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मंगलवार, 23 मई 2023

Miscellaneous Questions / कुछ प्रश्न - 18 - Mutually Confessing Sins / परस्पर पाप अंगीकार

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याकूब 5:16 में हमें " एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान" लेने की सलाह क्यों दी गई है?


    इसे ठीक से समझने के लिएयाकूब 5:16 को उसके संदर्भ में देखा जाना चाहिए – याकूब 5:13-18 के एक भाग के समान। जब हम ऐसा करते हैंतो यह प्रत्यक्ष हो जाता है कि इन पदों में दो प्रक्रियाओं के विषय में कहा गया है  शारीरिक चंगाई तथा पाप। जबकि याकूब 5:16 में कही गई शारीरिक चंगाई 5:14-15aमें दी गई चंगाई के विचार के साथ संबंधित हैयाकूब 5:16 में कही गई पापों को मान लेने की बात उन पापों के क्षमा से संबंधित या क्षमा के लिए नहीं है  क्योंकिउसके लिए तो पहले ही 5:15 में ही कह दिया गया है कि वे क्षमा हो चुके हैं, 5:16 में एक दूसरे के सामने उन्हें मान लेने के लिए कहने से भी से पूर्व। यहाँ पर हिन्दी में “मान लेने” अनुवाद किए गए के लिए जो मूल यूनानी भाषा में शब्द आया है वह है, ‘exomologeo (एक्सो-मोलो-जियो)’, जिसका अर्थ होता है स्वीकार कर लेना या (स्वीकृति के अभिप्राय सेपूर्णतः सहमत होना, (Strong’s Bible Dictionary).

    इसे और बेहतर समझने के लिए, हमें इस विचार से संबंधित दो अन्य हवालों को ध्यान में रखना चाहिए। इन दो हवालों में पहला है1 यूहन्ना 1:8-10, जहाँ प्रेरित यूहन्ना, ‘हम’, तथा वर्तमान काल के ‘है’ (‘था’ की बजाए) के प्रयोग के द्वारा कह रहा है कि सभी – स्वयँ उसके सहित, पाप करते हैं, अब भीऔर दूसरा हवाला है, गलातियों 6:1-2, जहाँ पौलुस प्रेरित अन्य मसीही विश्वासियों को उभार रहा है कि वे उन अन्य मसीही विश्वासियों को उठाने और बहाल करने में सहायक बनें जो किसी प्रकार से किसी ‘अपराध’ या परीक्षा’ में गिर गए हैं, अर्थात जिन्होंने कुछ गलत कर दिया हैऔर साथ ही सहायता करने वालों को स्वयँ भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वे भी किसी भी समय ऐसी ही किसी परिक्षा में गिर सकते हैं। ये हवाले हमें इस तथ्य को सीखने और समझने में सहायता करते हैं कि बाइबिल के अनुसार, परिपक्व और स्थापित मसीही विश्वासियों की भी पाप में गिर जाने की संभावना बनी रहती है, वे अपराध कर सकते हैंतथा उनसे अपेक्षित नैतिकता के स्तरों से गिर सकते हैं। दूसरे शब्दों में, कोई भी ऐसा नहीं है जो सिद्ध हो या ठोकर खाने से ऊपर हो, प्रत्येक को सदा ही परमेश्वर के अनुग्रह की आवश्यकता बनी रहती है, प्रभु के प्रति सत्यनिष्ठ और खरा बने रहने के लिए प्रभु से क्षमा और सामर्थ्य की आवश्यकता रहती हैऔर ऐसे भी समय हो सकते हैं जब उन्हें प्रभु द्वारा किसी गलत बात से निकाले जाने की आवश्यकता पड़ जाए।

    उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए, हम वापस याकूब 5:16 पर आते हैं, और अब हम यह तात्पर्य समझ सकते हैं कि यह पद सिखा रहा है कि “अपनी दृष्टि में बहुत धर्मी मत बनो, और न ही ढोंगी बनो; अपने आप को ‘औरों से अधिक धर्मी’ मत समझो, यह धारणा मत रखो कि तुम अपने आस-पास के और सभी लोगों से बढ़कर या उत्तम हो। वरन, नम्र रहो तथा यही मानने या स्वीकार करने का रवैया रखो कि तुम भी ठोकर खा सकते हो, गिर सकते हो, इसलिए ‘आपस में एक दूसरे के साम्हने अपने अपने पापों को मान लो ’ अर्थात औरों के सामने यह मानने और स्वीकार करने का रवैया रखो कि तुम भी औरों के समान ही गलती करने तथा पाप में पड़ने की प्रवृत्ति रखते हो, और जब भी तुम ऐसे गिर जाओ तो अपनी बहाली के लिए तुम्हें भी औरों की सहायता तथा प्रार्थनाओं की आवश्यकता होगी।”

    यह पद यह नहीं सिखा रहा है कि हम जब भी पाप में पड़ें तो अपने आस-पास के लोगों के सामने जाकर उन पापों का वर्णन करेंऔर हमारे ऐसा करने से उन पापों की क्षमा में सहायता होगी। वरनइस पद का अभिप्राय है कि घमण्डी या हठधर्मी होने के स्थान परहमें नम्र तथा औरों द्वारा सुधारे जाने के प्रति खुले रहना चाहिएजब भी कोई अन्य हम में कोई कमी या अनुचित बात देखे और उसे हमारे सामने लाए। जब भी हमारे पाप या अपराध हमारे सामने लाए जाते हैंहमें दीन और नम्र होकर उन्हें स्वीकार (‘मान’) कर लेना वाला होना चाहिए। हमें अन्य मसीही विश्वासियों की प्रार्थनाओं की सहायता लेनी चाहिए कि हम ऐसे नम्र बने रहेंया यदि गलत परिस्थिति में आ गए हैं तो उससे निकाले जाएँक्योंकि परमेश्वर के लोगों की प्रार्थनाएं किसी भी परिस्थिति में बचाव और छुटकारे के लिए एक बहुत प्रभावी और कारगार उपाय हैं।

    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

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Why does James 5:16 command us to "confess our sins to one another"?


    To understand it correctly, James 5:16 should be seen in its context – as a part of the passage from James 5:13-18. When we do so, it becomes apparent that there are two processes mentioned in these verses – physical healing and trespasses or sins. While the healing being mentioned in James 5:16 is a continuation of the thought of healing given in 5:14-15a; the confession of trespasses or sins mentioned in James 5:16 is not for their forgiveness – since, that has already been stated as accomplished in 5:15, prior to asking the confessing to one another in 5:16. The word used here in the original Greek language and translated as ‘confess’ into English, is ‘exomologeo (ex-o-mo-lo-ǰe'-ō)’, and means to acknowledge or (by implication, of assent) agree fully, (Strong’s Bible Dictionary).

    To help us understand it better, we need to keep in mind two other verses related to this thought. These two verses are, first, 1 John 1:8-10, where the apostle John, by using ‘we’, and the present tense ‘have’ (instead of the past tense ‘had’) is saying that everyone – he included, sins, even now; and second, Galatians 6:1-2, where the Apostle Paul is exhorting other Christian Believers to lift up and help in the restoration of those Christian Believers who somehow have fallen into some ‘trespass’ or ‘fault’, i.e. have done something wrong; and those helping should also bear in mind that at some time they too can fall into a similar predicament. These references help us understand and accept the fact that Biblically speaking, even established and mature Christian Believers have a tendency to fall into sin, to commit errors or trespasses, to fall short of expectations or standards of morality expected of them. In other words, nobody is perfect and above reproach, everybody always needs God’s grace, strength and forgiveness to remain honest and true to the Lord, and may at times need to be extricated out of unpleasant situations by the Lord.

    With the above in mind, coming back now to James 5:16, we can surmise that what is being implied in the verse is that “do not be overly righteous, nor be a hypocrite; do not have a ‘holier-than-thou’ attitude, considering yourself over and above everyone else, or others around you. Rather, be humble and have an attitude of accepting and acknowledging that you too can falter and commit sin, therefore confess your trespass to one another’ i.e. maintain an attitude of accepting and acknowledging before others that you too are prone to errors or sin, just as the others are, and you too need the prayers and help of others for your restoration, whenever you fail or fall.”

    This verse is not saying that we need to go and declare our sins and short-comings to people around us, and our doing so will contribute to the forgiveness of those sins. Rather, it means to say that instead of being haughty, we need to remain humble and open to any correction from others; as and when they see some short-coming in us. Whenever our fault or trespass is brought to our notice, we should be gracious and humble enough to accept (‘confess’) it. We should also seek the prayer support of other Believers to keep us that way, or to be delivered from the situation, since the prayers of God’s people are a very effective means of help in any need.

    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.

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बुधवार, 23 नवंबर 2016

क्षमा


   दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान, नेदेरलैन्डस में रहने वाला कोरी टेन बूम का परिवार घड़ियाँ बनाने का कार्य करता था, और वे यहूदी परिवारों को नाट्ज़ी आताताईयों से बचाने में सक्रीय भूमिका निभा रहे थे। यहूदियों के लिए उनकी इस सहायता के कारण अन्ततः उन सब को कैद करके नज़रबन्दी-शिविर में डाल दिया गया, जहाँ 10 दिन बाद कोरी के पिता का देहान्त हो गया। कोरी कि बहन बेट्सी का भी उसी शिविर में देहांत हुआ। जब बेट्सी और कोरी शिविर में साथ थे, तो बेट्सी के मसीही विश्वास ने कोरी के मसीही विश्वास को और दृढ़ किया।

   कोरी के इसी विश्वास ने उसे योग्य किया कि वह उन निर्मम आताताई शिविर के पहरेदारों को क्षमा कर सके। जबकि उन शिविरों के बन्द होने के बाद उन सताने वालों के प्रति नफरत और बदले की भावना अनेकों जीवनों को बरबाद कर रही थी, कोरी ने सत्य को पहचाना: नफरत उसे ही अधिक हानि पहुँचाती है जो नफरत अपने अन्दर पलने देता है, चाहे उस नफरत का कारण कितना ही जायज़ क्यों ना हो।

   कोरी के समान, हम में से प्रत्येक के पास यह अवसर होता है कि अपने बैरियों तथा शत्रुओं को क्षमा करें, उनसे प्रेम करें। क्षमा करना उस अपराध का ना तो इन्कार करता है और ना ही उसे सही होने का बहाना देता है, परन्तु जब हम क्षमा करते हैं तो हम संसार के सामने अपने प्रभु परमेश्वर और उस में हमारे विश्वास को व्यावाहरिक रूप में दिखाते हैं; क्योंकि हमारे प्रभु ने हम से कहा है: "और एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो" (इफिसियों 4:32)।

   यदि आप उसे अपने जीवन में यह करने दें तो परमेश्वर आपकी सहायता करेगा कि प्रत्येक क्रोधपूर्ण दुर्भावना आपके जीवन से दूर हो जाए तथा उसके पवित्रात्मा का गहरा कार्य आपके जीवन को संवार एवं सुधार दे, जिससे आप में होकर हमारा तथा समस्त जगत का उद्धाकर्ता मसीह यीशु दूसरों को व्यावाहरिक रूप में दिखाई दे। - रैंडी किलगोर


जब हम किसी को क्षमा करते हैं तब उस समय हम अपने जीवन के 
किसी भी अन्य पल की अपेक्षा मसीह यीशु की समानता में अधिक होते हैं।

परन्तु मैं तुम से यह कहता हूं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो। जिस से तुम अपने स्‍वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मियों और अधर्मियों दोनों पर मेंह बरसाता है। - मत्ती 5:44-45

बाइबल पाठ: कुलुस्सियों 3:12-17
Colossians 3:12 इसलिये परमेश्वर के चुने हुओं की नाईं जो पवित्र और प्रिय हैं, बड़ी करूणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता धारण करो। 
Colossians 3:13 और यदि किसी को किसी पर दोष देने को कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो। 
Colossians 3:14 और इन सब के ऊपर प्रेम को जो सिद्धता का कटिबन्‍ध है बान्‍ध लो। 
Colossians 3:15 और मसीह की शान्‍ति जिस के लिये तुम एक देह हो कर बुलाए भी गए हो, तुम्हारे हृदय में राज्य करे, और तुम धन्यवादी बने रहो। 
Colossians 3:16 मसीह के वचन को अपने हृदय में अधिकाई से बसने दो; और सिद्ध ज्ञान सहित एक दूसरे को सिखाओ, और चिताओ, और अपने अपने मन में अनुग्रह के साथ परमेश्वर के लिये भजन और स्‍तुतिगान और आत्मिक गीत गाओ। 
Colossians 3:17 और वचन से या काम से जो कुछ भी करो सब प्रभु यीशु के नाम से करो, और उसके द्वारा परमेश्वर पिता का धन्यवाद करो।

एक साल में बाइबल: 
  • यहेजेकल 20-21
  • याकूब 5


शुक्रवार, 6 मार्च 2015

अनुग्रह और क्षमा


   जीवन कई बातों में मनोरंजन स्थलों पर पाई जाने वाली "बम्पर कारों" के समान होता है। उन कारों में आप यह जानते हुए बैठते हैं कि आपको टक्कर अवश्य लगेगी, बस यह नहीं पता कि किसके द्वारा और कितनी ज़ोर से लगेगी। जब किसी के द्वारा आपकी कार को टक्कर लगती है, तो फिर आप उसकी कार का पीछा करके उसे टक्कर मारने का प्रयास करते हैं, और वह भी उसकी दी हुई टक्कर से अधिक ज़ोर से!

   किसी मनोरंजन स्थल में, विशेष रीति से बनाई गई कारों में बैठकर ऐसा करना मनोरंजक हो सकता है, लेकिन वास्तविक जीवन में ऐसा करना बहुत हानिकारक होता है। यदि जीवन में कोई आपको टक्कर या ठोकर दे तो पलट कर उसे टक्कर या ठोकर देना समस्या का समाधान नहीं करता वरन बात को बढ़ाता ही है, और अन्ततः यह सभी के लिए हानिकारक होता है।

   प्रभु यीशु के पास ऐसे में अपनाने के लिए एक भिन्न तथा बेहतर कार्यनीति है - जो आपको टक्कर या ठोकर दें उन्हें क्षमा कर दो। प्रभु यीशु के चेले प्रेरित पतरस के समान हम भी प्रभु से पूछ सकते हैं कि हमारे द्वारा किसी को कितनी बार क्षमा करना उचित होगा? जो उत्तर प्रभु यीशु ने पतरस को दिया था, वही हमारे लिए भी लागू होता है; पतरस ने पूछा क्या सात बार क्षमा करना उचित होगा, तो प्रभु यीशु का उत्तर था, सात के सत्तर गुना बार (मत्ती 18:21-22)! दूसरे शब्दों में, जो प्रभु यीशु कहना चाह रहे थे वह था कि अनुग्रह तथा क्षमा की कोई सीमा नहीं है, हमें सदा ही अनुग्रह और क्षमा के भाव से बर्ताव करना चाहिए। इस संदर्भ में प्रभु यीशु ने एक नीतिकथा द्वारा समझाया कि अनुग्रह और क्षमा इसलिए नहीं है क्योंकि हमारा विरोध करने वाला इसके योग्य है, वरन इसलिए अनुग्रह और क्षमा का बर्ताव बनाए रखना है क्योंकि परमेश्वर हमारे प्रति यही बर्ताव बनाए रखता है: "तब उसके स्‍वामी ने उसको बुलाकर उस से कहा, हे दुष्‍ट दास, तू ने जो मुझ से बिनती की, तो मैं ने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। सो जैसा मैं ने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था?" (मत्ती 18:32-33)

   हम मसीही विश्वासी यह भली भांति जानते हैं कि परमेश्वर ने कैसे प्रभु यीशु द्वारा अनुग्रह में होकर हमें क्षमा किया है, अपने साथ हमारा मेल-मिलाप किया है, हमारे साथ वह प्रेम किया है जिसके हम कभी योग्य नहीं थे। क्योंकि यह बहुतायत का अनुग्रह और क्षमा हमें सेंत-मेंत प्रदान किया गया है, इसलिए हम वे लोग बनें जो बुरे व्यवहार के बदले में वैसा ही बुरा व्यवहार नहीं वरन अनुग्रह और क्षमा का बर्ताव लौटा कर दें। - जो स्टोवैल


हमारे द्वारा दुसरों के प्रति क्षमा के व्यवहार द्वारा परमेश्वर का अनुग्रह प्रगट होता है।

और एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो। - इफिसियों 4:32

बाइबल पाठ: मत्ती 18:21-35
Matthew 18:21 तब पतरस ने पास आकर, उस से कहा, हे प्रभु, यदि मेरा भाई अपराध करता रहे, तो मैं कितनी बार उसे क्षमा करूं, क्या सात बार तक? 
Matthew 18:22 यीशु ने उस से कहा, मैं तुझ से यह नहीं कहता, कि सात बार, वरन सात बार के सत्तर गुने तक। 
Matthew 18:23 इसलिये स्वर्ग का राज्य उस राजा के समान है, जिसने अपने दासों से लेखा लेना चाहा। 
Matthew 18:24 जब वह लेखा लेने लगा, तो एक जन उसके साम्हने लाया गया जो दस हजार तोड़े धारता था। 
Matthew 18:25 जब कि चुकाने को उसके पास कुछ न था, तो उसके स्‍वामी ने कहा, कि यह और इस की पत्‍नी और लड़के बाले और जो कुछ इस का है सब बेचा जाए, और वह कर्ज चुका दिया जाए। 
Matthew 18:26 इस पर उस दास ने गिरकर उसे प्रणाम किया, और कहा; हे स्‍वामी, धीरज धर, मैं सब कुछ भर दूंगा। 
Matthew 18:27 तब उस दास के स्‍वामी ने तरस खाकर उसे छोड़ दिया, और उसका धार क्षमा किया। 
Matthew 18:28 परन्तु जब वह दास बाहर निकला, तो उसके संगी दासों में से एक उसको मिला, जो उसके सौ दीनार धारता था; उसने उसे पकड़कर उसका गला घोंटा, और कहा; जो कुछ तू धारता है भर दे। 
Matthew 18:29 इस पर उसका संगी दास गिरकर, उस से बिनती करने लगा; कि धीरज धर मैं सब भर दूंगा। 
Matthew 18:30 उसने न माना, परन्तु जा कर उसे बन्‍दीगृह में डाल दिया; कि जब तक कर्ज को भर न दे, तब तक वहीं रहे। 
Matthew 18:31 उसके संगी दास यह जो हुआ था देखकर बहुत उदास हुए, और जा कर अपने स्‍वामी को पूरा हाल बता दिया। 
Matthew 18:32 तब उसके स्‍वामी ने उसको बुलाकर उस से कहा, हे दुष्‍ट दास, तू ने जो मुझ से बिनती की, तो मैं ने तो तेरा वह पूरा कर्ज क्षमा किया। 
Matthew 18:33 सो जैसा मैं ने तुझ पर दया की, वैसे ही क्या तुझे भी अपने संगी दास पर दया करना नहीं चाहिए था? 
Matthew 18:34 और उसके स्‍वामी ने क्रोध में आकर उसे दण्‍ड देने वालों के हाथ में सौंप दिया, कि जब तक वह सब कर्जा भर न दे, तब तक उन के हाथ में रहे। 
Matthew 18:35 इसी प्रकार यदि तुम में से हर एक अपने भाई को मन से क्षमा न करेगा, तो मेरा पिता जो स्वर्ग में है, तुम से भी वैसा ही करेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • व्यवस्थाविवरण 1-2
  • मरकुस 10:1-31



शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

उद्धारकर्ता मेमना और न्यायी सिंह

प्रभु यीशु हमारे पापों के लिये अपने प्राण देने आया, और जो कोई उस पर विश्वास लाता है, वह उसे पाप के दण्ड से बचा लेता है। लेकिन एक समय आएगा जब पृथ्वी के लोगों के लिये पापों से उद्धार के लिये दिया गया यह अवसर जाता रहेगा। तब वह मेमना जो पापों के लिये बलिदान हुआ, फिर सिंह बन कर न्याय सिंहासन पर बैठेगा, और जितनों ने उसके उद्धार के प्रस्ताव को ठुकराया था वे सब उसके न्याय के आधीन होंगे।

बाइबल शिक्षक और लेखक वॉरन रिस्बी ने अपनी एक पुस्तक "Discover Yourself in the Psalms" में एक प्रचारक द्वारा सुनाई गई छोटी कहानी बताई: "एक घोड़ा बिदक गया और उससे जुति हुई बघ्घी लेकर भाग निकला। उस बघ्घी में एक बच्चा बैठा था। बच्चे की जान खतरे में देखकर एक नौजवान ने अपनी जान जोखिम में डाली और घोड़े को पकड़ कर काबू में कर लिया। यह बच्चा आगे चलकर बड़ा अपराधी हो गया। एक दिन वह पकड़ा गया और न्यायाधीश के सामने दण्ड के लिये लाया गया। उस अपराधी ने अपने न्यायाधीश को पहिचान लिया कि वह वही व्यक्ति था जिसने कई साल पहले उसकी जान बचाई थी। अपने उस अनुभव का उल्लेख करके अपराधी ने न्यायाधीश से पुनः अपने प्राणों के रक्षा की याचना करी। लेकिन न्यायाधीश ने उत्तर दिया: "ऐ जवान, उस समय की स्थिति में मैं तुम्हारा रक्षक था और मैंने तुम्हारी रक्षा करी, परन्तु आज मैं तुम्हारा न्यायी हूँ और मुझे तुम्हारी आज की स्थिति के आधार पर ही तुम्हारा न्याय करना है। तुम्हारे अपराधों के लिये मैं तुम्हें मृत्यु दण्ड की आज्ञा देता हूँ।"

आज प्रभु यीशु हमारे पापों के लिये मारा गया मेमना है, और उसका उद्धार का अवसर हमारे लिये खुला है। लेकिन अगर हम विश्वास में उसकी ओर नहीं मुड़ते और उसके उद्धार के प्रस्ताव को नहीं अपनाते, तो एक दिन वह हमारा न्यायी होगा जो खराई से हमारे उन पापों के अनुसार हमारा न्याय करेगा, जिनकी क्षमा के अवसर का हमने लाभ नहीं उठाया। वह तब कहेगा : "पृथ्वी पर मैं तुम्हारा उद्धारकर्ता था परन्तु तुमने मुझ पर विश्वास नहीं किया। अब यहां मैं तुम्हारा न्यायी हूँ, और तुम्हारे पापों में बने रहने की दशा के अनुसार, न्याय की मांग है कि अपने पापों के दण्ड के लिये तुम अनन्तकाल के नरक में डाले जाओ।"

जो अभी मेमने पर विश्वास लाएंगे, बाद में उन्हें न्यायासन पर विराजमन सिंह के न्याय का सामना नहीं करना पड़ेगा। - डेव एगनर


पृथ्वी पर रहकर जो हम मसीह के साथ करते हैं वही निर्धारित करता है कि स्वर्ग में मसीह हमारे साथ क्या करेगा।

तब उन प्राचीनों में से एक ने मुझे से कहा, मत रो, देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है, उस पुस्‍तक को खोलने और उसकी सातों मुहर तोड़ने के लिये जयवन्‍त हुआ है। और मैं ने उस सिंहासन और चारों प्राणियों और उन प्राचीनों के बीच में, मानों एक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा: उसके सात सींग और सात आंखे थीं, ये परमेश्वर की सातों आत्माएं हैं, जो सारी पृथ्वी पर भेजी गई हैं। - प्रकाशितवाक्य ५:५, ६


बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य ५

और जो सिंहासन पर बैठा था, मैं ने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्‍तक देखी, जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्‍द की गई थी।
फिर मैं ने एक बलवन्‍त स्‍वर्गदूत को देखा जो ऊंचे शब्‍द से यह प्रचार करता था कि इस पुस्‍तक के खोलने और उस की मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?
और न स्‍वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्‍तक को खोलने या उस पर दृष्‍टि डालने के योग्य निकला।
और मैं फूट फूट कर रोने लगा, क्‍योंकि उस पुस्‍तक के खोलने, या उस पर दृष्‍टि करने के योग्य कोई न मिला।
तब उन प्राचीनों में से एक ने मुझे से कहा, मत रो, देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह, जो दाऊद का मूल है, उस पुस्‍तक को खोलने और उसकी सातों मुहर तोड़ने के लिये जयवन्‍त हुआ है।
और मैं ने उस सिंहासन और चारों प्राणियों और उन प्राचीनों के बीच में, मानों एक वध किया हुआ मेम्ना खड़ा देखा: उसके सात सींग और सात आंखे थीं, ये परमेश्वर की सातों आत्माएं हैं, जो सारी पृथ्वी पर भेजी गई हैं।
उस ने आकर उसके दाहिने हाथ से जो सिंहासन पर बैठा था, वह पुस्‍तक ले ली,
और जब उस ने पुस्‍तक ले ली, तो वे चारों प्राणी और चौबीसों प्राचीन उस मेम्ने के साम्हने गिर पड़े, और हर एक के हाथ में वीणा और धूप से भरे हुए सोने के कटोरे थे, ये तो पवित्र लोगों की प्रार्थनाएं हैं।
और वे यह नया गीत गाने लगे, कि तू इस पुस्‍तक के लेने, और उसकी मुहरें खोलने के योग्य है क्‍योंकि तू ने वध होकर अपने लोहू से हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है।
और उन्‍हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं।
और जब मैं ने देखा, तो उस सिंहासन और उन प्राणियों और उन प्राचीनों की चारों ओर बहुत से स्‍वर्गदूतों का शब्‍द सुना, जिन की गिनती लाखों और करोड़ों की थी।
और वे ऊंचे शब्‍द से कहते थे, कि वध किया हुआ मेम्ना ही सामर्थ, और धन, और ज्ञान, और शक्ति, और आदर, और महिमा, और धन्यवाद के योग्य है।
फिर मैं ने स्‍वर्ग में, और पृथ्वी पर, और पृथ्वी के नीचे, और समुद्र की सब सृजी हुई वस्‍तुओं को, और सब कुछ को जो उन में हैं, यह कहते सुना, कि जो सिंहासन पर बैठा है, उसका, और मेम्ने का धन्यवाद, और आदर, और महिमा, और राज्य, युगानुयुग रहे।
और चारों प्राणियों ने आमीन कहा, और प्राचीनों ने गिरकर दण्‍डवत किया।

एक साल में बाइबल:
  • निर्गमन १-३
  • मत्ती १४:१-२१

बुधवार, 19 जनवरी 2011

अन्तिम न्याय

अमेरिका के तीसरे उप-राष्ट्रपति एरन बर्र की परवरिश एक परमेश्वर का भय रखने वाले परिवार में हुई थी। उनके दादा जौनथन एडवर्ड्स ने उन्हें मसीह को ग्रहण करने को चिताया भी था। लेकिन बर्र परमेश्वर से कोई संबंध नहीं रखना चाहते थे और उनका कहना रहता था कि "मेरी इच्छा है कि परमेश्वर मुझ से दूर ही रहे।"

ऐरन बर्र को कुछ हद तक राजनैतिक सफलता अवश्य मिली, परन्तु वे लगतार परेशानियों में घिरे रहे। उन्होंने ४८ वर्ष की अवस्था में एक जन ऐलिक्ज़ैंडर हैमिलटन की हत्या भी कर दी। इसके बाद वे ३२ वर्ष और जीवित रहे, लेकिन वे वर्ष दुख और असफलताओं से भरे रहे, और उन्होंने दु्खी मन से यह मान लिया कि "साठ साल पहले मैं ने परमेश्वर से सौदा किया था कि यदि वह मुझे अकेला छोड़ देगा तो मैं भी उसे अकेला छोड़ दूंगा, और परमेश्वर ने तब से मेरी कभी कोई चिंता नहीं की।" एरन बर्र को, जो उन्होंने चाहा, वह मिल गया।

वे लोग जो परमेश्वर के साथ कोई संबंध नहीं रखना चाहते, अपने आप को परमेश्वर के न्याय का भागी बना लेते हैं। वे पृथ्वी के अपने दिन परमेश्वर से विमुख रहकर और फिर अनन्त काल उसकी संगति से निर्वासित होकर बिताने के खतरे में हैं, यदि समय रहते पश्चातप नहीं करते।

मित्र, आपके मन में उठने वाला आपके पाप और अपराध के प्रति दोष का एहसास और म्रुत्यु का भय लक्षण हैं कि परमेश्वर का आत्मा आपको पश्चाताप और उद्धार के लिये उकसा रहा है। आप के प्रति उसके धैर्य और उसकी प्रतीक्षा के लिये परमेश्वर का धन्यवाद कीजिए, अपने पापों से पश्चाताप कीजिये और प्रभु यीशु से अपने व्यक्तिगत उद्धार की भेंट को स्वीकार कीजिये। कभी भी परमेश्वर को अपने से दूर रहने के लिये मत कहिये। आपके लिये जो सबसे भयानक बात हो सकती है वह यही है कि परमेश्वर आपकी बात मान ले और आपसे दूर हो जाए।

परमेश्वर द्वारा त्याग दिया जाना ही अन्तिम न्याय है। - हर्ब वैन्डर लुग्ट


नरक के पास से बच निकलने का तो मार्ग है, लेकिन नरक में पड़ कर वहां से बच निकलने का कोई मार्ग नहीं है।

...जब उन्‍होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्‍हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; - रोमियों १:२८


बाइबल पाठ: रोमियों १:१८-३२

परमेश्वर का क्रोध तो उन लोगों की सब अभक्ति और अधर्म पर स्‍वर्ग से प्रगट होता है, जो सत्य को अधर्म से दबाए रखते हैं।
इसलिये कि परमश्‍ेवर के विषय में ज्ञान उन के मनों में प्रगट है, क्‍योंकि परमेश्वर ने उन पर प्रगट किया है।
क्‍योंकि उस के अनदेखे गुण, अर्थात उस की सनातन सामर्थ, और परमेश्वरत्‍व जगत की सृष्‍टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते है, यहां तक कि वे निरूत्तर हैं।
इस कारण कि परमेश्वर को जानने पर भी उन्‍होंने परमेश्वर के योग्य बड़ाई और धन्यवाद न किया, परन्‍तु व्यर्थ विचार करने लगे, यहां तक कि उन का निर्बुद्धि मन अन्‍धेरा हो गया।
वे अपने आप को बुद्धिमान जताकर मूर्ख बन गए।
और अविनाशी परमेश्वर की महिमा को नाशमान मनुष्य, और पक्षियों, और चौपायों, और रेंगने वाले जन्‍तुओं की मूरत की समानता में बदल डाला।
इस कारण परमेश्वर ने उन्‍हें उन के मन के अभिलाषाओं के अनुसार अशुद्धता के लिये छोड़ दिया, कि वे आपस में अपने शरीरों का अनादर करें।
क्‍योंकि उन्‍होंने परमेश्वर की सच्‍चाई को बदल कर झूठ बना डाला, और सृष्‍टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की जो सदा धन्य है। आमीन।
इसलिये परमश्‍ेवर ने उन्‍हें नीच कामनाओं के वश में छोड़ दिया; यहां तक कि उन की स्‍त्रियों ने भी स्‍वाभाविक व्यवहार को, उस से जो स्‍वभाव के विरूद्ध है, बदल डाला।
वैसे ही पुरूष भी स्‍त्रियों के साथ स्‍वाभाविक व्यवहार छोड़ कर आपस में कामातुर होकर जलने लगे, और पुरूषों ने पुरूषों के साथ निर्लज्ज़ काम करके अपने भ्रम का ठीक फल पाया।
और जब उन्‍होंने परमेश्वर को पहिचानना न चाहा, इसलिये परमेश्वर ने भी उन्‍हें उन के निकम्मे मन पर छोड़ दिया; कि वे अनुचित काम करें।
सो वे सब प्रकार के अधर्म, और दुष्‍टता, और लोभ, और बैरभाव, से भर गए; और डाह, और हत्या, और झगड़े, और छल, और ईर्ष्या से भरपूर हो गए, और चुगलखोर,
बदनाम करने वाले, परमेश्वर के देखने में घृणित, औरों का अनादर करने वाले, अभिमानी, डींगमार, बुरी बुरी बातों के बनाने वाले, माता पिता की आज्ञा न मानने वाले,
निर्बुद्धि, विश्वासघाती, दयारिहत और निर्दयी हो गए।
वे तो परमेश्वर की यह विधि जानते हैं, कि ऐसे ऐसे काम करने वाले मुत्यु के दण्‍ड के योग्य हैं, तौभी न केवल आप ही ऐसे काम करते हैं, वरन करने वालों से प्रसन्न भी होते हैं।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ४६-४८
  • मत्ती १३:१-३०

सोमवार, 10 जनवरी 2011

पाप का गणित

मैंने कैद में पड़े हुए कैदियों को शोकित होकर अपने सिर हिलाते और यह कहते देखा है कि "मैंने कभी नहीं सोचा था कि बात इस हद तक बिगड़ जाएगी।" जब उन्होंने छोटे छोटे अपराध करने शुरू किये तो बड़े या गंभीर अपराधों में पड़ने का उनका कोई इरादा नहीं था। लेकिन एक के बाद दूसरा अपराध होता गया, वे अपराध के जीवन में फंसते चले गए और अब वे आत्मग्लानि के साथ बन्दीगृह में पड़े हैं।

इन लोगों ने कभी यह नहीं पहचाना कि पाप में सदा पतन ही होता है और उसकी गंभीरता बद से बदतर ही होती है। जब हम जीवन के एक पहलू में परमेश्वर के नियमों को तोड़ते हैं तो जैसे गणित के जोड़ और गुणा के सिद्धांत जीवन में कम करने लग जाते हैं। शीघ्र ही पाप बढ़कर जीवन के अन्य पहलूओं में भी अपने प्रभाव डालने लगता है।

यह सोचना मूर्खता है कि हम बस एक छोटा प्रीय पाप पाल कर रख सकते हैं। वह एक पाप बढ़ता और फैलता रहेगा और हमें पतन की ओर अग्रसर रखेगा जब तक कि हम उसे पूरी तरह अपने से दूर नहीं कर देते। इसीलिये प्रभु यीशु ने पाप करने वाला हाथ काट कर फेंकने और पाप करने वाली आंख निकालने की बात कही (मत्ती १८:८, ९)। ऐसे कठोर शब्द रूपक प्रयोग करने में प्रभु का उद्देश्य यही समझाना था कि पाप को दूर रखने के लिये जो कुछ बन पड़े वह करो।

हम पाप के साथ खिलवाड़ करने का जोखिम नहीं उठा सकते। पौलुस ने रोमियों की पत्री के पहले अध्याय में तीन बार लिखा परमेश्वर ने पाप में बने रहने वालों को उनके दुष्कर्मों पर छोड़ दिया। वह पाप के पतन को उसका समय पूरा होने तक छोड़ देता है ताकि न केवल पापी को पश्चाताप का पूरा अवसर मिले, वरन न्याय को भी पूरा अवसर मिले और जब न्याय का समय आए तो उससे बचने का कोई बहाना न रहे।

हम प्रभु यीशु पर विश्वास करके पाप के इस अव्श्यंभावी गणित से बच सकते हैं। आज और अभी हमारे जीवन के किसी भी पाप से बचने के लिये उसकी सामर्थ काफी है। नहीं तो एक समय आएगा जब हमें उसके न्याय का सामना करना पड़ेगा और तब कोई और बचाव का मार्ग या उपाय नहीं होगा। - हर्ब वैन्डर लुग्ट


कोई भी अचानक ही दुष्ट नहीं हो जाता।

यदि तेरा हाथ या तेरा पांव तुझे ठोकर खिलाए, तो काट कर फेंक दे। - मत्ती १८:८


बाइबल पाठ: मत्ती १८:६-९

पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं एक को ठोकर खिलाए, उसके लिये भला होता, कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता, और वह गहिरे समुद्र में डुबाया जाता।
ठोकरों के कारण संसार पर हाय! ठोकरों का लगना अवश्य है, पर हाय उस मनुष्य पर जिस के द्वारा ठोकर लगती है।
यदि तेरा हाथ या तेरा पांव तुझे ठोकर खिलाए, तो काट कर फेंक दे। टुण्‍डा या लंगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है, कि दो हाथ या दो पांव रहते हुए तू अनन्‍त आग में डाला जाए।
और यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति २५-२६
  • मत्ती ८:१-१७

शनिवार, 20 नवंबर 2010

उभारने को हाथ बढ़ाएं

सारा टयुकोल्स्की ने Soft Ball खेल के महत्वपूर्ण मुकाबले में अपने जीवन में पहली बार गेंद को 'Home Run' के लायक मारा, अर्थात उसने गेंद को पहली बार इतनी दूर मारा कि वह भागकर पूरा रन बनाने के लिये चारों बेसों को छूने की स्थिति में थी। वह इतनी उतेजित हुई कि भागते हुए पहले बेस को छूने से रह गई। अपनी गलती को ठीक करने के लिये वह जैसे ही तेज़ी से पलटी, उसके घुटने में चोट आ गई और वह रोती हुई पहले बेस की ओर रेंगकर आगे बढ़ने लगी। नियम के अनुसार उसे चारों बेसों को अपने आप छूना था तभी वह रन पूरा माना जाता और गिना जाता। उसकी टीम के खिलाड़ी इसमें उसकी कोई सहायता नहीं कर सकते थे।

ऐसे में पहले बेस पर खड़े प्रतिद्वन्दी टीम के खिलाड़ी मैलोरी ने अम्पायर से पूछा, "यदि हम उसे उठा कर चारों बेस पर बारी बारी ले जाएं तो क्या यह रन माना जाएगा?" अम्पायरों ने आपस में मंत्रणा करके अपनी सहमति जताई। तब सारा की प्रतिद्वन्दी टीम के खिलाड़ी मैलोरी और उसके एक और साथी ने अपने हाथ आपस में जोड़ कर सारा के बैठने के लिये ’कुर्सी’ बनाई और उसे उठा कर चारों बेसों पर ले गए जिससे सारा उन्हें छू कर अपना रन पूरा कर सकी और वह रन उसके नाम से गिना गया। इस प्रक्रिया को पूरा होते होते, प्रतिद्वन्दी टीम के इस निस्वार्थ करुणा के कार्य को देख कर बहुत से लोगों की आंखें भर आईं।

इस घटना से मिलने वाली शिक्षा स्पष्ट है। जब हमारे साथ के लोग या हमारे सहविश्वासी किसी बात में ठोकर खाकर गिरते हैं तो हमें इन खिलाड़ीयों के समान, सहायता और उन्हें उभारने के लिये अपने हाथ बढ़ाने चाहियें - " हे भाइयों, यदि कोई मनुष्य किसी अपराध में पकड़ा जाए, तो तुम जो आत्मिक हो, नम्रता के साथ ऐसे को संभालो, और अपनी भी चौकसी रखो, कि तुम भी परीक्षा में न पड़ो। तुम एक दूसरे के भार उठाओ, और इस प्रकार मसीह की व्यवस्था को पूरी करो। (गलतियों ६:१, २)

जब किसी को गिरा हुआ देखें तो अपने हाथ उसे और दबाने या उस पर उंगली उठाने के लिये नहीं वरन उसे उभारने और खड़ा करने के लिये सहायतार्थ बढ़ाएं; " एक दूसरे पर कृपाल, और करूणामय हो, और जैसे परमेश्वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो" (इफिसियों ४:३२)। यह एक अद्भुत अवसर होता है कि "जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्‍डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए" (१ पतरस ४:१०)। - डेव एगनर


जो इस संसार में दूसरों के बोझों को हलका करने के लिये हाथ बढ़ाते हैं उनके ये प्रयास कभी व्यर्थ नहीं कहलाते।

जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्‍डारियों की नाई एक दूसरे की सेवा में लगाए। - १ पतरस ४:१०


बाइबल पाठ: १ पतरस ४:७-११

सब बातों का अन्‍त तुरन्‍त होने वाला है, इसलिये संयमी होकर प्रार्थना के लिये सचेत रहो।
और सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो, क्‍योंकि प्रेम अनेक पापों को ढ़ांप देता है।
बिना कुड़कुड़ाए एक दूसरे की पहुनाई करो।
जिस को जो वरदान मिला है, वह उसे परमेश्वर के नाना प्रकार के अनुग्रह के भले भण्‍डारियों की नाईं एक दूसरे की सेवा में लगाए।
यदि कोई बोले, तो ऐसा बोले, मानों परमेश्वर का वचन है; यदि कोई सेवा करे तो उस शक्ति से करे जो परमेश्वर देता है; जिस से सब बातों मे यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्वर की महिमा प्रगट हो: महिमा और साम्राज्य युगानुयुग उसी की है। आमीन।

एक साल में बाइबल:
  • यहेजेकेल १४-१५
  • याकूब २

मंगलवार, 2 नवंबर 2010

पाप के बन्दी

सयंयुक्त राष्ट्र संघ के नशा और अपराध से संबंधित दफतर की सन २००८ की एक रिपोर्ट में बताया गया कि संसार भर में किसी भी समय औसतन १ करोड़ लोग बन्दीगृहों में कैदी होते हैं। क्योंकि कुछ बन्दी छोड़े जाते हैं और कुछ नए बन्दी बनते हैं, इसलिये औसतन संसार भर में प्रतिवर्ष लगभग ३ करोड़ लोग बन्दी रहते हैं। इस तरह के आंकड़ों के कारण बन्दीयों के लिये काम करने को बहुत से लोग प्रेरित हुए और उनके प्रयासों से, बहुत से देशों में बन्दीगृहों की दशा में और बन्दी बनाये जाने से संबंधित कनूनों में सुधार हो रहे हैं।

आत्मिक दृष्टिकोण से बाइबल इससे भी अधिक गंभीर और झकझोरने वाला आंकड़ा देती है " परन्‍तु पवित्र शास्‍त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया..." (गलतियों ३:२२) - सारा संसार पाप का कैदी है!

एक परिच्छेद में, जिस को समझने में बहुत लोगों को कठिनाई होती है, पौलुस कहता है कि यद्यपि पुराने नियम में दी गई व्यवस्था जीवन नहीं दे सकती थी (गलतियों ३:२१), फिर भी वह एक प्रभावी शिक्षक थी हमें यह दिखाने के लिये कि हमें एक उद्धारकर्ता की आवश्यक्ता है जो जीवन दे सके (गलतियों ३:२४)। भले ही संसार का पाप का बन्दी होना बुरा समाचार है, परन्तु साथ ही, उसी पद में सुसमाचार भी है "... ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिये पूरी हो जाए" (गलतियों ३:२२)। अर्थात, पाप के बन्दियों [संसार] के लिये प्रभु यीशु मसीह में विश्वास के द्वारा मुक्ति का मार्ग उपलब्ध है और जो कोई विश्वास से इस मार्ग पर चलेगा वह अवश्य मुक्ति पाएगा।

जब हम अपने पापों से पश्चाताप करके, साधारण विश्वास के साथ अपने जीवन प्रभु यीशु को समर्पित करते हैं, जो व्यवस्था की सारी आवश्यक्ताओं को हमारे लिये पूरा कर चुका है, तो वह हमारे पाप क्षमा करके अपनी धार्मिकता हमें दे देता है, और हम पाप के दासत्व से मुक्त हो जाते हैं। ऐसे लोग अब प्रभु की विश्वव्यापी मण्डली के सदस्य हो जाते हैं, जिसमें देश, राष्ट्रियता, रंग, भाषा, धर्म, सामाजिक ओहदे आदि बातों का कोई महत्व नहीं है। उस मण्डली में सब समान रूप से प्रभु के प्रिय तथा परमेश्वर की सन्तान और उसकी आशीशों के वारिस हैं। ऐसी कोई भी बात जो आज संसार के लोगों को विभाजित करती है, वहां महत्व नहीं रखती।

प्रभु यीशु में हम वास्तव में स्वतंत्र हैं! - डेविड मैककैसलैंड


पापों से मुक्ती ही सबसे बड़ी स्वतंत्रता है।

परन्‍तु पवित्र शास्‍त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिये पूरी हो जाए। - गलतियों ३:२२


बाइबल पाठ: गलतियों ३:१९-२९

तब फिर व्यवस्था क्या रही? वह तो अपराधों के कारण बाद में दी गई, कि उस वंश के आने तक रहे, जिस की प्रतिज्ञा दी गई थी, और वह स्‍वर्गदूतों के द्वारा एक मध्यस्थ के हाथ ठहराई गई।
मध्यस्थ तो एक का नहीं होता, परन्‍तु परमेश्वर एक ही है।
तो क्‍या व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं के विरोध में है? कदापि न हो, क्‍योंकि यदि ऐसी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, तो सचमुच धामिर्कता व्यवस्था से होती।
परन्‍तु पवित्र शास्‍त्र ने सब को पाप के आधीन कर दिया, ताकि वह प्रतिज्ञा जिस का आधार यीशु मसीह पर विश्वास करना है, विश्वास करने वालों के लिये पूरी हो जाए।
पर विश्वास के आने से पहिले व्यवस्था की अधीनता में हमारी रखवाली होती थी, और उस विश्वास के आने तक जो प्रगट होने वाला था, हम उसी के बन्‍धन में रहे।
इसलिये व्यवस्था मसीह तक पहुंचाने को हमारा शिक्षक हुई है, कि हम विश्वास से धर्मी ठहरें।
परन्‍तु जब विश्वास आ चुका, तो हम अब शिक्षक के आधीन न रहे।
क्‍योंकि तुम सब उस विश्वास करने के द्वारा जो मसीह यीशु पर है, परमेश्वर की सन्‍तान हो।
और तुम में से जितनों ने मसीह में बपतिस्मा लिया है उन्‍होंने मसीह को पहिन लिया है।
अब न कोई यहूदी रहा और न यूनानी, न कोई दास, न स्‍वतंत्र, न कोई नर, न नारी; क्‍योंकि तुम सब मसीह यीशु में एक हो।
और यदि तुम मसीह के हो, तो इब्राहीम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।
एक साल में बाइबल:
  • यर्मियाह २७-२९
  • तीतुस ३