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शनिवार, 11 मार्च 2023

आराधना (7) / Understanding Worship (7)

Click Here for the English Translation

आराधना करने की अनिवार्यता (2)


परमेश्वर की आराधना, अर्थात उसे अर्पित करने के हमारे इस अध्ययन में, हमने पिछले लेख में देखा है कि यह परमेश्वर की आज्ञा है कि उसके लोग, चाहे वे उसके समक्ष प्रार्थना, अर्थात उस से कुछ प्राप्त करने के लिए ही आएँ, किन्तु वे भिखारी के समान भीख माँगने का कटोरा लिए हुए नहीं, बल्कि उसके याजक के समान आएँ - क्योंकि परमेश्वर ने अपने सभी विश्वासियों को अपना याजक होने का आदर प्रदान किया है। हमने परमेश्वर के वचन बाइबल से कुछ पदों को देखा था जो ये दिखाते हैं कि किसी को भी परमेश्वर के समक्ष खाली हाथ नहीं आना है; परमेश्वर से कुछ प्राप्त करने के लिए उसके समक्ष आते समय, उसके द्वारा उनकी भलाइयों के लिए, लोगों में कम से कम परमेश्वर के प्रति धन्यवादी होने का भाव होना है। आज हम इसी बात के एक और पक्ष को देखेंगे - परमेश्वर सच्चे आराधकों को ढूँढ़ रहा है।


सामरी स्त्री के साथ अपने वार्तालाप में प्रभु यीशु ने, यूहन्ना 4:23-24 में कहा, “परन्तु वह समय आता है, वरन अब भी है जिस में सच्चे भक्त पिता का भजन आत्मा और सच्चाई से करेंगे, क्योंकि पिता अपने लिये ऐसे ही भजन करने वालों को ढूंढ़ता है। परमेश्वर आत्मा है, और अवश्य है कि उसके भजन करने वाले आत्मा और सच्चाई से भजन करें।” यद्यपि लोगों को आराधना के लिए उभारने के लिए अकसर इन पदों का हवाला दिया जाता है, किन्तु शायद ही कभी इनके वास्तविक अर्थ को समझा या उस अर्थ का पालन किया जाता है। वरन, इन पदों को कहने के बाद लोग “आराधना” के नाम में उन्हें जो भी सही लगता है, वे उसे करने लग जाते हैं। इन पदों तथा यहाँ पर प्रभु द्वारा कही गई बात को समझने के लिए, यहाँ पर प्रयोग किए गए मूल यूनानी भाषा के शब्दों को समझना आवश्यक है।


हिन्दी में जिसे “भजन” अनुवाद किया गया है, मूल यूनानी भाषा में वह शब्द है “प्रोसकूनियोस” जिसका शब्दार्थ होता है किसी के सामने पूरी रीति से झुक जाना, औंधे मुँह गिरकर उसे दण्डवत करना, उसके सामने अपने आप को नतमस्तक करके बिछा देना; अर्थात, उसके प्रति पूर्ण समर्पण, विनम्रता, और आज्ञाकारिता में आ जाना। इस प्रकार की “आराधना” का एक बहुत उत्तम उदाहरण है अब्राहम - उसके द्वारा परमेश्वर के कहने पर अपने मूल निवास स्थान, ऊर, तथा अपने लोगों को छोड़कर निकल आने, यह न जानते हुए कि कहाँ जाना है, उसका और उसके परिवार का आगे क्या होगा; फिर उसके द्वारा परमेश्वर के कहे पर इसहाक को बिना किसी संकोच, एतराज़, या प्रश्न किए बलिदान चढ़ाने के लिए ले जाने, आदि बातों पर विचार कीजिए। परमेश्वर ऐसे “प्रोसकूनियोटीस” यानी कि आराधकों, उसके समक्ष “प्रोसकूनियोस” करने वालों, को खोज रहा है।


प्रभु यीशु द्वारा कही गई “प्रोसकूनियोस” तथा “प्रोसकूनियोटीस” की इस बात में एक बहुत साधारण और सहज धारणा निहित है। कोई भी किसी के सामने “प्रोसकूनियोस” तब ही करेगा, उसका “प्रोसकूनियोटीस” तब ही बनेगा, जब वह भली-भांति जानता हो कि वह जन इसके योग्य है, और साथ ही उन दोनों के मध्य एक सार्थक, सत्यनिष्ठ संबंध हो। यदि ऐसा खरा, सत्यनिष्ठ संबंध नहीं होगा तो बाहरी रीति से जो भी “आराधना” प्रदर्शित की जाएगी, वह केवल पाखण्ड होगा, औरों को दिखाने के लिए, मनुष्यों को प्रसन्न करने के लिए ही होगा। यही बात परमेश्वर के साथ भी लागू होती है - केवल वे ही वास्तविकता में परमेश्वर को “प्रोसकूनियोस” कर सकते हैं जो न केवल उसे व्यक्तिगत रीति से जानते हैं, वरन उसके साथ एक घनिष्ठ अन्तरंग संबंध भी रखते हैं। यह अदन की वाटिका में आदम और हव्वा के परमेश्वर के साथ संबंध के समान है; परमेश्वर उन से मिलने आता था, उन से संगति और सहभागिता रखता था, उनके साथ बिताए समय से प्रसन्न होता था। आज भी परमेश्वर ऐसे ही संबंध को, उस संबंध की पूर्ण मनोहरता तथा महिमा में, मनुष्य के साथ बहाल करने की चाह रखता है - और इसी के लिए वह ऐसे आराधकों, “प्रोसकूनियोटीस” को ढूँढ़ता है जो आत्मा और सच्चाई में “प्रोसकूनियोस” करने वाले होंगे।


हम इसी विषय को और आगे विकसित करेंगे, और अगले लेख से देखेंगे कि परमेश्वर क्यों चाहता है कि मनुष्य उसकी आराधना करें; और सुनिश्चित रहिए, वह ऐसा अपनी नहीं, हमारी भलाई के लिए चाहता है।


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 14-16           

  • मरकुस 12:28-44      


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English Translation


The Necessity of Worshipping (2)


In our study on worshipping God, i.e., giving to God, we have seen in the last article that it is God’s commandment that His people, even for prayers, i.e., even while asking from Him, should approach Him not as beggars with a begging bowl, but as His Priests - a status that He has given to all His Born-Again Believers. We have seen some verses from God’s Word, the Bible, to illustrate that God has commanded that none should come to Him with empty hands; at the least, people should have an attitude of thankfulness towards Him for all His goodness towards them, even while coming to Him in prayer, i.e., asking for things to be done for them, by Him. Today, we will see a further aspect of this - God is looking for true worshippers.


The Lord Jesus, in His conversation with the Samaritan woman at the well, says to her in John 4:23-24 “But the hour is coming, and now is, when the true worshipers will worship the Father in spirit and truth; for the Father is seeking such to worship Him. God is Spirit, and those who worship Him must worship in spirit and truth”. While these verses are often quoted when exhorting people to worship God, hardly ever is their true meaning understood or carried out; instead, after using these verses, people go ahead and start doing whatever seems appropriate to them in the name of “worship.” To understand these verses, and the Lord’s instructions here, it is necessary to understand the terms used here.


The Greek Word translated here as worship is ‘proskuneos’ which literally means to completely prostrate, bend over, and spread out before someone,; implying humble submission and total unquestioning obedience – and such are the worshippers – proskunetes – the people that God is looking for; i.e., those who will ‘proskuneos’ before Him, meaning, those who glorify Him through their complete unquestioning submission and obedience to Him. A very good example of this “worship” is Abraham – consider his leaving his family and people and coming out of his native place Ur, at the call of God, without even knowing where God will be taking him and what will happen to him and his family; consider his taking Isaac for sacrificing him, without any protest or question; such are the “worshippers” the ‘proskuneos’ that God is looking for.


There is a very simple, straightforward logic and understanding in this concept of proskuneos and proskunetes stated by the Lord Jesus – someone will truly and sincerely proskuneos before another, only when he well knows that not only is that person is well deserving of it, but there is also a meaningful and sincere relationship between them. Otherwise, if such a relationship, sincerity, and truth are not there, then all external forms of “worship” will only be hypocrisy, only meant for a “show” more to please man, or to show-off to man, than anything else. So too with God – only they can sincerely ‘proskuneos’ before Him, who not only personally know Him well enough, but also have an intimate relationship with Him. This is similar to the relationship Adam and Eve had with God in the Garden of Eden, and God came to meet them, fellowship with them, enjoy His time with them. Even now, God is wanting to have this relationship with man, in all its beauty and glory restored back to its former state - He is searching for those who will worship or proskuneos before Him in Spirit and in truth.


We will continue to develop this theme, and from the next article see why God wants us to worship Him; and be sure, it is not for His, but for our benefit.


If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.  


Through the Bible in a Year: 

  • Deuteronomy 14-16

  • Mark 12:28-44


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2 टिप्‍पणियां:

  1. Praise the Lord sir really blessed wakai ishawar ki Ashishe managate kabhi ham shy feel nhi karate lekin jaha ishawar ki blessings k liye publicly thanks dena ho ya urning se 10/ dena ho to ham sabase pichhe khade hote h dukhadai h lekin dusaro k pehal se pehale hame khud ko Thanksgiving k liye prerit hona bahut jaruri h. Thank you so much anmol topic k liye God bless you.

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