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रविवार, 17 मार्च 2024

Growth through God’s Word / परमेश्वर के वचन से बढ़ोतरी – 12


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सुसमाचार से संबंधित शिक्षाएँ – 9

 

    सुसमाचार से सम्बन्धित बाइबल की शिक्षाओं के बारे में विचार करते हुए हमने देखा है कि इन के दो अनिवार्य भाग हैं, पापों से पश्चाताप और सुसमाचार में विश्वास। सच्चे, पूरे मन से किए गए पश्चाताप का प्रमाण उस व्यक्ति के जीवन और व्यवहार में होने वाला परिवर्तन होता है, तथा साथ ही उसकी परमेश्वर के वचन के अध्ययन में निरन्तर और बढ़ती हुई रुचि, और पापों से पश्चाताप की आवश्यकता को औरों तक पहुँचाने की लगन भी इसके प्रमाण होते हैं। हमने पश्चाताप करने वाले व्यक्ति में होने वाले इस परिवर्तन या बदलाव के कुछ पक्षों को देखा है, और सीखा है कि यद्यपि परमेश्वर यह अनिवार्यतः चाहता है कि व्यक्ति के जीवन में परिवर्तन आएँ, किन्तु इन परिवर्तनों को लाने के लिए व्यक्ति को स्वयं पहल करनी होती है, परिवर्तन को आरम्भ करना होता है। हमने रोमियों 12:1-2 से देखा है कि विश्वासी को परमेश्वर के पास आना है, स्वेच्छा से अपने आप को “जीवित बलिदान” के समान उसे अर्पित करना है। जब व्यक्ति यह करता है तब परमेश्वर उसकी बुद्धि को नया कर देता है, उसे खोल देता है कि वह उसके उद्धार पाने के समय से उसमें आ कर निवास करने वाले परमेश्वर पवित्र आत्मा की सहायता से वचन के सत्यों को देख और समझ सके। उस व्यक्ति को अपनी नई की हुई बुद्धि को, अपने जीवन में उसके अनुरूप परिवर्तनों के द्वारा प्रकट करना है, और निरन्तर एक ऐसा जीवन जीने में प्रयासरत रहना है जो परमेश्वर को महिमा देता रहता है। पिछले लेख में हम यहाँ पर आकर रुके थे कि बहुतेरे यह जीवन जीने में संकोच करते हैं, और इस कारण अपने जीवन में इन परिवर्तनों को कार्यान्वित करने में बहुत धीमे होते हैं, क्योंकि उनके व्यक्त नहीं किये हुए, अनकहे विचार यही होते हैं कि अपने जीवन को परिवर्तन करने और सँसार की बातों तथा आनन्द से अलग हटने के प्रयास, परिश्रम, और अभ्यास उन्हें करने हैं, किन्तु महिमा सारी परमेश्वर को देनी है, और उन्हें यही प्रतीत होता है कि इसमें उनके लिए कुछ नहीं है। आज हम देखना आरम्भ करेंगे कि परमेश्वर ने उनके लिए क्या रख छोड़ा है जो अपने जीवन में इन बातों को लागू करने और अपने बदले हुए जीवन के द्वारा परमेश्वर को महिमा देने के प्रति गम्भीर रहते हैं।

    एक बहुधा कहा जाने वाला परमेश्वर का गुण है कि “परमेश्वर कभी किसी का कर्ज़दार नहीं रहता है।” यद्यपि यह परमेश्वर के वचन में कहीं लिखा हुआ नहीं है किन्तु परमेश्वर जो अपने लोगों के लिए करता रहता है, उससे बहुत स्पष्ट प्रकट अवश्य है। इसका एक अच्छा उदाहरण है मरकुस 10:28-31; अर्थात प्रभु यीशु मसीह का पतरस को उत्तर, जब उसने पूछा कि सब कुछ छोड़ कर प्रभु के पीछे हो लेने के बदले उन्हें क्या मिलेगा “पतरस उस से कहने लगा, कि देख, हम तो सब कुछ छोड़कर तेरे पीछे हो लिये हैं। यीशु ने कहा, मैं तुम से सच कहता हूं, कि ऐसा कोई नहीं, जिसने मेरे और सुसमाचार के लिये घर या भाइयों या बहिनों या माता या पिता या लड़के-बालों या खेतों को छोड़ दिया हो। और अब इस समय सौ गुणा न पाए, घरों और भाइयों और बहिनों और माताओं और लड़के-बालों और खेतों को पर उपद्रव के साथ और परलोक में अनन्त जीवन। पर बहुतेरे जो पहिले हैं, पिछले होंगे; और जो पिछले हैं, वे पहिले होंगे।” यहाँ पर प्रभु का यह उत्तर कि अभी यहाँ पृथ्वी पर सौ गुना, और आने वाले समय में अनन्त जीवन, उन लोगों के परेशान मनों को शांत करने के लिए काफी होना चाहिए जो यह सोचते हैं कि सारा प्रयास और त्याग तो वे कर रहे हैं, किन्तु उस से सारी महिमा परमेश्वर को जा रही है, और उन्हें संभवतः कुछ नहीं मिल रहा है।

    किन्तु जो लोग परमेश्वर के प्रति अपने पूर्ण समर्पण और बिना कोई प्रश्न उठाए उसकी तथा उसके वचन की पूर्ण आज्ञाकारिता में बने रहते हैं और उससे परमेश्वर की महिमा करते हैं, उनके लिए परमेश्वर ने कुछ बहुत बड़ा निर्धारित किया हुआ है, कुछ ऐसा, मनुष्य अपने प्रयासों से जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकता है। जो लोग उस पर पूरा भरोसा रखते हैं और विश्वास के साथ परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए आगे कदम बढ़ाते हैं, उनके लिए परमेश्वर ने जो निर्धारित किया है उसके तीन भाग हैं। पहला, परमेश्वर उनके साथ एक प्रेमी पिता के समान रहना चाहता है। दूसरा, परमेश्वर उस व्यक्ति को सिद्ध बनाता और प्रत्येक भले कार्य के लिए भली-भान्ति तैयार करता है; उसे परिपक्व बनाता है कि वह मनुष्यों की चालाकियों द्वारा धोखा न खाने पाए। तीसरा, परमेश्वर उसे अपने पुत्र, प्रभु यीशु मसीह के स्वरूप और समानता में ढालना चाहता है।

    हम इन तीनों आशीषों को उनके सम्बन्धित बाइबल के हवालों के साथ एक-एक करके अगले लेख से देखना आरम्भ करेंगे।

    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

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English Translation


Teachings Related to the Gospel – 9

 

    While considering Biblical teachings related to the gospel, we have seen that its two essential components are repentance from sins and believing in the gospel. True heartfelt repentance is evidenced by a change in the life and behavior of the repenting person, along with his developing a lasting and growing interest in being engaged in studying God’s Word, and sharing the necessity of repentance from sins with others. We have considered some aspects of the change that comes in a repentant person from Romans 12:1-2, and have learnt that though it is God who necessarily wants to see the change happening, but the repentant person has to take the initiative in beginning the change in his life. The Believer must come to God, voluntarily offer himself as a “living sacrifice” to God. When a person does that, God renews his mind, opens it to enable it to see and understand His Word and its truths, through the help of the Holy Spirit residing in every Believer from the moment of his salvation. The person has to now show his renewed mind through bringing about the related necessary changes in his life, and continually strive to live a life that glorifies God. In the last article we stopped at the point that many feel reluctant to do this, and are often very slow in implementing the necessary changes, since their unstated or unexpressed thoughts are that while they go through the efforts and exercise of changing their lives and giving up on things and pleasures of this world, it is God who gets all the glory, and apparently there is nothing in this whole exercise for them. Today we will look at what God has in store for the person who is serious in implementing the changes in his life and glorifying God through his changed life.

    There is a commonly stated attribute of God, “God is no one’s debtor;” which although is not written in God’s Word, yet is quite evident from all that God does for His people. One good illustration of this is Mark 10:28-31; i.e., the Lord Jesus’s reply to Peter, when he asked him about what will they get in return for their having left everything for following Him “Then Peter began to say to Him, "See, we have left all and followed You." So, Jesus answered and said, "Assuredly, I say to you, there is no one who has left house or brothers or sisters or father or mother or wife or children or lands, for My sake and the gospel's, who shall not receive a hundredfold now in this time--houses and brothers and sisters and mothers and children and lands, with persecutions--and in the age to come, eternal life. But many who are first will be last, and the last first."” The Lord’s answer here, of a hundredfold here, now on earth, and eternal life in the time to come, should set at rest the troubled minds of those who think that they are making all the efforts and sacrifices, but all the glory is being given to God, and they are being left without anything.

    But what God has in mind for those who glorify Him through their complete submission to Him and unquestioning obedience to Him and His Word is something far greater, something that man can never imagine to achieve through any of his efforts. There are three components to what God has in mind for those who trust Him and step out in faith, to do God’s bidding. Firstly, God wants to live and be with them like a loving Father. Secondly, God wants to make this person complete and thoroughly prepared for every good work; make him mature so that he cannot be deceived by the trickeries of men. Thirdly, God wants to give them a form and image of His Son, the Lord Jesus Christ.

    We will start considering these three blessings one by one, along with their relevant Biblical references, from the next article.

    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

 

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