातों, कार्यों, और व्यवहार में वे देखने को मिलती हैं? यदि नहीं,
तो फिर क्यों केवल उनके कहने भर से, उनके
द्वारा किए जाने वाले विचित्र व्यवहार, उछल-कूद, शोर-शराबे, और बाइबल से बाहर की बातों को पवित्र
आत्मा की ओर से करवाया गया माना जाए? क्यों उनकी अपने मन से
कही गई बातों को प्राथमिकता दी जाए, और परमेश्वर के अटल और
सदा सच्चे वचन की बातों को अनदेखा किया जाए? वास्तविकता को
पहचानिए और विनाश से बचने के लिए हर एक गलत शिक्षा से तथा गलत शिक्षा देने वाले की
संगति से बाहर निकलकर परमेश्वर तथा उसके वचन के प्रति समर्पित और आज्ञाकारिता का
जीवन व्यतीत कीजिए।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- दानिय्येल
5-7
- 2 यूहन्ना 1
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