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दोबारा बपतिस्मा (1)
बहुत बार लोगों के सामने यह प्रश्न होता है कि जिन्होंने कहने के लिए एक बार पहले ‘बपतिस्मा’ ले लिया है, क्या उन्हें दोबारा बपतिस्मा लेना है; या दिया जाना चाहिए? इस प्रश्न का आधार ही बाइबल से बपतिस्मे के प्रति अधूरी या गलत समझ होना है। यदि परमेश्वर के वचन बाइबल में दी गई बातों के अनुसार, व्यक्ति बपतिस्मे के विषय सही समझ रखेगा, बाइबल की शिक्षाओं को स्वीकार करेगा, तो स्वतः ही उसे इस प्रश्न के उत्तर का एहसास भी हो जाएगा।
इसलिए, हम बपतिस्मे से संबंधित उन बातों को, जिन्हें हम ने अभी तक देखा और समझा है, संक्षिप्त कर के, उनका एक बार पुनः अवलोकन कर लेते हैं। अभी तक हम परमेश्वर के वचन से देख और समझ चुके हैं कि:
बपतिस्मे शब्द का अर्थ है डुबोया जाना; और बाइबल में वर्णित बपतिस्मा केवल पानी में डुबकी का बपतिस्मा ही है।
बपतिस्मा हमेशा ही वयस्कों को दिया गया; उनके द्वारा पापों से पश्चाताप करने और प्रभु यीशु को अपना निज उद्धारकर्ता स्वीकार करने, तथा स्वेच्छा से बपतिस्मा लेने के लिए तैयार होने के पश्चात।
बाइबल में शिशुओं और बच्चों के बपतिस्मे का, उन पर पानी के छिड़कने या पानी में उँगली डुबो कर माथे पर चिह्न बनाने को बपतिस्मा कहने या मानने का, या अन्य किसी विधि द्वारा दिए जाने का कोई उल्लेख, समर्थन, अथवा प्रमाण नहीं है। न ही बाइबल में शिशुओं या बच्चों को इस प्रकार का ‘बपतिस्मा’ देने के बाद, युवा होने पर दृढ़ीकरण करने का कोई निर्देश अथवा शिक्षा है। ये सभी बातें बाइबल के बाहर की बातें हैं, मनुष्यों की बनाई हुई रीतियाँ हैं, जिनका परमेश्वर के वचन से कोई आधार अथवा स्वीकृति नहीं है; और न ही परमेश्वर इन्हें स्वीकार करने के लिए किसी भी प्रकार से बाध्य है।
उद्धार पाए हुए वयस्कों द्वारा स्वेच्छा से लिया गया बपतिस्मा, उनके अंदर पापों के पश्चाताप और प्रभु यीशु को अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता ग्रहण कर लेने के निर्णय का, उसके द्वारा उनके जीवन में आए परिवर्तन की, एक सार्वजनिक गवाही है। इससे अधिक और कुछ नहीं है।
प्रभु यीशु के शिष्यों के लिए बपतिस्मा लेना प्रभु की आज्ञा है, इसलिए प्रत्येक मसीही विश्वासी को समय और अवसर के अनुसार उसे लेना है, उसकी अनदेखी नहीं करनी है, उसे हल्के में नहीं लेना है। किन्तु बपतिस्मा व्यक्ति को परमेश्वर की संतान या परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं बनाता है; वरन जो परमेश्वर की संतान बन जाते हैं, जो परमेश्वर के जन हो जाते हैं, उन्हें ही बपतिस्मा लेना है।
बपतिस्मे के द्वारा उद्धार और पापों की क्षमा नहीं है; जिन्होंने पश्चाताप और प्रभु यीशु को अपनाने, उसे समर्पित हो जाने के द्वारा पापों की क्षमा और उद्धार पाया है, उन्हें बपतिस्मा लेना है। इसे व्यक्ति विश्वास में आते ही, तुरंत भी ले सकता है, या समय और अवसर के अनुसार बाद में भी ले सकता है।
बपतिस्मे के समय बोले गए शब्दों या वाक्यांशों के आधार पर, या बपतिस्मा दिए जाने के स्थान के आधार पर, बपतिस्मा जायज़ अथवा नाजायज़ नहीं होता है। बपतिस्मा तो उद्धार पाए हुए व्यक्ति की व्यक्तिगत गवाही है; यदि गवाही सच्ची है, तो फिर वह जायज़ या नाजायज़ कैसे हो सकती है, उस गवाही की सार्वजनिक अभिव्यक्ति जायज़ या नाजायज़ कैसे कही जा सकती है?
बाइबल के अनुसार बपतिस्मा केवल एक ही है - पानी में दिया गया डुबकी का बपतिस्मा। बाइबल में इस एक बपतिस्मे से अधिक किसी अन्य बपतिस्मे को लेने अथवा इच्छा रखने की कोई शिक्षा या निर्देश नहीं है।
बाइबल में बहुचर्चित और ज़ोर देकर सिखाए जाने वाले “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” का कोई उल्लेख, समर्थन अथवा शिक्षा नहीं है। और न ही इस “पवित्र आत्मा का बपतिस्मा” से संबंधित अन्य गलत शिक्षाओं का कोई आधार अथवा औचित्य है।
पानी, आग (अर्थात, नरक की आग की झील), और पवित्र आत्मा वे माध्यम हैं, जिनमें व्यक्ति कभी-न-कभी डुबोया जाएगा, जिनसे कभी-न-कभी ओतप्रोत होगा। ये तीन पृथक ‘बपतिस्मे’ नहीं हैं।
उपरोक्त बातों के आधार पर यह प्रकट और स्पष्ट है कि निम्न प्रकार के बपतिस्मे बाइबल की शिक्षाओं, निर्देशों, और उदाहरणों के आधार पर “बपतिस्मा” नहीं माने जा सकते हैं:
यदि शिशु अवस्था में, या बाल्य अवस्था में “बपतिस्मा” लिया गया है; चाहे बाद में दृढ़ीकरण भी क्यों न किया गया हो।
यदि “बपतिस्मा” पापों के लिए पश्चाताप और प्रभु यीशु को उद्धारकर्ता ग्रहण किए बिना लिया गया। चाहे वह मण्डली या चर्च की रीतियों के पालन के अनुसार लिया गया हो।
यदि स्वेच्छा से लेने की बजाए, किसी भी दबाव या परंपरा के पालन, या लोगों को प्रसन्न करने के लिए लिया गया हो।
ऐसा कोई भी “बपतिस्मा” जो उपरोक्त बाइबल की शिक्षाओं, निर्देशों, और उदाहरणों के अनुसार, या उनके अनुरूप नहीं है।
इससे यह प्रकट और स्पष्ट है कि ऐसा कोई भी “बपतिस्मा” जो वास्तव में बाइबल के अनुसार नहीं है, वह परमेश्वर को स्वीकार्य “बपतिस्मा” न तो है, न ही कभी था। वह केवल एक औपचारिकता, या एक रस्म थी; वास्तविक बपतिस्मा नहीं था। इसलिए अब, वास्तविकता में मसीही विश्वास में आने के बाद, व्यक्ति जब भी बपतिस्मा लेगा, वह उसका “पहला” बपतिस्मा ही होगा, कोई “दूसरा” बपतिस्मा नहीं। उसकी वह “पहली” गवाही तो गलत और अस्वीकार्य थी, इसलिए वह तो मानी ही नहीं गई, और न मानी जाएगी। अब जो वह बाइबल की बातों और शिक्षाओं के अनुरूप अपनी सही गवाही दे रहा है, वही मानी और गिनी जाएगी। इस विषय पर हम कुछ और बातों को अगले लेख में भी देखेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में नया जन्म पाए हुए प्रभु यीशु के शिष्य हैं, पापों से छुड़ाए गए हैं तथा आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है। आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
गिनती 28-30
मरकुस 8:22-38
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Re-Baptism - (1)
Many times, people face the question, should those who are said to have been ‘baptized’ once before, be baptized again; should re-baptism be given? The reason behind their raising this question is their having an incomplete or incorrect understanding of baptism from the Bible. If a person has the right understanding of baptism, i.e., the understanding about it as is given in God's Word Bible, and if he accepts the teachings of the Bible about it, then he will automatically realize the answer to this question as well.
So, let us summarize and recall what we have seen and understood about baptism so far from the Word of God:
To be baptized means to be immersed; And the baptism described in the Bible is only the immersion baptism.
In the Bible Baptism has always been given only to adults; that too after they repented of their sins and accepted the Lord Jesus as their Savior, and were voluntarily desirous of taking baptism.
There is no mention, support, or evidence of baptism of infants and children in the Bible; neither by sprinkling water on them nor making a mark on their forehead by dipping a finger in water, nor in any other manner. Nor is there any instruction or teaching in the Bible for infants or children to be “Confirmed” when they are young. All these are things outside the Bible, they are customs made by men, which have no basis or approval from the Word of God; Nor is God obliged in any way to accept or honor them in any way.
Voluntary baptism taken by saved adults is a public testimony of the change brought in their lives, because of their repentance of sins and their decision to accept the Lord Jesus as their personal Savior. Baptism is nothing more than this public testimony of an inner personal change.
Taking Baptism is a command of the Lord Jesus, for His disciples, so every Christian Believer must take it, according to the available time and opportunity, and not ignore it, nor take it lightly. But baptism does not make a person a child of God or acceptable to God; rather, it is those who become the children of God, i.e., those who become the people of God, by coming into submission and faith in the Lord Jesus, they should take baptism.
Baptism does not give salvation and forgiveness of sins; but those who have received forgiveness and salvation of sins through repentance and accepting the Lord Jesus are to be baptized. It can be taken immediately as soon as the person comes into faith, or may also be taken later according to the time and opportunity.
Not taking baptism does not mean that a person will lose his salvation - that will never happen! Only that he will be guilty of disobedience to the Lord, and answerable to Him for this disobedience.
Baptism cannot be considered valid or invalid, based on the words or phrases spoken at the time of the baptism, or on the place where the baptism is administered. Baptism is only a publicly expressed personal testimony of the saved person; If the person’s testimony is true, then how can its expression, his baptism, be said to be valid or invalid; and on what grounds can one’s personal experience be called valid or invalid?
According to the Bible, there is only one baptism - immersion baptism given in water. There is no teaching or instruction in the Bible to take or be desirous of more than this one baptism, or any baptism other than this one.
There is no mention, support, or teaching of the often publicized and emphasized “baptism of the Holy Spirit” in the Bible. Nor is there any Biblical basis or justification for this "baptism of the Holy Spirit" and related erroneous teachings.
Water, fire (i.e., hell's lake of fire), and the Holy Spirit are the mediums, and every person will eventually be immersed into one of them; at some time he will surely be thoroughly soaked with one of these. These three are not separate 'baptisms'.
Based on the above observations, it is evident and clear that the following types of baptism cannot be considered as the Biblical "baptism", i.e., one that is based on the teachings, instructions, and examples of the Bible:
If “baptism” has been taken in infancy, or in childhood. Even if it was later followed by Confirmation.
If “baptism” has been taken without repentance for sins and without receiving the Lord Jesus as Savior. Even if it has been taken in accordance with the customs of the local Christian Assembly or the local Church and/or its denomination.
If baptism has been taken under any coercion, or for the sake of fulfilling a ritual, or to please people, rather than taking it voluntarily.
Any “baptism” that does not conform to the above-mentioned teachings, instructions, and examples of the Bible.
From this it is evident and clear that any "baptism" that is not Biblical, is also not a "baptism" that is acceptable to God. Taking that Biblically incorrect baptism was nothing more than fulfilling a formality, or a ritual; it was not an actual baptism. So now, after coming into the Christian Faith, whenever a person is baptized, it actually will be his "first" baptism, not a "second" baptism. That "first" or earlier testimony of his was false and unacceptable, so it was not accepted, and neither ever will be. Now that he is giving his true testimony, testimony according to the instructions and teachings of the Bible, only that will be considered and counted. We will look at some more things about this in the next article.
If you are a Christian Believer, then please examine your life and make sure that you actually are a Born-Again disciple of the Lord, i.e., are redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word. Whoever may be the preacher or teacher, but you should always, like the Berean Believers, first cross-check and test all teachings that you receive, from the Word of God. Only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Numbers 28-30
Mark 8:22-38
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Good morning sir baptism ke liye jo bharantiya thi unn sabhi baato ko aap k lekh k dwara me clear kar pai hu thank you so much prabhu aapako bahut Ashish de.
जवाब देंहटाएंलेख की सराहना तथा आशीष देने के द्वारा प्रोत्साहन के लिए बहुत धन्यवाद. कृपया आगे भी इसी प्रकार से प्रोत्साहित करती रहिए. साथ ही निवेदन है कि इन लेखों के लिंक्स को औरों को भी भेजें, जिस से वे भी लाभ प्राप्त कर सकें. धन्यवाद.
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